शहर के चारों ओर फ़ैली हुई बिल्डिंगे, तालाब, बड़े मैदान, राजे रजवाडो की कब्रे, सुने टाकीज और अंगरेजी फिल्मो के चटकीले पोस्टरों से अटा पड़ा बाजार बस इसी सबके बीच कई लडकिया जवान हुई और भागी मुसलमानों, सिंधियो और मील मवाली मजदूरों के साथ- ये शहर के हिन्दू ठेकेदार बताते है अब इनका कौन बताए कि इंदौर मुम्बई या नागदे से लाकर इन्होने क्या क्या पाप नहीं किये, क्या गलत सलत धंधे नहीं किये, ड्रग्स नहीं बेचे या लडकियो की दलाली नहीं की. ये शहर के नाम पर ठेकेदारों की जो फौज पैदा हो गयी है आजकल और दिनभर मुह काला करके रात को परिवार के साथ लायंस या रोटरी क्लबों के "इवेंट" करते है उन्हें कौन बताए कि सालो, नालायको इसे मालवी में चुतियापा कहते है पर कुछ भी हो ये चुतियापे है बड़े प्यारे......(देवास के चुतियापे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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