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Showing posts from May, 2019

उम्मीद के बीज ही वट वृक्ष बनेगें 2 June 2019

उम्मीद के बीज ही वट वृक्ष बनेगें संदीप नाईक नईदुनिया 2 जून 2019  यह कहानी है मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र के रीवा जिले के दीनानाथ आदिवासी की, जिले का सुदूर गांव डभौरा जो शायद बघेल खंड का पहला रेलवे स्टेशन था और और यहां से थोड़ी दूर बाद   शंकरगढ़ की पहाड़ियां लग जाती है और फिर इलाहाबाद यानी एकदम उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच का एक बड़ागांव जिसके आसपास सूखे पत्थर ऊंची पहाड़ियां हैं जो जवा तहसील में आता है. डभौरा से 3 किलोमीटर अंदर जंगल में एक गांव है धुरकुच - चारों तरफ सख्त पत्थर, पेड़ पौधों का नाम नहीं - सूखे का साम्राज्य चारों ओर इतना भयावह है कि यहां कोई उम्मीद की किरण भी नजर नहीं आती थी. विकास और तरक्की के पैमानों के हिसाब से यह गांव आजादी के 70 वर्षों बाद भी वैसा का वैसा ही है परंतु एक कारण की वजह से यह गांव सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर के नक्शे पर जाना जाता है और इसका सिर्फ एक कारण था - एक व्यक्ति जिसका नाम दीनानाथ आदिवासी था, अपनी दो पत्नियां और तीन बच्चों के साथ वे यहां रहते है, बहुत साल पहले जब एक बार उन्होंने देखा कि गांव में बहुत सूखा है, पानी की किल्लत

Posts of May Last week 2019

यह तस्वीर राजनैतिक नही बल्कि करुणा, संग, साथ और अंतिम समय तक साथ देने की है - जेंडर की भारतीय धारणाओं को तोड़ती हुई एवं पीड़ा, संत्रास और अवसाद की इस तरह की तस्वीरें आश्वस्त करती है और स्मृति ईरानी को  बधाई  देता हूँ कि उन्होंने यह पहल की और एक नये अंदाज़ में अपना रुख पेश किया मैं इसे राजनैतिक ना मानकर एक सांसद का अपने क्षेत्र के लोगों से कैसा रिश्ता होना चाहिये - यह भी दर्शाया है इस तरह की द्वैषपूर्ण हत्याओं पर कड़ी रोक लगना चाहिये *** शहर भर की नालियाँ और मैला साफ़ करने वाले आदमी को देख दार्शनिक महोदय ठहर गए। "बहुत कठिन काम है तुम्हारा ! यूँ गंदगी साफ़ करना... कितना मुश्किल होता होगा ! दुःख है मुझे ! मेरी सहानुभूति स्वीकारो।" दार्शनिक ने सहानुभूति जताते हुए कहा। "शुक्रिया हुज़ूर !" मेहतर ने जवाब दिया। "वैसे आप क्या करते हैं ?" उसने दार्शनिक से पूछा। " मैं? मैं लोगों के मस्तिष्क पढ़ता हूँ ! उन के कृत्यों को देखता हूँ ! उन की इच्छाओं को देखता हूँ ! विचार करता हूँ ! " दार्शनिक के जवाब में एक तरह की इतराहट थी। "ओह ! मेरी

मैं किसी तारे सा चमकता दूर से बीज को पिता बनते देख मुस्कुराता रहूँगा - पितृ ऋण के तीस बरस 27 मई 2019

पितृ ऋण के तीस बरस  1 स्मृति में यादें धुँधली पड़ रही है पहली स्मृति 1969 के आसपास की है, माँ के साथ कसरावद से लौट रहे है और नर्मदा उफान पर है स्कूल पूरा कर पहले माले पर बने छोटे से घर मे ताला लगाकर हम तीनों भाइयों को लेकर बस में बैठी, बरसात है और बस चल दी है रास्ते में पता लगता है कि नर्मदा माई आज उफान पर है , कुंदा नदी भी - रास्ते मे रुकना पड़ेगा, कंडक्टर कहता है, रात भर जागकर लौटते है, बस स्टैंड पर साइकिल लिए इंतज़ार में कोई है और उन्हें देखकर ही पुलकित हो उठते है हम तीनों भाई एक बड़ा, फिर मै और माँ की गोद मे छोटा माँ की हिम्मत को संवारते है पिता, आंखों में सम्मान और हाथ से बेग छीनकर सायकिल पर लटका लेते है और हम दोनों को आगे पीछे बैठा लेते है छोटा माँ की गोद में लहालोट है पिता को देखकर, सायकिल लुनियापुरे वाले घर पहुंचती है महू में सुबह ही निकल जाते हो बाजार - घर में सात भाई बहन और माता पिता है , सबकी जिम्मेदारी सिर्फ दो बहनों की शादी हुई है ; ग्वालियर स्टेट में दसवीं पास कर नौकरी लगी थी शिक्षक की, तन्ख्वाह थी साठ रुपये प्रतिमाह उसी से अपना और घर का खर्च चलना कितना मुश

19 May 2019 Election 2019

मतदान केंद्र पर महिलाएं थी पीठासीन से लेकर महिला कांस्टेबल तक मेरे सामने सेक्टर अधिकारी आई दो - महिलाएं थी , उनके साथ दौड़ने वाली दो महिलाएं , एक मॉडल स्कूल में गया एक अपनी रिश्तेदार को खाना देने तो वहां भी वह पीठासीन थी और पूरी टीम महिलाओं की , वहां 3 बूथ थे महिलाएं ही थीं शहर भर में महिला पुलिस अधिकारी, प्रेक्षक महिलाएं, घर से छोटे भाई की पत्नी ठेठ आदिवासी गांव उदयनगर के पास कल से गई है उसके साथ भी दो महिलाएं है, कल सुबह केवी देवास में कुछ परिचितों को चुनाव सामग्री लेने जाना  था वहां भी महिलाएं थी बहुतायत में कुल मिलाकर अनुशासन, शांति और बेहद व्यवस्थित तरीके से सब कुछ चल रहा है , कही कोई अभद्रता या कुप्रबंधन नही पढ़ाई का असर, नौकरी में आने का असर और इन महिलाओं ने दिखाया है कि वे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कौशल, दक्षता और प्रतिबद्धता से निभा सकती है महिला शक्ति को सौ सौ सलाम - सच है बेटी पढ़ेगी तो विकास गढेगी अब बारी नई सरकार की कि पंचायत और नगरीय निकायों के बाद लोकसभा विधानसभा में इन्हें 50 % आरक्षण दें और क्षमता ताकत को आंकने की जरूरत नही पिछले 15 दिनों में ममता, मायावती, निध

Posts of 17,18 May 2019 Elections 2019

दिन दहाड़े पूरी भारतीय प्रेस को उल्लू बना गए , अब भी कोई शक चौथे स्तम्भ को ताकतवर होने की *** कल की प्रेस वार्ता से समझ आया कि मोदी वोदी कुछ नही सिर्फ मोहरे है बिसात के, असली खिलाड़ी अमित शाह है जो बनाता - बिगाड़ता है सब कुछ मोदी जी की फकीरी के पीछे अमित शाह का विराट स्वरूप है और वे आधुनिक कृष्ण है जो अर्जुन से भाषण दिलवाते रहें 5 साल देश भर में, अम्बानी अडानी के सौदों से लेकर रॉफेल की डील करवाता रहा और प्रज्ञा से लेकर साक्षी महाराज और निहालचंद्र जैसे बलात्कारी को कैबिनेट में झेलता रहा, सुषमा, उमा, सुमित्रा, आडवाणी , जोशी तक को किनारा करवाता रहा , सन्नी देओल से लेकर रव िकिशन और मनोज तिवारी जैसे नचनियाओं को फलक पर लाकर स्टार बना दिया अमित शाह बेताज बादशाह है इस मुल्क और धरती का अब ट्रम्प भी सेवाएं ले सकता है इनकी मोदी जी सावधान हो जाइए, आप मोहरा है और पिछले पांच वर्षों से प्यादे के रूप में खेलते रहें - याद है ना मोहन भागवत जी की घुड़कियाँ और बाकी सब भी चाहे वो तोगड़िया हो या गोविंदाचार्य , ख़ैर - दूसरे कार्यकाल में यह वजीर नया शहंशाह खोज लेगा और आप धृतराष्ट्र बनकर अपने ही कौरवो

Election 2019 Posts of II and III Week of May 2019

एनजीओ में रहकर हम सबने सीखा कि संस्थाएँ, सिद्धांत और मूल्य व्यक्तियों से बड़े होते है - चाहे वो एनजीओ के आका हो, मालिक हो या वरिष्ठतम अधिकारी यही बात पार्टियों के लिए लागू होती है अफसोस कुछ लोग अपनी औकात भूल जाते है और क्षुद्र स्वार्थों के लिए सब कुछ दाँव पर लगाकर सिद्धांत, मूल्य भूल जाते है और इस सबमें एनजीओ या पार्टी को विनाश के मार्ग पर ले आते है *** क्या कारण है कि प बं और केरल में भाजपा अमित शाह और कैलाश विजयवर्गीय जबरन घुसना चाहते है , पूरी व्यवस्था को ध्वंस कर रैली, रोड शो करना क्या और क्यों जरुरी है यह तय है कि लठैत हताशा में बौखला गए है और अब आखिरी दौर में जोड़ तोड़ करके जबरन दादागिरी करके बची हुई सीट्स पर जोर लगा रहे है -160 से ज़्यादा अकेली भाजपा की सीट्स नही आ रही इसलिये मूर्खतापूर्ण साक्षात्कार दे रहें हैं, सड़कों पर गुंडागर्दी कर रहें है - यह कुंठा अभी 19 मई तक रहेगी और 23 की दोपहर से "डोंकी - हॉर्स राइडिंग" का गं दा खेल शुरू होगा ममता ने जवाब सही दिए पर यह भी गलत है कि रैली के लिए अनुमति नही देना सहज भाव से करने देती तो कुछ फर्क नही पड़ता , फालतू