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Posts of 17,18 May 2019 Elections 2019

दिन दहाड़े पूरी भारतीय प्रेस को उल्लू बना गए , अब भी कोई शक चौथे स्तम्भ को ताकतवर होने की
***
कल की प्रेस वार्ता से समझ आया कि मोदी वोदी कुछ नही सिर्फ मोहरे है बिसात के, असली खिलाड़ी अमित शाह है जो बनाता - बिगाड़ता है सब कुछ
मोदी जी की फकीरी के पीछे अमित शाह का विराट स्वरूप है और वे आधुनिक कृष्ण है जो अर्जुन से भाषण दिलवाते रहें 5 साल देश भर में, अम्बानी अडानी के सौदों से लेकर रॉफेल की डील करवाता रहा और प्रज्ञा से लेकर साक्षी महाराज और निहालचंद्र जैसे बलात्कारी को कैबिनेट में झेलता रहा, सुषमा, उमा, सुमित्रा, आडवाणी , जोशी तक को किनारा करवाता रहा , सन्नी देओल से लेकर रविकिशन और मनोज तिवारी जैसे नचनियाओं को फलक पर लाकर स्टार बना दिया

अमित शाह बेताज बादशाह है इस मुल्क और धरती का अब ट्रम्प भी सेवाएं ले सकता है इनकी
मोदी जी सावधान हो जाइए, आप मोहरा है और पिछले पांच वर्षों से प्यादे के रूप में खेलते रहें - याद है ना मोहन भागवत जी की घुड़कियाँ और बाकी सब भी चाहे वो तोगड़िया हो या गोविंदाचार्य , ख़ैर - दूसरे कार्यकाल में यह वजीर नया शहंशाह खोज लेगा और आप धृतराष्ट्र बनकर अपने ही कौरवों को एक एक कर खो ही चुके हो बस अब दुशासन और दुर्योधन यानी गडकरी और जेटली ही आपके पाले में बाकी है
सावधान नया मुकुट पहनने के पहले राजसिंहासन की पूजा अनुष्ठान करवाइए और फिर एक बार सोचिए क्योंकि कई विधान सभा चुनाव अब शुरू होंगे और आप गांडीव धारी बनकर इस सारथी श्रीकृष्ण के लिए भाषण के तीर कब तक चलाते रहेंगे, आपकी तो औलाद नही क्योकि फकीरी है आपमें पर जय शाह को तो वंश चलाना है और फिर गुजरात का तिलक भी करवाना है आनंदी बेन या कोई और गुज्जु साथ नही देगा
हमारे मालवा में भी कल चुनाव है देखना है कि श्रीकृष्ण के योग्यतम शिष्य अर्जुन के बाणों का कितना असर इस संघी कुल पर पड़ता है और पांडव क्या अर्जित करते है
बाय द वे अमित शाह We Love You Dude, क्या कौशल है, ससुरा कोई नई गीता क्यों नही लिखता बै
मैं प्रज्ञा को कभी दिल से माफ नही करूँगा
- मोदी
◆◆◆


सब नाटक है यदि सच में पश्चाताप है तो
◆ आज रात ही राष्ट्रीय चैनल्स पर आकर भाषण दें
◆ प्रज्ञा को बर्खास्त करें पार्टी से और एफ आई आर करवाएं
◆ भोपाल से वापिस लें उसका नाम
◆ कल पूरा दिन बापू की समाधि पर उपवास करें - सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक
◆ और अंत में खेद प्रकट करें कि पिछले डेढ़ माह जो भी गलत बोलें वह सब अनर्गल था
◆ वादा करें कि किसी के प्रति मन में दुर्भावना नही रखेंगे
◆◆◆
उफ़ , मैं भी गर्मी में पागल हो गया लगता है , सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है
***
संविधान में एक शब्द है राष्ट्रपति, अंबेडकर को यह समझ नही थी कि वो किस पद का सृजन कर रहें है - सबसे ज्यादा तनख्वाह, सुविधा और आलिशान बंगला लेकर बुढ़ापा भोगने वाला, अपने कुटुंब को समुद्र पार कराने वाला कोई भी शख्स जिसे दिल दिमाग़ रखने और इस्तेमाल करने की जरूरत नही देश का सर्वेसर्वा बन जाता है
मजेदार यह कि इस समय लोगों की कमाई, पसीने और टैक्स के रुपयों पर सुख भोगने वाला यह बन्दा परिदृश्य से गायब है , इतना ही नही बल्कि चुप है , जबकि कानून का ज्ञाता है और तो और अपने आकाओं के लिए प्रतिबद्ध है जिन्होंने उसे वहाँ पहुंचाया और सजा धजाकर बैठा दिया जैसे कांग्रेस ने प्रतिभा देवी पाटिल को लिप पोतकर बिठाया था, तो हम संविधानिक चुनाव आयोग से क्या उम्मीद रखें जो ब्यूरोक्रेसी के गिरगिटों से भरा पड़ा है, चुनाव आयोग एक मीडिया से ज्यादा चाटुकार और कमज़र्फ साबित हुआ धिक्कार और शर्मनाक
और कोर्ट , उफ़ - माननीय साहब जो जनवरी में बाहर आकर रोये थे अब क्या एक साल में ही न्याय हो गया, आप न्याय के अनूठे रोल मॉडल हो जो आप कर रहे हो , देखते हुए मख्खी निगल रहे हो ना - वह घातक ही नही आपका नाम इतिहास में ना लिखने के लिए पर्याप्त हो, मेरे जैसे कानून के छात्र यह याद रखेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में क्या और कौन नही होना चाहिये ताकि कम से कम न्याय के मूल सिद्धांत शेष बचें रहें
शैतानी का नंगा नाच दुनिया के किसी देश मे नही हुआ होगा और अभी भी आप कहते है कि देश ठीक है और सब नियन्त्रण में है
***
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् |
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ||

जिसे स्वयं की प्रज्ञा (तेज बुद्धि) नहीं उसे शास्त्र किस काम का ? वैसे ही जैसे अंधे मनुष्य को दर्पण किस काम का ?....
देशभक्ति और राष्ट्रवाद यद्यपि एक दूसरे के समानार्थी नहीं है किंतु ये एक दूसरे के अपररूप जरूर हैं, समाजविज्ञान और राजनीति विज्ञान की पारिभाषिक शब्दावलियों में इनकी परिभाषाएँ प्रायः बहुअर्थी और सामान्यतः विवादित रहीं है |
मानव इतिहास के पत्थर युग से लेकर परमाणु युग तक का राजनीतिक इतिहास अलब्ध की प्राप्ति, उपलब्ध के संरक्षण और लब्ध के संवर्धन का रहा है जिसमें ज़मीन के संघर्ष, और उसके प्रति मानव की 'हेतुभक्ति' आज भी यथारूप प्रासंगिक है |
राष्ट्रवाद तो फिर भी इतिहास, परम्परा और विधान की औपचारिक शब्दावलियों से बनी एक राजनीतिक अवधारणा है जिसे अंशतः व्याख्यायित किया जा सकता है, 
लेकिन देशभक्ति पूर्णतः मानव की श्रद्धा,आस्था, विश्वास और समर्पण से जुड़ा कोई पारलौकिक/आध्यात्मिक विषय लगता है ,जिसके बारे में हर कोई प्रज्ञावान और प्रज्ञाहीन व्यक्ति अपनी सम्मति स्पष्ट कर देता है |

" भक्ति तो अनुभूति का तत्व है कोई कथनोपकथन का विषय नहीं है... ''
लेकिन आध्यात्म और अनुभूति में क्या मानव की 'प्रज्ञा' (विवेक) नष्ट हो जाती है...?
अपने ईष्ट (देश) की उपासना में खोया भक्त (देशभक्त) क्या इतना पाशविक हो सकता है कि 'हाड़ माँस के एक निशस्त्र महामानव' की छाती पर 9mm बरेटा पिस्टल की तीन गोलियां उतार दे..?
और फिर भी देशभक्त कहलाए..

देशभक्ति की यदि यही परिभाषा है तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि ये देशभक्ति या तो हिटलर की क्रूर नस्लवादी सोच की मिलावट है या ' मुसोलिनी की फांसीवादी सोच का भारतीय संस्करण ' है |
वरन भारतीयता की अंतःप्रज्ञा इतनी कलुषित तो नहीं हो सकती की भक्ति को मदांधता (मतांधता) का रूपक मानने लगे...
मेरी देशभक्ति इतनी निरूपाय नहीं कि बहुसंख्यकों के बाहुबल से प्रभावित होकर अल्पसंख्यकों के भय का कारण बन जाए |
वह इतनी संकीर्ण भी नहीं कि धार्मिक मठाधीशों के मठों और वणिकमति कुबेरों के कोषों से निर्देशित हो |
वह इतनी विभत्स भी नहीं कि एक पशु की आस्था के आगे व्यक्ति की गरिमा को तिलांजली दें दे |
इतनी अन्धी भी नहीं कि मानवतावाद के आगे राष्ट्रवाद को विजित होने दें |
वह इतनी पक्षपाती भी नहीं कि मानव समाज को धर्म, जाति, नस्ल, रंग, वर्ण ,भाषा और क्षेत्र के विभाजनकारी कारकों में बांट दे |
किसी की आस्था के ऊपर अपनी आस्था का आरोपण,
किसी की निजता में अपने मंतव्यों का अतिक्रमण, 
ध्वजाभिनन्दन की औपचारिक प्रथा ,
राष्ट्रगान के सम्मान में 52 सैकेण्ड ,
राष्ट्रपुरूषों की प्रतिमाओं पर फूल-मालाएँ ,
वंदे मातरम् की चार लाईनें ,
भारतमाता की जय की बार-बार आवृति ,
और राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों के प्रति सम्मान का स्वांग ही देशभक्ति नहीं है..

वह राजनीतिक सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं वरन् साध्य है मनुष्यता के पवित्र संकल्प को पूरा करने का...
मेरी देशभक्ति वह है जो बहरी सरकार के कानों का परदा खोलने के लिए बारूद उछालती थी, उनके रक्त से धरा को सिक्त करने के लिए नहीं ,
मेरी देशभक्ति वह वीरांगना है जो अपने अतीत का गौरव आंखों में लेकर ,राष्ट्र का भविष्य पीठ पर बांधे, वर्तमान से लड़ती हुई शहीद हो जाती है ,
मेरी देशभक्ति वह है जो राम की जयकार के साथ नारे तदबीर का घोष करती हुई अरिदल पर टूट पड़ती है,
मेरी देशभक्ति अश्फ़ाक़उल्ला खां की उस प्रार्थना में है जो मुसलमान होकर भी अल्लाह से दूसरा जन्म मांगती है, देश पर शहीद होने के लिए...
जो बंदूक की आखिरी गोली को अपनी ही कनपटी पर रखना पसंद करती है, बनिस्बत इसके कि फिरंगी बारूद खाकर मरा जाए
दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी सत्ता के आगे एक काठ की लाठी लिए खड़े 'अधनंगे फकीर ' के उस आत्मविश्वास में है मेरी देशभक्ति जिसके एक इशारे पर सारा भारत समवेत होकर चल पड़ता था स्वतंत्रता के महान लक्ष्य की ओर....
उस हांड मांस के महात्मा को गोली मारकर भी यदि नाथुराम गोड़से देशभक्त है तो मुझे संदेह है सम्पूर्ण भारत की 'प्रज्ञा' (विवेक) पर..............

सत्यम् सम्राट आचार्य 

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