एक बहुत पुराना और प्यारा सा दोस्त है देश के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञों में उसकी गिनती है जब हम लोग छोटे थे तकरीबन नवमी, दसवी में तब से वो डाक्टर बनने के सपने देखता. खूब जी तोड पढाई करके वो डाक्टर बना और पिछले बीस बरसों से वो अपोलो, एस्कार्ट, फोर्टीज और मियो जैसे बड़े संस्थानों में काम कर रहा है. पिछले कई दिनों से वो कह रहा है कि यार संदीप मै जो कर रहा हूँ उसमे मजा नहीं है रूपया बहुत है पर जिन बच्चों का मै इलाज करता हूँ वो सब विदेशी है और मुझे अपने इलाके के बच्चों का दर्द महसूस होता है. धार- झाबुआ-बड़वानी जैसे इलाके में बच्चे कुपोषण से मर जाते है शर्म आती है मुझे अपने पढाई और ज्ञान पर, कुल मिलाकर लब्बो लुबाब यह निकला कि हम दोनों मियाँ बीबी मिलकर एक ऐसे बच्चों का अस्पताल खोलना चाहते है जहां विश्व स्तर की सुविधाएं हो, निशुक या न्यूनतम शुल्क पर हो और पिछड़े इलाकों में लोग इसका इस्तेमाल करें- कोई बच्चा इलाज के अभाव में दम ना तोड़े. अब सवाल कई है यह दोस्त कहता है कि आई सी यु की भीतर की मशीने महंगी है और जो कंपनिया इन्हें बेचने का धंधा करती है वो लागत मूल्य से कई गून
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