Skip to main content

Posts

Showing posts from 2014

मै गवाह रहना चाहता हूँ - एक काले दिवस 16 दिसंबर पर दर्द के साथ

मै गवाह रहना चाहता हूँ  बच्चों की जिद, हंसी और लड़कपन में  इससे पहले की ख़त्म हो जाए खुशी  इससे पहले ख़त्म हो जाए आवाजें मै सब कुछ अपनी इन्ही आंखो से  देखना चाहता हूँ अपने जीते जी टीवी पर दृश्य भयावह है, कोई कैसे इतना हरामी हो सकता है. जिस धर्म और मजहब के अनुयायी बच्चों के खून से जन्नत का रास्ता खोज कर अमन की दुनिया को आतंक का पर्याय बना देने पर आमादा है , उसे मैं कोसता हूँ!। इन लोगों का कोइ धर्म नहीं होता इन्हें सिर्फ हैवानियत से ही ठीक किया जा सकता है। बच्चों के लिए काम करने वाले हम सब लोग इसकी निंदा करते है और ऐसे जुनूनी और मजहबी लोगों पर सौ-सौ लानतें भेजते है। शर्म करो, डूब मरो और ऐसे लोग जो इनसे सहानुभूति रखते है उन्हें मैं मानवता से बेदखल करता हूँ दुखी हूँ द्रवित हूँ उन अभिभावकों के लिए जिन्होंने आज इस्लामिक तालिबान के हाथों अपने शहजादे - शहजादियाँ खोये है । ॐ शान्ति !!!

नशे से हटकर रचनात्मकता

समाज को नशे से हटाकर रचनात्मकता की ओर बढाने की जरुरत  कल प्रधानमंत्री जी ने नशे के बारे में अपनी चिंता जाहिर की है, यह शायद पहला मौका है जब भारत के प्रधानमंत्री  को नशे जैसी लत के बारे में सरोकार रखते हुए राष्ट्र को संबोधित करना पड़ रहा है, आज हमारी पीढी प्रोडक्टिव और सृजनशील ना होकर एक नशीली पीढी बन रही है, जो किसी भी राष्ट्र और समाज के लिए चिंता की बात है. निश्चित ही नशा एक भयानक बीमारी बनकर समाज के हर हिस्से में अपनी घुसपैठ बना चुका है. मप्र में अपने काम के दौरान मैंने छोटे बच्चो से लेकर बड़े - बूढों को इस प्रवृत्ति में लिप्त पाया है, गुटखा, तम्बाखू और बीड़ी -सिगरेट ही नहीं वरन भयानक किस्म का जहरीला नशा जिसका अंत सिवाय मौत के कुछ नहीं हो सकता फैला हुआ है शहरों से लेकर दूर दराज के गाँवों में. छोटे बच्चे जो प्लेटफोर्म पर रहते है, शहरों और गाँवों में कचरा बीनते है भी इससे अछूते नहीं है, आयोडेक्स से लेकर सूंघने के अनेक प्रकार के नशे वाले  विकल्प उनके पास मौजूद है, बड़े लोग शराब से लेकर सुई से नशीली दवाओं का सेवन कर रहे है, जो वे व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से  कर रहे है, उससे एड्स जैसी

तुम्हारे लिए यह जीवन और सारा प्रपंच है

जितना पिछली बरसात में नहीं भीगा, उतना भोपाल से आते में आज भीग गया। शायद अब ठंडक पडी है पुरे साल को कोसता रहा कि सबसे खराब साल था जीवन का, सो आज बरसात ने सारा गुस्सा शांत कर दिया है!!!!! बरसात, बादल , काली घटाएं , दूर किसी कोने में हल्की सी लालिमा, खेतों में चने के हरे कच्चे झूमते पौधे और गेंहूँ की दूब लगभग आपस में बतियाती सी और मिट्टी की सौंधी सी खुशबू जो बिखरती फिजां में खो जाने को बेताब है और ऐसे में तुम्हे याद ना करूँ तो जीने के मायने ही नहीं है!!! फिर पूछता हूँ .... तुम्हारे लिए .... यह जीवन और सारा प्रपंच है.....सुन रहे हो ना....कहाँ हो तुम....?????

इंदौर राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मालवा के लेखक और प्रिय मित्रगण- 8/12/14

इंदौर राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मालवा के लेखक और प्रिय मित्रगण । Desh Nirmohi   Pankaj Chaturvedi   Bahadur Patel   Sunil Chaturvedi   Satya Patel Swatantra Mishra   Sanjay Verma   Gouri Nath

पहली किताब का सुख- नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं

पहली किताब का सुख। आज पहली किताब मित्र , भाई और कहानीकार गौरीनाथ जी से प्राप्त की. ये सभी पुस्तकें इंदौर में कल से आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेले में उपलब्ध है जो 16 दिसंबर तक चलेगा. पुस्तकें अंतिका प्रकाशन के स्टाल पर होंगी. पुस्तक मेला मध्य भारत हिंदी सभा मैदान , श्रीमाया होटल के पास, आर एन टी मार्ग पर प्रातः 11 से रात्रि 830 तक रहेगा. आप सभी का स्वागत है.

हिंदी के प्रसिद्द कवि और वैज्ञानिक लाल्टू का कविता पाठ 5 दिसंबर 14

मित्रो , हिंदी के प्रसिद्द कवि और वैज्ञानिक लाल्टू देवास आ गए हैं उनका कविता पाठ विभावरी कार्यालय 172, सन सिटी, बावड़िया, देवास पर आज 12.15 pm पर रखा है । इस अवसर बया के संपादक एवं कहानीकार गौरीनाथ भी मौजूद रहेंगे । इस अवसर पर देवास के चार साथियों की सद्य प्रकाशित पुस्तकों का भी प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए रखा जाएगा। बहादुर पटेल , सोनल , सुनील चतुर्वेदी और संदीप नाईक की किताबें आज देवास में तथा कल से इंदौर में आयोजित पुस्तक मेले में उपलब्ध रहेंगी। आप सभी आमंत्रित हैं ।  लाल्टू भाई के काव्य पाठ में सोनल. शुचि. सुनील भाई. अनूप. प्रकाश कान्त जी. मनीष वैद्य. जीवन सिंह ठाकुर. बहादुर पटेल. विक्रम सिंह जी. दिनेश पटेल डा ओम प्रभाकर और गौरीनाथ जी.

प्रिया के जायज सवाल और भारत स्वच्छता अभियान

ये है प्रिया आठ साल की है और साथ है उनकी छोटी बहन जिसका अभी कोई तयशुदा नाम नहीं है। ये दोनों बहने रोज़ सुबह तीन बजे कचरा बीनने निकलती है "स्कूल कब जाएँ" यह सवाल प्रिया ने मुझसे पूछा। रोज़ दो सौ से तीन सौ रूपये कमा लेती है जिससे घर चलता है। माँ घरों में काम करती है और वो भी सात आठ सौ कमा लेती है। प्रिया , नरेला क्षेत्र, छोला रोड ,भोपाल की उड़िया बस्ती में रहती है - जो उड़ीसा के विस्थापितों की बस्ती है। गैस त्रासदी में प्रिया के पिता बीमार हो गए थे और उनके पाँव खराब हो गए तब से व ो कुछ कर नहीं पाते। बस्ती में सतीनाथ षडंगी ने अपने संभावना ट्रस्ट से डोमिनिक लापियर के सहयोग से एक गैर मान्यता प्राप्त स्कूल भी खोला है जहां आज 58 बच्चे पढ़ते है यह विद्यालय निशुल्क है परंतु प्रिया और उसकी बहन पढ़ नहीं पा रही। शिक्षा का अधिकार पर काम करने वालों के लिए प्रिया और उसकी बहन एक चुनोती है। हाल ही में यहां कैम्प संस्था ने काम शुरू किया है जो महिलाओं बच्चों और किशोर वय की लड़कियों की सुरक्षा के लिए नगर निगम के साथ मिलकर काम करती है। स्वच्छ भारत अभियान में बड़े लोग तो खूब हाई लाईट हो र

जंगल में गिरगिट

जंगल में एक बार एक भले गिरगिट ने आरोप लगाया कि जंगल में जो भी घोटाले होते है उसके रूपये का उपयोग जंगल में दंगे करवाने के लिए होता है. यह भला गिरगिट जंगलराज का जनक था और शेरो, गधों, हाथियों और उल्लूओं के प्रतिनिधि चूहे के बेहद करीब था. अब सवाल यह था कि इस भले गिरगिट को कैसे पता चला कि दंगे में किसका रुपया कैसे इस्तेमाल होता है और इसे यह कहने का हक़ जंगलराज में किसने दिया था, खैर, आज खुशी की खबर यह है कि एक सियार ने इस भले गिरगिट के आरोपों को सिरे से नकार दिया है और कहा कि चूहे की इजाजत के बिना आरोप तय करने का हक़ किसी को नहीं है. सुना है एक लोमड़ी बड़ी नाराज रही पुरे घटनाकम से .....

‪#‎आलोचकीयज्ञान‬

(12/4/15) फिर आलोचक ने एक लम्बी डकार ली और कहा कि एनजीओ कल्चर ने देश का सत्यानाश किया है और जिस तरह से तलुए चाटकर ये देश में संपत्ति के पूरक बन गए है वह आने वाले समय के लिए, साहित्य के लिए घातक है. देश में अम्बानी - अडानी और गाँव की तस्वीर देखते हुए मुझे लगता है कि हमें आने वाले समय के लिए कुछ ठोस करना होगा, यदि मेरी किताबें बड़ी तादाद में छपे और यहाँ की माटी में रचे बसे और प्रेम में पगे किस्से कोई छापे तो एक खूबसूरत पुस्तकालय बनाया जा सकता है  ऐसे सदप्रयास ही जमीन बचायेंगे क्योकि देश में अराजक माहौल होता जा रहा है और इस समय देश को मेरे जैसे लोगों की नितांत आवश्यकता है. देखो चहूंओर मेरे ही यशगान से देश अटा पडा है, पत्रिकाएं प्रशस्ति गा रही है, रुदालियाँ विरह गीतों में मेरे किस्से सुनाते हुए ऐसी विहल हो जाती है कि जन समुदाय मृतक के बजाय मेरे किस्से में डूब जाता है और फिर क्रान्ति के कदमों से श्मशान के बाहर निकलता है उसमे कोई वैराग्य भाव नहीं वरन एक बदलाव की आशा और तमन्ना होती है,  दूरदर्शन और रेडियो मेरे ही गुणगान में व्यस्त है, तमाम एंकर मेरे साहित्य को आधार बनाकर परिवार पाल रहे है,

भारत भवन में सुकून के कुछ पल. 3 दिसंबर 14

Sushil Kumar Shukla  &  Devilal Patidar  भारत भवन में सुकून के कुछ पल......और बेहद सार्थक चर्चा. एक कला गुरु और एक बच्चों के सरोकारों से जुडा बहुत करीबी दोस्त , अनुज और भयानक गंभीर सम्पादक जो कहता है कि बच्चे फिल्मों से कहानियों कविताओं से गायब हो रहे है, इस्तेमाल हो रहे है तो बाजार में विज्ञापनों में.... दादा यानी देवीलाल जी के साथ बातचीत में मजा आ गया उनसे वादा इया कि एक पूरा दिन साथ बिताने और उनके काम, नए हो रहे कला कर्म और क्या नया किया जाना चाहिए पर लम्बी बातचीत करने आउंगा.  सुशील के साथ भारत भवन से लेकर न्यू मार्केट तक की लम्बी सैर में खूब बातें की और कुछ नया करने का सोचा है अब देखते है कि काम कैसे आगे बढ़ते है. भोपाल रचनात्मक, प्रशासनिक और एनजीओधर्मियों जैसे लोगों का शहर है. अब फिर से जाने की बेला है, कल रात टहल रहा था एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के साथ गप्प करते हुए तो टॉप एंड टाउन पर आ गए बस फिर क्या था आईसक्रीम खा लिया, "न्यू मार्केट आओ और आईसक्रीम ना खाओ तो पाप लगता है" उन्होंने कहा मैंने कहा कि मुझे शुगर की दिक्कत है तो

सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर का स्वास्थ्य भयानक खराब है.

Abhishek Rawat  ये मनावर (धार) के रहने वाले है और इनसे फेसबुक पर दोस्ती हुई थी अभी जबलपुर आया हूँ तो सोचा मिल लूं सो प्रदेश के प्रसिद्द सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर, में पहुँच गया आज शाम को. जहां से अभिषेक आर्थोपेडिक में मास्टर डिग्री कर रहे है. अभिषेक ने बहुत सम्मान से मेरे पाँव छुए और फिर अपना वार्ड दिखाने ले गए और वही पास में एक दस बाय दस के कमरे में ले गए जहां तीन पोस्ट डिग्री कर रहे डाक्टर रहते है. एक साथी कर्नाटक के है. कमरा देखकर रोना आ गया, इतना बुरा कमरा था  कि आप सोच नहीं सकते, मेरा मन रोने को हो आया कि जिस प्रदेश में डाक्टर ऐसे कमरों में रहने को मजबूर कर दिए जाते हो वे आगे जाकर कैसे सरकारी अस्पतालों को ठीक करेंगे? पुरे कमरे में इतने बड़े बड़े चूहे है कि डा सौरभ और ये दोनों डाक्टर हाथ पाँव में दस्ताने पहनकर सोते है क्योकि चूहे ना मात्र इनके बेग काट लेते है, सामान खा जाते है बल्कि इन्हें बुरी तरह से काट लेते है जिससे इनके हाथ पांवों में घाव हो जाते है. कमरे में जाले, बाबा आदम के जमाने का पंखा और बदहाल हालत में पड़े संडास बाथरूम जिनमे झांकने की हिम्मत नहीं थी मे

पता नहीं- सोनल शर्मा का संकलन

"पता नहीं" सोनल का पहला काव्य संग्रह है. सोनल पिछले कई बरसों से समाज के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में लगी हुई है और कविता उनके लिए एक महत्वपूर्ण जगह है जहां वे अपने आपको सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त कर पाती है. इधर हिन्दी की सभी पत्रिकाओं में सोनल की कवितायें प्रमुखता से छपी है और वे लगातार चर्चा में रही है. सोनल की कवितायें हमें एक नए रचना संसार में ले जाती है जहां भावनाएं, द्वन्द और एक रोशनी की राह खोजती छटपटाहट है, यह राह उन सभी गलियारों में से निकलती जो मन क े कही गहरे कोनों से कवि अपने आपसे एकाकार होता है और भाषा और बिम्बों से अपना रचना संसार रचती है. सोनल इन्ही सबके बीच लोगों की आवाज, अपने स्वरों में मिलकर एक वृहद् संसार रचती है जो उन्हें कविता के नए और ठोस धरातल पर ले जाता है और अपने तई वे एक ऐसी दुनिया बनाती है जो उन्हें बाकी सबसे अलग बनाता है और ये कवितायें एक सार्थकता देते हुए व्यापक फलक पर अपने होने को चरितार्थ करती है. अच्छी बात यह है कि सोनल का पहला काव्य संग्रह अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद से आ रहा है जिसका ब्लर्ब हिन्दी के ख्यात कवि और

सारा नमक वही से आता है जहां बूंदों के बीच प्यास है- बहादुर पटेल का संकलन

बहादुर पटेल हिन्दी कविता में अब एक स्थापित नाम है जिनकी कविता एक अलग पहचान बनाती है. टापरी जैसी कविता और ग्रामीण परिवेश से चुनकर वे जो बिम्ब रच रहे थे वे बिम्ब अब विश्व परिदृश्य तक जा पहुंचे है और जहां वे बढ़ती हुई ग्लोबल व्यवस्था में तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ बहुत तीखा तंज कसते है. जहां वे दादी के गेंहूं बीनने की बात करते है वही वे एक आत्महंता आदमी की त्रासदी की बात भी करते है और संवेदनाओं का ऐसा जाल बुनते है कि पाठक बरबस ही कविताओं को आत्मसात करने लगता है. जीवन और आत्महत्या के बीच सिर्फ एक ही क्षण होता है और यदि वह टल गया तो जीवन बच जाता है, इसे वे बखूबी अपनी कविता में चित्रित करते है.  लीलाधर मंडलोई से सही लिखा है कि वे एक अलग प्रकार के कवि है जिनके यहाँ लोक की  नातेदारियाँ, सपनों और संघर्षों के तर्कों की अपनी निजता है. दलालों के देश जैसी कविताओं के साथ वे अपने समाज के आत्म रक्षा के सबक में गुंथे हुए है और आगाह करते हुए बहादुर पटेल बहुत आगे तक जाते है. बहादुर की कविताओं का दूसरा काव्य संकलन "सारा नमक वही से आता है" अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से आ रहा है, जो उनकी कव

संत कहाँ सो सीकरी

    देश की आजादी के बाद से धर्म को हमने दुर्भाग्य से लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा माना और इसका इस्तेमाल हर नेता ने गाहे-बगाहे किया और नतीजा आज सामने है. रामपाल के बहाने से देश में चली आ रही संत परम्परा को आघात लगा है और जिस तरह से हरियाणा सरकार आज एक संत के सामने मजबूर दिखाई दे रही है वह बेहद चिंतनीय है.  कांग्रेस ने पिछले छः दशको में इस परम्परा को समृद्ध किया और आज भाजपा इसी तरीके को इस्तेमाल करके वोट जुगाड़ने की कवायद कर रही है. जिस तरह से इस रामपाल के आश्रम से पेट्रोल बम, हथियार, गैस सिलेंडर और पत्थर जैसी सामग्री मिली है वह एक आश्रम की श्रद्धा और शब्द पर ही सवाल उठाती है, साथ ही अपने भक्तों को जिनमे बच्चे और महिलायें शामिल है, जिस अंदाज में घेरकर यह तथाकथित संत इस्तेमाल कर रहा है वह भी समाज के लिए घातक है.  यह समझना दिलचस्प होगा कि आर्य समाज का विरोधी और एक प्रगतिशील कबीरपंथी इंजिनियर कैसे इतना निर्मम हो गया कि क़ानून और प्रशासन को धता बताकर वह तानाशाह बन बैठा है.  यह स्पष्ट है कि बगैर राजनैतिक संरक्षण के इस देश में कोई कुछ नहीं कर सकता. अब समय आ गया है कि सरकार धर्म और स

जीवन की पहली किताब ....नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं

आखिर जिन्दगी की पहली कहानी की किताब आ ही रही है. सन 1995 से 2000 और फिर सदी के पहले दशक में लिखी कहानियां कई थी, छांटने का बड़ा काम था, कई दिनों से बल्कि दो सालों से चल रहा था, लगातार आलस, घूमने की यायावर शैली, और व्यक्तिगत परेशानियों के कारण समय ही नहीं मिल पा रहा था शायद यह कहना ज्यादा मौंजू होगा कि मै जानबूझकर टाल रहा था. नर्मदा नदी से ना जाने क्यों मुझे बहुत लगाव है, बहुत लम्बी कहानी और सन्दर्भ है और इसलिए इसका शीर्षक भी मैंने "नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" रखा है. इस बीचा हमारे गुरु  Prakash Kant , मित्रों में  Sunil Chaturvedi   Bahadur Patel   Manish Vaidya   Dinesh Patel   Satya Patel   Sonal Sharma  की डांट पड़ रही थी, फरवरी 14 के पुस्तक मेले में अनुज  Jitendra Srivastava  ने भी आग्रह किया और आख़िरी में एक दिन अग्रज  Aaditya Lunavat  के साथ बहादुर और सुनील भाई थे तो बस अंतिम वार्निंग मिल गयी. तुरंत श्रद्धेय  Purushottam Agrawal  जी से आग्रह किया तो उन्होंने सहर्ष ब्लर्ब लिखकर दे दिया और  Gouri Nath  जी ने इसे छापने का जिम्मा लिया. बस इस तरह यह कि