Abhishek Rawat ये मनावर (धार) के रहने वाले है और इनसे फेसबुक पर दोस्ती हुई थी अभी जबलपुर आया हूँ तो सोचा मिल लूं सो प्रदेश के प्रसिद्द सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर, में पहुँच गया आज शाम को. जहां से अभिषेक आर्थोपेडिक में मास्टर डिग्री कर रहे है. अभिषेक ने बहुत सम्मान से मेरे पाँव छुए और फिर अपना वार्ड दिखाने ले गए और वही पास में एक दस बाय दस के कमरे में ले गए जहां तीन पोस्ट डिग्री कर रहे डाक्टर रहते है. एक साथी कर्नाटक के है.
कमरा देखकर रोना आ गया, इतना बुरा कमरा था कि आप सोच नहीं सकते, मेरा मन रोने को हो आया कि जिस प्रदेश में डाक्टर ऐसे कमरों में रहने को मजबूर कर दिए जाते हो वे आगे जाकर कैसे सरकारी अस्पतालों को ठीक करेंगे? पुरे कमरे में इतने बड़े बड़े चूहे है कि डा सौरभ और ये दोनों डाक्टर हाथ पाँव में दस्ताने पहनकर सोते है क्योकि चूहे ना मात्र इनके बेग काट लेते है, सामान खा जाते है बल्कि इन्हें बुरी तरह से काट लेते है जिससे इनके हाथ पांवों में घाव हो जाते है. कमरे में जाले, बाबा आदम के जमाने का पंखा और बदहाल हालत में पड़े संडास बाथरूम जिनमे झांकने की हिम्मत नहीं थी मेरी. ऐसे में कैसे कोई डाक्टर स्वस्थ रहकर तन मन से सेवा करेगा या कुछ सीख सकेगा. बहुत ही शर्मनाक था वह पूरा परिदृश्य, दूसरा- पुरे वार्ड्स में जमीन पर पड़े लोग भयानक गन्दगी और बदबू का साम्राज्य.
हम किस स्वच्छता अभियान की और कहाँ की बात कर रहे है, ये जबलपुर शहर के मेडिकल कॉलेज की हालत है !!! आप सोचिये दूर दराज के अस्पताल कैसे नरक होंगे इसकी कल्पना है किसी को. मैंने जब अभिषेक को पूछा कि बेटा खाना, तो बोला दादा टिफिन आता है इतना भी समय नहीं है कि कुछ जाकर खरीद सके या ढंग का खाना खा सकें, हम क्या पोषण की बात करेंगे हम तो खुद कुपोषित हो रहे है, भयानक गन्दगी और बदबू में रहते है ताकि हम आने वाले समय में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं से दो चार हो सके.
डा प्रसाद जो बेंगलोर से पी जी करने आये है मप्र की व्यवस्था पर हंस रहे थे बोले सर मै क्या कहूं ..हम तो बस चूहों से मुक्ति चाहते है ताकि हमारे हाथ पाँव सलामत रहे. तीन लोग युवा डाक्टर इस दस बाय दस के कमरे में रहते है, एक डाक्टर रात में सेमीनार हाल के एक टेबल पर सोता है.
क्या शर्मनाक नहीं है कि हम अपने काबिल डाक्टरों को जो अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा पास करके आये है उन्हें रहने के लिए और खाने के लिए सम्मानजनक स्थान दे सके ताकि वे सच में सीख सकें और सेवा कर सके. करोडो रूपये का बजट खा जाने वाले मेडिकल कॉलेज और अस्पताल क्या कर रहे है और प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को सिवाय टीम हेल्थ और अपनी ब्रांडिंग करने और अधिकारियों को मंत्रियों से लड़ने से फुर्सत नहीं. कितना शर्मनाक है. सच में यदि आप एक बार यह कमरा और वार्ड देख लें तो मरना पसंद करेंगे बजाय यहाँ नरक भुगतने के. बहुत उदास मन से अभिषेक और उन दो युवा बच्चों के लिए दुआएं देते हुए भारी मन से लौटा हूँ अभी.
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