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Showing posts from April, 2014

कांकेर यानी उत्तर बस्तर का दर्द

कांकेर यानी उत्तर बस्तर का दर्द आप इस स्वतंत्र देश के आदिवासी को पचास से साथ किलोमीटर दूर वोट डालने जाने के लिए मजबूर कर देते है जिसे आपने नागरिक होने के नाम पर एक भी सुविधा नहीं दी बल्कि उससे शिक्षा छीन ली, स्वास्थ्य सुविधाएं छीन ली, उसके ब्लाक के सारे दफ्तर अघोषित रूप से उठा ले गए और उन सभी दफ्तरों को सौ किलोमीटर दूर स्थापित कर दिया जहां दफ्तरों के नाम भी बोर्ड पर नहीं लिखे है ऐसे में बताईये कि क्यों कोई अपने आप को इस देश का नागरिक माने??? दूसरा आप देखेंगे कि यहाँ जहां जहां युरेनियम या लौह अयस्क मिलाने की संभावना है वहाँ वहाँ फौज तैनात की जा रही है, गाँवों से आदिवासियों को भयानक तरीके से विस्थापित किया जा रहा है और धीरे धीरे अक्रके सारी सुविधाएं ख़त्म कर दी गयी ऐसे में आप किसके लिए क्या कर रहे है और क्या नौटंकी दुनिया को दिखा रहे है यह चिंतनीय है. रोज आप ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों की निष्ठा पर सवाल उठाते है, और उन्हें काम नहीं करने देते. किसी भी गरीब को पकड़कर एसपी जेल में डाल देते है और फिर चार पांच  दिनों बाद पत्रकार वार्ता बुलाकर नक्सली बनाकर पेश कर देते

पच्चीस बरसों बाद चारोली

आज बीस पच्चीस बरसों बाद चारोली खाई एकदम जंगल से तोडी हुई ताजी। मेरे लिए छग की यात्रा सबसे बड़ा उपहार था यह । वन अधिकार क़ानून के बाद अब यह मजेदार चीज दुर्लभ हो गयी है और लघु वनोपज भी ख़त्म होते जा रही है। ग्राम कांदा डोंगरी जिला महासमुंद के आद िवासी भाईयों और बहनों ने मेरी छग की यात्रा को नायाब तोहफा देकर अविस्मरनीय बना दिया है। दुर्भाग्य से हमारे बच्चों ने ना चार देखें ना शहतूत बस रिलायस फ्रेश के फल खाकर ज़िंदा है। मैंने इस यात्रा में पुन्नीराम और हेमलता के साथ तेंदू फल भी बहुत खाए । काश ये सब चीजें शहरों में मिलती !!! 10/04/14

सम्भावनाओं के समीकरण कभी संतुलित नहीं हो सकते

इस बीच बहुत कुछ है जो दरका है हम सब के बीच सन्दर्भ, प्रसंग और व्याख्याएं एक अन्तराल के बाद तब निर्जीव होने लगती है जब सिद्धतम हालात, प्रत्युत्पन्नमति, अवचेतन पर उद्दाम वेग से भावनाओं का नियंत्रण अपने चरम पर नहीं होता। इसलिए हे मन क्षमा कर दो और भूल जाओ इन सबको और चल दो उस अनंत की ओर जहां सिर्फ और सिर्फ एकात्म्निष्ठ होकर हम अपने आप को अपने आपमें विलीन करके सर्वस्म में खो जाए। ॐ शांति ,ॐ शांति , ॐ शांति !!! संयोग, संयम, साथ, स्वप्न, सत्यनिष्ठा,समेकन और सत्यता के सात प्रयोग जीवन में लाने के लिए लगातार प्रयासरत रहना ही एक शाश्वत और अनवरत साधना है। इस सबके बीच से रास्ता निकालते हुए जीवन में अपने बनाये मार्ग और मूल्यों के लिए यदि सब त्यागना भी पड़े तो हे मन संकोच ना करो और उस पथ पर चलो जहां सब कुछ निर्विकार भाव से स्वीकारना पड़े और तटस्थ होकर हम सबमे रहकर सबसे निर्लिप्त रह सके। ॐ शान्ति, ॐ शान्ति, ॐ शान्ति !!! कभी जिन्दगी के बाज़ार में अपने को बेचने निकलो तो पता चलेगा कि एक कोने में जगह मिलेगी मंडी के कोने में और जब तक कोई ग्राहक आयेगा, आप का माल बासी हो जाएगा और शाम के झुट

हम अपना "नेशनल केरेक्टर" बना पायेंगे कभी.... श्याम लाल ने पूछा !!!

ये है श्याम लाल अमरकंटक एक्सप्रेस में एसी कोच की देखरेख करते है। कल इन्होने बताया कि लोग कम्बल नेपकिन और सफ़ेद चादरे चुरा ले जाते है फलस्वरूप इनके छह हजार वेतन से हर माह ठेकेदार पंद्रह सौ काट लेता है। इन्होने कहा कि ये दुर्ग के पास एक गाँव  में रहते है बहुत गरीब परिवार है चार हजार में गुजारा भत्ता कैसे होगा। यह सोचना ही मुश्किल है।  एक सवाल बड़ी मासूमियत से श्यामलाल यादव ने पूछा कि आप लोग जो एक-दो हजार का टिकिट खरीदते है रेलवे के कम्बल और नेपकिन क्यों उठा ले जाते है । अगर यही आपका दांत मांजने का ब्रश भी आप बेसिन पर भूल जाते है तो चोरी का इल्जाम हम जैसे गरीबों पर लग जाता है। रात को हमें रूपये देकर सिगरेट दारु माँगते है। कैसे बड़े लोग एसी में आते है और आपकी नियत कितनी खराब होती है। जितनी गन्दगी आप लोग करके जाते है उतनी तो हम भी नहीं करते भले झोपड़ियों में रहते हो।  श्यामलाल ने कहा कि हमें आपके जैसे बड़े लोगों से नफ़रत है जो देश चलाने का काम करते है। गरीबों की हाय लेकर और रेलवे के नेपकिन चुराकर कौनसा मैदान जीत लोगे आप लोग.... श्यामलाल देर तक बड बड रहा था और मै सोच रहा था कि क्या अब इस च

जुगुप्सा के स्थायी भाव और चुनावी विज्ञापन

जैसा देखते है वैसा करते है यह मानव स्वभाव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है और इसका फ़ायदा ही अनेक विज्ञापन कम्पनियां उठाती है और अपना माल बेचती है. विज्ञापन जाने अनजाने में हमारे मन मस्तिष्क पर कही गहरे में धंस जाते है और हम विज्ञापन के झांसे में या यूँ कहूं कि दबाव में आकर अपना व्यवहार तक बदल देते है. अगर इसी बात को ताजा हो रहे चुनाव के सन्दर्भ में देखे तो हम पायेंगे कि आजादी के सात दशक बाद सबसे महँगा ‘विज्ञापनी चुनाव’ अब होने जा रहा है और इस समय हर तरफ चुनाव के विज्ञापनों की गूँज है. एक अनुमान के अनुसार पांच हजार करोड़ का खर्च मात्र भाजपा ने उठाया है और कांग्रेस भी इससे पीछे नहीं है. पेम्फलेट, ब्रोशर, पर्चे, बैनर, बिल्ले, से लेकर अखबारी विज्ञापन और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस समय विज्ञापनों की बाढ़ है. अगर थोडा गौर से देखे तो हम पायेंगे कि इस बार इस दौड़ में भाजपा बहुत पहले से विज्ञापन कर रही थी मोदी को पोज करके चाहे वो गोवा का अधिवेशन हो जिसमे आडवानीजी को हटाकर मोदीजी को प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाना और फिर हर जगह से मोदी-मोदी की गूँज को देश के हर कोने में पहुंचाना. चुनाव की आहट होने से पहल