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Showing posts from September, 2022

एक होता है LinkedIn - Post of 27 and 28 Sept 2022

एक होता है LinkedIn का एप और साइट जिसे प्रोफेशनल्स वापरते हेंगे करीब 6500 मित्र जुड़े थे, राम जाने कौन - कौन और जब एप खोलो तो अजीबोगरीब पोस्ट्स दिखती थी,अपन ठहरे देसी आदमी , कम पढ़े लिखें और एकदम बिलन्ट, फालतू की बढ़चढ़ वाली बकर आतीज़ नई और सीखी भी नही आज सबको निपटाया - ताईवानी हो, ब्राजील, अफ्रीकन, अमेरिकन, लण्डन, जकार्ता, इंडोनेशिया, IIT, IIM, LEAD, LSE, Oxford, Howard या अपने यही गांव के पिछवाड़े वाला बच्चा - ससुरे बहुत गन्द मचा रखी थी प्रोफ़ाइल पढ़ो तो पता नही क्या - क्या लिख मारा - जे कोर्स, बो सर्टिफिकेट, जे ट्रेनिंग, बो कम्पनी और ढेर सारे विदेशी बैकग्राउंड वाले चमक दमक के फोटू , ऊँची रंग बिरंगी बिल्डिंग, और अपना लिखा कुछ नही - बस एथी, कैथी, जॉर्ज , कुटियन और भुरकुस की लिखी पोस्ट्स, अलाने - फलाने के वीडियो का रायता फैलाकर रखा है हर तीसरा आदमी वहाँ भी इनबॉक्स में आकर काम मांग रहा है तो भिया और भैंजी कायकूँ इत्ता ज्ञान बाँट रखा वहाँ कि भगवान, अल्लाह और जीसस के बाद तुम्ही ज्ञानी बचे हो, पूरी प्रोफ़ाइल हाथ पाँव जोड़कर अलग - अलग कौशल, हुनर और दक्षताओं में endorse करवा रखी है जमाने भर के लोगों

"सौन्दर्य, सेक्स और बाजार के बीच लपका" - सुनील चतुर्वेदी 26 Sept 2022

"सौन्दर्य, सेक्स और बाजार के बीच लपका" खजुराहो को बरसो से देखते आ रहा हूँ और हर बार जाता हूँ तो लगता है कितना बदल गया यह कस्बा बीएड कर रहे थे सतना से 1992 - 93 की बात होगी, तुलनात्मक रूप से युवा थे हम सब, ग्रामोदय विवि चित्रकूट से बस में भरकर गए थे, देशभर के जवान लड़के - लड़कियाँ और मन्दिर के दृश्य, लड़कियाँ तब आज की तरह नही थी - चुन्नी में मुंह छुपाती और डर- डरकर मन्दिर देख रही थी और कुछ ने तो कसम खाई कि अब इस जन्म में तो नही आयेंगी यह गंदा गंदा देखने और "कभी हनीमून पर पति ले आया तो" मैंने पूछा तो लाल मुंह कर शर्मा कर भाग गई बाहर के बड़े से फैले बगीचे में और हम लडके कनखियों से उन्हें देखते और सोचते कि काश ग्रामोदय विवि आज हमें रात यही रुकने की इजाजत देदें, पर अफ़सोस ..... खजुराहो को हर आदमी अपने नजरिये से देखता है, हम जब मंदिरों में दीवारों पर उत्तेजक सीन देख रहें थे मूर्तियों को मैथुनरत देख रहें थे, वात्सयायन के आसन समझ रहें थे तो कलेजे पर सांप लौट रहें थे , उस ज़माने में 90 ₹ का रोल डलवाकर कैनन के कैमरे से फोटो खींच रहें थे तब हमारा एक साथी और मेरे बचपन का दोस्त संजय

GyanPipasu and Drisht Kavi - Posts of 25 Sept 2022

सीधे आयएएस बनने वाला अफसर जब अपने हस्ताक्षर किसी कागज पर बनाता है या नोटशीट पर कुछ लिखता है जैसे चर्चा, तो उसका अर्थ या क़ीमत उसे मालूम नही होती हैं जबकि प्रमोटी अफसर हर हस्ताक्षर की कीमत जानता है, वह चर्चा नहीं लिखता - नोटशीट पढ़कर सीधे संबंधित विभाग के जिला प्रमुख को कमरे में बुलाता है ; सीधी भर्ती से आया अफ़सर नर्स, पटवारी, तृतीय श्रेणी वाले माड़साब या बाबू की कीमत नहीं जानते और प्रमोटी अफसर पटवारी, माड़साब, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और बाबू को खुदा मानते हैं - क्योंकि उन्हें मालूम है कि ये बर्र के छत्ते है और उनके एक खेल से उनकी कुर्सी झटके में हिल जाएगी और कलेक्ट्री निकल जायेगी एक ही जीवन के बड़े कष्ट है बाबू #ज्ञानपिपासू *** "क्यो बै तूने वो लेह - लद्दाख, 370 के खात्मे और मणिपुर पर आई किताब पढ़ी थी जो उस लेखक ने खरीदवा दी थी उस दिन", लेखक बड़ा धाँसू था एकदम सेटिंगबाज - मैंने लाईवा को पूछा "नही, समय नही मिल पाया , एक दिन दो - तीन छात्र आये थे दारू पीने दिल्ली से - उन्हें घुमाता रहा यहाँ - वहाँ , गाड़ी भी ठुक गई, फिर जाते समय उसमे से एक को पकड़ा दी,बहुत मोटी किताब थी, पल्ले भी नही

विकास संवाद, Kuchh Rang Pyar Ke, GyanPipasu - Posts of 21 to 25 Sept 2022

  विकास संवाद - सोलह बरस की बाली उमर को सलाम एक संस्था के 16 वर्षों पूर्ण होने का जश्न बहुत महत्वपूर्ण होता है जब आप अपनी शर्तों, सिद्धान्त और बगैर समझौते किये काम करते है - खासकरके तब, जब संस्था दलित, आदिवासियों और वंचितों के साथ आम लोगों के मुद्दे, पोषण, आजीविका, शिक्षा एवं स्वास्थ्य से लेकर बजट विश्लेषण और तमाम तरह के अकादमिक कामों, नीति निर्माण, जनोन्मुखी प्रकाशन, कानून बनवाने और योजनाओं को लागू करवाने में ज़मीनी स्तर पर लगी हो पूरी प्रतिबद्धता और पारदर्शिता के साथ मीडिया एडवोकेसी से शुरू हुआ काम आज सँविधान के मूल्यों को व्यापक रूप से फैलने - फैलाने का है - बल्कि यूँ कहें कि सारे कामों को संविधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के फ्रेमवर्क में करने का ठाना है, सँविधान संसाधन केंद्र और रणनीतिक संचार हब के रूप में विकसित होता संस्थान अब किसी परिचय का मोहताज नही है ठेठ देशी तरीकों को सम्मान देते हुए आधुनिक वैज्ञानिक तौर तरीकों से आज दूर दराज़ के गांवों, प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली संस्था का यह सोलह साला संघर्ष रंग ला रहा है - मप्र के साथ छग, बिहार, झारखंड, महारा

Khari Khari, Drisht Kavi and Kuchh Rang Pyar Ke -Posts from 14 to 19 Sept 2022

इलाहाबाद विवि की फीस वृद्धि का समर्थन करता हूँ क्योकि आप बीएससी मात्र 1100 /- ₹ में पढ़ना चाहते है और लगभग 70 % को 18 से 20 हजार तक स्कालरशिप मिलती है उसका क्या, फ्री कॉपी किताबें पेन पेंसिल और निशुल्क होस्टल और घटे दरों पर भोजन और फिर इन्ही सभ्य और पढ़े लिखें युवाओं ने उप्र में सरकार बनाई है ना, इन्ही को हिन्दू राष्ट्र बनाना है, इन्हें ही ज्ञानवापी का मुद्दा चाहिये, इन्हें ही बुलडोजर राज चाहिये ना, इन्हें ही नौकरी नही हिन्दू सम्राट चाहिये था ना भुगतो, जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे, रोज़ पचास रुपये का गुटखा खाने वाले, हजार रुपयों की हफ्ते में शराब पीने वाले और हुड़दंग मचाने वाले होनहार छात्रों को क्यों सब कुछ फ्री और सस्ता चाहिये - आख़िर आपके लाड़ले मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री शिक्षा के इन मठों को चलाने के लिये रुपया कहाँ से लायेंगे, उच्च शिक्षा का तो बजट खत्म ही कर दिया है, विवि के सहायक प्राध्यापक को सिर्फ हरामखोरी और बकर करने और घटिया राजनीति के लिए इतना रुपया देने की जरूरत क्या है और सफ़ेद हाथी रूपी प्रोफेसर को हर माह दो से तीन लाख में पालना है तो यह रुपया आयेगा कहाँ से, कुम्भ में फूंकिये जोर

Hindi Divas , Kuchh Rang Pyar Ke, Joshna's Poem, My Moushi , anmd Posts from 6 to 13 Sept 2022

सुनिए भाई साहब और बहनजी, लाइव होकर ना कविता पढ़ने का मन है और ना हिंदी पर भाषण देने का, दूसरा अपने बच्चों के लिए हिंदी पर भाषण आप ही लिखें - वे आपकी ज़िम्मेदारी या समस्या है - मेरी नही, कृपया यह पाप मेरे मत्थे ना मढ़े - इतनी फुर्सत नही कि आपके बच्चों के अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की बदमिज़ाज मेम्स के लिए मैं अपना दिमाग़ खपाऊँ और उनके मेडल्स की ग्यारंटी लूँ और अंत में प्रार्थना अपने कल के लाइव के निमंत्रण ना भेजें, मैं ब्लॉक कर दूँगा बकवास करने वालों को --- दिमाग़ खराब कर रखा है हिंदी के माड़साब लोग्स, गंवार अभिभावक, हिंदी का श्राद्ध करने वाले पुजारियों और कवियों ने कल शाम से #14सितंबर2022 #हिंदी_दिवस *** नरेंद्र मोदी या कोई संघी भाजपाई जो दर्प और अहम में तुष्ट है, नफरत और हिंसा से जिनके दिमाग़ भरे हुए है, रुपये की हवस और देश बेचने के ख्वाब संजोने वाले कभी इतने सहज हो ही नही सकते इसलिये इन्हें आम आदमी के पास जाने में ख़ौफ़ सताता है, ये डरते है लोगों से, उनके प्यार और आपसी सौहार्द्र से, भाईचारे और गैर मजहबी रिश्तों से और जो डरता है वह सुरक्षा के घेरे में रहता है और उलजुलूल बोलता है और पूंजी का साथ दे