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Showing posts from February, 2018

Posts of Last Week of Feb 2018

Posts of Last Week of Feb 2018  गौमूत्र - गोबर से लेकर चिकित्सा विज्ञान तक तमाम कूढ़ मगज कचरा और ना जाने क्या क्या से वैज्ञानिक मानसिकता का सत्यानाश कर दुनिया को नई अंधविश्वासी चेतना देने वाले साँप बिच्छू मोर के आँसू से बच्चा पैदा कर देने वाले देश के संवैधानिक पदों पर आसीन महान जनों से आम लोगों को जो जुगाड़ से जीवन और उपग्रह चला रहे है - को विज्ञान दिवस की शुभकामनाएं और लानत हजारों उन मूर्ख ढपोरशंखी वैज्ञानिक लोगों, वैज्ञानिक मानसिकता रखने वाले लोगों पर जो जात पांत नही मानते, चिंतन और एक्शन में यकीन रखते है साथ ही सबके भले की सोचते है। *** भारतीयों को सरकारों ने बेवकूफ बनाते बनाते 70 साल गुज़ार दिए कि कानून सबके लिए बराबर है। इसी को मानते हुए हम सब बैंकों से लेकर हर विभाग में कानून हाथ में लें , लोन लें योजना का लाभ लें और फिर देखें कि क़ानून के भ्रष्ट रक्षक और कानून के बराबरी वाले सिद्धांत का ज्ञान बघारने वाले क्या कहते है ! यह एक संविधानिक झूठ है जो झांसे से कम नही है अगर ऐसा है तो तमाम न्यायाधीश टेम्पो मैजिक से कोर्ट जाए, कलेक्टर भी गैस की टँकी की सब्सिडी के लिए एजेंसी क

Kejariwal a Dramatist and Modi Posts of 20 - 21 Feb 2018

Kejariwal a Dramatist and Modi  हम सब इतने मूर्ख सच मे है क्या जो गिरगिटों की बात मानकर राफेल, छोटे - बड़े- मझले मोदी से या विक्रम कोठारी से ध्यान हटाकर दिल्ली के मुख्य सचिव को चांटा मारने पर चले जायेंगे। और अगर यह सही है तो अभी शूरूवात है जिस तरह की हरकतें तुम गिरगिट करते हो तलवें चाटने से लेकर पोतड़े धोने तक उसका सिला तो और ज्यादा होना चाहिए। शर्म आती नही हुक्मरानों को जो हमको इतना मूर्ख समझ रखा है और सबसे ज़्यादा अरविंद केजरीवाल पर तरस आता है कि यह बन्दा भी अजीब अहमक है जो हमेशा समय आने पर गुड गोबर करता है । असल मे लगता है कि दिल्ली के नाटक का निर्देशक यही है जो अपने आका को ज्ञान भी देता है और नौटन्की भी बखूबी निभाता है। अरविंद तुम अपने को समझते क्या हो कि तुम्हारे और केंद्र सरकार की सास बहू वाली लड़ाई किसी को समझ नही आएगी और धूर्तता से सब छुप जाएगा ये बताओ तुम भी कही इस बैंक और बाकी नाटक में शामिल तो नही ? और प्रधान सेवक जी आपको ये बचकाने सुझाव कौन देता है कि मन की भड़ास सुनाने के बजाय ये बच्चों वाली मसखरी हरकतें करवाये - सुधीर, अर्णब या रजत शर्मा ? असली बात यह है कि सा

Manohar Parrikar , CM with Lots of Love and prayers for you 20 Feb 2018

Manohar Parrikar , CM, Goa  with Lots of Love and Prayers for you  पर्रिकर ने बीफ़ ज़्यादा खा लिया क्या ? विदेश जाना पड़ रहा है इलाज के लिए मैं के रिया था एक बार रामदेव को दिखा देते पेले ! धिक्कार है नेहरू से लेकर मोदी सरकार तक जिसने सत्तर वर्षों में देश मे एक भी अस्पताल विकसित नही किया जहां सारी सुविधाएं हो, जांच हो और समुचित इलाज हो सकें। इससे तो सिंगापुर ठीक है छोटा सा बित्ता भर देश जहां विश्व का बेहतरीन अस्पताल है। क्या हमारे डाक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ इतना योग्य नही कि एक आदमी का इलाज कर सकें। हजारों लाखों बच्चों को मारकर किसकी दुआएं मिलेंगी सोचा कभी, तुम सब इतने कमींन हो कि नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं का पोषाहार खा जाते हो और उन्हें मरने को छोड़ देते हो तो क्या इलाज की व्यवस्था करोगे ? मुम्बई में कोकिला बेन अस्पताल भी नही, क्या अपोलो फोर्टिस और एम्स मात्र बिल देने की मशीनें है , PGIs लखनऊ और चण्डीगढ़ सिर्फ डिग्री देने की गौ है ? यह सवाल आपको नही मथते तो आपको अब समझ आ रहा कि स्वास्थ्य में बजट की कमी और शिक्षा में मूर्ख लोगों को लीडरशिप देने का क्या अर्थ है ?

Posts of 16/17 Feb 2018

यदि देश की पूरी जनता न्यूनतम राशि बैंक में ना रखने पर दण्ड देने से मना कर दें और अपने खाते ही बंद करवा दें तो इस सरकार की खटिया खड़ी हो जाएगी रिजर्व बैंक के इस तुगलकी आदेश का विरोध कीजिये और उखाड़ फेंकिए मक्कारों और भ्रष्ट लोगों को । बैंक से झगड़िये, बैंक लोकपाल को शिकायत करिये और संगठित होकर अपना प्रतिरोध दर्ज करिये। नही तो इस बैंक व्यवस्था को उखाड़िये। जिस इंदिरा गांधी ने हिम्मत कर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था दुर्भाग्य देखिये कि उसी पद पर बैठकर नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंक व्यवस्था को तहस नहस कर दिया। इससे शर्मनाक क्या होगा कि आम जन से जुड़ी एक संस्था को भ्रष्ट सरकार ने भ्रष्ट बनाकर दीवालिया बना दिया और अपने स्वार्थ के लिए अपने ही लोगों से इस स्थापित व्यवस्था को भंग कर देश की जनता का विश्वास खो दिया। मूर्खों की बातों में ना आकर अपने हित का सोचिये, ये देश इन नीरव मोदी , अम्बानी , अडानी या मेहुल चौकसे से लेकर भ्रष्ट राजनेताओं और अंध भक्तों का नही हम सबका है। बोलिये वरना ये कल आपको मार डालेंगे और आपकी मृत्यु का बेशर्मी से जश्न मनाएंगे। ***** देश की सर्वोच्च से ले

पाब्लो नेरुदा - "इस तरह मरते है हम" - अनुवाद - संदीप नाईक

"इस तरह मरते है हम" पाब्लो नेरुदा  ************************ अनुवाद - संदीप नाईक  मरना शुरू होता है धीरे से  जब तक शुरू ना हो एक यात्रा  शुरू नहीं करते बांचना जीवन का ककहरा सुनना शुरू नहीं करते जीवन संगीत और अनहद नाद   शुरू नहीं करते पहचानना अपने आपको   इस तरह मरना शुरू करते है धीमे से   मार देते है जब अपने जमीर को   बंद कर देते है दूसरों से मदद लेना अपने लिए तो मरना शुरू करते हो आप अपनी बनाई आदतों के गुलाम बनते हुए   एक ही पथ पर चलाते हुए जीवन को   अगर नहीं बदलते ढर्रा अपना रोजमर्रा का   नहीं खोज पाते जीवन के रंग बिरंगी संसार को   मुखातिब नहीं होते अगर अनजान लोगों से   तो यकीन मानिए आप मरना शुरू कर रहे हो जान ना पायें अपने आप को और अनजान रहे अपनी ही प्रकृति से   उद्दाम और अशांत भावों को समझने में असमर्थ   समझाने में उन्हें, जिनको देखकर खुद की ही आँखों में चमक आ जाती है   अपनी तेज साँसों के स्पंदन को ह्रदय में उछलता महसूस करो   तब हो जाता है मरना शुरू असंतुष्टि भी नहीं बदल पाती जीवन का एकाकी राग   पगुराए प्र

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए Posts from 10 to 15 Feb 2018

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए  पसीना तो अभी से आने लगा है 2018 की फरवरी ही बीत रही है, केंद्र सरकार के बने बनाये खेल के परखच्चे उड़ने लगे है । मोदी सरकार के वादों पे क्या जिये और क्या किया ये सवाल लोग उठा रहे है। परभणी और गडचिरोली की दास्तान बहुत भयावह है। यहाँ के बहुत अंदर के गांवों के लोगों से मिलकर भयावह कहानियां सुनकर हैरान हूं। शिक्षा, स्वास्थ्य और खेती की ही बातें भयावह है। मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाको में दूर दूर तक फैले भ्रष्टाचार, महंगाई, राजनीति और प्रशासन के संजाल में गुम्फित किसानों की दरिद्रता , विपन्न स्थिति और दहला देने वाली कहानियां सुनकर आपको इस विशाल देश का नागरिक होने में शर्म महसूस होगी। अच्छी बात है कि आदिवासी और दलित युवा पढ़कर आये है बहुत बारीकी से सबकुछ समझकर अपने समुदाय, जंगल और जमीन के लिए लड़ रहे है। वे भीम राव अम्बेडकर को आदर्श मानकर फुले और सावित्रीबाई का अनुसरण करते हुए सही काम कर रहे है। इनकी बातचीत और चर्चा में जो बगावती तेवर, व्यवस्था के प्रति आक्रोश और बदलाव का जज्बा नजर आता है वह स्तुत्य है। सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी कि कर्वे क

"मैं हताशा को जानता था, आदमी को नही" 6 Feb 2018

"मैं हताशा को जानता था, आदमी को नही" ____________________________ दरअसल में यह एक खीज है जो अपढ़ लोग पढ़े लिखे और योग्य लोगों के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे है। इसे एक षड्यंत्र के रूप में देखें जिसमे चाय बनाने वाली इमेज को एक विश्व विख्यात अर्थ शास्त्री के खिलाफ और अँग्रेजी बोलने लिखने और बाहर पढ़कर आने वाले महात्मा गांधी, नेहरू, राजीव गांधी, इटली से बहू बनकर आई सोनिया गांधी और राहुल गांधी को एक मजाक बनाकर चाय बनाने वाले की इमेज को पुख्ता किया गया। जिस तरह से इस व्यवस्था और इनकी आई टी सेल ने दुष्प्रचार किया वह बेहद गलीज़ और अभद्र था कम से कम पार्टी प्रमुख और प्रधान मंत्री की गरिमा के अनुकूल तो नही था। भारत जैसे देश के मुखिया की छबि को चाय वाला बनाकर दुनिया मे परोसना भी एक तरह का निवेश लाने का ही कदम था और इसके लिए अगर आप मोदी के पहले दो साल देखें तो वे देश छोड़ विदेश में ही रहें और सूचना के अधिकार कानून की धज्जियां उड़ाकर सरकार उनसे संबंधित सारी जानकारियां छुपाती रही शिक्षा की बात हो या किसी स्टेशन पर चाय बेचने की- इतने विशाल देश में एक व्यक्ति नही मिला जो इस बात का गवाह ह

नीलाम्बर की छाँह में 4 Feb 2018

नीलाम्बर की छाँह में  ________________ नीला रंग बहुत पसंद है मुझे क्योकि जब साँसों को विराम देना हो तो कुछ ना करो बस एकाध चुटकी कही से कुछ लेकर फांक लो, शरीर की ये जो शिराएँ हल्का नीलापन लिए रहती है ना गहरे भाव से नीली हो जाएंगी इतनी कि इनके अंदर धंसी हुई धमनियां जो ताज़ा खून लेकर स्वच्छंद बहती है , को भी अपने नीलेपन में समा लेंगी जैसे आसमान समा लेता है हर रंग को अपने में ! बहुत दिनों तक मिला नही फिर वो, दिखा नही किसी से पूछा तो पता चला कि शहर से दूर एक दुनिया बसाने की जद्दोजहद में लगा है और सबसे मिलना भी कमोबेश बन्द कर दिया था ! अचानक एक दिन भोर के सपने में दूर से हाथ हिलाते हुए भिन्नाट निकल गया कही। मैं स्मृतियों में याद कर रहा था कौन था वो ? सुबह नलों में पानी आ रहा था - गर्मियों की दस्तक ने ठंडे पानी से स्नेह बढ़ा दिया है , मुझे आसमान के लाल से नीले होने का बेसब्री से इंतज़ार हर सुबह रहता हैं। आज भी था, जाहिर है मैं जल्दी से छत पर भाग जाना चाहता था। किसी दोस्त का ही फोन आया था और मैं ताज़े उष्ण पानी को बगैर छुए ही घर चला गया उसके। लोग इकठ्ठे थे और दो बाँस के बीच खप्

सूट बूट की सरकार के समानान्तर एक असली आदमी

सूट बूट की सरकार के समानान्तर एक असली आदमी  ____________________________________ मेरी दिलचस्पी त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मणिक सरकार (बांग्ला डायलेक्ट के लिहाज से मानिक सरकार) के बजाय उनकी पत्नी पांचाली भट्टाचार्य से मिलने में थी। मैंने सोचा कि निजी जीवन के बारे में `पॉलिटिकली करेक्ट` रहने की चिंता किए बिना वे ज्यादा सहज ढंग से बातचीत कर सकती हैं, दूसरे यह भी पता चल सकता है कि एक कम्युनिस्ट नेता और कड़े ईमानदार व्यक्ति के साथ ज़िंदगी बिताने में उन पर क्या बीती होगी। पर वे मेरी उम्मीदों से कहीं ज्यादा सहज और प्रतिबद्ध थीं, मुख्यमंत्री आवास में रहने के जरा भी दंभ से दूर। बातचीत में जिक्र आने तक आप यह भी अनुमान नहीं लगा सकेंगे कि वे केंद्र सरकार के एक महकमे सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड के सेक्रेट्री पद से रिटायर हुई महिला हैं। फौरन तो मुझे हैरानी ही हुई कि एक वॉशिंग मशीन खरीद लेने भर से वे अपराध बोध का शिकार हुई जा रही हैं। मैंने एक अंग्रेजी अखबार की एक पुरानी खबर के आधार पर उनसे जिक्र किया था कि मुख्यमंत्री अपने कपड़े खुद धोते हैं तो उन्होंने कहा कि जूते खुद पॉलिश करते हैं, पहले