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Showing posts from November, 2013

सत्ता - उदय प्रकाश

सत्ता............  -उदय प्रकाश  जो करेगा लगातार अपराध का विरोध अपराधी सिद्ध कर दिया जायेगा जो सोना चाहेगा वर्षों के बाद सिर्फ़ एक बार थक कर उसे जगाये रखा जायेगा भविष्य भर जो अपने रोग के लिए खोज़ने निकलेगा दवाई की दूकान उसे लगा दी जायेगी किसी और रोग की सुई  जो चाहेगा हंसना बहुत सारे दुखों के बीच उसके जीवन में भर दिये जायेंगे आंसू और आह जो मांगेगा दुआ,  दिया जायेगा उसे शाप सबसे सभ्य शब्दों को मिलेगी सबसे असभ्य गालियां जो करना चाहेगा प्यार दी जायेंगी उसे नींद की गोलियां जो बोलेगा सच अफ़वाहों से घेर दिया जायेगा  जो होगा सबसे कमज़ोर और वध्य बना दिया जायेगा संदिग्ध और डरावना जो देखना चाहेगा काल का सारा प्रपंच उसकी आंखें छीन ली जायेंगी हुनरमंदों के हाथ काट देंगी मशीनें जो चाहेगा स्वतंत्रता दिया जायेगा उसे आजीवन कारावास ! एक दिन लगेगा हर किसी को नहीं है कोई अपना, कहीं आसपास !!

यातना - अरुण कमल

समय के साथ-साथ बदलता है यातना देने का तरीका बदलता है आदमी को नष्ट कर देने का रस्मो-रिवाज बिना बेड़ियों के बिना गैस चैम्बर में डाले हुए बिना इलेक्ट्रिक शाक के बर्फ पर सुलाए बिना बहुत ही शालीन ढंग से किसी को यातना देनी हो तो उसे खाने को सब कुछ दो कपड़ा दो तेल दो साबुन दो एक-एक चीज दो और काट दो दुनिया से अकेला बंद कर दो बहुत बड़े मकान में बंद कर दो अकेला और धीरे-धीरे वह नष्ट हो जायेगा भीतर ही भीतर पानी की तेज धार काट देगी सारी मिट्टी और एक दिन वह तट जहाँ कभी लगता था मेला गिलहरी के बैठने-भर से ढह जायेगा । -अरुण कमल

होने और मेरे बनने में तीन देवियाँ -चंदू दीदी, शोभना मैडम, और लीला दीदी

शायद कुछ पल ऐसे होते है जब हम गहरी निराशा में होते है और अचानक कही से अपने आ मिलते है, तो सारी उदासी दूर हो जाती है और हम चहक उठते है बच्चों से. लखनऊ में ऐसे ही कुछ विचित्र समय से गुजर रहा हूँ मै इन दिनों.                                               (बाए से चंदू दीदी, शोभना मैडम, और लीला दीदी) अचानक से देवास के बीस बाईस लोग एक साथ आ मिलें वरिष्ठजनों के राष्ट्रीय सम्मलेन में. इनमे मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण थे तीन देवियाँ जिन्होंने मेरे होने में बहुत बड़ा योगदान दिया है. माँ तो पहली गुरु थी, बाद में दादी को अपना आदर्श भी मानता रहा. पर शाला की पहली गुरु शोभना शाह जो गुजराती होने के बाद भी मराठी प्राथमिक विद्यालय में मेरी पहली शिक्षिका बनी और पांचवी तब बोर्ड हुआ करता था, गणित में इन्ही की बदौलत ग्रेस से पास हुआ. आज जब मै इनसे कह रहा था तो बोली भले ही तू गणित में कच्चा था पर आज दुनिया के गणित में तो बड़ा सुलझा हुआ है. इनके तीनों बच्चे मेरे हम उम्र ही थे. दूसरी दो महिलायें है सुश्री लीला राठोड और श्रीमती चन्द्रकला तिवारी यानी चंदू दीदी ये दोनों दीदियों की वजह से मैंने स्काउट म

इन्सुलिन के जनक डॉ. फ़्रेडरिक सेंगर

दुखद खबर परन्तु घटिया राजनैतिक खबरों के बीच एक अच्छी जानकारी देने वाला मित्र ललित कुमार का स्टेट्स. आज इसको पढ़कर इस महान व्यक्ति के बारे जान पाया, जिस इन्सुलिन को सन 1975 से अपने परिजनों के लिए उपयोग कर रहा था और शायद अब अपने लिए भी करना पड़ े, के जनक को नमन. ऐसी खबरों का स्रोत फेसबुक से बेहतर कोई और नहीं हो सकता. धन्यवाद भाई ललित डॉ. फ़्रेडरिक सेंगर का कल निधन हो गया।  डॉ. सेंगर ने इंसुलिन नामक प्रोटीन को सीक्वेंस (सूचीबद्ध) किया था और इसी के कारण डायबिटीज़ के मरीज़ों को इंसुलिन उपलब्ध हो पाया। इस खोज के लिए 1958 में डॉ. सेंगर को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1980 में उन्हें एक बार फिर से रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया! इस बार उन्हें यह सम्मान न्यूक्लिक एसिड को सीक्वेंस करने के लिए दिया गया था। इससे वि भिन्न जीवों के डी.एन.ए. को समझने में मदद मिली और बहुत-सी बीमारियों के बेहतर इलाज की खोज आसान हुई। डॉ. सेंगर जैसे वैज्ञानिक मानवता के रत्न हैं। इंसुलिन की उपलब्धता ने करोड़ों जाने बचाई हैं और करोड़ों लोगों को बेहतर जीवन का वरदान दिया है। डॉ. सेंगर मेडिकल रिसर्च

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर मौलाना आजाद को याद करते हुए सभी शिक्षाविदों को बधाई

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर मौलाना आजाद को याद करते हुए सभी शिक्षाविदों को बधाई, सभी शिक्षकों को  मुबारक शुभकामनाएं. आज के दिन स्व. विनोद रायना और अनिल सदगोपाल जैसे जमीन से जुड़े शिक्षाविदों को याद करना स्वाभाविक है. भोपाल में अनिल हर साल एक बड़ा और अच्छा आयोजन करते है.   और एक अनुरोध कि शिक्षा को शिक्षा ही रहने दें, अपने ख्याली, हवाई, घोर नवाचारी और निजी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ ना करें.  सभी एनजीओकर्मी जो भले ही शिक्षा का 'श' ना जानते हो, भले ही ट्रेक्टर बेचते जीवन बीत गया या खेती किसानी करते, या गैरेज पर टेम्पो और पुरानी सुवेगा या बजाज का स्कूटर सुधारते पर आप मेहरबानी करके अपने दिमागी तनाव और व्यक्तिगत फ्रस्ट्रेशन को बेचारे बच्चों और ट्रेंड शिक्षकों पर ना लादे. अपने अनपढ़, दसवीं या बारहवीं पास कार्यकर्ताओं को कम से कम स्कूल से दूर रखें जो स्कूल में जाकर बच्चों को गतिविधि शिक्षण के नाम पर कूड़ा परोसकर आते है और सारा समय अपने साथ जानकारियों का पुलिंदा भरते रहते है कि देश में इतना प्रतिशत बढ़ गया.  सभी फंडिंग और युएन एजेंसी में काम

बिज्जी के साथ लोक कथाओं के संसार का खात्मा पर वृहद् समाज का सपना ज़िंदा

अनिल बोर्दिया, अरुणा राय, विजयदान देथा ये तीन वो लोग थे जिन्होंने मिल-जुलकर कई ख्वाब बुने थे और मजेदार यह था कि तीनों अलग अलग काम करते थे और अलग क्षेत्रों के थे. जब भी लोक जुम्बिश और कालान्तर में दूसरा दशक की कार्यशालाओं में जाता तो अनिल बो र्दिया के साथ बिज्जी अटैचमेंट के रूप में हमेशा जरुर रहते और कथाओं और प्रसंगों से सामाजिक बदलाव की बातों को इंगित करते, अरुणा, अनिल और बिज्जी ये तिकड़ी घंटों लम्बी बहस करती. बन्कर, शंकर और किसान मजदूर संगठन के साथी और हम भी भी लगे रहते पर कई बार बहस तीखी होने पर बिज्जी ही थे, जो सबको समेट कर रखते.  लोक कथाओं को माध्यम बनाकर उन्होंने ना मात्र एक बड़े वृहद् समाज, जो समता मूलक था, की रचना की, बल्कि आख़िरी दम तक उसी बहुत अभाव और शोर शराबे से दूर वाले संस्थान में ज़िंदा रहे. मैंने साहित्य में लोक, लोक चरित्रों और मिथकों का जो प्रयोग "बदलाव" के लिए करते बिज्जी को देखा है वह दुनिया के किसी भी भाषा में शायद ही मिलेगा.  आज अनिल बोर्दिया नहीं है और अब बिज्जी का जाना, इस बीच परमानंद श्रीवास्तव, राजेन्द्र यादव का जाना हिन्दी का बड़ा नूकसान है.

कामरेड गामा बोले "आधी बीमारी ठीक हो गई-मगर आप काम छोड़ कर क्यों आये कामरेड " कामरेड बादल सरोज फेसबुक पर 9 नवम्बर 2013 अपने नोट्स में

कामरेड गामा बोले "आधी बीमारी ठीक हो गई-मगर आप काम छोड़ कर क्यों आये कामरेड " कामरेड बादल सरोज फेसबुक पर 9 नवम्बर 2013 अपने नोट्स में  9 November 2013 at 15:39 महू विधानसभा क्षेत्र में पार्टी  उम्मीदवार का नामांकन भरवाने और अभियान की सभाओं में हिस्सा लेने मै छह को ही इलाके में पहुँच गया था. सिमरोल या दतौदा में कहीं था जब संदीप नाइक का स्टेटस-लिंक  कामरेड गामा के बहाने सच्चाई की खोज  पढ़ा. चिंता बढ़ी.  सात नवम्बर की सुबह तड़के कामरेड गामा से मिलने उनके घर पहुंचे. सांस लेने में बेइंतहा तकलीफ के बावजूद गामा जी के चेहरे पर चमक आ गयी थी. वे काफी देर तक मुझे अपने गले से लगाए रहे-और भावुक होकर बोले कि "आपके आने से मेरी आधी बीमारी ठीक हो गई है " मगर इसी के साथ उन्होंने सवाल भी किया कि  "आप चुनाव और पार्टी  के काम को बीच में छोड़कर आये क्यों कामरेड?" मेरे साथ पार्टी नेता कैलाश लिम्बोदिया भी गए थे. गामाजी के साथ चाय पीते हुए हम दोनों ने  इलाज की माहिती ली-सारी रिपोर्टें देखीं. उनके बेटे इलियास, नातिन निस्बा से दीगर जानकारियां जुटाईं. गामा जी की तीसरी पीढ़ी

My Blog in Amar Ujala 8 Nov 2013

http://blog.amarujala.com/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97-%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A1-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A/

कामरेड गामा के बहाने सच्चाई की खोज

बीस फीट के बंद अँधेरे गलियारे को पार करते हुए जब हम उस बंद घर के बीच में पहुंचे तो कुछ बर्तन और बिखरा सामान पडा था. जब आवाज दी तो उन्होंने कहा थोड़ा ठहरो फारिग हो लूं.........हम इंतज़ार  करते रहे और उस अँधेरे गलियारे में आती सूरज की मद्धम किरणों को देख रहे थे कि वो कहाँ से दुस्साहस करती होंगी कि घूस जाए और अपने उजियारे से किसी का जीवन उजास से भर दें,  कहाँ से हवाएं आती होंगी ऐसे उद्दाम वेग से कि साँसें अपने आप चलने लगे और जीवन का पहिया अपनी गति से चले और ऐसी तान छेड़े कि सब कुछ सहज हो जाए.  थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद जब हम उस कमरे में घुसे तो पाया कि एक टाण्ड था जिस पर लोहे की पेटियां थी, कुछ अखबार पड़े थे बेतरतीब से, एक टेबल जिस पर मार्क्स का पूंजीवाद, कामरेड पी सुन्दररैया की जीवनी, विधान सभा में वोट देने की अपील और भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों को हराने की गुजारिश करते आलेख, खिड़की में रखा भड-भड करता बहुत पुराना सा टेबल फेन, लंबा चौड़ा पलंग जिस पर अपनी कृशकाय काया के साथ कामरेड इशहाक मोहम्मद गामा पड़े थे. ये वो शख्स है जिसने अपनी पुरी जिन्दगी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ल

जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते है जो मकाम

दृश्य एक:- लखनऊ का हजरतगंज और फूटपाथ पर टी शर्ट की दुकानें, मै पास बैठा कुछ खा रहा हूँ, किसी साथी का इंतज़ार कर रहा हूँ कि देखता हूँ एक युवा जो लखनऊ विवि से पीएचडी कर रहा है (उसने बाद में बताया था) कार्ल मार्क्स की तस्वीर वाला टी शर्ट खरीदता है जिस पर बाकायदा कार्ल मार्क्स का फोटो है दाढी वाला और लिखा है "Doubt Everything", मैंने सहज ही पूछा कि भाई मार्क्स से ज्यादा प्रभावित हो क्या, तो बोला "जी अंकल, एमए में तो अच्छे मार्क्स थे, अब तो शोध है ना, तो मार्क्स का सवाल ही नहीं है", मैंने फिर टटोला और कहा ये तस्वीर वाले मार्क्स बाबा, इशारा भी किया शर्ट की तरफ तो बोला "ओह ये, पता नहीं, क्या है ना मेरी साली गर्ल फ्रेंड मुझ पर बहुत डाउट करती है हमेशा, उसे रिझाने के लिए ये खरीदा है क्योकि इस पर लिखा है Doubt Everything ..........." हे कार्ल मार्क्स.........कहाँ थे तुम, जब ये टी शर्ट पर तुम्हारा चित्र स्क्रीन प्रिंट किया जा रहा था........... दृश्य दो:- देवास में मित्र बहादुर के साथ ए बी रोड से घर आ रहे थे तो देखा एक युवा मस्त वाली 'चे ग्वारा' के चित्र वाली

हमारे साथ हमारे भीतर- घर

और फिर याद आया कि इसी घर में सब कुछ शुरू हुआ, माँ-बाप ने मेहनत से हमें पालते हुए घर सन 1982 में बनाया, इसे संजोया और संवारा, हर कोने में हम अपना बचपन जवानी और अब ढलता हुआ जीवन देख रहे है, सबसे जुड़े- एक बड़ी वृहद् दुनिया से, भाषा और तमीज सीखी . जब परेशान हुए तो घर ही वह शरण स्थली बना जहां हमने अपने आपको हर बार फिर से ढाल लिया कि एक नई लड़ाई लड़ेंगे और जीतकर लौटेंगे. इस दौरान माँ, पिता को खोया, बहुत सारे दोस्तों रिश्तेदारों को खोया जो इसमे से गुजर कर गए थे........ कितनी यादें जुडी है. इतनी सारी मौतों को देखने और बहुत कुछ खोने के बाद किसी ने कहा मकान बेच दो अपशकुनी है, पर ऐसा होता है क्या? समय का पहिया तो घूमता है और चीजें और हम क्षणे क्षणे ख़त्म होते रहते है, और एक बार फिर सब कुछ धीरे धीरे ख़त्म हो रहा है.............पर घर घर ही होता है............घर दीवार, फर्श या खिड़की दरवाजें नहीं होता वो हमारे भीतर बसता है साँसों की तरह से धड़कता और जीता जगता एक सम्पूर्ण घर. हर उस बालू के कण पर, उस ईंट पर, हर उस हिस्से पर लिखा है कि यह सब तो तय था, होना ही था, पर घर अभी भी अपने पुरे स्वरुप म

हिन्दी कविता में नई दस्तक और सम्भावनाशील कवि - अमेय कान्त

अमेय कान्त   सिर्फ एक युवा कवि नहीं बल्कि बेहद भावुक संवेदनशील इंसान और संस्कारवान व्यक्तित्व भी है इसलिए जब वो एक कविता लिखते है तो एक समूचा संसार ऐसा रचते है कि अपने साथ उस सारी जमीन का भी जिक्र करते है जिसकी नुमाईंदगी वो करते है. अपने साथ  बहुत बारीक विवरण, याददाश्त का पिटारा, मूल्य, संस्कार, और वो सब कविता में उकेरते है जो शायद एक चित्रकार अपनी तूली से एक खाली कैनवास पर उकेरना चाहता है और रंग- बिरंगी संसार रचता है और इस दौरान वो प्रयोगधर्मी भी होते है बार-बार नया रचते है और पुरी शिद्दत और ईमानदारी से उस संसार को हमारे सामने लाते है जो या तो विलुप्त हो गया है या बाजारवाद की चपेट में क्षणें - क्षणे ख़त्म हो रहा है. पर इस पुरी प्रक्रिया में कही हडबडाहट नहीं है, बाजार आपको उनकी कविताओं में झांकता नजर नहीं आता, ना ही वो कविता को बहुत लाउड करने के लिए कोइ "जार्गन" का इस्तेमाल करते है. इसलिए बहुत धीमे से वो कविता की दुनिया में प्रवेश कर रहे है. नया ज्ञानोदय, साक्षात्कार, वागर्थ और पिछले महीने में ही हंस में छप चुके अमेय कान्त पेशे से इंजिनियर है और उज्जैन के एक तकन

लखनऊ का चौक और "मलाई मख्खन"

ये है लखनऊ का चौक जो चिकन के कपडे के लिए बड़ा मशहूर है, उस दिन मैंने एक अनूठी खाने वाली चीज देखी "मलाई मख्खन" जो सिर्फ सर्दियों के मौसम में ही मिलता है. अगर आप चौक जाए तो आपको ढेरों रिंकू, पिंकू, और रोशन भाई मिल जायेंगे मलाई मख्खन बेचते हुए.  ससुरा मलाई भी और मख्खन भी, दोनों एक साथ पर जो भी हो बड़ा स्वादिष्ट था बस फिर क्या मेरे जैसे मालवे के चटोरे आदमी को कुछ नया मिल जाए खा ही लेता हूँ बगैर परवाह किये कि अपुन तो शक्कर के भण्डार है........... खैर, बड़ा मजेद्रार था. इसे फ्रीज में नहीं रखना पड़ता है. ये रिंकू मियाँ दिन में तीन से चार हजार रूपया कमा लेते है इसे बेचकर.............आप भी चखिए और जब तक ना जा पायें- लखनऊ, हाय दिल मसोजाकर और मुझे गरियाते हुए इसी चित्र को देखकर जी ललचाईए.............मलाई मख्खन.......और लखनवी चौक.

देवास की खुश्कगवार सुबह

देवा स की इस खुश्कगवार सुबह को सुबह बनाया अनुज चेतन पंडित ने जो आज फ़िल्मी दुनिया के स्थापित कलाकार है. प्रकाश झा के बैनर में बनने वाली लगभग सभी फिल्मों में वे एक दशक से ज्यादा समय से काम कर रहे है, द वेडनस डे, जयप्रकाश जैसी नायाब फिल्मों में  काम करने वाले चेतन देवास के ही है और स्व नरेन्द्र पंडित के सुयोग्य एवं होनहार सुपुत्र है. आज सुबह उन्होंने परिणय वाटिका में देवास के लिखने-पढ़ने वालों और ललित कलाओं से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया और सबसे चर्चा की, जब मैंने पूछा कि ये क्यों तो चेतन ने कहा कि वे मुम्बई में जब भी समय होता है सत्येन्द्र त्रिपाठी के घर जरुर जाते है जहां हर रविवार को बतरस होता है और सुधीजन एक विषय पर बात करते है.  बेहद आत्मीय कार्यक्रम था यह दो तीन घंटे चलने वाला- जहां चित्रकार से लेकर संगीत गीत, कहानी कविता आलोचना के सभी लोग इकठ्ठे थे. नाटकों से जुडी युवा पीढी थी जो अपना जीवन नाटक संगीत में देने की लालसा रखती है. आशा यह है कि देवास की अभिव्यक्ति संस्था इस प्रयास को ज़िंदा रखेगी और आगे बढायेगी. मप्र रोडवेज से सेवानिवृत्त गनी भाई के द

My Blog in Jansatta 31 Oct 2013

My Blog in Jansatta 31 Oct 2013 http://epaper.jansatta.com/c/1853852