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Showing posts from January, 2014

बीमारू राज्यों का नाम लेकर धंधा करने वाले

भारत में कितने भारतवंशी लोग है जो दुनिया में अपने हूनर का डंका पीट रहे है ये बेचारे अपने जिले, गाँव और देश के बच्चों, महिलाओं और युवाओं के स्वर्णिम भविष्य के लिए काम करने वाली एनजीओ को रूपया देते है लाखों-करोड़ों में इस नेक नियति के साथ की सच में ये एनजीओ काम करेंगे और देश के लोगों को प्रगति के पथ पर ले जायेंगे. परन्तु उन्हें क्या मालूम कि ये एनजीओ उनसे मोटी रकम ऐंठकर अपनी जिन्दगी सुधार लेते है, जि न लोगों को कोई काम धाम नहीं मिलता वे करोड़ों रूपयों की एकड़ों जमीन खरीद कर अपने बुढापे का इंतजाम कर लेते है, इन भ्रष्ट और मक्कार लोगों का काम सिर्फ इन भारतवंशियों का सिर्फ भावनात्मक शोषण होता है पर जमीन पर काम ना ये कर पाते है ना कुछ करना चाहते है.  सिर्फ रूपया लेकर ये दो कौड़ी के लोग हवाई यात्राओं और तीन स्टार होटलों में ऐयाशी करने में जुट जाते है, सिवाय बकवास और बिजिनेस के कुछ नहीं करते. सरकार को चाहिए कि इस तरह से स्रोतों से आने वाले धन पर प्रतिबन्ध लगाएं और इन तथाकथित रूप से काम करने वाले भ्रष्ट और मक्कार संगठनों पर रोक लगाए. मेरी जानकारी में ऐसे कई भारतवंशी है जो बेचारे करोड़ों रूपये गरी

ये है शशिकला और अन्य आदिवासी बहनें

जब अलीराजपुर के दूर-दराज के गाँव में गया था तो लगा था कि क्या मतलब है शिक्षा का- ना स्तर, ना गुणवत्ता और ना जाने क्यों ये पढ़ रहे है, ना नौकरी मिलेगी, ना मान सम्मान; परन्तु जब शशिकला से मिला तो सच  कहूं मेरे लिए जीवन के मायने ही बदल गए. विस्तार से लिखूंगा थोडा समय मिल जाए, फिलवक्त इतना ही कि शशिकला खुद बारहवीं पास है इनकी चार बेटियाँ है पति मजदूरी करते है जो अनियमित होती है. संस्था कल्याणी सामुदायिक विकास केंद्र, कठ्थीवाडा से प्रेरित होकर ये बहनें अपनी बच्चियों का जीवन सुधार रही है. इन्हें कल्याणी संस्था ने निशुल्क होस्टल उपलब्ध करवाए है, जहां बच्चियां पढाई के साथ जीवन कौशल शिक्षा और कई प्रकार के हूनर भी सीख रही है, पर स्कूल की फीस आदि तो देना ही पड़ता है. शशिकला की एक बेटी इस होस्टल में रहकर पढ़ रही है.  ये खुद एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी करके दो हजार मासिक रूप से कमाती है और सबसे आश्चर्यजनक यह है कि अपनी चारों बेटियों की फीस में तेरह सौ रूपये हर माह खर्च कर देती है. जब इन्होने कहा तो मेरे पावों के नीचे से जमीन सरक गयी कैसे परिवार का गुजारा करती होंगी, दुनिया के इतने बिरले अनुभवों में

बचा लीजिये अपने देश के बच्चों को इन शिक्षा के नवाचारियों से

साथी लोग पूछ रहे है कि मै इतना अनुभवी, शिक्षित, और अंग्रेजी का जानकार होने के बाद भी और शिक्षा के काम का थोड़ा बहुत सामान्य अनुभवी होने के बार भी यूपी के लखनऊ में एक प्रोजेक्ट में "एडजस्ट" क्यों नहीं हो पाया और क्यों भला लौट आया??? जवाब बहुत साफ़ है कि मै निकम्मा और अयोग्य हूँ यह मैंने सीख लिया और फिर लगा कि व्यर्थ में अपने आपको खपाने से बेहतर है कि कही दूर चला जाए चापलूसों और मक्कारों की दुनिया से  मै तो बिगड़ा था ही, कम से कम अपनी रचनात्मकता तो ख़त्म नहीं होगी उस घुटन और अँधेरे में, शिक्षा के नाम पर व्यवसाय करने वाले, गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर गांजा, शराब और रूपये की हवस में अपने जमीर को डूबो देने वाले तथाकथित भ्रष्ट शिक्षाविदों और प्राथमिक शाला के मास्टर से कंपनी के मालिक बन बैठे गंवार और उज्जड लोगों से मुक्ति तो मिलेगी, लूले- लंगड़े और तोतले और अपने ही बेटों की ह्त्या करने वाले समाजसेवी , अपनी बीबी को तलाक देकर देश भर में मूल्य शिक्षा की बात करने वाले, कंसल्टेंसी के नाम पर सालों से दूकान चलाने वाले देश की प्रखर मेधा शक्ति, सिगरेट और दारु में मस्त महिलायें, छदम मीडिया के