और वापसी अपने घर को जो पुस्तक मेले में मिल लिए उन सभी का शुक्रिया और जो नहीं मिल पायें .... खुदा खैर करें .... वल्लाह!!! काशीनाथ सिंह के साथ और दिल्ली पुस्तक मेले को लेकर आख़िरी वाक्य वहाँ बड़े बड़े उच्च कोटि के घटिया लोग देखे जो सब करते है. ये आत्म मुग्ध लोग जो आत्मघाती है कहेंगे कि हम प्रचार प्रसार से दूर है पर इतने षडयंत्र रचते है कि साथ वाले दोस्तों को या परिजनों को पता नहीं चलता, अपनी ही प्रशंसा में मर जाते है, सब प्रायोजना का खेल है साहब, धीमे से यहाँ-वहाँ चिरोरी करके सब कुछ छपवा देते है. चाहे तरुणाई हो या बुढापा, ये अकथ कहानी का ज़माना है और जो दिखता है वही बिकता है, की तर्ज पर रोज बाहें चढ़ाकर कुर्ता, झबला, सूट और टाई टांगकर अपने घटिया विचारों और चोरी का कॉपी पेस्ट मटेरियल को किताबनुमा बनाकर बेचने का हूनर रखते है. अब नए छोरे छपाटे रुदन करते रहे और आप पोतते रहे अपनी कालिमा पर दाग दाग उजाले या प्रगतिशील जेंडरिया घूमती रहे नाखूनों से होठों पर लाली लपेटकर, छुपाती रहे बुढापा, पर सच तो सच है भैया कि ये पब्लिक है सब जानती है! ये दिल्ली है बाबू, जब इसने किसी को नह
The World I See Everyday & What I Think About It...