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Showing posts from July, 2016

Posts of 31 July 16 शेखर सेन देवास में

बहुत कुछ नही होना था जीवन में. कई बार गधों, मूर्खों और विशुद्ध नालायकों को ज्ञान - विज्ञान, सामाजिकता और अर्थ शास्त्र या मीडिया की बात करते देखता हूँ तो लगता है इन दरिद्र और पागलों के साथ क्या करूँ, जिन्हें बचपन से एक अभद्रता से बढ़ते देखा और सारे धत करम जानता हूँ इनके तो क्या इनसे बहस करना, फिर लगा कि उम्र बढ़ गयी है तो अक्ल आ गयी हो तो समझा दूं, पर बहुत विचार करने के बाद लगा कि अब आज से इनके साथ ना बात करनी ना तर्क , सिवाय अपने को कीचड़ में लपेटने के अलावा होगा क्या, क्योकि कहते है ना सूअर आपको कीचड़ में लपेटकर ले जाता है और फिर आनंदित होता है ? इससे अच्छा है छोडो, माफ़ कर दो और आगे बढ़ जाओ । कस्बे के संगीत समारोह अक्सर रसीले हुआ करते थे साल में गणेश चतुर्थी से लेकर बारह माह कोई ना कोई आयोजन होता रहता था , कभी रफी के नाम पर कभी रज्जब अली खान के नाम और कभी तानसेन के नाम पर, शहर भर के लोग झकास वाला लाल काला पीला कुर्ता और पैजामें की नाड़ी कसते हुए एक मात्र हाल में पहुँच जाते, एक तरफ औरते भयानक जरी की मोटी काठ पहने लकदक साड़ी में मेकअप लिपटे बैठी होती दूसरी ओर मर्द बैठते, पीछे लौंडे ल

Posts of 28 July 16 Modi and Kejriwal & Sad Demise of Mahashweta Devi

Prisma Effect ***** श्रद्धाजंलि 1084 की माँ आप हमेशा भारतीय साहित्य की अन्तरात्मा बनी रहेंगी। महाश्वेता देवी को नमन । लाल सलाम और जोहार, आदिवासियों की सच्ची हमदम चली गई। ***** जिस महादेश में एक मुख्यमंत्री लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से आतंकित होकर अपनी हत्या की आशंका जाहिर कर रहा हो वहाँ दलितों का पीटना, महिलाओं का पुलिस के सामने धर्म रक्षकों से मार खाना और अखलाख का बाहर खींचकर मार दिया जाना कोई बड़ी बात नही। इतिहास में इससे बड़ी दुखांत घटना नही मिलेगी और यह जान लें कि अरविन्द केजरीवाल की तार्किक, अकादमिक और बौद्धिक क्षमता मन मोहन से दस हजार गुना बेहतर है और इसलिए अगर वो कह रहे है तो गम्भीरता समझिये कि देश में हम आप किस स्तर पर है, प्रशासन में बैठे ल ोग कितने दबाव में काम कर रहे है, एनजीओ में कितना आतंक है, न्यायपालिका का क्या हश्र हो रहा है और नागरिकों की जान माल और अभिव्यक्ति की सुरक्षा देने में केंद्र में सरकार नाकाम हो गयी है। मित्रों यह बेहद संकट की घड़ी है, इसे अरविन्द का नाटक ना समझा जाकर आये दिन रोज हो रहे हमलों, प्रताड़ना, बर्बर युगीन ट्रीटमेंट और फासी

नरेंद्र मोदी - सिर्फ एक बार आत्म विश्लेषण करो Posts of 24 july 16

नरेंद्र मोदी - सिर्फ  एक बार  आत्म विश्लेषण करो  दलित , मायावती, दया शंकर की बीबी के बहाने और गुजरात दलित पिटाई की आड़ में देश और दुनिया के महानतम मन मोहन सिंह फिर अम्बानी, अडानी और अपने आकाओं को फायदा पहुंचाने की फिराक में है। यही मायावती भाजपा की गोद में जाकर बैठेगी और सत्ता हथियायेगी। अभी ढाई साल से चल रहे "ध्यान भटकाओ और देश का सत्यानाश करो" वाला फार्मूला अपनाया हुआ है मन मोहन ने और आततायी की तरह से दंगा, धंधा, लूट और छूट का खेल खेल रहे है। दलित स्त्री, रंडी, वेश्या, बेटी के लिए मैदान में और पाक्सो आदि तो दादरी, गौ माता और बीफ़ के आगे के मुद्दे है । दलित के बहाने से संघ तुम्हारी लुटिया डुबो रहा है, आरक्षण के मामले में भागवत पुराण ने बिहार में रायता फैलाया था, अब ये दलित मुद्दे और माँ बहनें उप्र में पर्दा फाश करेंगी। असल में दिक्कत ये है कि डा मन मोहन सोनिया की कठपुतली थे और तुम .... क्या बेवकूफ बनाते है अफजल, कन्हैया, दादरी, बीफ , गाय, भैंस, कश्मीर, पठानकोट, गुजरात, से लेकर अब मायावती पर मंदिर, 370, समान आचार संहिता , पकिस्तान, भ्र्ष्टाचार, व्यापमं, नक्सलवाद , बोड

Posts of 10-15 July 16 कहानी रामनारायण का कुछ हिस्सा / कतील की गजल

ज़िंदा रहने के लिए समझौते कर लेते है लोग और यह भूल जाते है कि एक रीढ़ की हड्डी थी जो पैदा होते समय ठीक उनके पीछे पीठ से सटी थी और उसी के सहारे वे बड़े होते गए, उसी में से दिमाग के सारे आदेश तंत्रिकाओं से बह कर शरीर के उन अंगों तक पहुंचे जिन्होंने इंसान को चापलूस और गलीज बना दिया। बिछते हुए देखता हूँ तो शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो एक इंसान के ही आगे इतने झुक जाते है कि कैसे फिर आईना देख पाते होंगे, कैसे अपने घर आँगन में तन कर खड़े हो पाते होंगे, अपने बच्चों से कैसे नजरें मिलाते ह ोंगे। राजनीति और प्रशासन तो ठीक क्योकि वहाँ तो मानक पैमाने ही ज़िंदा रहने के ये है, पर आप तो व्यवस्था से अलग होकर प्रतिपक्ष बुन रहे थे ना, आप तो एक अलग राह पर चलकर कही और सबके साथ सबके हित साधते हुए चलते रहना चाहते थे ना, आप तो उस ज्वार का जज्बा लेकर आगे मशाले जुलुस में समिधा बन रहे थे जिसे नेतृत्व कहते है, आप तो व्यवस्था से मुठभेड़ लेकर सर्वजन हिताय की बात कर रहे थे ना , फिर क्या हुआ कि एक अदना सामान्य आदमी जो रट्टा मारकर एक परीक्षा पास कर आया है , आपसे ज्यादा छोटा, अनुभवहीन युवा है, बेहद अड़ियल और जिद

"बुद्धिजीवी माफिया"- - अनिल कार्की 12 July 16

युवा साथी और स्नेहिल मित्र  Anil Karki  की यह कविता सामयिक ही नही बल्कि हमारे पूरे परिवर्तन की ध्वजा उठाये साथियों की हकीकत बयाँ करती है और इस समय मानीखेज इसलिए है कि ये असलियत उघाड़कर सारी नंगाई सामने लाती है। कामरेड का कोट कहानी याद आती है और अनिल बहुत खूबसूरती से इन सामाजिक गिरगिटों से बचने का इशारा भी करते है। जो राजनैतिक विचारधारा खुलेआम कर रही है उसे तो छोड़ ही दीजिये पर ये जो शातिर है हमारे बगल में बैठकर पाश , दुष्यंत कुमार और गोरख पांडेय को कोट करके धंधा चलाता है, रैली  निकालकर EPW में लिखता है उसका क्या। यार, अनिल मजा आ गया, सौ सौ जिंदगियां कुर्बान इस कविता और तुम पर दोस्त। कही शिल्प टूटा भी है और भाषा का गणित भी पर क्या कहते है भावना को समझो प्यारे !! ************************ "बुद्धिजीवी माफिया" वह जो है नेताओं की तरह उसका कुरता झक्क सफेद नहीं है बल्कि दीमक की त्वचा वाला रंग है उसके कुरते का खद्दर के झोले में किताबें है जिसकी चश्मा जिसका नाक पर पेट बड़ा है बावजूद वह जनता के पक्ष में खड़ा है वह हांफता है तो चेले हवा देते हैं वह बोलता ह

Role of Press and Advertisements - Posts of 10-11 July 16

भीगा आसमान, गीली धरती और कोयल ***** रिमझिम में नेह की अमृत बूँदें ***** जिस देश में सेनेटरी नेपकिन, गुटखा, पान मसाले, टूथपेस्ट, और चड्ढी बनियान से राष्ट्रीय न्यूज प्रायोजित होती हो और नीम हकीम, संगम तेल, जापानी तेल और अंग वर्धक फर्जी उपकरणों से अखबार चलते हो, पोर्न तस्वीरों से अखबारों के ई संस्करण निकलते हो, ब्लैक मेल करके टेबलाईट या सप्लीमेंट निकलते हो, थानों से आई दारु और आय ए एस अधिकारी के बंगले पर हुई शराब, शबाब और कबाब पार्टी से देर रात लीड न्यूज बनती हो, सत्ता और सरकार के भृष्ट मंत्रियों के थोबड़े दिखाते विज्ञापन और कभी जमीन पर ना दिखने वाली योजनाओं से पत्रिकाएं छपती हो वहाँ आपको क्या उम्मीद है कि मीडिया चौथा स्तंभ है, मुआफ़ कीजिये आप भी निरे मूर्ख है फिर तो !!! ***** जनसंख्या दिवस पर जनसंख्या रोकने वाले भूल चुके है कि वे पैदा हो चुके है !!! ***** खालिद का बुरहान की तुलना चे से करना गलत है इसलिए कि चे ग्वेरा एक बड़ी क्रान्ति की बात करते है और बदलाव की बात करते है और अलग मुक्ति की बात करते है जबकि यहां एक घोषित लड़ाकू को, जो भाई की मौत का बदला लेना चाहता है, को महि

Allhabad Tourist Diary by Subodh Shukla

मैंने हमेशा इसे अधबना पाया है. रोज़ थोड़ा सा ढह जाता है, बार-बार ज़रा सा मिट जाता है....सभ्यताएं इल्ज़ाम की तरह थोप दी जाती हैं इस पर और यह अपनी उजड्डता की ज़मानत पर रिहा हो जाता है........ इस शहर का कोई मालिक नहीं, कोई दावेदार नहीं.... बालू से लेकर ईश्वर तक सब यहाँ किराये पर रहते हैं..यह अलग बात है कि आज तक न बाकी वसूला गया और न ही बकाया चुकाया गया..... जितनी भी काट-छांट कर ली जाय अपनी नाप से हमेशा बाहर निकल जाता है यह. इतिहास को बेनामी और वक़्त को दीवालिया बनाना कोई इससे सीखे...... फैसलों तक पहुँचने में जल्दबाज़ नहीं है यह शहर. मशवरे यह लेता नहीं. इशारे यह करता नहीं और पछतावों की इसे आदत नहीं...वंचनाओं के बियाबान में अपनी बेतरतीबी को सींचता रहता है यह - गुमसुम, चुपचाप और विस्मित... विरासतों की दीमक लगी ज़िल्द के भीतर लगभग नम और पीली पड़ चुकी आस्थाओं के कागज़ पर यह शहर थूक लगी अँगुलियों के निशान की तरह दर्ज़ है....कागज़ जितना पीला पड़ता जाता है निशान उतने गहरे होते जाते हैं..... हर कीमती चीज़ को धूल बनाने का आदी है यह शहर. हर आदर्श को स्वांग बना डालने में माहिर और हर उत्साह को टोटका...जि

Posts of July I week idd and Aam Bhat

अपने हर इक लफ्ज़ का खुद आइना हो जाऊंगा  उसको छोटा कह के कैसे मैं बड़ा हो जाऊंगा। "दुश्मनों ने हमें क्या कहा ये हम याद नहीं रखेंगे, लेकिन दोस्तों की खामोशी को हम कभी भुला नहीं सकते" मार्टिन लूथर किंग जूनियर ईद मुबारक आज घर था तो सोचा आमभात बनाया जाए। सन 1976-77 की बात है , पापा मनावर में काम करते थी, छोटी सी ब्लॉक कॉलोनी में क्वार्टर था, इंदौर आदि के लोग थे। उनके परिजन और बच्चे छुट्टियों में धमाल करते थे। हम भी माँ के साथ पूरे दो महीने मनावर में रहते और मजे करते थे। मनावर में स्टेट बैंक की नई शाखा खुली थी, एक करकरे साहब आये थे उनका परिवार भी था। बैंक खुलने की पार्टी उन्होंने घर दी थी और उनकी पत्नी ने लजीज आमभात बनाया था, जिसका स्वाद आज तक भूला नही हूँ। तब से हर साल सीजन में एक ब ार जरूर बनाता हूँ। बहुत सरल है बनाना, आप भी बनाइये इस तरह से और मेरी फीस के रूप में 25 % पार्सल कर दीजिए बस। बासमती चावल को धोकर घी में भूरा होने तक बघार ले और फिर थोड़ा सा पानी डालें, आधे पकने के बाद गाढ़ा सिर्फ आम का रस डाल कर तक मद्धी आंच पर पकाएं, ध्यान रहे रस में दूध ना हो। फ