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Showing posts from May, 2015

Posts of 30 May 15

2. अभी गयी है सुबह के काम निपटाकर आपा, नाम क्या है यह शायद ही किसी को  पता होगा, पर कॉलोनी की सभी बाईयों में मुस्लिम महिला वही है आपा जो कम से कम तीस घरों के बर्तन, झाडू - पोछा और खाना बनाने का काम करती है. अकेली आती है, सुबह छः बजे से और फिर लौटती है इसी समय, हाँ, दोपहर में - मेरे घर के सामने आंगनवाडी में दलिया खा लेती है कभी मेरे घर से कुछ मिल जाता है या कभी सामने जया दे देती है या "मिश्रा काका के यहाँ खाकर आई हूँ" यह कहकर मुस्कुरा देती है. शाम को फिर पांच बजे से रात को नौ बजे तक कॉलोनी में ही रहती है और लौटती है, साल में सिर्फ ईद पर छुट्टियां मनाती है आठ दिन की और फिर भिड जाती है. इसके पहले छोटी थी काम वाली - जिसे उसकी बड़ी बहन उषा लेकर आई थी, बाद में उषा इंदौर चली गयी तो छोटी ने सब घर पकड़ लिए, पर टी बी हो गयी, पति मर गया, लड़का कुछ करता नहीं था सिवाय गांजा पीने के,  तो उसकी बेटी भावना घर - घर आने लगी काम करने, आठ बरस की थी पर अभी जब वह काम छोड़कर घर गयी तो उसकी उम्र पंद्रह साल हो गयी थी, अच्छा खासा यानी करीब आठ हजार कमा लेती थी पर छोटी को टीबी थी और इलाज हो नहीं पा रहा

Posts of 29 May 15

3. शायद मप्र के 51 में 14 जिला मुख्यालय किसी भी तरह की रेल सेवा से जुड़े नही है। तहसील और बाकी सब तो छोड़ दीजिये। कांग्रेस ने तो कुछ नही किया पर व्यापम के रुपयों से इन दलित जिलो को तो रेल से जोड़ देते मामा जी। कितना काम बाकी है अभी दो तीन शहरों में मेट्रो लाकर कमाई के रास्ते खोजने के बजाय आधार भुत ढांचों पर अब तो ध्यान दो। मने कि यूँही सोच रहा था कि देवास में बुलेट ट्रेन की पटरी मैं उखाडूंगा तो यह ख्याल आया। हाँ शराब की दुकानें जरूर बढ़ी है गत तीन शासन कालों में मामा जी के और हर गाँव में लाडलों को शराब के ठेके जरूर दिलवाये है और घोटालों तक पहुँच की है । एम पी अजब है - सबसे गजब है। 2. वसुंधरा राजे जैसी मुख्यमंत्री की सोच भी कितनी निम्न है और इसमे वह अकेली शामिल नहीं होगी , संघ से लेकर भाजपा और शिखर नेतृत्व के बिना इतना बड़ा फैसला लेना क्या उस शराबी महिला मुख्यमंत्री के लिए संभव था? आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि गुर्जरों से भाजपा को इतना प्रेम एकाएक उभर आया और 5 % का निर्णय लेना पडा ? अब बात पक्की है कि इनका मकसद संविधान का पूरा कबाड़ा करके रद्दी में बेचकर गोलवलकर कृत संघी नियम

Posts of 27 May 15

Preeti Nigam​  बहुत पुरानी साथी , दोस्त और परिवार की सदस्य ही है. प्रीती से बहुत पुरानी मित्रता है मेरी. प्रीती की बड़ी बहन प्रभा निगम मेरे साथ देवी अहिल्या बाई विवि में शोधरत थी जब शिक्षा संस्थान के विभागाध्यक्ष डा बी के पासी हुआ करते थे, प्रभा और साधना खोचे मेरे साथ ही थी और वे नए शुरू हुए इंदौर पब्लिक स्कूल में पढ़ाती थी. प्रीती ने सोशल वर्क में मास्टर किया और समाज सेवा के क्षेत्र में आई , तब से कही ना कही काम के दौरान मिलना जुलना होता रहा, भारतीय ग्रामीण महिला संघ, राऊ में हम तीन साल तक साथ काम किये मै भोपाल चला गया और प्रीती NRHM उज्जैन में पर मिलने का सिलसिला जारी रहा. आज जब मै मप्र में काम करने वाली सोशल वर्कर महिलाओं को पलटकर देखता हूँ तो पांच या छः महिलाए नजर आती है जिन्होंने बाकायदा नौकरी ही की है अपने एनजीओ नहीं खोले - जबकि चाहती तो ये खोल सकती थी - इनमे से प्रीती एक है, बाकी प्रज्ञा, सविता, आरती आदि और मित्र है. फिर प्रीती लेप्रा में आ गयी इंदौर और फिर भोपाल. फिर किसी पारिवारिक कारण की वजह से वह इंदौर में आकर सुरक्षित शहर पहल के काम को नेतृत्व दे रही थी. हाल ही में प

Posts of 26 May 15

2 हमारे प्रिय लेखक और अग्रज , हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार और उपन्यासकार डा प्रकाश कान्त जी का आज जन्मदिन है। वे सहसा आयोजन और उत्सवों से दूर रहते है पर हम तीन लोग कहाँ मानने वाले थे। अभी पहुंच गए और एक आत्मीय माहौल में एकदम सादे तरीके से मनाकर आ गए। वे खूब लम्बी और रचनात्मक जिंदगी जिए यही हम सबकी शुभेच्छा है। Prakash Kant   Amey Kant   Parul Rode   Sanjeevani Kant   Sunil Chaturvedi  — with  Bahadur Patel . 1 प्यार सिर्फ प्यार होता है और झगडा बढ़ने से प्यार बढ़ता ही है चाहे फिर हमारी, तुम्हारी, इसकी, उसकी या सबकी जिन्दगी में कोई और आ जाए........पहला प्यार भूला पाना नामुमकिन है बस सवाल यह है कि हम भूलने को मानसिक रूप से तैयार हो जाए. जीवन चलता रहता है और कभी रुक नही सकता और फिर अभिनय के इस दौर में जो सर्वश्रेष्ठ भी हम अपने आप के सामने परोस लेते है जिन्दगी का वह भी कभी - कभी हम पर ठीक बूम रेंग की तरह से पलटवार करते हुए  लौट आता है. चाहे वह तनु हो, मनु हो या दत्तो   या मै तुम या हम - सब....... जिन्दगी... काश कि कभी रिटर्न हो सकती !!! मै शर्त लगाकर कडा श्रम क

Posts of 24 May 15

5 दुनिया के सारे गुलमोहर एक हो जाओ तुम्हारी हरियाली और लालिमा के बीच अपने जर्द पीलेपन को छुपा लूँ !!!! 4 बौखलाहट बड़ी जालिम चीज है  अरविन्द में हो, राहुल में हो या मोदी में या जय ललिता में आखिर अपना ही नुकसान करती है। नतीजा देश को भुगतना पड़ रहा है !!!! 3 दुनिया कविता , कहानी और उपन्यास से बदल जाती तो आज हमारी शक्ल ही कुछ और होती, बाकी आप लगे रहिये और पेलते रहिये यहां वहां से उठाकर चिपकाते रहिये , कौन पूछता है ... 2 कल रात कुछ वरिष्ठ साथियों से बात हो रही थी जो मप्र शासन में जिम्मेदार पदों पर काम कर रहे है। उन्होंने बताया कि लूट का खेल जमीन से लेकर तबादलों और छोटे मोटे कामों में भी इतना घृणित चल रहा हैं कि सहसा कोई बहुत छोटा कर्मचारी भी वहाँ हाथ डालने से बचेगा। खासकरके जिला कलेक्टर जिस पैमाने पर रुपया कमाने के एजेंट बन गए है और वे जिस घटिया तरीकों से रुपया कमाकर , दस्तावेजों में हेर फेर करके और सरकार का और अपना पेट भर रहे है वह बहुत चिंतनीय है। अपनी अकड़ और तेवर में रहकर वे सारी मर्यादाएं त्याग चुके है। पिछले दस वर्षों का मेरा अपना अनुभव भी यही कहता है क

Posts of 22 May 2015

ये है प्रदीप कुशवाह, मात्र सत्रह साल के है पर असली मर्द, युवा और दिलेर हिन्दुस्तानी है. गोल पहाड़िया, राजा का गैस गोदाम बस्ती, ग्वालियर से है. आज प्रशिक्षण में इनकी कहानी बताई गयी तो मेरा सर गर्व से उठ गया.  प्रदीप के पिता को जमीनी झगड़ों में फंसा कर तीन साल पहले जेल में बंद कर दिया गया था, परिवार में प्रदीप के अलावा माँ और तीन बहनें थी , एक बहन की शादी पिताजी कर चुके थे, प्रदीप ने मेहनत की काम किया पेंटिंग का प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का और शाम शाम को घर घर जाकर गैस सिलेंडर बांटी, फिर दूसरे नंबर की बहन की शादी की, माँ ने भी काम किया, आज भी प्रदीप पढ़ रहे है और काम भी कर रहे है.  पूछने पर प्रदीप ने बताया कि पिता जी का जन धन खाता भी खुल गया, माँ का भी खुला है परन्तु रुपया एक भी नहीं है उसमे, कहने को बी पी एल कार्ड है पर कोई सुविधा नहीं मिलती है - ना राशन का सामान मात्र अठारह किलो गेंहूं मिलता है बस, बाकी कोई मदद नहीं , पर प्रदीप के हौंसले बुलंद है. मेहनत करके उसने पचास हजार इकठ्ठे कर लिए है, और अब तीसरी बहन की शादी करने वाला है,  प्रदीप कहता है - "फिर बचेगी एक और बहन त

Posts of 21 May 15

6 असल में किसी की गलती नहीं है हम सब लोग परेशान है कांग्रेस की साठ साला सरकार ने इतना त्रस्त कर दिया है और हालात इतने दुष्कर हो गए है कि जीवन निर्वहन कठिन हो गया है इसलिए सच में हम सब लोग एक चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे और लगा था कि गुजरात में भले ही हत्याएं हुई हो, कुपोषण सर्वाधिक रहा हो, अधिकारियों को निपटाया गया हो, घपले घोटालें रहे हो, परन्तु हम सब एक नेता से अवतार की उम्मीद में थे, क्योकि हमें बचपन से अवतारवाद सिखाया गया है, हम चाहते है कि हम मूक बने रहे  और कोई सर्व शक्तिमान हमारे दुःख हर लें और हमें तमाम मानसिक शारीरिक व्याधियों से मुक्त कर दें, घर बैठे हमारे अकाउंट में रुपया डाल दें या बी पी एल कार्ड बना दें, इसलिए नेता ने भी जन धन से लेकर हर आदमी से बारह रूपये बटोरने का काम किया और हम भी तैयार हो गए कि कि चलो जीते जी तो हम भला ना कर पायें परिवार का, कम से कम लूले लंगड़े हो गए या मर ही गए तो परिवार को मात्र बारह रुपयों से दो चार लाख दिला जायेंगे जाते जाते.........पर कहाँ यह सुख भी.....महंगाई के जमाने में हम अपने रिश्तेदारों की गमी में दूसरे गाँव या शहर नहीं जा पा रहे औ

Posts of 19 May 15

हिन्दी का साहित्य जगत फूहड़, छिछोरे, नाटकबाज और तथाकथित विचारधाराओं को ओढ़कर चलने की नौटंकी वालों से भरा पडा है और इसमे ये रोज नया गढ़ते है और रोज नया बुनते है सिर्फ और सिर्फ प्रसिद्धि (?) पाने के लिए और अपनी कुंठाएं निकालने के लिए. रही सही कसर फेसबुक ने पुरी कर दी है. आये दिन मेर पेज को लाईक करों, मेरा स्टेटस शेयर करो, मेरे स्टेटस पर कमेन्ट करों, मेरी किताब मंगवा लो, मेरे वाल पर टिप्पणी करो, मेरे चित्र देखो आदि से हिन्दी के बड़े नामी गिरामी कवि कहानीकार और उपन्यासकार ग्रस्त है भ गवानदास मोरवाल से लेकर कई लोग इसी कुंठा में मर रहे है, दूसरा विचारधारा वाट्स एप जैसे माध्यम पर भी लड़ाई का शक्ल ले चुकी है और वहां भी रुसना मनाना और छोड़ना जैसे मुद्दे जोर पकड़ रहे है छि शर्म आती है कि चार लोग इकठ्ठे होकर कुछ रचनात्मक नही कर सकते और कोई वरिष्ठ साथी कुछ कहता है या कोई समझदार इन्हें इनकी औकात का आईना दिखाता है तो सब मिलकर पीछे पड़ जाते है उसके और उसे फर्जी साबित कर देते है या आपस में ही दोषारोपण करने लग जाते है. हिन्दी की दुर्दशा के लिए ये सब लोग बारी बारी से जिम्मेदार है. दखल प्रकाशन ने अभी शुरुवात

Posts of 17 May 15

1 कभी सुबहें मनहूस हो जाया करती है . कल सारा दिन भोपाल में था कुछ काम से, रात आया तो कमरे में बदबू थी पर थका होने के कारण देखा नहीं सो गया, आज सुबह देखा तो कमरे की कोने वाली खिड़की में जिस गिलहरी ने बच्चे दिए थे, जिस मेहनत से उसने अपना साजो सामान इकठ्ठा किया था और रोज भाभियों के रखे सकोरों में से पानी पीती और कुछ ना कुछ बटोर कर लाती थी, खाने को जो भी फलों के टुकड़े, सब्जियों के टुकड़े या सूखा अन्न रख देते थे -वह खा लेती थी , सब व्यर्थ गया.........मैंने देखा कि  पाँचों बच्चे मर गए है, और उन्ही की वजह से बदबू फ़ैल रही है, गिलहरी सुबह से हल्ला कर रही  थी, जब मैंने खिड़की के पल्ले को हटाया, और उस बेशकीमती साजो सामान को हटाया तो वह गिलहरी दीवार की मुंडेर पर चुपचाप तक रही थी और इस कड़ी धूप का मानो उसपर कोई असर ना हो रहा हो......बहुत भारी मन से मैंने वो कचरा उठाया और पाँचों बच्चों को बारी बारी से डस्टबिन में रखा और नीचे चल दिया कि कही फेंक दूं -वहाँ भी वो गिलहरी आ गयी..........ये गर्मी का मौसम और ये मौत के सिलसिले......उफ़....... दूसरी खबर और निराशाजनक है, भास्कर के मेधावी पत्रकार वीरेन्द्

पूरा दिन - गुलजार

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती, खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं "तेरी गुजरी हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी है " ज़बरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है, ये कह कर अभी 2-4 लम्हे खर्च करने के लिए रख ले, बकाया उम्र के खाते में लिख देते हैं, जब होगा, हिसाब होगा बड़ी हसरत है पूरा एक दिन इक बार मैं अपने लिए रख लूं, तुम्हारे साथ पूरा एक दिन  बस खर्च  करने की तमन्ना है !!

जीत तक ज़ारी जंग

फिर एकबार कही से हिम्मत जुटाकर कुछ शुरू करें.... .. बाज लगभग 70 वर्ष जीता है, परन्तु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं- 1. पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं। 2. चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। 3. पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं। भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना.... तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे, या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे... या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करे, आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में। जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, वहीं तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा। बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है, और तब प्रारम्भ करता है पूर

Posts of 11 and 12 May 15 Kartik & Arti's Marriage

7. 6. लोकसभा में कितने घटिया लोग है जो अपने आरोपों पर जवाब देने के बजाय किसी के परिवार पर आक्रमण करते है कायर और मक्कार सांसद भाजपा के है और जवाब के बजाय घटिया कुतर्क करते है, लोकसभा अध्यक्ष महोदया जो इतनी अनुभवी और संस्कारित होने का दावा करती है क्या इसलिए वहाँ बैठी है कि ये सब घटियापन चलने दें इससे तो बेहतर मीराकुमार थी जो बैठ जाईये, बैठ जाईये तो चिल्लाती थी इनसे तो बहुत बेहतर ही थी. ये सुमित्रा ताई भी क्या करें - है तो उसी जड़ मानसिकता की ना - जो लठैत और फासीवादी है और इंदौर जैसे शहर को प्रतिनिधित्व देती है, जहां लठैत राजनेता ही रहते है और जब आती है उन्ही से घिरी रहती है काम तो कुछ करती नहीं, और लड़ाई भी लठैतों से ही है इंदौर में टुच्चीवाली तो आखिर ये सब संस्कार जायेंगे कहाँ ??? 5. मप्र में लग रहा है मानो कांग्रेस का शासन चल रहा है पिछले कुछ दिनों में जो हालत हुए है, शिवराज मामाजी ने जो भी अनिर्णय की स्थिति में खुद को रखा है और प्रदेश का नुकसान किया है उससे सहसा दिग्विजय सिंह की याद हो आती है. इस बात को मै पुरी गंभीरता से कह रहा हूँ और यह सब होना स्वाभाविक भी है वह

Posts of 9 May 15

7 आवाजें गूंजती थी यहाँ - वहाँ और हर कही, बस यूँ लगता कि अभी निकल जाऊं और इन आवाजों के पीछे बावरा से चल पडू , फिर लगता कि उस पार्क के अँधेरे कोने में वो कंचे कही तड़फ रहे होंगे जिन्हें कल ढलती शाम के समय वो बच्चे छोड़ गए थे, आसमान की तरफ ताकता कि कही से कटती हुई पतंगों की थाह मिल जाए तो उड़ चलूँ उनके संग कि कही तो गिरेंगी और कोई तो थाम लेगा - चाव से और प्यार से घर ले जाएगा, मरम्मत करके फिर छोड़ देगा  आसमान में उड़ने को, फिर ख्याल आता उन बिलों का जिनमे कॉकरोच या चूहे घुस गए और फिर कभी नहीं लौटे और आध्यात्मिक मुद्रा में बिल के मुहाने पर बैठी बिल्ली कितनी तसल्ली से इंतज़ार कर रही हो अपनी क्षुधा शांत होने की और अन्दर जिन्दगी से जंग लड़ रहे चूहे कही से कूद फांदकर निकल गए हो इसी अंतहीन सिरे से दूसरी ओर - एक और जिन्दगी के तलाश में, या याद आती है वो चींटियों की लम्बी कतारें जो किसी अदृश्य अतल गहराई से मुंह में पता नहीं क्या लिए कितनी ही सदियों से जाए जा रही है और उनकी अनथक यात्रा ख़त्म ही नहीं होती. पानी में टेडपोल और लार्वा देखते हुए समझ ही नहीं पाया कि ये मछली है या मेंढक, बस पानी में कंकर मारकर