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कभी सुबहें मनहूस हो जाया करती है . कल सारा दिन भोपाल में था कुछ काम से, रात आया तो कमरे में बदबू थी पर थका होने के कारण देखा नहीं सो गया, आज सुबह देखा तो कमरे की कोने वाली खिड़की में जिस गिलहरी ने बच्चे दिए थे, जिस मेहनत से उसने अपना साजो सामान इकठ्ठा किया था और रोज भाभियों के रखे सकोरों में से पानी पीती और कुछ ना कुछ बटोर कर लाती थी, खाने को जो भी फलों के टुकड़े, सब्जियों के टुकड़े या सूखा अन्न रख देते थे -वह खा लेती थी , सब व्यर्थ गया.........मैंने देखा कि पाँचों बच्चे मर गए है, और उन्ही की वजह से बदबू फ़ैल रही है, गिलहरी सुबह से हल्ला कर रही थी, जब मैंने खिड़की के पल्ले को हटाया, और उस बेशकीमती साजो सामान को हटाया तो वह गिलहरी दीवार की मुंडेर पर चुपचाप तक रही थी और इस कड़ी धूप का मानो उसपर कोई असर ना हो रहा हो......बहुत भारी मन से मैंने वो कचरा उठाया और पाँचों बच्चों को बारी बारी से डस्टबिन में रखा और नीचे चल दिया कि कही फेंक दूं -वहाँ भी वो गिलहरी आ गयी..........ये गर्मी का मौसम और ये मौत के सिलसिले......उफ़.......
दूसरी खबर और निराशाजनक है, भास्कर के मेधावी पत्रकार वीरेन्द्र चौहान का असामयिक निधन, वीरेन्द्र मेरे घर के सामने रहते थे और बहुत करीबी मित्र थे, वो जब इंदौर से पत्रकारिता पढ़ रहे थे और आते थे और कुछ ना कुछ हाथ में लिखा होता था और पूछते थे कि इसकी भाषा और कैसे कड़ी की जाए, फिर पढाई के बाद यहाँ - वहाँ नौकरी करने के बाद आखिर भास्कर में काम करने लगे फिर भी संपर्क रोज ही होता था. कुछ काम के दबाव और और कुछ निजी मात्र चालीस बरस की उम्र में हार्ट अटैक का शिकार और मृत्यु कितना दुखद है. ये छोटी उम्र में मरना और हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, ब्लड प्रेशर, जैसी बीमारियाँ आखिर सब हमारे अपने जाए दुःख तो नहीं है? जिस मिलावटी दौर में हम सब जिए जा रहे है, वह घातक है हम सब के लिए, कल भोपाल में राकेश दीवान से बात हो रही थी इसी बारे में जो एक दवाओं की कार्यशाला में हिस्सा लेकर लौटे ही थे.
मौत ने किसी को बख्शा नहीं है और याद आते है तथागत जिन्होंने एक स्त्री के पुत्र को ज़िंदा करने के लिए शर्त राखी थी कि एक ऐसे घर से चावल के चार दाने ले आओ जहां मौत ने झांका ना हो और वह स्त्री जब दुनिया भर में घूम आई तो उसका विलाप पूरा हो चुका था वह समझ गयी थी कि मौत शाश्वत है और हर घर में उसका जीवन से ज्यादा अधिकार है..........मौत है तभी हम है और जीवन का अनंतिम सत्य मौत ही है, बस शब्दों में हम मनहूस या मातम कहें पर सत्य वही है और हम सब धीरे धीरे उसी ओर बढ़ रहे है............
ये गिलहरी के पांच बच्चे और उनकी मौत का सदमा बहुत दर्दनाक है हमने किसी जानवर को भी जीने लायक नहीं छोड़ा है पर्यावरण को इतना बर्बाद कर दिया है कि ये मूक और शक्तिहीन जानवर भी क्या करें और किससे कहें ?
ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ शान्ति..............
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