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असल में किसी की गलती नहीं है हम सब लोग परेशान है कांग्रेस की साठ साला सरकार ने इतना त्रस्त कर दिया है और हालात इतने दुष्कर हो गए है कि जीवन निर्वहन कठिन हो गया है इसलिए सच में हम सब लोग एक चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे और लगा था कि गुजरात में भले ही हत्याएं हुई हो, कुपोषण सर्वाधिक रहा हो, अधिकारियों को निपटाया गया हो, घपले घोटालें रहे हो, परन्तु हम सब एक नेता से अवतार की उम्मीद में थे, क्योकि हमें बचपन से अवतारवाद सिखाया गया है, हम चाहते है कि हम मूक बने रहे और कोई सर्व शक्तिमान हमारे दुःख हर लें और हमें तमाम मानसिक शारीरिक व्याधियों से मुक्त कर दें, घर बैठे हमारे अकाउंट में रुपया डाल दें या बी पी एल कार्ड बना दें, इसलिए नेता ने भी जन धन से लेकर हर आदमी से बारह रूपये बटोरने का काम किया और हम भी तैयार हो गए कि कि चलो जीते जी तो हम भला ना कर पायें परिवार का, कम से कम लूले लंगड़े हो गए या मर ही गए तो परिवार को मात्र बारह रुपयों से दो चार लाख दिला जायेंगे जाते जाते.........पर कहाँ यह सुख भी.....महंगाई के जमाने में हम अपने रिश्तेदारों की गमी में दूसरे गाँव या शहर नहीं जा पा रहे और एक मोबाईल की मिस कॉल घंटी से संवेदनाएं व्यक्त कर देते है या एक एस एम् एस से या वाट्स अप जैसे टुच्चे माध्यम से शोक जता देते है तो जाहिर है नेता का विश्व भ्रमण वो भी रंग बिरंगी कपड़ों में अखरेगा ही, हम जैसे कमीनों और देश द्रोहियों को, बस अपनी कुंठा में और कुछ ना कर पाने की बेबसी में अपने बाप दादाओं, माता-पिता को कोसते हुए हम अम्बानी और अडानी या अजीम प्रेम जैसे घटिया आदमी को गालियाँ देने लगते है.......अब बेचारे नरेंद्र मोदी इस सबके बीच देश का ताज पहनकर आ गए तो उस भले आदमी का क्या दोष.......साधो देखो जग बौराना...........
5.
बदला क्या है एक साल में- ना बस्तियां, ना मोहल्ले, ना बिजली की स्थिति, ना पानी की सप्लाय, ना नाली और नाले, ना गंगा की सफाई, ना स्वच्छता अभियान, ना विदेश नीती, ना धारा 370 हटी, ना राम मंदिर की शुरुवात हुई, ना अलग राज्यों की पहल हुई, ना विकेंद्रीकरण, ना महिला सुरक्षा, ना अपराध कम हुए, ना हिंसा कम हुई, ना मुकदमे निपटे, ना शिक्षा का स्तर सुधरा, ना रेलवे में हालात बदले, ना रोडवेज शुरू हुई - हाँ चार्टेड बसे दुगुने किराए पर चलने लगी.
जो भी यहाँ कमेन्ट करें एक बार तटस्थ होकर सोच लें और वाहियात कमेन्ट करके अपने माँ बाप की दी हुई शिक्षा और संस्कार यहाँ ना दर्शायें
4.
IIT, IIM और अन्य संस्थान हम क्यों खोल रहे है, किसके लिए खोल रहे है ? बारहवीं , दसवी और आठवी पास बच्चे बहुत ही सरल हिंदी के वाक्य भी नही पढ़ पा रहे है, जिसमे चार या पांच सरल शब्द है। वे ठीक से पढ़ना तो दूर उच्चारण भी नही कर पा रहे, क्या सारा दोष इन बच्चों का है ? कितना शर्मनाक है यह सब कि शिक्षा, खासकरके सरकारी शिक्षा को एकदम बर्बाद करके रख दिया है । सारे अवसर डी पी एस में या ऐसे ही स्कूलों में महंगी फीस देकर पढ़े बच्चों को ही यह देश अवसर उपलब्ध करा रहा है। मध्यमवर्गीय और गरीब बच्चे कहाँ जाए ?
आज अभी ग्वालियर में जब यह नजारा देखा तो मन खिन्न हो गया।
3.
गुलमोहर के फूलो की लालिमा को और तेज प्रचण्ड ताप में उसी गुलमोहर की एकदम हरी पत्तियों को ठीक तुम्हारी तरह मुस्कुराते हुए देखा था तो जिंदगी का मकसद और परिभाषा सीख गया था.
2.
तेज धूप, पिघलती सड़क, सूखे वृक्ष, हवा में ओंस की नाजुक बूंदों की अनुपस्थिति, गर्द और गुबार, छाँव की तलाश में भटकती आत्माएं, सदियों की ऊब, दशकों की बेबसी और अस्त व्यस्त सा उधेड़बुन में बीतता जा रहा उहापोह में जीवन, इस सब के बीच कब - कैसे मैं , कैसे - कहाँ किस वीराने में भटक गया तुम्हारी परछाई ढूंढते ढूंढते और अब जब इस समय ठीक जब सूरज प्रचण्ड रूप से ठीक मेरे सर पर सवार है तो मैं मोम की भाँती पिघल गया हूँ और अंदर से रेशा रेशा उधड़ गया हूँ! बस अब देखना यह है कि कैसे और किस तरह जुटा पाउँगा अपने होने के लिए उन कोमल तंतुओं को , उन जर्द पलों को और उन उनींदी रातों को और कभी ना उगने वाली सुबहों को जो मेरे को परिभाषित करेंगी. ये जो सूरज का तेज है जो एक उद्दण्ड बारिश की तरह से बरस रहा है , असल में वह तपिश है जो कभी हमारे बीच हुआ करती थी और क्षणे क्षणे खत्म होती चली गई और अंत में मैं एक चातक पक्षी की तरह से ताकता रह गया, स्वाति नक्षत्र के बाद चंद बरसी बूंदों को भी तरस गया । बोलो ना , कुछ तो बोलो ये मानसून की बदलियाँ कब मेरे छज्जे से गुजरेंगी और मेरा पोर पोर भिगोकर उद्दाम वेग से उठने वाले ज्वर को शांत करेंगी ... तुम्हारे लिए .....सुन रहे हो ना..... कहाँ हो तुम .....
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हिन्दी का साहित्य जगत फूहड़, छिछोरे, नाटकबाज और तथाकथित विचारधाराओं को ओढ़कर चलने की नौटंकी वालों से भरा पडा है और इसमे ये रोज नया गढ़ते है और रोज नया बुनते है सिर्फ और सिर्फ प्रसिद्धि (?) पाने के लिए और अपनी कुंठाएं निकालने के लिए. रही सही कसर फेसबुक ने पुरी कर दी है. आये दिन मेर पेज को लाईक करों, मेरा स्टेटस शेयर करो, मेरे स्टेटस पर कमेन्ट करों, मेरी किताब मंगवा लो, मेरे वाल पर टिप्पणी करो, मेरे चित्र देखो आदि से हिन्दी के बड़े नामी गिरामी कवि कहानीकार और उपन्यासकार ग्रस्त है भगवानदास मोरवाल से लेकर कई लोग इसी कुंठा में मर रहे है, दूसरा विचारधारा वाट्स एप जैसे माध्यम पर भी लड़ाई का शक्ल ले चुकी है और वहां भी रुसना मनाना और छोड़ना जैसे मुद्दे जोर पकड़ रहे है छि शर्म आती है कि चार लोग इकठ्ठे होकर कुछ रचनात्मक नही कर सकते और कोई वरिष्ठ साथी कुछ कहता है या कोई समझदार इन्हें इनकी औकात का आईना दिखाता है तो सब मिलकर पीछे पड़ जाते है उसके और उसे फर्जी साबित कर देते है या आपस में ही दोषारोपण करने लग जाते है. हिन्दी की दुर्दशा के लिए ये सब लोग बारी बारी से जिम्मेदार है.. हिंदी की चिंदी और साहित्य के नाम पर कचरा फैलाने वालों इतिहास तुम्हे माफ़ नही करेगा।
ब्राह्मण के भेष में बनिया
दलित के नाम पर अवसरवादी
क्षत्रिय के नाम पर चापलूस और सत्ता के दलाल
कामरेड के भेष में पूंजीपति
कर्मचारी के भेष में धंधेबाज
विचारधारा के भेष में इमोशनल ब्लैकमेल
दिनभर फेसबुक और अन्य साइट्स पर ज्ञान पेलना
नोकरी के बजाय वाट्स एप पर कवितायें झिलवाना
चौकीदारी करते समय उपन्यास कहानी की रचना करना
चिकनी चुपड़ी महिलाओं के लिए अपना थोथा ज्ञान उगल देना
जाति को गाली देते हुए अपनी जात बिरादरी को पुष्ट करना
साम दाम दंड भेद से अपनी चीजें बेचना बिकवाना
दो पेग के चक्कर में दुनिया घूम आना
रूपये की हवस में कुंठित होकर धन्ना सेठों की जी हुजूरी में लिप्त रहना
एनजीओ को गाली देकर एनजीओ की और एनजीओ वालों की सुविधाएं भकोसना
निर्लज्जता से झूठी गरीबी का गुणगान करना और पूंजी की कामना करना
मीडिया के लोगों से जायज और गैर जायज रिश्ते बनाकर स्वयं को पोज़ करना
ब्यूरोक्रेट्स के सर्द तलवों को जीभाचार से उष्ण करना
नरम मुलायम भाषा और चाटुकारिता के जीन्स को अपने खून में जगह देना
अपनी रचना के अनुवाद को पचास सांविधानिक भाषाओं में बताना
मौका मिलने पर दुनिया का घृणास्पद पुरस्कार लेने में तनिक संकोच ना करना
विश्विद्यालयों में तमाम अपमान सहकर भी लोंडो लपेडो के मुंह लगना
चार छह छर्रे पाल कर नवोदित लेखिकाओं को घास डालना
मवाद और बदबू से भरे माहौल में कीड़ों की तरह बजबजाना
जय हिंदी , हिन्दू और हिन्दुस्तान ।
हिंदी का लेखक यानि नोटंकी साला !!!
और नाटक का पटाक्षेप
काश Gouri Nath जैसे भले मित्र को यह कला आती तो आज दिल्ली में ऐश करता और हिंदी के लेखक उसके घर इस भरी गर्मी में कूलर भरते !!! गौरी के नाथ सीख लो लेखको को जन्मदिन पर भर भर दुआएं देना अपनी लग्गी लगाकर या धमकी देना कि अब बंद कि तब बंद !!!
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