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Showing posts from March, 2016

Dr Anula Khare, Principal, Bhopal Instt of Engineering, Bhopal MP

Dr Anula Khare यानि हमारी मित्र अनुला, आज इनसे भोपाल में 27 बरसों बाद मिला. सन 87 - 88 की बात है एकलव्य देवास से दवाईयों को लेकर एक जनविज्ञान यात्रा निकल रही थी हम सब युवा जोश में शामिल थे , बर्तोल्ड ब्रेख्त की कविता " डाकटर हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण" जैसी सशक्त रचना थी, डा मीरा सदगोपाल , डा प्रीती तनेजा और उनके दो विद्यार्थी राजीवलोचन शर्मा और मोहम्मद अली आरीवाला के साथ कई लोग इस यात्रा में थे. दो छोटी सी नन्ही कलाकार भी थी जिनमे एक वन्दना मालवीय और अनुला थी. बस उसके बाद अनुला से थोड़ा सम्पर्क रहा, बाद में वो इंजीनियरिंग करने चली गयी फिर शादी और सम्पर्क टूट गया. पिछले हफ्ते अचानक लिंकडेन पर मिल गयी खूब बातें हुई और आज आखिर भोपाल में प्रत्यक्ष मिलें, हमारी लाडली अनुला आज भोपाल के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग महाविद्यालय की प्राचार्या है और शादी के बाद अपने पति के सहयोग के कारण एम टेक किया, पी एच डी की, यूरोप घूमी और आज एक बड़े स्टाफ और कई ट्रेंड पढ़ने और पढ़ाने वालों को मैनेज करती है. दो प्यारी सी बेटियाँ है, एक जेंडर प्रशिक्षण कार्यशाला में अनुला न

सदाचार 29 March 16

सदाचार  "कुछ किया नही जा सकता अब , हम ही नही सारी कायनात भी इसी से परेशान है। देखो ना अब बाजार में कितने अच्छे संतरे आ रहे है, सुंदर पीले और गोल मटोल पर स्वाद सबका एक जैसा कहाँ है खट्टे मीठे, बेस्वाद वाले भी है पर कोई देखकर पहचान सकता है इन्हें ? दुःख तब होता है जब हम अच्छा खासा, बड़ी फांक वाला संतरा खोलते है और रेशों को छिलते है तो सबसे मीठी फांक बगैर बीज वाली निकलती है!!! किसने सोचा था, तुम बताओ क्या कोई जानबूझकर यह बगैर बीज वाली फांक का सन्तरा खरीदकर लाया था ...." कमरे में सन्ना टा था, और सब चुप थे। कांता बुआ फर्श पर बिखरी इमली फोड़ रही थी और फिर कहने लगी, "देखो इसमें भी चीये नही निकल रहे, अब इत्ता बड़ा पेड़ , इत्ती मनभर इमली और कुछ बगैर चीये वाली, पेड़ का दोष नही है बेटा, बहु को समझा...." सब कमरे से उठकर जाने लगे थे और बुआ ने एक टेर छेड़ दी थी ..... वंशिका की आँखों से अश्रू झर रहे थे और कुलदीपक ने उसे आहिस्ते से अपने कांधों से लगाया और अपने कमरे की ओर ले गया, अम्मा बाबूजी चकित थे कि कैसे सात साल से चला आ रहा कलह एक झटके में मिट गया ।

Posts of 5 March 16

एक बात तो है - जसोदा और कन्हैया दोनों ने बदनाम तो बहुत किया। !!! इति !!! ***** एक कन्हैया की जीभ काटने के पांच लाख और अगर तीन वामपंथी या कांग्रेसियों की काटेंगे तो पन्द्रह लाख खाते में आएंगे । अब समझे काला धन मतलब कन्हैया जो काला था कि "लाल जुबान" काटोगे तो काला धन मिलेगा। असल में घोषणापत्र का संशोधित स्वरुप अब आया है, बेचारों ने लगभग एक साल दस महीने में घोषणा पत्र में बदलाव किया जो कि वाजिब है। तुम साले सब गधे हो , बहन विस्मृति की तरह बारहवीं पास और सात दिवसीय येल डिप्लोमाधारी हो, कम्बख्तों जे एन यु में पढ़ने ना सही - रात के उतरे छिलके गिनने ही चले जाते !!! ***** क्या सोच रहे थे परसों रात में जब मेरा भाषण पूरी दुनिया सुन रही थी और कल जब मै रविशकुमार के साथ बात कर रहा था और एक बार फिर से हिन्दू राष्ट्र सुन रहा था, अब यही बता दो - 'मन की बात' करोगे अगले महीने, तब तक मै भरी गर्मी में तुम्हारा पसीना निकालने आसाम, पश्चिम बंगाल या कही और चला जाउंगा......... अच्छा ये बताओ कि कल रात को फोन आये कि नहीं- श्रद्धेय महामात्य द्वय आडवानी जी और मुरली

Posts of 4 March 16 #Kanhaiya, - the JNU President

कन्हैया का भाषण सुनकर याद आया कि कल ही संसद में परम पूज्य दुनिया के सबसे बड़े सर्वमान्य नेता, लोकतन्त्र के उपासक , काला धन के प्रणेता, भारतीय संस्कृति को जगसिरमौर बनाने वाले श्रीश्री 1008 नरेंद्र मोदी, माननीय प्रधान मंत्री, भारत सरकार, ने कहा था - कुछ लोगों की उम्र तो बढ़ती है, लेकिन समझ नही। स्वमूल्यांकन तो नही कर रहे थे - क्या कहते है अँग्रेजी में Introspection !!!! इति !!! ***** कन्हैया जो कह रहा है उस पर तार्किक बात करो उजबक, मूर्ख और संघी doctored रटी रटाई बातों पर कोसो मत मित्रों। और वो नेतागिरी कर रहा है तो यह ध्यान रहें कि सारा ठेका गली मोहल्ले में पड़े और कुंठित हो रहे टुच्चे लोगों ने नही ले रखा है, तुममे से कोई एक भी इस तरह का तार्किक भाषण दे दें, विस्मृति से लेकर महामात्य भी तो मान जाऊंगा। असल में सत्यमेव जयते को तुम लोगों ने अपनी "फादर प्रॉपर्टी" समझ लिया इसलिए कन्हैया का एक एक शब्द नश्तर की भाँती चुभ रहा है। मुझे द्रोपदी के शब्द याद आते है जो भीष्म के लिए थे कि नमक उनका खाया है ना तो सत्य के समर्थन में न्याय कैसे करोगे , तुम लोग तो कर्ण बन गए

Posts of 1-3 March 16

यादें माज़ी अज़ाब है या रब  छीन ले मुझसे हाफ़िज़ा मिरा !!! जमानत के सिलसिले में सही, पर (दरअसल वास्तव में गुलशन बावरा) के लिखे मनोज कुमार की देशभक्ति भुनाने वाली फिल्म 'उपकार' के गाने (मेरे देश की धरती सोना उगले) से 'मातृभूमि' के प्रति प्रेम को परिभाषित करता फैसला कन्हैया कुमार के देशभक्तिपूर्ण भाषण पर भरोसा करने में हिचकिचाता है, न्यायाधीश महोदया का यह कहना कि उपकार से देश भक्ति सीखें..... इसी तरह से कानन कौशल संतोषी माँ के रूप में स्थापित हुई थी और अरुण गोविल श्रीराम के रूप में, दीपिका सीता मैया के रूप में.........और चैनल्स पर इन दिनों बजरंग बली से लेकर तमाम धार्मिक ग्रंथो की भरमार है, उर्दू हो, हिन्दी या, क्षेत्रीय भाषा में !!! जीसस से लेकर सारे भगवान, खुदा, और सर्व शक्तिमान मौजूद है. यानी अब हमारी न्याय पालिकाएंं हमें फिल्मों से प्रतीक सीखकर धर्म, देशभक्ति या अन्य मूल्य सीखने को कह रही है. एक धर्म निरपेक्ष राज्य और संविधान से शासित देश में कैसे न्यायपालिकाएं अपने फैसलों में धर्म, नैतिकता और अन्य आख्यान या दृष्टांत देकर फैसलें दे रही है यह समझना हो