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Showing posts from December, 2013

महंगाई के समय में सस्ते इलाज के लिए इंजिनियर की दरकार

एक   बहुत पुराना और प्यारा सा दोस्त है देश के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञों में उसकी गिनती है जब हम लोग छोटे थे तकरीबन नवमी, दसवी में तब से वो डाक्टर बनने के सपने देखता. खूब जी तोड पढाई करके वो डाक्टर बना और पिछले बीस  बरसों से वो अपोलो, एस्कार्ट, फोर्टीज और मियो जैसे बड़े संस्थानों में काम कर रहा है. पिछले कई दिनों से वो कह रहा है कि यार संदीप मै जो कर रहा हूँ उसमे मजा नहीं है रूपया बहुत है पर जिन बच्चों का मै इलाज करता हूँ  वो सब विदेशी है और मुझे अपने इलाके के बच्चों का दर्द महसूस होता है. धार- झाबुआ-बड़वानी जैसे इलाके में बच्चे कुपोषण से मर जाते है शर्म आती है मुझे अपने पढाई और ज्ञान पर, कुल मिलाकर लब्बो लुबाब यह निकला कि हम दोनों मियाँ बीबी मिलकर एक ऐसे बच्चों का अस्पताल  खोलना चाहते है जहां विश्व स्तर की सुविधाएं हो, निशुक या  न्यूनतम शुल्क पर हो और पिछड़े इलाकों में लोग इसका इस्तेमाल करें- कोई बच्चा इलाज के अभाव में दम  ना तोड़े.  अब   सवाल कई है यह दोस्त कहता है कि आई सी यु की भीतर की मशीने महंगी है और जो कंपनिया इन्हें बेचने का धंधा करती है वो लागत मूल्य से कई गून

सत्ताईस बरसों के काम के कुछ अनुभवों का निचोड़

भगवान   के लिए एक बार अपने जीवन में झांककर देखिये कभी तो आपको कोई बेहतरीन रचनात्मक सुझाव या विचार दिमाग में आया होगा.......बस उठाईये कलम और घिस डालिए चार-छः पन्ने और फिर इन्ही पन्नों को जीवन भर चलाते हुए अपने को इतना महान बना दीजिये कि बेचारे गरीब लोग आपको उत्कृष्ट बना दें, आपको महान व्यक्ति का दर्जा दे दें और फिर दुनिया भर के लोग आपको रूपया पैसा देने को तैयार हो जाए (भले ना दें पर आप कम से कम यह तो  हर बार कह ही सकते है कि इस बार मेरे पीछे कई लोग पड़े है कि फंड ले लो, फंड) और फिर उन्ही चन्द पन्नों को जोड़ जाडकर पोथे बनाते रहे और इस तरह ताजिंदगी आप बेहतरीन, नए विचारों वाले, खुले स्वतंत्र और बढ़िया व्याभिचारी-कम-नवाचारी शख्स तो इस भारत जैसे देश में बन ही सकते है क्योकि यहाँ सब चलता है धंधा है, गंदा है, और फिर आप तो आप है गधे के.............!!! दस्तावेज , रपट और लिखने पढ़ने के नाम पर आप बहुत सालों तक दुनिया को विशुद्ध रूप से बेवक़ूफ़ बना सकते है. मैंने अपने जीवन में कईयों को सारी उम्र एक ही तरीके से, एक ही विचार पर लिखते-पढ़ते और चुतिया बनाते हुए देखा है, इनकी झोली में दुनिया भर की सामग्री

देवास में 22/12/13 को संपन्न कबीर मिलन समारोह

बात  बहुत पुरानी तो नहीं पर पिछली सदी का अंतिम दशक था जब हम लोग एकलव्य संस्था के माध्यम से देवास जिले कुछ जन विज्ञान के काम कर रहे थे शिक्षा, साक्षरता, विज्ञान शिक्षण के नए नवाचारी प्रयोग, संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में भी कुछ नया गढ़ने की कोशिशें जारी थी. एक दो बार हमने घूमते हुए पाया कि मालवा में गाँवों में कुछ लोग खासकरके दलित समुदाय के लोग कबीर को बहुत तल्लीनता से गाते है और रात भर बैठकर गात े ही नहीं बल्कि सुनते और गाये हुए भजनों पर चर्चा जिसे वे सत्संग कहते थे, करते है. यह थोड़ा मुश्किल और जटिल कार्य था हम जैसे युवा लोगों के लिए कि दिन भर की मेहनत और फिर इस तरह से गाना बगैर किसी आयोजन के और खर्चे के और वो भी बगैर चाय पानी के. थोड़ा थोड़ा जुड़ना शुरु किया, समझना शुरू किया, पता चला कि कमोबेश हर जगह हर गाँव में अपनी एक कबीर भजन मंडली होती है. बस फिर क्या था दोस्ती हुई और जल्दी ही यह समझ आ गया कि भजन गाने की यह परम्परा सिर्फ वाचिक परम्परा है.  स्व  नईम जी और दीगर लोगों से सीखा कि कबीर की वाचिक परम्परा मालवा और देश के कई राज

"औरतें"- उदय प्रकाश की कविता

वह औरत पर्स से खुदरा नोट निकाल कर कंडक्टर से अपने घर जाने का टिकट ले रही है उसके साथ अभी ज़रा देर पहले बलात्कार हुआ है उसी बस में एक दूसरी औरत अपनी जैसी ही लाचार उम्र की दो-तीन औरतों के साथ प्रोमोशन और महंगाई भत्ते के बारे में बातें कर रही है उसके दफ़्तर में आज उसके अधिकारी ने फिर मीमो भेजा है वह औरत जो सुहागन बने रहने के लिए रखे हुए है करवा चौथ का निर्जल व्रत वह पति या सास के हाथों मार दिये जाने से डरी हुई सोती सोती अचानक चिल्लाती है एक और औरत बालकनी में आधीरात खड़ी हुई इंतज़ार करती है अपनी जैसी ही असुरक्षित और बेबस किसी दूसरी औरत के घर से लौटने वाले अपने शराबी पति का संदेह, असुरक्षा और डर से घिरी एक औरत अपने पिटने से पहले बहुत महीन आवाज़ में पूछती है पति से - कहां खर्च हो गये आपके पर्स में से तनख्वाह के आधे से ज़्यादा रुपये ? एक औरत अपने बच्चे को नहलाते हुए यों ही रोने लगती है फूट-फूट कर और चूमती है उसे पागल जैसी बार-बार उसके भविष्य में अपने लिए कोई गुफ़ा या शरण खोज़ती हुई एक औरत के हाथ जल गये हैं तवे में एक के ऊपर तेल गिर गया है कड़ाही में खौलता हुआ अस्पताल में हज़ार प्रतिशत जली हुई और

जनसत्ता 16/12/13 में अग्रिम की कहानी

बकलोल शेर,और गंजडी घोड़ा

फिर घोड़े ने गांजे का एक लंबा बेहतरीन कश लिया उसके स्वर में थोड़ी खरखराहट थी आँखों में हल्का सा गुबार था, उसने अपनी थूथन को पटका और फिर घटिया सी दिखने वाली भौंहें उठाई और गधों को लगभग चुनौती देते हुए कहा कि मुझसे अच्छा रेंकने वाला कोई नहीं है मै ना मात्र रेंक सकता हूँ वरन, चिंघाड़ भी सकता हूँ, टर्र-टर्र भी कर सकता हूँ, भौंक भी सकता हूँ, चहचहा भी सकता हूँ, मीठी कूक भी निकाल सकता हूँ इस जंगल के सारे मूर्ख शेर मेरे कब्जे में है और फिर मै एक घोड़ा हूँ यह तुम गधों को याद रखना चाहिए ऐसा कहकर वह बहुत ही कातर स्वर में मिमियाने लगा, उसके हाथ-पाँव कांपने लगे, चेहरा मुरझा गया. आखिर घोड़े को भी अपराध बोध तो सालता था क्योकि वह भी एक सरीसृप से निकल कर इस भीषण युग में विकास की सीढियां चढ़ता हुआ आया था इस सितारा संस्कृति में, अपने विकृत अतीत को याद करते हुए रोने लगा, उसे याद आया अपना दोहरा-तिहरा चाल चरित्र और अपना अपमान जो लगातार होता रहा- कभी नदी के मुहाने पर, कभी गेंडे के छज्जे पर, कभी वो पेन्ग्युईन बना, कभी शुतुरमुर्ग बनकर जमाने से अपने आपको छुपाता रहा, इस जंगल में रोज नया घटता देख उसकी आत्मा चीत्का

"सिर्फ युवराज ही नहीं, अग्रिम भी जीत रहा है एक लम्बी लड़ाई कैंसर के खिलाफ"

देश   में कैंसर के खिलाफ और तमाम ऐसी असाध्य बीमारियों से लड़ने के जीवंत किस्से हम अक्सर सुनते रहते है और जब हम पढ़ते है तो एक मामूली खबर सोचकर टाल जाते है या दहशत से का ँप भी उठते है. बात जुलाई की है जब मै हरदोई गया था, अपने एक साथी के घर खाना खा रहा था- बाहर दोपहर के समय तीन बच्चे खेल रहे थे, ध्यान नहीं गया.  थोड़े   दिनों बाद इसी साथी ने बताया कि उनमे से एक बेटा मेरे छोटे भाई का है जिसे हरदोई से डाक्टरों ने लखनऊ रेफर किया है क्योकि उसका हीमोग्लोबिन स्थिर नहीं रह पा रहा और बार-बार खून देने के बाद भी रक्त की अल्पता से डाक्टर भी परेशान है. मेरा मन किसी अनिश्चित कुशंका से काँप गया सिर्फ सात साल का था यह बच्चा. फिर जो होना था वही सच हुआ उसे लखनऊ लाया गया ताबड़ तोब और रातम- रात किसी तरह से जुगाड़ करके संजय गांधी पी जी आई, लखनऊ, में भर्ती कराया गया. उसके पिता शीतेंद्र इंदौर में मूक बधिर बच्चों के लिए स्पेशल टीचर का कोर्स कर रहे थे और माँ उन्नाव जिले के किसी स्कूल में सरकारी अध्यापिका है. बस फिर क्या था शीतेंद्र को अपना कोर्स छोड़कर आना पडा और माँ ने छः माह की छुट्टी के लिए आवेदन किया प

भारत के लोग आज दिनांक 9 दिसंबर को आपको दिल्ली की गद्दी हवाले करते है

चलो अब ढंग से काम धाम पर लगो............लोकतंत्र है हार-जीत सब चलता है और सबको सब मान लेना चाहिए, मै लोगों के मतों की इज्जत करता हूँ और देश के चार राज्यों को हार्दिक बधाई देता हूँ कि कांग्रेस से और गांधी परिवार से पहली बार गत सात दशकों में छुटकारा मिला है.  अब बारी केंद्र में बदलाव की है और देश के अन्य दीगर राज्यों में भी जैसे उप्र में सपा और बसपा से मुक्ति की कामना, बिहार में नितीश और लालू से मुक्ति की कामना, बंगाल में ममता और दक्षिण में क्षेत्रीय पार्टियों से मुक्ति की काम ना में लोग कुलबुला रहे है........ बस हम सबको राहत मिलनी चाहिए, बिजली, सड़क, पानी के अलावा गैस प्याज से लेकर सीमा पर नित रोज मर रहे हमारे सिपाहयों की मौत से, शिक्षा स्वास्थ्य, महिलाओं के अधिकार और समतामूलक समाज, हिंसा और अलगाववाद की हर उस कोशिश से जो देश को देश नहीं रहने देती. हमें अपने किसानों की चिन्ता है जो सरकारी नीतियों की वजह से आत्महत्या कर रहे है , अब समय है कि इन मुद्दों पर तसल्ली से काम करो बजाय चुनाव परिणामों का विश्लेषण और पोस्टमार्टम करने से. देश के जिन युवाओं ने आपको साथ दिया चाहे कमल या झाडू को उन

हत्याहरण ( हरदोई) और पाप मुक्ति का स्वप्न

कहते है प्रभु श्रीराम को रावण जैसे महाविदवान को मारने के बाद बेहद गंभीर पश्चाताप हुआ तो उन्होंने हिरन्यकश्यप की राजधानी के समीप एक जगह पर अपने जादूई प्रताप से एक कुण्ड की रचना की और उसमे अपने आप  को नहलाकर अपने ह्त्या के पाप से मुक्त किया.  कहते है कि जिसने भी ऐसे या कोई और भी पाप किये हो तो वो यहाँ आकर अपने आपको मुक्त कर सकता है.  इस जगह का नाम है "हत्याहरण" पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसी कोइ जगह होगी या Proper Noun के रूप में किसी गाँव या कसबे का नाम ऐसा कैसे हो सकता है परन्तु जब आज कुछ दफ्तरी काम से गया तो आज देखा कि सब सच है, आज सौभाग्य (?) से अमावस्या थी ऐसा वहाँ दान दक्षिणा की अपेक्षा करने वाले पंडित जी ने बताया कि जजमान आज बड़े मुहूर्त से आये हो तो सारे पापों से मुक्त हो जाओगे बस फिर क्या कुण्ड में सैंडिल पहनाकर ही पाप मुक्त हो गए..... इस कुण्ड के मुहाने पर एक इंटर कॉलेज बना है जहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य गहरे अन्धकार में तो है ही साथ ही सुना कि यहाँ रूपये लेकर परीक्षा पास करवाने का भी धंधा होता है. खैर...आप चित्र देखकर पाप मुक्त

तुम्हें कोई खत्म नहीं कर सकेगा - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

तुम धूल हो  ज़िन्दगी की सीलन से  दीमक बनो  रातोंरात।  सदियों से बन्द इन  दीवारों की खिड़कियां , दरवाज़े  और रौशनदान चाल दो।  तुम धूल हो  ज़िन्दगी की सीलन से जनम लो दीमक बनो , आगे बढ़ो। एक बार रास्ता पहचान लेने पर तुम्हें कोई खत्म नहीं कर सकेगा। - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना