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Showing posts from 2009

Save Crocodiles- Some Images from remote Crocodile Park

Visit to kanchipuram Chennai in Dec 09

दिनेश की कविता और सारा जमाना

पिछले दिनों में हरदा गया था वहां धर्मेन्द्र ने कहा की यार तेरे दोस्त दिनेश ने अदभुत कविता लिखी है और वो कविता वागर्थ में छपी है उस कविता की एक लाइन धर्मेन्द्र ने सुनाई तो मन उसी कविता को पढने को व्याकुल हो उठा । खूब ढूंढा यहाँ वहा पर कविता का कोई ठिकाना ही नही था । आखिर एक दिन पछले शनिवार को जयपुर से विवेक आया था सो उसे भारत भवन दिखाना ही था वहां चला गया सबसे पहले पुस्तकालय पर धावा बोला और वागर्थ देखा फ़िर पुस्तकालय कर्मचारी की चिरौरी करना पड़ी की भैय्या वागर्थ का अंक निकाल दे ............. बड़ी देर तक मिन्नतें करने के बाद वो तैयार हुआ फ़िर वागर्थ का अंक निकला और मैंने पढ़ी दिनेश की कविता। तुरंत बाहर निकाल कर दिनेश को फ़ोन किया की बॉस क्या अदभुत कविता है दिनेश दिल्ली निकालने की तैय्यारी में था उस सज्जन पुरूष ने कहा की में अभी पुरी दुरुस्त कविता तुम्हे भिजवा देता हूँ उस कविता में मैंने कुछ रद्दो बदल किए है उसे भी देख लेना और यदि तुम्हारा कोई ब्लॉग हो तो उस पर डाल देना। दिनेश को बहुत सालो से जानता हूँ इतना सहज कवि मैंने कभी नही देखा जब भी रेवा जाता था में दिनेश से मिलकर आता था और बघेलखंडी ब

खिलचीपुर की महिलाए और महिला सममेलन

हाल ही में खिलचीपुर गया था वहां बायपास नामक संस्था काम करती है महिला सशक्तिकरण का वहां एक दिवसीय महिला सम्मलेन था वहा के कुछ खुबसूरत फोटो आप भी देखिये जनाब...........हाँ हनीफ से भी मिला राजगढ़ में और हिना के हाथो बने मैथी के पराठे खाए , प्यारी सी बच्ची से भी मिला । मुजीब अच्छा ड्राईवर था, बहुत सम्हाल कर गाड़ी चलाई उसने और मुझे सुरक्षित ले आया देवास में, आते समय हिमांशु से मिलना तो एक वरदान जैसा ही था हिमांशु आजकल शाजापुर में न्यायाधीश है खूब अच्छा लगता है जब हिमांशु और रवि को मिलता हो तो....... ये दोनों मुझे बहुत उम्मीद दिलाते है की न्याय अभी हो सकता है.....और न्यायपालिका में कुछ लोग है जो लोगो को न्याय दिलाने में सचमुच सहाय हो सकते है इस भीषण समय में भी जब लोग न्याय पर से अपना विश्वास खो रहे है................

भारत भवन में लगी एक कविता जो मोहित के लिए है........

भारत भवन में लगी एक कविता जिसने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया, ज़िन्दगी के प्रति भी और समाज के प्रति भी। कल जयपुर से विवेक आया था- दो दिन साथ रहा मेरे , बस यूही घूमते रहे और ये कविता हाथ लग गई तो ले आया अपने मोहि के लिए..................... यह कविता मोहित के लिए है।

अपूर्व की नई नौकरी और मेरा स्थायी अकेलापन

अपूर्व की नई नौकरी लगी है आज या कल ये होना ही था मैंने उसके साथ लगभग पांच माह साथ बिताये है और मेरे लिए ये अनमोल धरोहर है मैं क्या कहू अपूर्व............ बस इतना ही की तुम थोड़ा सा यही रह जाओगे ......... या यु कहू की पुरे का पुरा यहाँ रह जाओगे बस सिर्फ़ इतना यद् रखना यदि तुम नही तो मैं नही............ संदीप नाईक समाप्त ..........बस................................ एक पिता को यह बोझ सहना ही पड़ता है आज मैंने यह दर्द कैसे सहा है यह शब्दों में बया कारण बहुत ही मुश्किल है.......... मैंने इन पाँच महीनो में यह अच्छे से समझा है की अपने लोगो को पाने के लिए भी ख़ुद को समर्पित करना पड़ता है सब कुछ भुलाकर सिर्फ़ अपनों का हो जाना पड़ता है............. मैंने लिखना - पढ़ना छोड़ दिया....... सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया सिर्फ़ इसलिए की मेरा बेटा मेरा हो सके......... और उसने भी बहुत प्यार सम्मान दिया......... इतना की शायद अपना जाया होता तो भी नही मिलता ............. बस अब तो जीवन सिर्फ़ इन बच्चो का है- घर के तीन बच्चे और अपूर्व और मोहित............ सब इनके लिए है और कुछ भी नही है जीवन में................. मैं

सत्यमंगलम के जंगलो में अन्नपुर्णा

हाल ही में मैं तमिलनाडु के इरोड जिले में गया था वहां से सत्यमंगलम के जंगलो में गया था । ये इलाका पुरी तरह से वीरप्पन का इलाका था जो आज भी हाथी और वीरप्पन के नाम से जाना जाता है । दूर घने जंगलो में एक छोटे से टपरे में इस महिला ने मुझे जो खाना खिलाया था वो दुनिया भर के पॉँच सितारा होटलों से लाख गुना बेहतर था और सिर्फ़ पच्चीस रुपये में .............और उसे वो भी मांगने में संकोच हो रहा था मुझे माँ की याद आ गई ............... माँ भी ऐसी ही थी कभी कोई मेरे घर से भूखा नही गया आजतक ये ब्लॉग इसी अन्नपुर्णा को समर्पित है .................. जब तक ऐसी अन्नापुर्नाये जिन्दा है तब तक कोई भी भूखा नही रह सकता ......... ये मेरा विश्वास है धन्य है भारत भूमि की माताये, बहने और ऐसी अन्नापुर्नाये ................. शत शत प्रणाम.......

Some pics of Sea beach and Sathyamangalam

प्रभाष जी का जाना देवास के लिए एक बड़ा शून्‍य

प्रभाष जी का जाना देवास के लिए एक बड़ा शून्‍य 7 November 2009 No Comment प्रभाष जोशी मेरे अपने गृह जिले के रहने वाले थे। शिप्रा के पास एक गांव है सुनवानी महाकाल। वहीं के थे। कल रत जब आशेंद्र के एक छात्र हरिमोहन बुधोलिया ने रात तीन बजे फोन किया तो में सो रहा था। दो बार अनजान नंबर से कॉल आया तो लगा की कोई परेशान है और कुछ कहना चाहता है। सो फोन उठा लिये। हरि ने कहा की दादा, प्रभाष जी नहीं रहे। मैं तो हैरान रह गया। तुंरत अपने देवास के दोस्तों को मैसेज कर दिया। भोपाल के भास्कर में, पत्रिका में, नईदुनिया में मैसेज किया। रात को किसी को उठाने में भी डर लगता है। हरी ने यह भी बताया था कि अंतिम क्रिया उनके गांव में ही होगी, सो मैंने बहादुर को भी कहा कि यार गांव के सरपंच को बता देना ताकि इंतज़ामात हो सके। हाल ही में मैं छतरपुर गया था। वहां प्रभाष जी की बहन से लंबी बातें हुई थीं। फिर उन्‍हीं के बेटे के साथ पीतांबरी पीठ भी गया था। प्रभाष जी की बहन ने प्रभाष जी के बारे में काफी सारी बातें बतायी थीं और मैं भी मालवा का होने के कारण उन्हें जानता था। यह मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक ख़बर थी।

A Wonderful Poem which is Close to my HEART by Mohit

Today Sept 21 on the Morning of IDD, Mohit sent me a wonderful poem which is very close to my Heart. Here it goes.......... Life is Like that only…………… Sleep monger, death monger, with capsules in my palms each night, eight at a time from sweet pharmaceutical bottles I make arrangements for a pint-sized journey. I’m the King of this condition. I’m an expert on making the trip and now they say I’m an addict. Now they ask why. WHY! Don’t they know that I promised to die! … Yes I try to kill myself in small amounts, an innocuous occupation.

डॉक्टर संजय भालेराव और चेन्नई का सफर

चेन्नई यानि की मद्रास से मेरा बहुत पुराना रिश्ता है मुझे याद पड़ता है १९८२ में पहली बार अपना राष्ट्रपति पुरस्कार लेने गया था बड़ा सा मैदान था किसी क्रिश्चियन संस्था में कार्यक्रम था । जाने के पहले हम लोगो ने सोचा यहाँ तक आए है तो तिरुपति बालाजी भी हो चले। सो वहा भी चले गए थे तब तमिलनाडु में ऍम जी रामचंद्रन का शासन था और अमूमन पुरे तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध अपने शबाब पर था । हम लोग तिरुपति में सबको देखकर कबीट कबीट चिढा रहे थे क्योकि दक्षिण में तिरुपति में बाल देने का रिवाज है और हमारे लिए यह आश्चर्य जनक था क्योकि महिलाओं को बाल देते कभी देखा नही था। खूब मार खाई थी फ़िर हमारे स्काउट मास्टर ओंम प्रकाश जोशी ने पुलिस थाने में जाकर बताया की ये बच्चे राष्ट्रपति पुरस्कार लेने आए है तब कही जाकर तमिलनाडु पुलिस ने हमें एक विशेष वन में बिठाकर नीचे ले जाकर छोड़ा। आठ दिन में उस लंबे मैदान में समय कब निकल गया पता ही नही चला हां आज पहली बार कह रहा हूँ कि मेघालय कि एक लड़की मेरी जोसफ से पहली बार मिला था और शायद जिसे पहली नज़र का प्यार कहते है हुआ था । जाते समय बहुत रूअंसासा हो गया था और

एक संभावनाशील प्रशासनिक अधिकारी की असमय मौत यानि कि एक सपने का खत्म हो जाना

आज ही दिल्ली से लौटा हू दिल्ली के तीन दिन बेहद थकाऊ थे, ना मात्र काम के हिसाब से, बल्कि सूअर बुखार और चिपचिपी गर्मी के कारण , ये तीन दिन मेरे लिए बहुत ही उबाऊ थे । एक साक्षात्कार के सन्दर्भ में राजीव गाँधी फाउंडेशन दिल्ली में गया था । पद चूकि बहुत आकर्षक था इसलिए चला गया था । वह पहाड़गंज के एक होटल में रुका था हालांकि एसी लगा था फ़िर भी गर्मी इतनी खतरनाक थी कि बताया नही जा सकता मेरे चेहरे पर निशान पड़ गए। साक्षात्कार में दो दिन की प्रक्रिया थी चयन होने की पुरी उम्मीद है पर मामला रुपयों पर आकर रुकेगा वैसे भी दिल्ली के हालात देखकर मुझमे हिम्मत नही है की मै वहा जाऊ और काम करू । पता नही क्या होगा , हां यदि आठ लाख का पैकेज मिला तो हिम्मत जुटाई जा सकती है क्योकि मेरा मानना है कि पैसा छठी इन्द्री है जो पाँच इन्द्रियों को नियंत्रित करता है , खैर जो होगा देखेंगे..... इस बीच मोहित का फ़ोन आना दिल्ली में सबसे सुखद था , "बिल्कुल रेगिस्तान में पानी मिलने के जैसा" । उस दिन १० तारीख को जब मै लौटने ही वाला था कि उसका फ़ोन आ गया। मैंने कुछ पूछा नही सिर्फ़ पूछा कि कैसे हो बेटू । फ़िर वो बोला

प्रमोद उपाध्याय का गुजर जाना यानि कि हिन्दी के नवगीत में एक और शून्य का उपजना

आजकल बहादुर के फ़ोन आते ही डर लगने लगता है कि पता नही किसके मौत का पैगाम दे रहा हो । ऐसा ही कुछ आज हुआ दोपहर में बैठा कुछ काम कर रहा था कि उसका फ़ोन आया दिल धक्क से रह गया कि हो न हो मेरे अपने शहर में कुछ गंभीर हो गया है । जैसे ही फ़ोन उठाया वह बोला भाईसाहब एक बुरी ख़बर है मैंने कहा कि साला अब क्या हो गया , तो बोला कि प्रमोद का कल रात बारह बजे इंदौर में देहांत हो गया में चौक गया कि ये सब क्या हो गया, कहा तो वो भोपाल आने वाला था मुझसे हमेशा कहता था कि संदीप तेरे पास आकर रहूँगा और में हंसकर टाल देता था। देवास हमारा अपना कस्बा था जहा मै पढ़ा लिखा और सारे संस्कार लिए। लिखना पढ़ना मेरे अन्दर डालने वालो मे राहुल बारपुते, कुमार गन्धर्व, विष्णु चिंचालकर "गुरूजी", बाबा डिके, कालांतर मे जीवन सिंह ठाकुर डॉक्टर प्रकाश कान्त , प्रभु जोशी और मेरे अज़ीज़ दोस्त बहादुर पटेल और मनीष वैद्य का नाम लिए बगैर सब व्यर्थ हो जाएगा। बाद मे पता चला कि नईम और भी दीगर लेखक थे जो राष्ट्रीय स्तर पर नाम और काम के कारण जाने जाते थे। प्रमोद उपाध्याय उसी गाँव के थे, जहा मेरी माँ ने सन सत्तर के दशक मे ब