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Showing posts from November, 2017

"तुम्हारी सुलू" का टैक्स फ्री होना जरुरी 21 Nov 2017

"तुम्हारी सुलू" का टैक्स फ्री होना जरुरी _______________________________ कल जब फिल्म देखकर लौटे तो मनीष ने कहा कि घर चलकर एक कप चाय पीते है, इस ठन्डे मौसम में और बेहद ठंडी फिल्म देखकर एक कप चाय तो बनती है ना, घर जाते ही मनीष की पत्नी शक्ति ने ही जाते पूछा कि भैया फिल्म कैसी है "तुम्हारी सुलू " , तो मै दो मिनिट के सोच में पड़ गया कि क्या कहूं....... मेरी जानकारी में भारतीय फिल्म इतिहास में संभवतः पहली फिल्म होगी जिसमे एक भारतीय पत्नी पति को कहती है "सुनो पाँव दुःख रहे है , ज़रा दबा दो ना" और पति बनें मानव कौल बहुत सहज भाव से पत्नी के पैरों की हलके से मालिश करने लगते है. यह फिल्म का वह टर्निंग बिंदु है जो पूरी फिल्म का आगाज़ है और धीरे धीरे जेंडर, स्त्री अस्मिता, मायाजाल, बाजार, घर, परिवार, समाज, रिश्तेदारी, अपार्टमेन्ट की दुनिया, स्त्रियों का गिल्ट और स्त्री स्वतन्त्रता के बदलते मायने, रेडियो जैसे उपेक्षित माध्यम का एक ताकतवर माध्यम में उभरना और समाज के घटिया या निम्न वर्गीय चरित्रों का चित्रण आदि के बीच बच्चों की वाजिब चिंताएं और सरोकार

कवि कुँवर नारायण जी को सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि 16 नवम्बर 2017

हिंदी के महत्त्वपूर्ण और वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण हमारे बीच नहीं रहे। विनम्र श्रद्धांजलि। जन्म : 19 सितम्बर 1927 अवसान : 15 नवम्बर 2017 'कहीं कुछ भूल हो कहीं कुछ चूक हो कुल लेनी देनी में तो कभी भी इस तरफ़ आते जाते अपना हिसाब कर लेना साफ़ ग़लती को कर देना मुआफ़ विश्वास बनाये रखना कभी बंद नहीं होंगे दुनिया में ईमान के ख़ाते।'' 19 सितम्बर 1927 को जन्मे हिंदी के विलक्ष्ण कवि कुंवर नारायण का छः माह कोमा में रहने के बाद शान्ति से गुजर जाना स्तब्धकारी है. हिंदी कविता के एक मात्र ऐसे कवि है जो चेतना से लबरेज और मनुष्यता से परिपूर्ण है. मुक्तिबोध के युग के महत्वपूर्ण हिंदी के कुंवर नारायण जितने सहज जीवन में है उतने ही सहज कविता में भी है, उनकी कविता मनुष्य के जीवन की सरल कविता है जो अपने आसपास के शब्दों, बिम्ब और उपमाओं से भरकर वे एक ऐसा वितान रचते है मानो कवि ने शब्दों के भीतर ही थाह पा ली हो. अपने संकलन वाजश्रवा के बहाने से चर्चा में आये इस कवि ने समकालीन हिंदी कविता में नये प्रयोग किये और कविता को बहुत बारीकी से बुनते हुए आम जन तक पहुंचाया, इस

Khari Khari 9 Nov 2017

अपनी ख़ामोशी में ही अपने को समझे और जो इस सर्द ख़ामोशी में खलल डालें उस आवाज को हमेशा के लिए या तो दबा दो या ऐसी जगह दफ़न कर दो कि वो सिर्फ एक इको बनकर रह जाये संसार मे ताकि वो त्रिशंकु की भांति यही बना रहे खत्म ना होने के लिए। *** हम जितना अपने करीबी परिजनों, मित्रों, सहकर्मियों और ख़ास लोगों से फ़ासला रखेंगे उतना ही दिमाग़ी सुकून मिलेगा जीवन में। *** आपके जीवन मे यदि कोई व्यक्ति विशेष दखल दें, परेशान करें और आपकी डिग्निटी या निजता में झांकने का काम करें तो सबसे पहले उसे फेसबुक से ब्लॉक करें, वाट्स एप से हटाए उसका नम्बर ब्लॉक करें और उससे संबंधित सारी स्मृतियां भूला दे - मुश्किल है पर कठिन भी नही। अगली बार वह नामाकूल मिलें तो उसे दुर्लक्ष कर उसकी इतनी उपेक्षा करें कि वह आपको भी अपने ज़ेहन से निकाल दें।  देखा यह है कि जब आप लोगों के काम, सदाशयता और ईमानदारी पर सवाल करते है तो वे जवाब देने के बजाय औकात पर तुरन्त आते है। *** सार्वजनिक जीवन मे उतने ही खुले, स्वतंत्र और निर्भीक रहिये जितना लोहे के पर्दों से पार देखा जा सकता है। (Iron Curtain) *** यदि आप किस

Posts of 3 Nov 17 Bhopal Rape , Krishna Sobati and Dewas MNC SBA

3 Nov 2017  कौन कहता है कि हिंदी का साहित्यकार दरिद्र होता है। ए लड़की और मित्रो मरजानो की लेखिका जिन्हें आज ज्ञानपीठ से नवाज़ा गया है उन्होंने कुछ वर्ष पहले रज़ा फाउंडेशन को एक करोड़ का दान दिया था ताकि साहित्य की सेवा की जा सकें। यह दीगर बात है कि कितनी कहां और कब हुई या किन फर्जी अकादमियों को गांव देहात कस्बों में अन्यदान / अनुदान दिया गया पर यह अशोक वाजपेयी जी की इस घोषणा से हिंदी साहित्य पर , साहित्यकार पर थोड़ा विश्वास बढ़ा है और उम्मीद भी पींगे ले रही है। अब कोई "गरीब मास्टर मर गया , ल गता है हिंदी का साहित्यकार था" जैसे ध्येय वाक्य पढ़ने को नही मिलेंगे। बहरहाल, कृष्णा सोबती जी अब ग्यारह लाख ( बढ़ तो नही गए ये रुपये, मंडलोई जी से पूछो रे) किसे देंगी - यह विचारणीय है, ध्यान रहें सबको कि पंक्ति में दान लेने के लिए यह टुच्चा फेसबुकिया लेखक उर्फ गरीब ब्राह्मण भी खड़ा है ********* भोपाल बलात्कार कांड में तीन टी आई और एक दो सब इंस्पेक्टर को निलंबित किया गया एस पी, एएस पी, आईजी, डीआईजी या डीजीपी को क्यों बचा लिया - क्योकि ये बड़े आय पी एस रात को आराम करते है ?