Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2012

प्रशासन पुराण 48

सरकार की योजना थी कि हर गाँव में हर घर के लोग शौचालय बनवाए और इसके लिए सरकार ने नगद रूपयों के अनुदान का प्रावधान रखा था. हर जगह हर कोई इस योजना का जमकर प्रचार-प्रसार करता था क्योकि इसके दो फायदे थे एक तो नगद नारायण का जुगाड हो जाता था और कभी किसी गाँव को पुरस्कार मिल गया तो उस सरपंच के साथ एक लाख से लेकर पांच लाख लेने दिल्ली जाने की गोटी फिट हो जाती थी, बस नाम और यश अलग था. आज भी एक ऐसे ही कार्यक्रम में गधा प्रसाद को अतिथि बुलाया गया था, सामने जिले के युवा बैठे थे, बच्चे थे, सरकारी- गैर सरकारी कर्मचारी थे, बस गधा प्रसाद पेलने लगा कि हम सब माननीय  मुख्यमंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे है यह मर्यादा कार्यक्रम बड़ा जोरदार है. हम हर गाँव को निर्मल बनाना चाहते है, हर ब्लाक को और अपने जिले को प्रदेश का पहला निर्मल जिला बनाना चाहते है और इस तरह से सिक्किम की तरह पुरे प्रदेश को निर्मल प्रदेश बनाना चाहते है. और इसके लिए हम बच्चों को तैयार कर रहे है ये बच्चे जिसके घर में शौचालय नहीं होगा उसके घर के आगे बोम पीटेंगे, रैली निकालेंगे, हम शासन की ओर से हर गाँव में निर्मल बहने बनाएंगे, निर्मल पंचायत क

प्रशासन पुराण 47

जंगल में शेर का दूत आया था सियारो की लड़ाई हुई थी एक गीदड ने एक सियार को बुरी तरह से पीट दिया था. दूत के साथ दूत का चापलूस भी संग था जो रोटी का जुगाड करता था, बोटी का और पीने-पिलाने के लिए सोमरस का भी. खैर दूत ने सारे सियारो को बुलाया और गीदड को सामने बिठाकर पूछना शुरू किया और फ़िर सारे शिकवे-गिले सुनने के बाद उसने निर्णय दिया कि गीदड और सियार समझौता कर ले, जिन रूपयों के लेन देन पर मारा पीटी  हुई थी उस पर अब मामला सुलट जाना चाहिए और ये क्या सारे जंगल की बदनामी होती है इस तरह से रोज कमाओ और सबको बाँट कर खाओ खुद जियो और सबको जीने दो........यही बात तो महामुनि शुतुरमुर्ग ने कही है, लगभग दहाडते हुए कहा -अब तुम साला कमाना भी चाहते हो और बांटना भी नहीं चाहते इस तरह से तो जंगल विभाग की खिल्ली उड़ेगी और फ़िर क्या भद उड़ेगी,. शर्म आना चाहिए इतने साल हो गए सेवा चाकरी करते हुए फ़िर भी रिश्वत का रूपया ठीक से बन्दर-बाँट नहीं कर सकते, यह सुनकर चूहे जो बाहर बैठे थे खुश हो गए और बोले चलो अब अपुन अपना हिस्सा पहले ही ले लेंगे, इन  सियारो गीदडो के हाथ में जाने से पहले. बस दूत जब लौटने लगा तो अपनी रपट बनाने के

प्रशासन पुराण 46

जंगल के छोटे मोटे जानवर चौकीदार से सब परेशान थे, कई बार ये हुआ कि चौकीदार ने एकाध छोटे मोटे दलित से जानवर को डरा धमाका दिया, यहाँ तक कि चांटा भी मार दिया था. सभी बेचारे जंगल के धृतराष्ट्र से मिले पर कुछ नतीजा नहीं निकला, धृतराष्ट्र ने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकता और फ़िर ये मेरे न्याय क्षेत्र में नहीं आता, जानवर परेशान थे चौकीदार का प्रकोप बढ़ रहा था जंगल में अराजक्ताएं फैलना शुरू हो गयी सारी फाईलों पर जाम लग गया विकास रुक गया अब दो पाले थे एक चौकीदार का और एक इन दलित सताए जानवरों का, दिनों दिन समस्याए बढती जा रही थी, चौकीदार को राज्याश्रय था और धृतराष्ट्र का खुला समर्थन( माफ कीजिये थोड़ा गडबड मामला है कि धृतराष्ट्र और जंगल का क्या रिश्ता है पर जब राजा अंधा हो जाए तो उसे और क्या कह सकते है? ) यही वह धृतराष्ट्र है जो अपने जंगल के ईमानदार खरगोश को जिसका कुछ लेना देना नहीं है ना ही बेईमानी से कमाना खाना है उसे भी आगे कर मरवाने का पूरा इंतज़ाम कर चुका था वो तो भला हो देवदूतो का जिन्होंने उसे बचा लिया, खैर, अब धृतराष्ट्र से भी नाराज होकर एक दिन सारे दलित जानवर जंगल के राजा के पास

समझदारों का गीत - गोरख पांडे

हवा का रुख कैसा है, हम समझते हैं हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं हम समझते हैं ख़ून का मतलब पैसे की कीमत हम समझते हैं क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है, हम समझते हैं हम इतना समझते हैं कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं. चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं बोलने की आजादी का मतलब समझते हैं टुटपुंजिया नौकरी के लिए आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं मगर हम क्या कर सकते हैं अगर बेरोज़गारी अन्याय से तेज़ दर से बढ़ रही है हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के ख़तरे समझते हैं हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं हम समझते हैं हम क्यों बच जाते हैं, यह भी हम समझते हैं. हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह सिर्फ़ कल्पना नहीं है हम सरकार से दुखी रहते हैं कि वह समझती क्यों नहीं हम जनता से दुखी रहते हैं क्योंकि वह भेड़ियाधसान होती है. हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं हम समझते हैं मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी हम समझते हैं यहां विरोध ही बाजिब क़दम है हम समझते हैं हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं हम समझते हैं हम समझौते के लिए तर्क

प्रशासन पुराण 45

प्रदेश के जंगल में राजा रानी सुख से रहते थे गीदडो की फौज थी सियार थे लोमड़िया थी और गिरगिट भी थे. गाहे बगाहे अंतर्राष्ट्रीय गिरगिट आकर राजा रानी को जंगल की हकीकत बताते और दुनिया जहां में होने वाले परिवर्तनों की आँधियों और बयार से वाकिफ कराते ये बाहरी गिरगिट राजा को और उसके सियारो को खूब ऐश कराते सैर सपाटा और खाना पीना और भी कुछ कुछ इसलिए इनकी राजा के दरबार में तूती बोलती थी. एक गीदड जंगल के खजाने की देखभाल करता था जिसमे जंगल के खनिज और सारे पदार्थ हुआ करते थे, ये गीदड राजा के सामने हमेशा नत मस्तक रहता था बड़ी बेशर्मी से सबके सामने राजा को साष्टांग प्रणाम कर लेता था, इसीके चलते एक बार हाथी ने इसको जंगल के एक प्रांत से हटा भी दिया था पर रानी की कुछ ऐसी कृपा दृष्टि रही कि वो फ़िर से राजा के दरबार में विश्वस्त बनकर पहुँच गया, इस पर कई लोमड़ियों ने कई बार हमले किये, इसने जंगल के थाने में रपट लिखाई और ये हमेशा बच गया क्योकि राजा का खास आदमी था. पर अबकी बार मामला गंभीर था, जब ये गीदड एक कोयला दलाल के सौजन्य से दूर देश के जंगल में ऐयाशी करने गया था तो राजा को आने वाले चुनावो की भनक लग गयी राजा को

सौभाग्य न सब दिन सोता है,

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-धाम,पानी-पत्थर, पाण्डव आये कुछ और निखर| सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें,आगे क्या होता है? -रश्मिरथी (दिनकर)

एक बार फ़िर फराज...............

तुम्हारे लिए............सुन रहे हो................कहा हो तुम............... उस शख़्स को बिछड़ने का सलीका भी नहीं, जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया चढते सूरज के पूजारी तो लाखों हैं 'फ़राज़', डूबते वक़्त हमने सूरज को भी तन्हा देखा -अहमद फ़राज़

रविवार 15/4/2012 को समावर्तन का लोकार्पण

कल से दो दिन देवास में हूँ. रविवार 15/4/2012 को समावर्तन का लोकार्पण है शाम ५.३० बजे मल्हार स्मृति मंदिर में. समावर्तन पत्रिका का यह अंक स्व नईम पर और कलापिनी के संगीत में योगदान पर केन्द्रीत है. यह माह नईम जी और कुमार जी का माह है देवासवासी इस माह को बहुत अच्छे से जानते है. इस कार्यक्रम में समावर्तन के साथी ड़ा प्रभात भट्टाचार्यजी, प्रमोद द्विवेदी, श्रीराम दवे, सुल्ताना नईम, पदमश्री वसुंधरा कोमकल ी, सुश्री कलापिनी मंच पर रहेंगी. साथ ही दीपक गरुड़, और राजशेखर त्रिवेदी कलापिनी के संगीत में योगदान पर अपना मत रखेंगे. कलापिनी "युवा संगीतकारों के सामने चुनौतिया" विषय पर एक प्रेरक उदबोधन देंगी. इसी क्रम में जीतेंद्र चौहान इंदौर के कवि अपनी कविताओ का पाठ करेंगे और प्रदीप मिश्र जीतेंद्र की कविता एवं आज की सामयिक हिन्दी कविता विषय पर आधार वक्तव्य देंगे. कार्यक्रम स्थानीय ओटला के साथी बहादूर पटेल, मनीष वैद्य, दिनेश पटेल, श्रीकांत उपाध्याय, ड़ा सुनील चतुर्वेदी, प्रकाश कान्त, जीवन सिंह ठाकुर, विक्रम सिंह आदि आयोजित कर रहे है, साथ ही यह खाकसार (संदीप नाईक) तो रहेगा ही सदा

श्रवण कुमार तीर्थ यात्रा योजना और म प्र का बंटाधार........

श्री भुवन गुप्ता (जो कही तहसीलदार है) जिनकी मूल पोस्टिंग है "श्रवण कुमार तीर्थ यात्रा योजना" की जहां वे लिखते है यह लोक कल्याणकारी राज्य है जिसमे माननीय मुख्यमंत्री जी अच्छा कार्य कर रहे है, वो मेरी टिप्पणी पर खफा है कि "तीर्थ यात्रा कराना राज्य का दायित्व नहीं हैभुवन कहते है कि "भाई साहब आप 'लोक कल्याणकारी' राज्य की अवधारणा को समझने का प्रयास करें। पूराने जमाने से हमारे यहाँ राजा सराय, धर्मशाला ब नाने का कार्य करते रहे है। and there is no limit of 'Good Governence" और कह रहे है कि मुझे लोक कल्याणकारी राज्य की समझ नहीं है. मेरा कहना है कि "यह गोद भराई और तीर्थ यात्रा निहायत ही व्यक्तिगत है ना कि धर्मशाला या सराय बनवाना ...............सिर्फ राज्य की कल्याणकारी अवधाराना का ढोल पीटने से राज्य कल्याणकारी नहीं हो जाता यहाँ के ब्यूरोक्रेट्स कितना कमा रहे है यह किसी से छुपा नहीं है प्रदेश के ३/४ जिला कलेक्टर और जिला पंचायत के कार्यपालक अधिकारी, जिला योजना अधिकारी भ्रष्टाचार में डूबे है और इनके खिलाफ जा

अभिनय, भय, जुगुप्सा, काम, श्रृंगार, वात्सल्य, रोमांस और पीड़ा जैसे रस और उनकी अनोखी अभिव्यक्ति का अदभुत संयोजन है टाईटेनिक

रुदन है, लाशो का अम्बार, सिसकियों से गूँज रहा है आसमान, उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती किसी को, दूर कही देखते हुए नज़रे पथरा गयी है, बूढ़े-बच्चे-महिलायें बेबस से ताक रहे है चारों ओर, युवा परेशान है अपनी ताकत के जोर पर दुनिया हिला देने वाले ये कमबख्त समझ नहीं पा रहे कि आगे क्या होगा और क्या करे? आसमान से काली आंधिया उतर रही है, बेहद खतरनाक मंजर है पानी की लहरे उद्दाम वेग से बलवती होकर कहर बरपा रही ह ै आँखों के सामने सब कुछ डूबते जाने की पीड़ा और ना कुछ कर पाने का मलाल हर किसी को है ना समय की कीमत बची है और ना ही रूपयों की कीमत, लेने वाले को मोह नहीं और देने वाला भी जानता है कि बस यह एक मात्र छल है इससे ज्यादा कुछ नहीं, इतना कमा कर जिसमे रूपया- पैसा, यश- कीर्ति, दुनियावी नाम और झंडे पताके फहरा कर भी कुछ हासिल नहीं हो रहा .....स्मृतियों में जाने वाले ये पल आने वाले समय में कितना संताप भर देंगे मन के कोनों में इसका किसी को कोई एहसास है, सब यही छूटने वाला है -धन- दौलत, जेवर और संपत्ति, वस्त्र- आडम्बर और सारे परिधान !!! यह समय मूल्यों को त्याज कर संस्कारों को ध्वस्त कर अपने को

TITANIC - 3DA GREAT EXPERIENCE OF MY LIFE

  Rose: I love you, Jack. Jack: Don't you do that, don't say your good-byes. Ros e: I'm so cold. ... Jack: Listen, Rose. You're gonna get out of here, you're gonna go on and make lots of babies, and you're gonna watch them grow. You're gonna die an old... an old lady warm in her bed, but not here, not this night. Not like this, do you understand me?   Rose: I can't feel my body. Jack: Winning that ticket, Rose, was the best thing that ever happened to me... it brought me to you. And I'm thankful for that, Rose. I'm thankful. You must do me this honor, Rose. Promise me you'll survive. That you won't give up, no matter what happens, no matter how hopeless. Promise me now, Rose, and never let go of that promise. Rose: I promise. Jack: Never let go. Rose: I'll never let go. I'll never let go, Jack.."