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Showing posts from August, 2012

उल्लू की नसीहत और देश के हालात.......

एक बार एक हंस और एक हंसिनी जंगल में घूम रहे थे बातों बातों में समय का पता नहीं चला शाम हो गयी, वो अपने घर का रास्ता भूल गए और चलते-चलते एक सुनसान जगह परएक पेड़ के नीचे जाकर रुक गए . हंसिनी बोली मैं बहुत थक गयी हूँ चलो रात यहीं बिताते हैं सुबह होते ही चलपड़ेंगे. हंस बोला ये बहुत सुनसान और वीरान जगह लगती है (----''यहाँ कोई उल्लू भी नहीं रहता है''-----) चलो कोई और जगह देखते हैं. उसी पेड़ पर बैठा एक उल्लू हंस और हंसिनी बातें सुन रहा था वो बोला आप लोग घबराएँ नहींमैं भी यहीं रहता हूँ , डरनेकी कोई बात नहीं है आप सुबह होते ही चले जाईयेगा . हंस और हंसिनी उल्लू की बात मानकर वहीँ ठहर गए . सुबह हुई हंस और हंसिनी चलने लगे तो उल्लू ने उन्हें रोक लिया और हंस से बोला तू हंसिनी को लेकर नहीं जा सकता ये मेरी पत्नी है. हंस बोला भाई ये क्या बात कर रहे हो तुम जानते हो कि हंसिनी मेरी पत्नी है. उल्लू बोला नहीं हंसिनी मेरी पत्नी है तू इसे लेकर नहीं जा साकता . धीरे-धीरे झगड़ा बढ गयाऔर तू-तू में-में होने लगी . उल्लू हंस की बात मानने को तैयार ही नहीं था . तभी चतुराई से उल्लू बो

Great people talk about ideas

How our inner Ego sometimes misjudges a PERSON A lady in a faded grey dress and her husband, dressed in a homespun suit walked in timidly without an appointment into the Harvard University President's outer office. The secretary could tell in a moment that such backwoods, country hicks had no business at Harvard and probably didn't even deserve to be in Harvard. "We want to see the President "the man said softly.. "He'll be busy all day "the secretary snapped. "We'll wait" the lady replied. For hours the secretary ignored them, hoping that the couple would finally become discouraged and go away. They didn't and the secretary grew frustrated and finally decided to disturb the president. "Maybe if you see them for a few minutes, they'll leave" she said to him. The President, stern faced and with dignity, strutted toward the couple. The lady told him "We had a son who attended Harvard for one ye

प्रशासन पुराण 56

कल एक वरिष्ठ साथी से बात हो रही थी जो लंबे समय तक म् प्र नरोन्हा प्रशासनिक अकादमी में बतौर फेकल्टी रहे है और आजकल कुछ सहयोग करते रहते है. कह रहे थे कि देश का सुशासन करने के लिए जिन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को चुना जाता है और लबासना मसूरी में भेजा जाता है इन्हें वहाँ यह बार बार सिखाया जाता है कि तुम देश के कर्णधार हो और अब देश तुम्हारे ही भरोसे है इसलिए अपना "इगो" कायम रखते हुए और सबको म ुर्ख समझकर काम करो, यह "पेम्परिंग" इन्हें जीवन भर ज़िंदा रखती है और गर्व और इगो साथ ही अपने ही आप में मस्त रहकर ये अधिकारी देश का सत्यानाश कर डाल रहे है. ना इन्हें जन की फ़िक्र है, ना लोक की, ना लोकतंत्र की. जब तक लबासना का ढांचा मूल रूप से बदला नहीं जाता मेरा मतलब वहाँ पर दो वर्ष के प्रशिक्षण को ठीक से वर्तमान सन्दर्भों में लागू नहीं किया जाता तब तक देश में ऐसी ही ढीलपोल चलती रहेगी. मै कभी से कह रहा हूँ कि भा प्र से के अधिकारी की जिले में निरंकुशता पर लगाम लगायी जानी चाहिए. मेरी नजर में बराक ओबामा और भाप्रसे का अधिकारी पूरी दुनिया को अपनी जेब में रखकर चल र

आजकल ये आदिवासी ज्यादा बोलने लगे है.....

आज एक जिला स्तरीय बैठक में बड़ा गजब हुआ है एक जिला पंचायत के सदस्य श्री फागराम जी, जो आदिवासी समाज के है, ने बड़ी दिलेरी के साथ होशंगाबद्द जिले के केसला ब्लाक के तामु रोड पर बनने वाले मिनरल वाटर और शराब फेक्ट्री का विरोध किया जिसकी स्वीकृती राज्य शासन ने ( पत्रांक नवीन विनिर्माण इकाई D-1/शासन FB-1-43/2011/12/5 दिनांक 16/2/2012) दे दी है, उन सदस्य महोदय ने राज्य शासन के दो वरिष्ठ मंत्रियों और जिले के सभी अधिकारियों के सामने दिलेरी से कहा कि यह फेक्ट्री अगर खुल गई तो केसला ब्लाक के किसानों को पानी की दिक्कत हो जायेगी क्योकि फेक्ट्री तो बड़े -बड़े, मोटे- मोटे ट्यूबवेल बनाएगी और जमीन में घुसकर तीन हजार फूट से भी पानी ले आयेगी, साथ ही शराब बनाने के लिए लाखो टन अनाज बर्बाद कर देगी, इन सदस्य महोदय ने यह भी कहा कि केसला ब्लाक में 314 बच्चे गंभीर कुपोषित है, आदिवासियों को खाने को मिल नहीं रहा ऐसे में सरकार यह शराब की फेक्ट्री डालकर क्या विकास करना चाहती है और किसका विकास...वे इस बैठक की जमकर तैयारी करके आये थे उन्होंने आंगवाड़ी, प्राथमिक स्वास्थय केंद्र, पोस्टमार्टम रूम, स्कूल, वन

नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथा VIII

कुछ पछतावे कभी भी जीवन में पछतावे नहीं बन् पाते वो नासूर बन् जाते है और हम ताउम्र इन्ही के साथ जीने को अभिशप्त रहते है...................सुना क्या...............कहा हो तुम........... हम अपने लोगों से गुस्सा होने का भले ही नाटक कर ले कितना भी उन्हें हर्ट कर दे और कह दे जो कहना हो कि इससे शायद रिश्ता टूट जाएगा और सामने वाला हमें भूलकर हमेशा के लिए चला जाएगा, बिसरा देगा सब कुछ पर ऐसा नहीं होता.......................... ........कभी नहीं होता.........बस हमें सच कह देना चाहिए............कि नहीं वो सब नाटक था ताकि तुम खुश रह सको मेरे बगैर भी ............मै सच में तुम्हे मिस कर रहा हूँ ..............कहाँ हो तुम.........सुन रहे हो....... अगर हमें दोस्ती और रिश्ते निभाना हो तो एक दूसरे की कमजोरियों को समझकर अच्छाईयों के साथ जीना सीखना होगा (नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथा)

हम सब कहते है कि जय जय पंच परमेश्वर.............!!!

म प्र में पंचायती राज हाशिए पर चला गया है जिस प्रदेश ने देश के सबसे अच्छे क़ानून कायदे बनाए वही आज गर्त में है इसे ब्यूरोक्रेसी ने खा लिया है. आज कुछ मित्रों से बातें हो रही थी वो दूराराज के गावों से आये हुए थे......कह रहे थे कि जिलों में प्रशासनिक अराजकता इतनी ज्यादा है कि बता नहीं सकते, लूटपाट मची है जब कुछ साथी पंचायतों के अधिकार और ग्राम सभा के संवेधानिक हको के बारे में कलेक्टर या सी ई ओ (जो अम ूमन आय ए एस होते है) से मिलते है तो वे अपने आप को सर्वोपरि समझते है और अधिनियम का मखौल उड़ाकर अपने खुद की तानाशाही भरे नियम लादते है. चाहे वो जमीन के अधिग्रहण का मामला हो या ग्राम सभा के प्रस्तावों पर. बेतुल में मेरे एक मित्र ने एक कलेक्टर को एक बार बचाया था जब वो वहाँ डिप्टी कलेक्टर के रूप में पदस्थ थे और कलेक्टर ने एक कंपनी को जमीन बगैर ग्राम सभा के अनुमोदन के दे दी थी ........आज सीहोर के साथी ने बताया कि उसे एक बार कलेक्टर ने कहा था कि मै कोई जनता का नौकर नहीं हूँ ना ही यह यह नौकरी मै सेवा जैसा चुतियापा करने के लिए आया हूँ, मै अपने लिए कलेक्टर बना हूँ और मेरे से ज्या

रोशनी उगाने का एक जतन और......."

श्री विभूति दत्त झा म् प्र के जानेमाने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता है और पिछले तीस बरसो से वे लोगों के मुकदमे ब्लाक से लेकर हाईकोर्ट तक लड़ रहे है. इन दिनों वे मंडला में रहकर बिछिया ब्लाक के गाँव में अलख जगाने का कार्य कर रहे है. आज उन्होंने एक राज्य स्तरीय कार्य शाला में अपने अनुभव सुनाते हुए कहा कि जब वे लगातात कोर्ट कचहरी से तंग आकर आलीराजपुर जिले के कठ्ठीवाडा ब्लाक में गये तो मेरी एक मित्र साधना हेर्विग ने उन्हें दो किताबें पढाने को बहुत पतली किताबें थी एक " द हंगर प्रोजेक्ट" द्वारा प्रकाशित पुस्तिका जिसे संदीप नाईक ने लिखा था ग्राम सभा एवं दूसरी "डिबेट" संस्था द्वारा प्रकाशित पैसा एक्ट पर किताब, इन दोनों किताबों ने उनका नजरिया ही बदल दिया और फ़िर विभूति जी अपने डेढ़ घंटे के उदबोधन में कठ्ठीवाडा में किये आदिवासियों की लड़ाई, कालान्तर में मंडला के बिछिया ब्लाक के छोटे से गाँव हेमलपुरा पंचायत से शुरू हुई लड़ाई और आज लगभग पुरे इलाके में एक आंदोलन बन चुके विभूति जी एक बड़ी हस्ती है. उन्होंने जिस तरह से छः बरस पुरानी लिखी किताब का जिक्र और फ़िर सारी मानसिक

कामरेड ए के हंगल और नील आर्मस्ट्रोंग को लाल सलाम!

     बचपन की स्मृतियाँ, कक्षा तीन में बड़े पाठ और ससुरा नील आर्मस्ट्रोंग का नाम याद करना बड़ा मुश्किल था सही ना लिखने पर नंबर कटते थे और हाथ पर बेंत मिलती सो अलग, पर लगता था कि कैसा होगा वो आदमी जो चाँद पर पहुंचा था क्योकि हम तो पढते थे "मैया मै तो चन्द्र खिलौना लेहू", मालवीय जी पढ़ाते थे चाव से. चाँद को लेकर बड़ी फेन्टेसी थी किशोरावस्था में, जवानी में, और हिन्दी - उर्दू में चाँद को लेकर बहुत कुछ पढ़ा, गीत सुने .......पर हमेशा से नील आर्मस्ट्रोंग नामक शख्स से जलन रही कि साला चाँद पर पहुँच गया और घूम आया, यही वो समय था जब शोले रिलीज हुई थी और ए के हंगल साहब के मुरीद हो गये सफदर हाशमी ने नाटक सिखाया, भोपाल गैस त्रासदी के बाद देश भर में नाटक किये पहली बार नुक्कड़ नाटक शब्द सुना और फ़िर उसे जीवन में उतारा भी, साथ ही एम के रैना, मोहन महर्षि और हबीब जी से नाटक की बारीकियां सीखी. भारत ज्ञान विज्ञान जत्थे ने मौके दिए देश भर में नाटक करने के तब जाना कि इप्टा क्या है और ए के हंगल क्या है. उनके लेख समकालीन जनमत में पढ़े, हंस में पढ़े और कला अनुशासन से जुडी पत्रिकाओं

छोटी पर बड़ी सीख.............

चींटियों के पास विशाल देह हैं और हमसे मजबूत हड्डियाँ भीमकाय जीव विलुप्त हो गए चींटियाँ बची हुई हैं तुम देखना, एक रोज़ हमारी हड्डियों में चींटियों के बिल मिलेंगे -अहर्निश सागर

बेहद प्रेरणादायी और सोचने योग्य कहानी.......

साभार Rahul Banerjee बेहद प्रेरणादायी और सोचने योग्य कहानी....... Socrates was widely lauded for his wisdom. One day the great philosopher came upon an acquaintance who ran up to him excitedly and said, "Socrates, do you know what I just heard about one of your students?" "Wait a moment," Socrates replied. "Before you tell me I'd like you to pass a little test. It's called the Test of Three." "Test of Three?" "That's right," Socrates continued. "Before you talk to me about my student let's take a moment to test what you're going to say. The first test is Truth. Have you made absolutely sure that what you are about to tell me is true?" No," the man said, "actually I just heard about It." "All right," said Socrates. "So you don't really know if it's true or not. Now let's try the second test, the test of Goodness. Is what you are about to tell

चट्टानों पर से गुजरा तो पाँवों के छाप पड गये सोचो कितना बोझ लेकर गुजरा हुंगा मै"

पिछले एक डेढ़ साल में मै इतना हैरान परेशान रहा कि जीवन में कभी नहीं रहा और इस सबमे मजेदार यह था कि किन्ही अपने बहुत करीबी दोस्तों ने ये सिला दिया, दोस्ती का अच्छे सब्जबाग दिखाकर जीवन को तहस नहस कर दिया, हालांकि कुछ दोस्तों ने चेताया भी था पर लगा कि एक बार क्यों ना विश्वास कर ले पर सबने छल किया इस छोटी सी अवधि में तीन शहर में डेरा उठाये घूमने और हर जगह नए सिरे से चूल्हा बसाने के लिए,सामान ढोना, कागजी कार्यवाही और फ़िर गैस आदि के झंझट...... बहुत जिगरा लगता है गुरु......कहना और भुगतना बहुत् मुश्किल है. शुक्र है दोस्तों की भीड़ में कुछ अपने थे और फ़िर परिवार के लोगों ने इस नालायकी भरे फैसले में साथ दिया वरना टूटा तो पहले से ही था साथ ना मिलता तो खत्म ही हो जाता........बात इसलिए आज यहाँ खुलकर लिख रहा हूँ कि एक मित्र से अभी बात हो रही थी जो एक बड़ा फैसला लेकर बड़ा नाम कीर्ति और यश की पताकाएं एवं बड़ा बैनर वो भी अखबारी दुनिया का, छोड़कर नया कुछ करने जा रहे है उन्होंने पूछ लिया कि क्या यह सब आसान है........मै क्या जवाब देता. पर भगवान ना करे कि उन्हें मेरे जैसे कमीने दोस्त मिल जाय

कभी वापस न आने का वादा तुम्हें देता हूँ.

यह कविता दोस्तों, कम से कम कुछ दोस्तों ने पढ़ी है, फिर भी दोबारा पढ़ने और पढ़वाने का मन कर रहा है, न जाने क्यों....या शायद जाने क्यों...:) वसीयत छूट गयीं जो अधूरी, मुलाकातें तुम्हें देता हूँ हों न सकी जो बातें, तुम्हें देता हूँ जो कवितायें लिख न पाया, तुम्हें देता हूँ जो किताबें पढ़ न पाया, तुम्हें देता हूँ मर कर भी न मरने की यह वासना स्मृति की बैसाखियों पर जीने की यह लालसा तुम्हारी कल्पनाओं, यादों के आकाश में तारे की तरह टिमटिमाने की यह कामना यह भी तुम्हें देता हूँ जहाँ से शुरू होती है आगे की यात्रा वहाँ से साथ रहना है सिर्फ़ वह जो किया अपना अनकिया सब का सब पीछे छोड़ कभी वापस न आने का वादा तुम्हें देता हूँ. साभार Purushottam Agrawal .....

सबको ईद मुबारक....

सबको ईद मुबारक....     लों आखिर एक माह के रोज़े, नमाजों और दुआओं के चलते ईद आ ही गई, ईद को लेकर बचपन से एक उत्साह रहता था ना मात्र सिवैया खाने की ललक बल्कि सबसे मिलने जुलने की बेकरारी, मोहल्ले भर में घूम घूम कर सबको ईद मुबारक कहना और ईदी इकठ्ठी करना और फ़िर दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना, हर बार हामिद कही ना कही जेहन में रहता था और बड़ी मस्जिद के बाहर लगे मेले में चिमटा दिखते ही मन में टींस सी उभर जाती थी. आँखें खोजती थी कि कही कोई हामिद दिख जाये तो जेब खर्च और साईं ईदी उसे दे देंगे हम सब दोस्त ...........देवास की टेकडी से चढ़कर राधागंज की मस्जिद में झांकते थे कि हजारों सर कैसे सजदे में झुकते है और मै देखता था कि कहा से हजारों बिजली के लट्टू की उपमा प्रेमचंद ने ली होगी? बड़े हुए तो साथ पढ़े दोस्तों के घर पुरे रमजान माह में आना जाना होता, रात में तराबी सुनते थे और कोशिश करते कि मुँह से गाली ना निकले और किसी के लिए बुरे ख्याल ना आये. भले रोजे ना रखे पर खाने और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें, ईद पर दूर शहरों में काम करने वाले दोस्त देवास आ जाते तो साथ बैठकर ढेर सारी बा

आज़ादी की पूर्व संध्या पर एक कविता जनकवि नागार्जुन की...

Happy Independence Day with a beautiful Poem. ( Courtesy - Anand Pradhan and  Gopal Rathi ) “...ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है, अंदर-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है! सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिर एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर! छुट्टा घूमें डाकू गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे, देखो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे! जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा, काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा! रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा, कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा! नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं, जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं! सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे, भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे! माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का, हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!” -नागार्जुन

कुंदा सुपेकर का समर्पित जीवन -शिक्षा - साक्षरता के लिए

आज अभी मनोज लिमये और प्रीति निगम ने एक दुखद सूचना दी कि राज्य संसाधन केंद्र इंदौर की पूर्व निदेशिका सुश्री कुंदा सुपेकर का आज दिल का दौरा पडने से सुबह दुखद निधन हो गया. ताई के नाम से मशहूर कुंदा जी ने अपने कैरियर की शुरुआत इंदौर के भारतीय ग्रामीण महिला संघ से की थी. स्व कृष्णा अग्रवाल जी के साथ उन्होंने समाजसेवा का ककहरा सीखा और बाद में भारतीय  ग्रामीण महिला संघ के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर काम कर इस महिला संघ को देश विदेश में पहुंचाया. जब देश में १९९० में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता वर्ष मनाया जा रहा था तो दिल्ली में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के निदेशक लक्ष्मीधर मिश्र ने राज्यों में स्वैच्छिक संस्थाओं को राज्य संसाशन केंद्र देने की बात कही और इस तरह में म प्र में भारतीय ग्रामीण महिला संघ को उनके कामों को देखते हुए राज्य संसाधन केन्द्र की जिम्मेदारी सौपी गयी, कुंदा ताई इस केन्द्र की निदेशक बनी और तब से पुरे प्रदेश में और देश में साक्षरता के नए प्रयास, जिला स्तर पर पाठ्य सामग्री का निर्माण, नवाचार और स्थानीय परिवेश के हिसाब से सामग्री का विकास और ढेर सारे प्रयोग हुए. यह सब कुंदा ताई की समझ बूझ
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर, चींटी शकर ले चली, हाथी के सर धूर. अज्ञात. Courtesy - Navodit Saktawat

मोबाईल देने का विरोध क्यों ???

सेम पित्रोदा ने स्व राजीव गांधी को कंप्यूटर युग का स्वप्न दिखाया था तो भी हमारी पीढ़ी ने बहुत विरोध किया था और कहा था कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी आदि आदि, आज हम सब लोग इसके फायदे देख ही रहे है. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि वैसे भी इस देश में सूचना क्रान्ति आ चुकी है यदि सबके पास आधार कार्ड जा रहा है तो बी पी एल परिवारों को मोबाईल देने का विरोध क्यों , यह सही है कि देश में अभी हम रोजी - रोटी और मकान, बिजली पानी और स्वास्थय जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे है, निश्चित ही मोबाईल इन सबका हल ना है, ना होगा.... पर यकीन मानिए आने वाले पांच सालों में हालात एकदम बदल जायेंगे यह मेरा पक्का मानना है. सरकार के जो भी मंतव्य हो, दबी - छुपी भावनाएं हो, चुनाव की ओर इशारे हो, ट्रेस करने के उद्देश्य हो, फील्ड मोनिटरिंग की बात हो, संदेश देने की बात हो, या सामुदायिक सूचना प्रणाली को मजबूत करने की बात हो हमें एक नई आशा और उम्मीद के साथ इस पहल का स्वागत करना चाहिए. कम्युनिटी रेडियो को लेकर भी इस तरह के पूर्वाग्रह उठे थे मुझे याद है शुरू में हालांकि अभी भी पेचीदगियाँ है इसमे, पर आज यह एक बड़ा

नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा VII

पानी का रौद्र रूप चारों ओर देखा है आपने कभी, आप लोग जो रूखे सूखे शहरों से आते हो हमारे शहर को नजर लगाते हो, यहाँ मै जन्मा हूँ ये दीगर बात है कि बाहर पढ़ा और बाहर रहा हूँ, ये बूढ़े  माँ- बाप मुझसे उम्मीद रखते है कि मै कमाऊ धमाऊ और उनके पाप धो लू, कर्जा फेड डू, पर क्या इतना आसान है सब, इस शहर के लोग टुच्चे है सब साले नर्मदा हर- हर करके रोज पानी- पानी करते है, अपनी ओलादों से क्यों उम्मीद करते है, मै बढता जा रहा हूँ, एक नौकरी नहीं है तो क्या, शादी तो होना चाहिए ना, क्या मै इंसान नहीं हूँ, दारु पीता हूँ तो क्या एब है... बस एक सपना है कि नियाग्रा के फाल पर खडा होकर  एक अपने पसंदीदा ब्रांड का सिगरेट पीना चाहता हूँ और जो धुआँ उड़ेगा उसमे मेरा भविष्य कितना शानदार होगा यह आपने कभी कल्पना की है श्रीमान जी ??? आज मेरे घर में पानी घूस आया तो आप लोंग चले आये यहाँ समाज सेवा करने , क्यों इन नामुराद बस्ती के लोगों को बचा रहे है मरने दो इन्हें, नर्मदा हर- हर करके इन्होने नर्मदा को कोपित किया है अब पानी इनके घरों में भर रहा है तो जाने दो, डूबने दो, सबको वैसे भी ज़िंदा रहकर ये क्या कर लेंगे, देखो मेरे बूढ़े म

प्रशासन पुराण 55

हरदोई: एसडीएम ने भेजा इंद्रदेव को नोटिस एसडीएम ने तहसील के नायब नाजिर को व्यक्तिगत रूप से यह नोटिस इंद्रदेव को तामील कराने की हिदायत दी है। नायब नाजिर, तकनीकी कारण बता नोटिस तामील करने में असमर्थता जता रहे हैं। पत्रांक और सरकारी मुहर से जारी इस नोटिस के बारे में सवाल करने पर एसडीएम इसे अपने खिलाफ साजिश बताते हैं। वहीं कार्यवाहक कलक्टर ने मामले पर अचरज जताते हुए कहा कि मामले की जांच कराएंगे, जिसने भी ऐसा किया उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। जिले के सवायजपुर ब्लाक में पिछले काफी दिनों से काले बादल मंडराते दिखे लेकिन यह बादल बिन बरसे चुपचाप निकल गए| इस पर सवायजपुर के उपजिलाधिकारी सत्य प्रकाश शर्मा ने अपने कार्यालय के पत्रांक संख्या मेमो 273 नोटिस-2012 स्वर्ग लोक निवासी देवराज इंद्र के नाम जारी किया है। सत्य प्रकाश ने अपने आदेश में लिखा है कि विगत लगभग 72 घंटों से आप वर्षा का प्रलोभन देते हुए तहसील सवायजपुर के आस पास घूम रहे है किंतु समय काफी व्यतीत हो जाने के बाद भी आपके द्वारा और न ही पर्याप्त वर्षा ही करायी जा रही है। जिससे जनता त्रस्त है। इसलिए आप लिखित स्पष्टीकरण तीन दिन

जोग लिखी...........

(I) तुम्हारे लिए..........सुन रहे हो...............कहा हो तुम........ हम दोनों हैं दुखी । पास ही नीरव बैठें, बोलें नहीं, न छुएं । चुपचाप समय बिताएं, अपने अपने मन में भटक भटककर पैठें उस दुख के सागर में जिसके तीर चिंताएँ अभिलाषाओं की जलती हैं धू धू धू धू । -त्रिलोचन ! (II) ले दे कर अपने पास फ़कत एक नज़र तो है क्यूँ देखे जिन्दगी को किसी की नज़र से हम...... -साहिर लुधयानवी  (III) बशीर बद्र साहब आपने क्या क्या सहा होगा और ये लिखा फ़िर.......... अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे वो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे अजब चराग हु दिन रात जलता रहता हु मै थक गया हु हवा से कहो बुझाये मुझे बहुत दिनों से मै इन पत्थरो में पत्थर हु कोई तो आये जरा देर को रुलाये मुझे मै चाहता हु तुम ही मुझे इजाजत दो तुम्हारी तरह से कोई गले लगाये मुझे    (IV) अपने बारे में लगातार आलोचना सुन सुन कर और नकारात्मक व्यक्ति के खिताब जीतने की बाद लगा कि शायद ये चार पंक्तियाँ, पुरानी है पर बहुत मौंजू है........ लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं हमें तो जो हमारी यात्रा से

मोहित ढोली तुम्हारे आगे सार्थक भविष्य है. शुभकामनाएं और ढेर स्नेह.

प्रिय मोहित  पिछले लगभग बारह बरसों में हम कितने करीब आ गये पता ही नहीं चला तुम्हारी पढाई- आर्मी स्कूल महू,  आई आई टी रूडकी, नौकरी और इस दौरान मेरा लगातार तुमसे संपर्क हरिद्वार, शिरडी, इंदौर, महू, देवास, सीहोर, होशंगाबाद, मेरी माँ के आख़िरी दिनों में सुयश अस्पताल में तुम्हारा साथ और माँ की मृत्यु के बाद जीवन के सबसे मुश्किल समय में मेरे साथ होना  और ना जाने कहा कहा भटकते भटकते हम कितने करीब आ गये और आज अचानक तुम जब अपनी आगे की पढाई के लिए जा रहे हो तो मन बहुत व्यथित है. बहुत छोटे थे जब मै आर्मी स्कूल में तथाकथित बड़े पद पर आया था और फ़िर उसके बाद तुम्हारी जीवन में जो त्रासदी हुई उससे हम बहुत करीब आये और मैंने तुम्हे अपना पुत्र मान लिया और वो सारे एक्सपोजर दिए जो देना भी थे और नहीं भी यहाँ  तक कि अभी तीन दिन खाना बनाने की ट्रेनिंग के बहाने से तुम तीन दिन मेरे पास रहकर गये हो, मैंने यही कहा था कि अब ये क्षण जीवन में कभी नहीं आयेंगे क्योकि तुम भले ही दिल दिमाग से मेरे पास रहोगे पर ये सामीप्य कभी एक पिता को नहीं मिल पायेगा...........यह मुझे लगता है. पिछले कई बरसों से तुमने मेरा पागलपन झेला

अन्ना आंदोलन की असफलता के दंश

अन्ना साहब को निश्चित रूप से एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए. व्यवस्था परिवर्तन वह चाहते नहीं और व्यवस्था के भीतर रहकर कुछ करने के लिए संसद में होना ज़रूरी है. ऐसा करने पर एक फायदा यह होगा कि हम जैसे लोग लोकपाल के अलावा भी दुसरे मुद्दों (जैसे आर्थिक नीति, आरक्षण, रोजगार,सेज, श्रम-सुरक्षा आदि) पर उनके विचारों से अवगत हो सकेंगे. मैं, एक आम नागरिक, उन्हें इसके लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ. संवेदनहीनता तो खैर हमारे समय का जैसे आइना बन गया हो. लेकिन क्या वह सरकार की ही तरफ से है? अन्ना और उनके लोग क्या कम संवेदनहीन हैं? जिस तरह से उनके तेवर और उनका अब तक का व्यवहार रहा है, क्या उन्होंने बातचीत के लिए कहीं एक इंच ज़मीन छोडी है? जो बिल वह बनवाना चाहते हैं वह केवल एक तानाशाह सरकार ही बना सकती है. इसके पहले कौन सा आन्दोलन ऐसा रहा है जिसमें समझौते के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा गया? पहले दौर में आई भीड़ और मीडिया के सहारे बनी अन्ना की इमेज का नशा ऐसा चढ़ा है कि उन्होंने खुद को सारी दुनिया से ऊपर मान लिया है. अब राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की गई है तो वह भी कुछ इस अंदाज में कि

सिर्फ याद आ रहा है चचा ग़ालिब का एक शेर

आज दे दे इजाजत दोस्तों............. मैंने पिछले बरस ही कहा था कि इनका मकसद कुछ और नहीं अपनी पुरानी तडफ और गहरी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है राजनीती तो अभी भी बहाना है असली मकसद कुछ और है ये अन्ना को सिर्फ यूज कर रहे है और सरकार में बैठे लोग बहुत घाघ है युही बाल सफ़ेद किये है सरकार ने, मेरी नजर में सरकार ने कोई बात न करके बहुत अच्छा किया, ना बात की ना गिरफ्तार किया, ना अनशन छुडवाने कोई नेता आएगा, ना किसी भी लोकपाल या समिति बनाने की बात की, और इस बहाने मीडिया को भी अपनी औकात याद आ गयी और अन्ना टीम को भी भीड़ के बहाने अपनी स्थिति समझ आ गयी है, देश में कोई बड़ा समर्थन जमा नहीं कर पाई. राजनैतिक दल भी दूर हो गये है, मेरे वोट को यह टीम बेइज्जत करके कैसे रहेगी. मेरा दावा है यदि अन्ना एक विधानसभा की भी सीट जीत ले बाकी टीम के सदस्यों का जीतना तो बहुत दूर की बात है. ये ना गांधी का मार्ग था ना इरोम शर्मिला का मार्ग है, ना किसी शकर गुहा नियोगी का मार्ग था, ना दुनिया में किसी भी आंदोलन का. जिस तरह से दिल्ली का आंदोलन खत्म हो रहा है, विकेन्द्रीकरण के नाम पर अब नई राजनीती शुरू क
मेरी इबादतों को ऐसे कर क़ुबूल ऐ मेरे ख़ुदा, . . कि सज़दे में मैं झुकूं, तो मुझसे जुडे हर रिश्तें की ज़िन्दगी सँवर जाए ..!!

एक बार फ़िर फराज.................

  मेरे सब्र की इन्तेहा क्या पूछते हो फ़राज़ वो मेरे गले लग कर रोया किसी और के लिए. हम जमाने में यूँही बेवफा मशहूर हो गये फराज, हजारों चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते ! ताल्लुक तोड़ने का कहीं जिक्र भी करना न "फराज़" मैं लोगों से कह दूंगा कि उसे फ़ुरसत नहीं मिलती ... खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है फ़राज़ फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते है

बहनें - असद ज़ैदी (प्रसंग राखी 2 Aug 2012)

कोयला हो चुकी हैं हम बहनों ने कहा रेत में धंसते हुए ढक दो अब हमें चाहे हम रुकती हैं यहां तुम जाओ बहनें दिन को हुलिए बदलकर आती रहीं बुख़ार था हमें शामों में हमारी जलती आंखों को और तपिश देती हुई बहनें शाप की तरह आती थीं हमारी बर्राती हुई ज़िन्‍दगियों में बहनें ट्रैफि़क से भरी सड़कों पर मुसीबत होकर सिरों पर हमारे मंडराती थीं बहनें कभी सान्‍त्‍वना पाकर बैठ जाती थीं हमारी पत्नियों के अंधेरे गर्भ में बहनें पहरा देती रहीं चूल्‍हे के पीछे अंधेरे में प्‍याज़ चुराकर जो हमें चकित करते हैं उन चोरों को कोसती थीं बहनें ख़ुश हुई बहनें हमारी ठीक-ठाक चलती नौकरियों से भरी सम्‍भावनाएं देखकर बहनें बच्‍चों को परी-दरवेश की कथाएं सुनाती थीं उनकी कल्‍पना में जंगल जानवर बहनें लाती थीं बहनों ने जो नहीं देखा उसे और बढ़ाया अपने अज्ञान की पूंजी बटोरते-बटोरते यह लकड़ी नहीं जलेगी किसी ने यों अगर कहा तो हम बुरा मान लेंगी किसलिए आख़िर हम हुई हैं लड़कियां लकड़ियां जलती हैं जैसे हम जानती हैं तुम जानते हो लकड़िया हैं हम लड़कियां जब तक गीली हैं धुआं देंगी पर इसमें हमारा क्‍या बस, हम प