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Showing posts from August, 2015

एक जुग बीत गया तुम्हारी याद में -दशरथ मांझी केतन मेहता की नजर से

केतन मेहता ने जरुर सोचा होगा कि यह नेतृत्व विहीन समय है और जब इस समय सारा देश और समूची मानवता एक गहन अन्धकार से गुजर रही है तो वे एक बुलंद नारे के साथ आते है जो सिर्फ शब्द नहीं वरन अपने आप में समूचे बदलाव की ओर इंगित भी करते है, और एक परिवर्तनकामी दिशा भी देते है. इस समय में जब आस्थाएं धुंधला गयी है, रोल मॉडल फेल हो गए है, विखंडित व्यक्तित्व अपने दोमुंहेपनसे लबरेज है और समय के चक्र में पीसता बेबस, लाचार आदमी लगातार हर मोर्चे पर जूझ कर अंततोगत्वा हारकर निढाल हो गया है - तो वे एक नारा ठीक दुष्यंत की तर्ज पर बुलंद करने की कोशिश करते है व्योम में कि कही कोई उठे और फिर ललकार करें कि "शानदार, जबरजस्त और जिंदाबाद". ये तीन शब्द नहीं पर एक खुले आसमान में पत्थर उछालने की अपने तई इमानदाराना कोशिश भी है. इस पुरे संघर्ष में एक जग से छिपी प्रेमाग्नि भी है जो सिर्फ ना पहाड़ को काटती है वरन एक समूची डूब रही सभ्यता और उस जाति  को धिक्कार करने का जज्बा भी पैदा करती है जो अपने आप को बेबीलोन की सभ्यता से आगे सिन्धु घाटी के किनारों से होती हुई जेट युग में प्रवेशकर दुनिया का "जगसिरमोर"

Posts of 26 Aug_15

देश जल रहा है महंगाई, आरक्षण और प्रतिशोध में और देश के प्रधानमंत्री को रक्षा बंधन पर गरीब की जेब से बारह, दो सौ या तीन सौ रूपये छिनने में शर्म नहीं आ रही, अम्बानी और अडानी और बिरला के लिए बटोर रहे है कि अपनी पुश्तों का कर्ज मानो चुकाना हो..... विज्ञापनों का मायाजाल - बचो - बचो, इनसे बचो............ . मै देश के सत्रह मुख्यमंत्री, बीस राज्यपाल, एक प्रधानमंत्री, सत्तर प्रतिशत केबिनेट मंत्रीमंडल, सभी राज्यों में अस्सी प्रतिशत मंत्रीमंडल, आधे से ज्यादा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में बैठे बेंच में न्यायाधीशों में और राष्ट्रपति पद के लिए इस महान भारत देश में आरक्षण की मांग करता हूँ. विचित्र देश है आपका महाराज, जो आग लगाता है वही शान्ति की अपील भी करता है ....... ॐ शान्ति शान्ति शान्ति .. शर्म आती है कि हमें सबको आरक्षण चाहिए ना अपनी योग्यता बढ़ाना चाहते है ना दक्षता ना कौशल बस घटियापन से सड़कों पर उतर आते है, जिन्हें आरक्षण मिल चुका है वे भी दशकों से ले रहे है इसका फ़ायदा और फिर भी अभी पीढी दर पीढी इसे भकोसना चाहते है, कुल मिलाकर सत्ता की गुलामी करके वही के

Posts of Week 18 to 25 Aug 15

इलाहाबाद से लौटकर काम और द्वाबा उत्थान एवं विकास समिति की सुखद स्मृतियाँ और कौशाम्बी जिले में भयानक बदतर हालत कुपोषण की, बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं में सबसे ज्यादा असर सपा सरकार और घटिया राजनीती के शिकार, परन्तु निष्क्रिय प्रशासन और व्यवस्था पाकर दुःख हुआ. एक तस्वीर काम करने वाले जांबाज सिपाहियों के साथ जिसके नेता परवेज भाई है, दूसरी तस्वीर मित्र  Santanu Sarma  के साथ और तीसरी तस्वीर बाल मजदूर को लेकर लिखी गयी अदभुत कविता जो पुरे हालात का जिक्र करती है उसके जीवन का. सही कहा था आलोक ने जीवन में छोटी सी उम्र बिताने के लिए दो चार लोगों का और दो चार दोस्तों का होना ही पर्याप्त है. अब अपने शहर और अपने लोगों को, दोस्तों को इतने लम्बी अवधि के लिए छोड़ने की हिम्मत नहीं होती.............ये उम्र का असर कह लें या स्नेह के बंधन, अपनी फिजां की आदतें या अपने पेड़ पौधों की महक पर अब नहीं होता और अब सोचकर ही इतना लंबा निकलूंगा.... शहर जितना बड़ा होता है उतना ही निष्ठुर होता जाता है ऐसे में लोग अपनी प्राथमिकताएं तय करते है तो कोई गलत नहीं बस धिक्कार् और थू-

सतना को भूला नहीं हूँ आज भी - शुक्रिया कुलदीप 21/8/15

सन 1993-95  की बात है, सतना में अनुपमा एजुकेशन कान्वेंट ने चित्रकूट ग्रामोदय विवि का बी एड का अध्ययन केंद्र लिया था और मै भी बी एड करना चाह रहा था यह दूर वर्ती शिक्षा के माध्यम से होना था और फीस भी कम थी सो प्रवेश ले लिया तब देश बहर से कई लोगों से सम्बन्ध बने थे. नफजगढ़ दिल्ली का एक युवा जो बहुत गुस्सैल था नाम था कुलदीप कुमार जो अपने पिताजी के साथ आया था प्रवेश लेने पर एक डेढ़ साल में ऐसा कुछ रिश्ता बना कि वो भाई मानने लगा. और फिर कोर्स पूरा होने के बाद सब छुट गया. मेरे जीवन में सतना का बड़ा महत्त्व है और यदि कभी ईश्वर ने पूछा कि (यदि ईश्वर है और पुनर्जन्म होता हो तो)  कहाँ जन्म लोगे दोबारा तो कह दूंगा कि अगला जन्म सतना में लूंगा.  खैर, इस सारे मामले में अच्छी बात यह है कि आज लगभग पच्चीस बरस बाद कुलदीप ने फेस बुक पर मुझे खोज निकाला और एड किया मै देखते ही पहचान गया, कुलदीप ने दो तस्वीरें भेजी की कि मै पहचान लूं, ऐसा हो सकता है कि मै अपने दोस्तों को भूल जाऊं भाईयों को भूल जाऊं. कुलदीप को मैंने तब काम कर रहा था उस संस्था की एक गीतों की किताब भी बहंत की थी जो उसने आजतक सम्हालकर राख

Posts of 17 Aug 15

अम्बानी   और अडानी के लिए तेल लेने के लिए क्या क्या करना पड़ रहा है, इधर सारा देश राम राम, काश्मीर, 370 धारा हटाओ, आतंकवाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद , हजार सर लेकर आओ, ललित गेट, संघ और भाजपा कर रहा है और उधर वे शेख, मुल्लों और मस्जिदों में अल्लाह खोज रहे है. 34 साल   बाद किसी मुखिया को अपने आकाओं के लिए तेल - तेल करते हुए मस्जिदों में मत्था टिकाते हुए मजबूरी वश देखा, ऐसी भक्ति को प्रणाम और ऐसे वफादारों को भी दिल से सलाम, दोस्ती हो तो ऐसी. बढ़िया है लगे रहो..........बस अब नागपुर में जाकर सफाई देनी होगी एक बार आने के बाद.  वैसे   मजाक के अलावा यह कदम मोदी जी की अपने आसपास के देशों में प्रतिष्ठा बढ़ाएगा, मै उनके इस कदम की सराहना करता हूँ. यह समय की मांग है और अब समय आ गया है कि जाति समुदाय के दंश से निकलकर नेता देश और भले की सोचे. मोदी जी सच में यह जाति धर्म समुदाय का चश्मा उतार फेंके और अपने तई निर्णय लें, छोड़े संघ को और कूप मंडूक रैली निकालने वाले भगवा धारियों को, फिर देखें कि कैसे हम सब लोग उन्हें दिल से समर्थन देते है और मदद करते है. अच्छे दिन सच में ऐसे ही आयेंगे यह समझना जरुरी

Posts of 16 Aug 15

मप्र पर्यटन विकास निगम मांडव में इस सीजन में कई प्रकार के उत्सव आयोजित करता है परन्तु कल जो इस कसबे की बदहाली देखी वह अकल्पनीय थी और बेहद शर्मनाक. हर जगह भीड़ और ट्राफिक का कोई इंतजाम नहीं. रूपमती महल पर जब भयानक जाम लगा तो कोई ओपी वर्मा और एक चौहान पुलिस वालों को मैंने कहा कि स्थिति गंभीर हो रही है कुछ हादसा हो सकता है तो उन्होंने स्थानीय प्रशासन को गाली देते हुए कहा कि साला पचास साठ मरेंगे नहीं लोग तब तक आना बंद नही करेंगे और सुधरेंगे नहीं - इतनी भीड़ है हम भी क्या करें , मर ने दो मरते है तो. जब बगडी वाले रास्ते पर जाम हो रहा था तो मैंने पुलिस वालों से कहा कि अभी सम्हाल लो वरना दिक्कत हो जायेगी तो बोले हो जाने दो तीन चार घंटे जाम में फसेंगे तो सब आना भूल जायेंगे और फिर जाम रात तक तो खुल ही जाएगा, और उस तरफ हमारी बीट नहीं है, आप अपना काम करो...... ये हालत है प्रशासन की, जिला प्रशासन को इस बात से कोई मतलब नहीं है , जो अधिकारी वहाँ थे, वे मालवा रीट्रीट में भोपाल से आये अधिकारियों की लाल बत्ती का ख्याल रख रहे थे, दूसरा ट्राफिक जाम में मैंने भो

RIP Shivendra Pandey

शिवेंद्र पाण्डेय यही नाम था उसका, पता नहीं कभी जब मै भोपाल में था पांच बरस पहले तो मिला होगा किसी कार्यशाला में तब से मुझसे फेसबुक पर जुड़ा था, सोशल वर्क में कार्यरत था, पहले एक्शन एड के किसी प्रोजेक्ट में था, फिर महिला मुद्दों पर कम करने वाली संस्था में और हाल ही जब पिछली बात बात की थी तो पता चला आजकल सागर में है. अभी सन्देश बंसल  ने खबर दी उसने कल सागर में आत्म्हत्या कर ली है. समाज सेवा के क्षेत्र में आजकल जिस तरह के दबाव, कम वेतन, और रचनात्मकता को दबाया जा रहा है वह निश्चित ही घातक है. 12 अगस्त को अपना जन्मदिन मनाया था और 14 को अपना फेस बुक अकाउंट और वाट्स अप अकाउंट भी बंद कर सबको सूचना दी थी उसने. एक जिन्दादिल शख्स..........का यूँ खत्म होना बहुत ही दुखद है. जो युवा इसमें काम कर रहे है या आना चाहते है वे सोच समझकर आये क्योकि अब यह क्षेत्र भी बहुत "रिस्की" और कठिन हो गया है. अगर अपने इमोशंस को आप मैनेज नहीं कर सकते और काम के दबाव, तनाव, आरोप - प्रत्यारोप सह नहीं सकते, और अगर अपनी रचनात्मकता को इस सबके बावजूद बचा नहीं सकते तो बेहतर है आप कुछ और कर लें पर क्षेत्र में ना

Post of 14 Aug 15

अभी लगभग 200-300 परिवारों से जीवंत संपर्क करके आया हूँ चार जिलों के 20 गाँवों में एकदम ठोस रूप से कह रहा हूँ . और दो सौ किशोरियों से सीधे बात करके ..........भगवान् कसम सिर्फ एक घर में संडास मिला था वो भी शिवपुरी जिले के पोहरी से सटे गाँव में जिसका इस्तेमाल भी होता है. स्कूलों और बाकी सब तो छोड़ ही दो खां साब................ हुजुर आपके अधिकारी आपको गलत जानकारी दे रहे है कल ज़रा सम्हलकर बोलना वरना सूचना का अधिकार लगाउंगा और फिर जवाब तो आपके लोग देते नहीं है यह भला हमसे बेहतर कौन जानता है. ? खैर खुले में शौच से मुक्ति में अभी अपुन को दस हजार साल लगेंगे. क्यों ठीक बोल रिया हूँ ना?  कित्ते संडास बन गए भिया मने कि पूछ रहे है, क्या है कि पिछले साल सुनकर सोचा था कि इस साल देश खुले में शौच से मुक्ति पाकर यूनेस्को का कोई पुरस्कार ले लेगा !!! हाँ ये भी ज़रा बताना कि अम्बानी, अडानी, टाटा, अजीम प्रेम, नारायण मूर्ती से लेकर बाकी दलालों ने कित्ता रुपया खर्च करके  (CSR Funds)  देश के कित्ते लोगों को संडास बना कर गिफ्ट दिए या .......... अरे छोडो ना यार क्या संदीप बाबू........फ़ालतू बात कर

बेखौफ वन विभाग और बेबस आदिवासी- बहेरा जिला पन्ना के आदिवासियों का दर्द - Post of 12 Aug 15

बेखौफ वन विभाग और बेबस आदिवासी- बहेरा जिला पन्ना के आदिवासियों का दर्द आजाद भारत में क़ानून किस तरह से आम लोगों को परेशान करते है इसका एक ज्वलंत उदाहरण मप्र के पन्ना में नजर आ रहा है जहां वन विभाग एकदम छुट्टा होकर गरीब आदिवासियों पर आक्रामक हो चुका है. पत्थर खदान मजदूर संघ के युसूफ बेग ने बताया कि पन्ना के ग्राम बहेरा ग्राम पंचायत के निवासियों को वन विभाग के अधिकारियों ने जबरन बाहर निकालने के लिए महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के साथ अनधिकृत रूप से मारपीट की. इस गाँव में ये आदिवासी सन 1965 से काबिज है. इन लोगों ने 28 अगस्त 2008 को वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टे के लिए 13 दावे किये थे जिनका निराकरण आज तक नहीं हुआ. यह हालत मप्र के अधिकाँश जिलों की है और लाखों प्रकरण प्रदेश की लालफीताशाही में उलझे पड़े है. बहेरा में बाद में 24 अन्य आदिवासियों ने दावे प्रस्तुत किये परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई. ये आदिवासी गत 40 बरसों से यहाँ काबिज है और इन्हें तत्कालीन कलेक्टर ने मौखिक आश्वासन दिया था कि चूँकि वे लम्बे समय से वहाँ काबीज है तो रह सकते है परन्तु वन विभाग के अमले द्वारा समय समय पर इन

Posts of 11 Aug 15

मेरे भाई की मृत्यु को अगले माह 27 तारीख को एक साल पूरा हो जाएगा, मप्र के भ्रष्ट और घोर निकम्मे प्रशासन में पेंशन और आदि देयक लगभग आठ माह बाद मिलें और अब मामला अनुकम्पा नियुक्ति के लिए अटका पडा है. मैंने बड़े श्रम से और ढेर कार्यवाही करके शासन से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों के तहत पूरा प्रकरण जिला कलेक्टर देवास को जून माह में भिजवाया ताकि जिले में रिक्त किसी भी विभाग में सहायक ग्रेड के पद पर नियुक्ति हो सके प्रकरण कलेक्टर कार्यलय के बाबू राज में जि ला कलेक्टर की भी बाबू सुनते नहीं है, और उन्हें भी घूमात्ते रहते है. इस अनुकम्पा नियुक्ति के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के लिए माननीय राष्ट्रपति कार्यालय, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने तीन तीन बार मप्र शासन के मुख्य सचिव को लिखा था, लगता है अब संयुक्त राष्ट्र मंडल में जाना पडेगा क्योकि इस देश के प्रशासन पर से विश्वास उठ गया है. बार बार मेरे भाई की विधवा पत्नी कलेक्टर से मिलती है और वे बाबू को बुलाकर हडका देते है है परन्तु बाबू टस से मस नहीं होता. कारण यह है कि स्थानीय प्रशासन में बरसों से जमे इन बाबू

Post of 9 Aug 15

सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सरकारें अच्छा जरा सुनिए, लोकतंत्र  में डिग्री का महत्व सिर्फ कच्चे पक्के, नासमझ और गंवार समझे जाने वाले पंचायत के समय होने वाले चुनावों में ही होता है क्या? अबोध महिलाओं को आपने 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण तो दे दिया पर दो बच्चे से ज्यादा वाले चुनाव नहीं लड़ेंगे या आठवी पास के ऊपर ही पंचायत चुनाव लड़ सकते है जैसे क़ानून लाकर आपकी मंशा जाहिर होती है कि आप वास्तव में क्या चाहते है.  देश के भूमि अधिग्रहण से लेकर कार्बन डेटिंग या परमाणु ऊर्जा या बलात्कार की सजा, या अपने देश की जमीन को दूसरे देश को सौंपना, या कैदियों की जान का निर्णय करना, या इत्ते सारे लोगों के लिए लम्बी योजना बनाना और इत्ते सारे रुपयों का हिसाब रखने के लिए कोई शिक्षा या समझ की जरुरत नहीं होती. राजस्थान में आप पंचायत के चुनाव में एक योग्यता निर्धारित करते है, और अपने समय में सब भूलकर अपढ़, कुपढ और मूर्ख लोगों को टिकिट दे देते है और फिर उनसे संसद में बिलकुल उजबकों की तरह से बहस करवाते है और उन्हें तमाम तरह की उच्च स्तरीय समितियों में रखकर अपनी मन मर्जी के निर्

Post of 8 Aug 15

अभी एक अध्ययन किया है जिसमे किशोरियों की शिक्षा और पोषण को लेकर काम किया है. स्नेहां की इस रपट ने मेरी बात की पुष्टि की है. मुझे ज्ञात हुआ कि अध्ययन के सेम्पल में से  21%  किशोरियां अनपढ़ है, और मात्र 3.5 % ने बारहवीं के ऊपर पढाई की है, और सबसे मजेदार यह है कि ये सब 10 से 20 वर्ष तक की किशोरियां है यानी सर्व शिक्षा अभियान के बराबर इनकी उम्र है और अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता वर्ष 1990 के बाद जोर शोर से हुए साक्षरता के प्रचार प्रसार और पढ़ना बढना आन्दोलन और फिर तमाम तरह के ढपोरशंखी कार्यक्रमों के बाद भी ये प्राथमिक शिक्षा से वंचित है.  उल्लेखनीय है कि मप्र में मानव संसाधन मंत्रालय से लगभग  एक करोड़ का सालाना  अनुदान प्राप्त करने वाले दो राज्य संसाधन केंद्र (प्रौढ़ शिक्षा) है - इंदौर और भोपाल में, दोनों का प्रबंधन एनजीओ करते है. इसमे काम करने वाले दक्ष कम जुगाडू ज्यादा है जो कभी लग गए थे सो टिके है और ये लोग  है जो सिवाय लिपा- पोती के और कार्यशालों के कुछ नहीं करते. इसमे काम करने वाले लोग या तो लिखाड़ बन गए या दूसरी संस्थाओं में जाकर ज्ञान बांटकर रुपया कमाते है और इंदौर भोपाल कोई छोड़

तुम्‍हारे साथ - सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना

तुम्‍हारे साथ रहकर अक्‍सर मुझे लगा है कि हम असमर्थताओं से नहीं संभावनाओं से घिरे हैं हर दीवार में द्वार बन सकता है और हर द्वार से पूरा का पूरा पहाड़ गुज़र सकता है। - सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना

Posts of 4 Aug 15

वैसे इस वर्ष मौसम  वैज्ञानिकों  ने (जी हाँ भारतीय महान सरकारी विभाग के वैज्ञानिकों ने ) भविष्यवाणी की थी कि बरसात कम होगी भला हो हमारी आस्था और विश्वास का कि समय रहते कवेलू ठीक कर लिए , फेर लिए, छत ठोंक दी, रिसती दीवारों पर हाथ फेर लिए, रेनकोट भी खरीद कर रख लिया, छतरी की ताड़ी सुधरवा ली, प्लास्टिक के जूतों को सिल्वा लिया,  भुट्टे खरीदकर रख लिए, मूंगफली सेंक ली, सोलर वाली इमरजेंसी लाईट रोज चार्ज करके रख लेते हेंगे, और सायकिल को गिरीस पेंटिंग डेंटिंग करवा कर रख लिया, नई तो भिया सई के रिया हूँ वाट लग जाती......... कुछ भी बोलते  है यार ये लोग भी क्यों.......भिया ??? भाई  Nalin Ranjan Singh  ने एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आज दिलाया है "राजधानी लखनऊ के 1850 स्कूलों में पढ़ने वाले 1.83 लाख बच्चों में 91 हजार यानी 50 फ़ीसदी बच्चे पढ़ने नहीं आ रहे हैं जबकि इन स्कूलों में पंजीकृत 1.83 लाख बच्चों में पात्र बच्चों को स्कालरशिप भी जारी कर दी गयी थी | सभी बच्चों को ड्रेस और किताबें भी दी गयी थीं | यह मेरी नहीं डी.एम्.राजशेखर की रिपोर्ट है | इसमें यह भी जोड़ दें कि मिड डे मील भी बन

Posts of 3 Aug 15

मप्र में कुपोषण को लेकर मेनका गांधी ने संसद में NFHS -III के आंकड़ों के आधार पर एक वक्तव्य दिया था, उस पर अपुन ने भी लिख मारा कि माते  ज़रा गंभीरता से देखो उथले कमेन्ट मत करो...........माते ने कहा था कि मप्र में सबसे ज्यादा कुपोषण है और यह पिछले बरसों में बढ़ा है. (ध्यान रहे कि माते के नैहर वाले यानी भाजपा यहाँ कई बरसों से काबीज है और बच्चे उनकी प्राथमिकता नहीं वरन शराब, व्यापम, डम्पर काण्ड, खनिज  जैसी बड़ी उनकी प्राथमिकताएं है)  ........ आज की नई दुनिया में 3/8/15 सोनी चैनल को मालूम है कि भारतीयों ने सत्तर साल में कुछ काम नही किया सिर्फ खा-खाकर कब्जियत बढ़ा ली है, अस्तु 15 अगस्त की शाम को स्वतंत्र भारत में नागरिकों को "पीकू"का तोहफा !!! मुबारक, अब इंतज़ार है झंडू आयुर्वेदिक वाली दवा कम्पनी झंडू पंचारिष्ट आधी कीमत में हाजमोला की पांच शीशियों के बोनस सहित देने की घोषणा करें और श्री सदी नायक इसका विज्ञापन करें निशुल्क