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अम्बर पान्डेय की कविताये

अम्बर मेरे प्रिय कवि है और मै अम्बर की कविताये जितनी बार पढता हू वो उतना ही अर्थ खोलती है. आज के समय मे जब सब तरफ से प्रगतिशीलता की बयार है तब बेहद खूब्सूरती से अम्बर पुराने सन्दर्भो मे अपनी पैनी कलम से सिर्फ यह सब पुरानापन उघाडते है बल्कि एक नई परिपक्वता से सन्दर्भो को नये अर्थ मे भी अपनी बात कहने का साहस रखते है और यही पैनापन कवि को एक नई उर्जा देता है साथ ही पाठको को भी आत्मसात करने को मजबूर करता है. अम्बर की नजर रीतिकाल तक जाती है इसलिये वो अपने विश्लेषण मे भी बहुत सावधानी से भाषा को इस्तेमाल करते है. अम्बर बेहद सम्भावनाशील कवि है और आनेवाले समय मे वो अपनी ताकत के साथ हिन्दि कविता मे नये मुहावरे गढेंगे यह मेर विश्वास है दारिद्र और विद्या { हमारे संस्कृत के गुरु बिंदुमाधव मिश्र की बातें , जिसे मैंने कविता मे बांध लिया है. } तम्बाकू निगल लिया हो भैया जैसे अपना जीवन बस ऐसे ही बीत गया. साल दो साल जो और है ऐसे ही निबट जायेंगे वह भी. दो जून का चून लकड़ी-कपडा-तेल-नून बखत पर मिल गए अपने लिए पर्व हो गया. कितना कुछ करने को रह गया जीवन जुटाने मे ही लग गया जीने के उपकरण हजार किये खटकरम कट