Skip to main content

अम्बर की कवितायें

बिमलेस बाबू ने कहा कुछ नए शिल्प में लिखों, लिखने का प्रयत्न किया हैं.

१.

दोपहर का खजूर सूर्य के

एकदम निकट

पानी बस मटके में

छांह बस जाती अरथी के नीचे

आँखों के फूल खुलने खुलने को

थे जब

तुमने देखा

शंख में भर गंगाजल भिंगोया शीश

कंधे भींग गए और निकल गया

गुलाबी रंग

सांवले कंधे और चौड़े हो गए

भरने को स्तनों को ऊष्ण

स्वेद से खिंचे हुए

खिंचे हुए भार से

पत्थर पर टूटने को और जेल में

कस लेने को

जब निदाघ में

और और श्यामा तू मुझमें एक हुई

पका, इतना पीला

कि केसरिया लाल होता हुआ

रस से

फटता, फूटा सर पर खरबूज

कंठ पर बही लम्बी लम्बी धारें

मैं एकदम गिरने को दुनिया की

सबसे ऊंची ईमारत की छत से

कि अब गिरा अब गिरा अब मैं

अब गिरा

रेत का देह.

२.

तुमने मुझे छुआ पहली बार

और फल पकने लगा भीतर ही भीतर

सूर्य पर टपकने लगी

नीम्बू की सुगंध

जिसमें वह कसमसा रहा हैं अब तक

छटपटा रहीं हैं मछली की पूँछ

जैसी दुनिया

धूज रहा हूँ मैं बज रहीं हैं हड्डियाँ

यह वहीँ हड्डियाँ हैं

जो तुमसे मिलने के बाद

पतवार सी छप छप करती हैं

शरीर हो गया हैं नौका

''छूना जादू हैं'' हज़ारों हज़ारों बार

इस बात को दोहराता हूँ मैं

मुझे दोहराने दो यह, तुम

यदि डिस्तुर्ब होते हो

तो मुझे गाड़ दो ज़मीन में

या धक्का दे दो किसी खाई में

मेरी आँखें खराब हो चुकी हैं. कानों

को कुछ सुनायी नहीं देता.

मैं कुछ सूंघ नहीं पाता मोगरे के

अलावा. नमक और गुड का अंतर

ख़तम हो गया हैं मेरे लिए

मैं बस छू पाता हूँ. तुम मुझे छुओं

इस छूने के लिए मैं जल चुका हूँ

पूरा का पूरा.


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...