शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी) ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है
चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास
अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.
बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है)
मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण..............
तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले.........
चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास
यही कारण अवगुण भया, भ्रमर ना आवें पास.
यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही सहज तरीके से लोकभाषा में जवाब दे दिया है'"
आज एक मित्र ने पुनः याद दिलाया तो कई स्मृतियाँ दिमाग में झन्ना उठी है और फ़िर याद आ रहे है वो दिन मै खोज रहा हूँ शमशान चम्पा उपन्यास अपने संग्रह में और उस सुवास को एक बार फ़िर से सूंघना चाहता हूँ जो उन दिनों चम्पा के फूलों से आया करती थी........बहुत मन है कि एक चम्पा का फूल कही से मिल जाये और मै उसे जमीन से उठाकर या किसी पेड़ की डाली से तोडकर उस मित्र को कह सकूं कि चम्पा तुझमे तीन गुण ..रूप रंग और बास..........पर अब भंवरा आ चुका है और.......चम्पा चम्पा ना रही ......... यह भंवरा आज भी चम्पा का इंतज़ार कर रहा है.............
चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास
अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.
बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है)
मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण..............
तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले.........
चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास
यही कारण अवगुण भया, भ्रमर ना आवें पास.
यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही सहज तरीके से लोकभाषा में जवाब दे दिया है'"
आज एक मित्र ने पुनः याद दिलाया तो कई स्मृतियाँ दिमाग में झन्ना उठी है और फ़िर याद आ रहे है वो दिन मै खोज रहा हूँ शमशान चम्पा उपन्यास अपने संग्रह में और उस सुवास को एक बार फ़िर से सूंघना चाहता हूँ जो उन दिनों चम्पा के फूलों से आया करती थी........बहुत मन है कि एक चम्पा का फूल कही से मिल जाये और मै उसे जमीन से उठाकर या किसी पेड़ की डाली से तोडकर उस मित्र को कह सकूं कि चम्पा तुझमे तीन गुण ..रूप रंग और बास..........पर अब भंवरा आ चुका है और.......चम्पा चम्पा ना रही ......... यह भंवरा आज भी चम्पा का इंतज़ार कर रहा है.............
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