मैंने
सुख
तो नहीं
दु:ख जरुर डाले हैं
उसकी झोली में
उसे दी है
पीड़ा से लदी
उदास लम्बी रातें
भरी हुई
आत्मा को दंश देते
तारों से
और....विदा के अवसर पर
दिए हैं सौगात में
कभी न भुलाए जाने वाले
दु:स्वप्न.....और
आत्मा को छार-छार करने वाले तेजाबी अवसाद
कायर मैं......
विकृत अपनी चेतना में
उसका अपराधी हूँ
स्मृतियों की आँच में
तिल-तिल
वेदना से झुलस
राख हुआ मैं
जीवित भी
हूँ कहाँ ?
-कृष्णकांत निलोसे
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