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Showing posts from September, 2015

Posts of 30 Sept 15

कभी उगते हुए सूरज को देखना, लगेगा कि एक साथ असंख्य सूरज उग रहे है व्योम में धीरे धीरे सभी एक साथ एक उगकर सिर्फ एक ही में समाहित हो जाते है जैसे एक जिन्दगी में कई कहानियां एक साथ समाहित होकर अंतिम सांस के साथ खत्म हो जाती है आहिस्ते से.... सुबह जब आती है तो लगता है मानो एक सांस लौट आई हो, जैसे लौट आती हो किसी सदियों से पडी निर्जीव देह में किंचित सी झुरझुरी एक सदी बीत जाती है एक सेकण्ड की याद भूलाने में और तुमने तो एक जिन्दगी दे दी थी ........... जब देश का प्रमुख व्यापारी विदेश में अपने प्रोडक्ट के गुणगान कर रहा हो, सत्ता की पार्टी का प्रमुख बिहार चुनाव में लगा हो और विपक्षी दल नपुंसकों की तरह से बैठे हो तो दादरी में एक मुसलमान परिवार का मरना कम है सिर्फ एक परिवार जो साले 20 % है यानी लगभग 25 करोड़ . सही करते है हिन्दू राष्ट्र के लोग मांस खाना और खाने वालों को मार देना चाहिए. अजगर वजाहत का नाटक "सबसे सस्ता गोश्त" याद आ गया. अधिकांश ब्राहमणों का सरनेम शर्मा होता है, ओशो कहते है कि शर्मा शर्मन का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है यज्ञ में बलि देने वाला शख्स ..

डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक Posts of 28 Spet 15

भारत में यह मोदी पहला प्रधानमंत्री है जो विश्व व्यापार के चतुर सुजानों को आमंत्रित करके यहाँ के अर्थ व्यवस्था, घरेलू काम धंधों और निजी जानकारियों को भी विश्व फलक पर ले जाने और बेचने के लिए बेताब है. मन मोहन सिंह ने तो सन 1991 पैरेस्त्रोईका और ग्लास्नोस्त के फार्मूले पर सिर्फ मिश्रित अर्थ व्यवस्था को ख़त्म किया था, सोना गिरवी रखा था, और कर्ज लिया था देश हित में परन्तु यह आदमी देश को नीलाम करने निकला है और हर बार निवेश के नाम पर एक सौदा करके आता है. क्या आपको लगता है कि आई आई  टी भारत में पढ़ने वाला और ब्रेन ड्रेन का सशक्त उदाहरण सुन्दर पिचाई सच में देश भक्त है यदि होता तो अपनी मेधा से यही रहकर कुछ कर लेता जैसे हमारे पंजाब के अनपढ़ किसानों ने जुगाड़ बनाया और आज वह हर जगह काम आ रहा है, या छोटे लोगों ने तकनीक से अपना दिमाग लगाकर देश और समाज हित में काम किया. विश्व बाजार का भारतीय सुन्दर पिचाई विश्व बाजार का नया मोहरा है, जिसे गूगल ने हाल ही में भारत में बाजार और स्टेशन से लेकर हर जगह सत्ता कायम करने के लिए नियुक्त किया है या यूँ कहें कि जिसके सहारे हमारे बाजार और विश्व के दो नंबर के

Posts of 25 Sept 15 Motilal's sad demise

मोती यह गलत बात है, पहले चारु और अब तुम धोखा देकर गुजर गए........यानी राजस्थान में अब हमारा कोई संगी साथी नहीं रहा?  बारां जैसे पिछड़े जिले के मामोनी और किशनगंज जैसे भयानक पिछड़े इलाके में तुम काम कर रहे थे.  मुझे याद है सन 1991 में हम पहली बार किशनगंज में मिले थे अनिल बोर्डिया, बजरंग लाल, अदिति मेहता आदि के साथ डा बी शेखर उस समय मसूरी से आकर लोक जुम्बिश ज्वाईन ही किये थे. रात के अँधेरे  में जब हम सब संकल्प संस्था पहुंचे तो वहाँ एक टपरा था मुझे हंसी आई कि ये साली कोई संस्था है पर सहरिया आदिवासियों के बीच तुमने और चारु ने जिस प्रतिबद्धता से तीस चालीस साल काम किया,  देशी विदेशी शिक्षाविदों को ज्ञान पिलाया और अदभुत काम करके अपनी देशव्यापी और विदेशों तक पहचान बनाई वह शायद ही कोई और कर पायेगा.  अभी लगता है तुम दाढी खुजाते हुए आओगे और कहोगे  "यार संदीप ये लिख दो........साला ये लिखना मुझसे होता नहीं अब और अब यही सब चलता है". चारु की दुखद मृत्यु के बाद जयपुर में हम मिले थे, फिर अनिल बोर्डिया जी के श्रद्धांजली में, फिर अभी उस दिन बात की थी जब मै शिवपुरी में था और मैंने

Posts of 24 Sept 15

पन्ना बुंदेलखंड का अभिन्न हिस्सा है. वहाँ काम करने वाले साथियों ने बताया कि रोजगार ग्यारंटी योजना एक छलावा साबित हो रही है, पलायन की समस्या सबसे बड़ी है जिससे कई स्तर पर असर हो रहा है, जरधोबा, जनकपुर, पुरुषोत्तमपुर की पंचायतें खाली है, लोग गाँव छोड़ गए है, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना से दिल्ली के लिए सीधी बसे है, भोपाल से भी नहीं है. .... पन्ना में जहां खदाने बंद हो गयी है, हीरे का काम बंद है, रोजगार का काम नहीं है, लोग दिल्ली जा रहे है, एक स्थानीय एनजीओ द्वारा गठित मनरेगा मजदूर संगठ न के साथी भी जानते है कि कुछ नहीं हो रहा, मजदूरी का भुगतान नहीं हो पा रहा, पंचायत और जिले के बड़े अधिकारी कहते है कि काम तो हम करवा लेते है पर भुगतान करवाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है , जब से भोपाल के सर्वर से रोजगार ग्यारंटी का भुगतान हो रहा है लेट लतीफी बढ़ गयी है और वे सब मजबूर है वे सिर्फ FTO जारी कर सकते है पर भुगतान नहीं. अब खेतों में फसले भी नहीं , सब बर्बाद हो गया है तिल्ली भी ठीक नहीं हुई, काम ना मिलने और खेती की ग्यारंटी ना होने से अब कोई भी पॅकेज काम नहीं करेगा चाहे रोजगार ग्यारंटी में150 दिन कर दो

Posts of 24 Sept 15

I सर पर यादों की पोटली आँखों में गीले सपनो की चमक होठों पर निशब्द प्रार्थनाएं   दिल में ज्वर का हिलोर   और पाँव मुड़ रहे है आसमान में   समय धीरे धीरे थम रहा है और सब कुछ खत्म हो रहा है ये प्रस्थान बिंदु है ठहरता सा जीभ पर कुछ पिघलता है चेहरे की झुर्रियां काँप जाती है हाथों पर रोएँ सिसक उठे है   नदी शांत है समुद्र में मिलकर   एक नीम बेहोशी में है पीपल झींगुर गश खाकर गिरे है यही   जुगनू रात में बूझ गए है और   इस समय में एक आत्मा दीप्त है. II सिर्फ एक मुट्ठी गीले सपने लेकर  तुम तक आया था सूख गए सब यहां तक आते आते ... अब आँखों में धूल है,   सर पर सपनो की दहशत   और दिल में कुछ नदियां अब भी बह रही है   अपनी सुनहरी रेत के सायों में मानो ख़ौफ़ज़दा रातों में अँधेरे को चीरकर   फिर से सूरज निकलेगा.

आदिवासियों को मुख्यधारा में लाये बिना कुपोषण से मुक्ति असंभव है - संदीप नाईक

पिछले दिनों मप्र के शिवपुरी में कुपोषण का मामला बहुत गर्माया और इस तरह से मप्र में कुपोषण की जमीनी हकीकत सामने आई. लगता है मप्र में कुपोषण एक स्थाई समस्या बन गया है लगता है और तमाम तरह के प्रयासों के बावजूद इस मुद्दे से निजात पाने में सरकारी प्रयास असफल लग रहे है बावजूद इसके कि महिला बाल विकास से लेकर स्वास्थ्य विभाग के अमले ने इसे ख़त्म करने की ठान रखी है. दरअसल में आदिवासियों के बीच यह समस्या बहुत ज्यादा है, जैसाकि हम सब जानते है कि मप्र में आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है और प्रदेश के कई  जिले आदिवासी बहुल जिले है और शिशु मृत्यु दर की मात्रा इन्ही जिलों में है. थोड़ा सा गंभीरता से देखें तो हम पाते है कि इन जिलों में आंगनवाडी सेवाओं का संजाल तो बहुत दूर डोर तलक फैला हुआ है, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी पदस्थ है परन्तु सेवाओं का जो सतरत होना चाहिए वह पर्याप्त रूप से नहीं होने के कारण कुपोषण से योजनाबद्ध तरीके से नहीं लड़ा जा रहा फलस्वरूप बीच बीच में ऐसे केस आने से सारे प्रयासों पर पानी फिर जाता है. एक तो आंगनवाडी कार्यकर्ताओं की दक्षता का सवाल है क्योकि आदिवासी इलाकों

“कविता भाषा में मनुष्य होने की तमीज है” - संदर्भ उत्तर शती की कविता : समाज और संवेदना -बहादुर पटेल-

जब हम साहित्य या साहित्य की किसी विधा की बात करते हैं तो हमें उसके इतिहास के साथ साथ समग्रता में उसके विकास की बात भी करनी होगी . यहाँ जब हम उत्तर शती की हिंदी कविता पर बात करते हुए समाज और संवेदना के बरक्स कविता की क्या भूमिका रही और कविता पर क्या प्रभाव पड़े यह भी देखना पड़ेगा . किसी भी विषय पर बात करते समय हम यह तय भलें ही कर दें कि उत्तर शती पर बात करें . लेकिन हमें पीछे भी जाना होगा . देखना होगा कि आखिर यह यात्रा उत्तर शती तक किस तरह आई होगी . तभी हम मुकम्मल समझ विषय के बारे में बना पाएंगे . फिर यह भी है कि हमारा समाज, देश और यह विश्व भी तो उस साहित्य या कला के समानान्तर अपनी दूरी तय करते हैं और एक दूसरे पर प्रभाव भी डालते हैं . कविता की बात करें तो कविता अपने समय का सन्दर्भ होती है . हम उसमें वह समय देख सकते हैं जब उसकी रचना हुई . उस समय का समाज और उसके भीतर की हलचल सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक किसी भी रूप में हो हमें देखने मिलेगी. इसीलिए हर समय की कविता दूसरे समय से अपने को अलग करती है . कविता की इन प्रवृतियों को हम हिंदी साहित्य के इतिहास में कालखंडों के र

उत्तर सदी की हिन्दी कहानी : समाज और संवेदनाएं

मित्रों, उत्तर सदी की हिन्दी कहानी का विकास दुनिया के किसी भी साहित्य में उपलब्ध प्रक्रिया के तहत अपने आप में अनूठा होगा इस लिहाज से कि हिन्दी कहानी ने इस समय में बहुतेरी ना मात्र घटनाओं को देखा, परखा और समझा वरन भुगता भी है इसलिए उत्तर सदी की हिन्दी कहानी एक नाटकीयता नहीं, एक कहानी की परम्परा नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण इतिहास को व्याख्यित करती है जहां लेखक, इतिहासकार, कलाकर्मी अपने समय से दो चार होते है मुठभेड़ करते है और फिर उस सब होने, देखने और भुगतने का सिलसिलेवार दस्तावेजीकरण करते है और हमें सौंपते है है एक समृद्ध विशाल और बड़ा फलक जिसे हम आने वाले समय में सीखने के लिए सहेजकर रख सकें. विश्व परिदृश्य विश्व के परिदृश्य पर नजर डाले तो हम पायेंगे कि पूरी दुनिया में यह बेहद उठापटक और खलबली मचने वाला समय रहा है जिसे साधारण भाषा में हम संक्रमण कह सकते है परन्तु इस संक्रमण के काल में इतिहास में कभी ना घटित हुई घटनाओं ने समूची मानवता को प्रभावित किया और एक बेहतर दुनिया को देखने के महा स्वप्न को भंग कर देने के षड्यंत्रों को देखा समझा. निश्चित ही कहानी को चाहे वो हिन्दी या विश्व के किस

मप्र में हिन्दी सम्मलेन- अपेक्षा और समझ की दिशा-दशा का इंतज़ार 9 Sept 15

मप्र में विश्व हिन्दी सम्मलेन का आयोजन निश्चित ही स्वागत योग्य कदम है और प्रदेश सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए इन मायनों में कि जब पूरी दुनिया से क्षेत्रीय भाषाएँ दम तोड़ रही है और बोलियाँ खत्म कर दी जा रही हो, तब किसी सरकार द्वारा एक भाषा जिसे राष्ट्रभाषा मानने के मुगालते में आधे से ज्यादा उत्तर भारतीय ज़िंदा रहते है, को बचाने या मान देने के लिए किया जाने वाला आयोजन निश्चित ही प्रशंसनीय है. वैसे मूल सवाल यह भी है कि क्या लोगों की चुनी हुई सरकारें भाषा या बोलियों को बचाने का काम कर सकती है या यह करना उनके दायित्व और कर्तव्यों में आता है, या यह जिम्मेदारी समुदाय या वहाँ के लोगों की होती है? अगर हाँ तो यह सवाल थोड़ा और गहराई से सोचना लाजमी है क्योकि इस समय जिस तरह से भारत की विकास की चाल है, या जिस अंदाज में उद्योग घरानों को प्रश्रय मिल रहा है, आई टी उद्योग अपने पाँव फैला रहा है या भारत जैसे मुल्क के सुन्दर पिचाई को गूगल एक सुन्दर सुबह अपना मुख्य कार्यपालिक अधिकारी घोषित कर देता है और वे एकाएक दुनिया के प्रभावशाली लोगों में आ जाते है और पूरी दुनिया इसे एक कौतुक के रूप में

Posts of 10-11 Sept 15

वन अधिकारी क्या कर सकते है इसकी मिसाल देखनी हो तो किसी भी आदिवासी इलाके में चले जाईये और फिर देखिये इनका उत्पात. झाबुआ के रानापुर ब्लाक के ग्राम नलदी छोटी और टेमरिया में आदिवासियों की खडी फसल पर जेसीबी मशीन चला दी, महिलाओं को मारा और बेइज्जत किया. जानते है क्यों, क्योकि ये आदिवासी वन अधिकार पट्टे मांग रहे थे जिन्हें सन 2014 में मान्य किया जा चुका है वन क़ानून के तहत. आठ सितम्बर को हुई जन सुनवाई में भी इन आदिवासियों ने यह मांग उठाई थी परन्तु कोई जवाब नहीं दिया. अभी इस कार्यवाही के बाद एक स्थानीय संस्था के हस्तक्षेप से पुलिस में एफ आई आर की गयी है परन्तु कोई कार्यवाही अभी वन विभाग के खिलाफ नहीं हुई है.  कब तक आदिवासी यह सहते रहेंगे, इन्हें शर्म नहीं आई कि जिस समय फसलें बड़ी मुश्किल से पक रही है और पानी की कमी है, भूख और गरीबी की त्राहि त्राहि हर जगह मची हुई है, गरीबी भुखमरी और कुपोषण के शिकार महिलायें और बच्चे हो रहे है,  वहाँ खडी फसलों को इस तरह से जेसीबी मशीन द्वारा नष्ट करना किस अमानुषिक और बर्बर समाज, शिक्षा और विकास का प्रतीक है? प्रदेश में नेताओं और सत्ताधारी पार्टी को धन उगा

Posts of 6 Sept 15

मेरे बेटे को शेर ने मार दिया तो वन प्राणी अधिनियम के तहत दस हजार रुपयों का मुआवजा मिला मुझे और गाँव के एक लडके ने शेर को मार गिराया तो उसे उम्र कैद की सजा हुई .........क्या क़ानून है साहब आप लोगों का....... मालवा में नर्मदा के बाँध के कारण हमारे आदिवासियों को गाँवों से उजाड़कर पानी डाल दिया और यहाँ हम अपने खेतों में जंगल से नहर नहीं ला सकते क्योकि वन प्राणी अधिनियम है.........फसलें सूख रही है हमारी.........कोई देखेगा.... हम भी आदिवासी है और वो भी और देश एक ही है..........आप लोग  तो पढ़े लिखे है पर नियम बनाना आप लोगों से सीखे कोई कि कैसे आप लोग मूर्खताएं करते है और हम आदिवासियों पर जुल्म करते है. नहीं चाहिए हमें आपकी शिक्षा, संडास और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सडा हुआ गेहूं चावल......हमें अपने खेतों में रहने दीजिये और जंगल से महुआ बीनकर लाने दीजिये -इमली, चार और जलाऊ लकड़ी लाने दीजिये वही बहुत है. जितने वन विभाग के बड़े अधिकारी है सब भ्रष्ट है और हमारे मुर्गे ले जाते है खडी फसल तोड़ लेते है, हमारी औरतों को परेशान करते है, हमारे बच्चों को मारते है, बुजुर्गों को पीटते है .......अ

Posts of 2 Sept 15

‪#‎ shivrajchouhanCM‬  lost his hold on administration in MP. My late brother's wife nt getting mercy job for last one year. Shame shame. मप्र शासन के मुख्यमंत्री  ‪#‎ शिवराजसिंहजी‬   ‪#‎ ShivrajSinghChouhanCMMP‬  सुन रहे है , मेरे भाई की मृत्यु को इस 27 सितम्बर को एक साल हो जाएगा, और उसकी बेवा को आपके भ्रष्ट राज्य में अभी तक अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिली है. लगता है हमें भूख हड़ताल करना पड़ेगी या बड़ा आन्दोलन क्योकि आपके अधिकारी सिर्फ और सिर्फ कागज़ चलाना जानते है. आपके नाम पर चल रही हेल्प लाइन में दुनिया का सबसे बड़ा झूठ और मक्कारी है जिसका कोई ना असर होता है ना फ़ायदा, काहे के मुख्यमंत्री है आप ??? जितनी ऊर्जा मैंने लगा ई है उसके देयक लेने में और अनुकम्पा नियुक्ति लेने के लिए उससे एक नए संसार की रचना की जा सकती थी. बहुत गर्व और शर्म से बता रहा हूँ कि जितने आवेदन मैंने लिखे है और प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर आपको, संभागायुक्त, विभाग के सचिवों को और जिला कलेक्टर - देवास को उससे तो कम लकड़ी में मेरे भाई की चिता जल गयी थी शिवराज जी. आपको और आपके अधिकारियों को ना हिन्दी आ