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Showing posts from February, 2015

जूते बजट और जेटली - सन्दर्भ 2015

भारत के गरीबो एक हो जाओ जूते सस्ते और मुखिया के दांत दर्शनीय हो गए है। अस्सी घाट पर भी सुना कि जूतों की बरसात हुई आज। बनारस में लोग कह रहे है। छग सरकार के 2015 में होने वाले साहित्य समागम में इस वर्ष कम दिग्गज जाने की संभावना है। सबने सुन लिया है कि जूते सस्ते हो गए है । सुन रहे हो ना पदम् विभूषितों , ज्ञानपीठियों, भारत भूषणियों , और मोहल्ले, गली- गाँव के टट पुंजिये मास्टर टाइप कवियों, गद्यकारों और कहानीकारों !!! मेरे लिए हर आदमी एक जूता है माई बाप यह कविता की पंक्ति किसी प्रगतिशील कवि ने , जो ज्ञानपीठ की आस में मुंह धोकर बैठा होगा, ने आज जेटली को सुना दी और जेटली ने सरकार पर से दे मारी !!! क्या राहुल को पता था कि जूता सस्ता होने वाला है ? शुक्र है आज सदन में नहीं है वरना इटेलियन लैदर से बने जूते का इस्तेमाल .... उफ़ !!!! जूता, जेटली और जर्रा जर्रा  हाल हमारा जाने रे   पत्ता पत्ता बूटा बूटा !!! भारत के भक्तो और घोषित बुद्धिजीवियों सावधान हो जाओ जेटली ने जूते सस्ते कर दिए  है।

यह नटखट था ही ऐसा

कुछ यूँही चलते चलते........ यह नटखट था ही ऐसा कि बरबस ही ध्यान खींच लिया इसने आज, गनेशधाम इंदौर की एक आंगनवाडी में ...... नाम था रूद्र , शुरू में थोड़ा रोया, फिर मुस्कुराया और फिर हंसने लगा और अंत में मुझे जीभ दिखाकर ताली पीटने लगा..........बस आते समय जी भरकर आशीष देकर आया हूँ आज कि रूद्र बाबू, खुश रहो, लम्बी उम्र जियो और जमाने को जीभ दिखाते रहो मुस्कुराते हुए !!! किसने कहा कि मॉडल बेबी बड़े और अच्छे घरों में पाए जाते है...........? बस ये ही बच्चे तो हमारी धरोहर है ........... इंदौर 26 फरवरी 15 

झुग्गी वालों को वोट बैंक या हितग्राही समझना बंद करो

मजे का देश और मजे के देशवासी है. इंदौर के बाण गंगा क्षेत्र में एक बस्ती है  गणेशधाम  कहने को तंग बस्ती, झुग्गी या "स्लम" है, परन्तु अगर आप घूमेंगे तो पायेंगे कि आलीशान मकान बने हुए है सब पक्के और शानदार. लगभग हर चौथे घर में लेथ मशीन या कोई ना कोई उद्योग धंधा चल रहा है. हर घर में दो पहिया और सातवें घर में चार पहिया. जब हम लोग महिला सुरक्षा के सन्दर्भ में सेफ्टी ऑडिट कर रहे थे तो पाया कि चार पांच घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है. घर के लोग बस्ती के एक कोने में बने शौचालय में जाते है जो सार्वजनिक है और इतना गंदा कि अगर आप सौ फीट दूरी से भी निकल रहे हो तो आपकी नानी मर जाए दुर्गन्ध से. ये शौचालय विहीन लोग यहाँ आते है किशोरवय से लेकर जवान लड़कियां यहाँ आती है अपनी माँ या दादी के साथ. जवाब में युवा वर्ग से लेकर बूढ़े तक छेड़ने के लिए पुरी बेशर्मी से वहाँ अड्डा जमाकर खड़े रहते है. लोगों को सारे फायदे चाहिए घर पक्का बनवा लेते है पर शौचालय सरकार बनवा कर दें भला क्यों? ऐसे ही हालत शिवशक्ति नगर के है या ग्वालियर में कम्बल केंद्र के या जबलपुर में चौधरी मोहल्ले के या भोपाल में भदभदा स्थ

Philosophy

अगर अपने पास भी बचपन में रुपया और जवानी में समय होता तो आज कुछ नहीं कर पाते, मै या हम जैसे लोग इन दो चीजों की ना होने की वजह से ही "सेल्फ मेड" हो पाए है और परिवार की सीख थी कि हारना मत, कुछ भी हो जाए, क्योकि मुश्किलों में भी मैंने / हमने अपने माता - पिता को मुस्कुराते हुए ही देखा था और आज यही काम आ रहा है कि कितना भी मुश्किल समय हो एक जगह खड़े रहना सब कुछ गुजर जाएगा और सब कुछ ठीक ही होगा........... - एक मुश्किल समय अपने आप को दिलासा देते हुए.  —  feeling alone. जब आपसे एक दोस्त जुड़ता है तो यकीन मानिए आपका खर्च बढ़ने वाला है, जैसे परिवार में एक सदस्य के जुड़ने से खर्च बढ़ता ही है ना !!! ज़रा सम्हल कर, महंगाई का ज़माना है मित्रों, दोस्ती सोच समझकर करें.

20 फरवरी 15 को ओव्हर नाईट एक्सप्रेस में इंदौर से जबलपुर की ट्रेन में एक दुखद अनुभव

20 फरवरी 15 को ओव्हर  नाईट एक्सप्रेस में इंदौर से जबलपुर की ट्रेन में एक दुखद अनुभव  जबलपुर जा रहा हूँ II AC के कोच में इंदौर से पता नहीं कहाँ के 5-6 जज साहेबान बैठे है.हाई कोर्ट में कोई परीक्षा देने जा रहे है. छह बजे से अभी तक जिस भयानक आवाज, मस्ती और मजाक में IPC और CRPC का मख़ौल उड़ा रहे है, किस तरह से संविधान की हंसी उड़ा रहे है, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट, बाबू राज में सेटिंग, वकीलों से सांठ-गाँठ के किस्से चल रहे है, विधायक के केस, पुलिस से लेन देन और सही भाव, जमानत और पेरोल के रेट्स, उससे मेरा सर शर्म से झुक गया. और तो और एक जवान है पुलिस का जिससे बारी बारी से  सबने चाय पानी की सेवा तो करवाई साथ में अपनी मोटी चर्बी की मालिश भी करवा ली. वीभत्स सामन्तवादी मानसिकता. रहने वाले छतरपुर, खरगोन , शाजापुर, रीवा, सतना और बालाघाट के है भाषा से स्पष्ट हो जाता है, जैसे "आंगे". सब अंगरेजी ना आने दुखी है, एक कोई बी ए पास लग रहा है जो सबको सुप्रीम कोर्ट की रपट बांचकर और भयानक शैली में व्यंग्यात्मक अनुवाद में समझा रहा है. बीच बीच में वाट्स अप के "श्लील वीडियो" भी देखे जा रहे है।

एक पत्रिका का नवाचारी हो जाना - सन्दर्भ चकमक के नए कविता कार्ड्स

चकमक बच्चों और युवाओं की एक बेहतरीन पत्रिका है इसमे कोई शक नहीं है. बदलते समय और परिवेश में जिस तरह से इस पत्रिका ने अपना कलेवर बदला, संकीर्ण और बंद दिमाग के परम्परागत ढाँचे से निकलकर अब यह पत्रिका जिस खुलेपन से निकल रही है और एक बड़े समाज साहित्य और विज्ञान की दुनिया को कव्हर करती है वह प्रशंसनीय है. बदलते समय के साथ चकमक ने जिस तरह से अपने आप को ढाला है, वह अतुलनीय है.  दिल्ली पुस्तक मेले के अवसर पर चकमक के सम्पादक द्वय सुशील शुक्ल और शशि सबलोक ने बच्चों के लिए कविता कार्ड छापे  है जो अदभुत और अप्रतिम है, बेहद सस्ते ये कविता कार्ड नामचीन कवियों की रचनाओं को लेकर बनाए गए है जिन्हें आसानी से कही भी सुविधा अनुसार लगाया जा सकता है. प्रभात, प्रयाग सुक्ल, रामनरेश  त्रिपाठी, श्रीप्रसाद, राजेश जोशी, बद्रीनाथ भट्ट, लाल्टू, नवीन सागर, सुशील शुक्ल, रमेशचंद्र शाह जैसे ख्यात कवियों की कवितायें इन कार्ड्स पर छपी है जिन पर बहुत आकर्षक रंगीन चित्र चंद्रमोहन कुलकर्णी और अतनु राय ने बनाए है. ग्लेज्ड पेपर पर छपे इन 12 कविता कार्ड्स का मूल्य मात्र पच्चीस रुपये है.  इसी के साथ चकमक ने टेबल पर

"इस तरह मरते है हम" - पाब्लो नेरुदा

************************ मरना शुरू होता है धीरे से जब तक शुरू ना हो एक यात्रा  शुरू नहीं करते बांचना जीवन का ककहरा सुनना शुरू नहीं करते जीवन संगीत और अनहद नाद शुरू नहीं करते पहचानना अपने आपको इस तरह मरना शुरू करते है धीमे से मार देते है जब अपने जमीर को बंद कर देते है दूसरों से मदद लेना अपने लिए तो मरना शुरू करते हो आप अपनी बनाई आदतों के गुलाम बनते हुए एक ही पथ पर चलाते हुए जीवन को अगर नहीं बदलते ढर्रा अपना रोजमर्रा का नहीं खोज पाते जीवन के रंग बिरंगी संसार को मुखातिब नहीं होते अगर अनजान लोगों से तो यकीन मानिए आप मरना शुरू कर रहे हो जान ना पायें अपने आप को और अनजान रहे अपनी ही प्रकृति से उद्दाम और अशांत भावों को समझने में असमर्थ समझाने में उन्हें, जिनको देखकर खुद की ही आँखों में चमक आ जाती है अपनी तेज साँसों के स्पंदन को ह्रदय में उछलता महसूस करो तब हो जाता है मरना शुरू असंतुष्टि भी नहीं बदल पाती जीवन का एकाकी राग पगुराए प्रेम से व्यथित होकर भी नहीं बदलना चाहते अनिश्चित कल के लिए जोखिम लेने को तत्पर ना हो दौड़ ना जाएँ एक पनीले स्वप्न के पीछे भागे ना हो महत्वपूर्ण क्षणों के अवस

"You start dying slowly " - By Pablo Neruda

You start dying slowly if you do not travel, if you do not read, If you do not listen to the sounds of life, If you do not appreciate yourself. You start dying slowly When you kill your self-esteem; When you do not let others help you. You start dying slowly If you become a slave of your habits, Walking everyday on the same paths… If you do not change your routine, If you do not wear different colours Or you do not speak to those you don’t know. You start dying slowly If you avoid to feel passion And their turbulent emotions; Those which make your eyes glisten And your heart beat fast. You start dying slowly If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love, If you do not risk what is safe for the uncertain, If you do not go after a dream, If you do not allow yourself, At least once in your lifetime, To run away from sensible advice… Do something your heart wants  but your mind keeps telling you not to Ride a wild

"नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" पर ताई अलकनंदा साने की टिप्पणी.

मेरी किताब "नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" पर बड़ी ताई अलकनंदा साने की टिप्पणी. बहुत सहज होकर जिस अपनत्व से ताई ने जो भी लिखा है, वह शिरोधार्य है. मै कोशिश करूंगा कि अपने लेखन में सुधार ला पाऊं. आभार और धन्यवाद  ******************************************************************************************************** प्रिय संदीप,  मैं इसे अपने वाल पर पोस्ट नहीं कर रही हूँ। आप मुखपृष्ठ के फोटो के साथ मुझे टैग कर दें। मैं फोटो नहीं लगा पाउंगी। आदतन थोड़ा - बहुत कटु लिखा है , पर वह होना  चाहिए ऐसा मैं मानती हूँ। अन्यथा न लें। संदीप नाईक की लेखनी की साक्षी मैं तब से हूँ , जब वे अपनी बैचैनी नई दुनिया में 'पत्र संपादक के नाम' में व्यक्त करते थे। जब उनका ''नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएँ'' यह संग्रह हाथ आया तो पहला विचार यही आया कि उस बेचैनी को एक बड़ा कैनवास मिल गया। इस पुस्तक के शुरू के बीसेक पृष्ठों में जो है, वह कथा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता किन्तु यह स्फुट लेखन आगे की कथाओं के लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है। इन पन्न

पैन्ट, जिप और पल्लवी

रेड लाईट एरिया था, मेरे पास कीमती सामान और बहुत सारे रूपये थे, परन्तु फिर भी मै घूस गया, कई रंग- बिरंगे पर पुते हुए चेहरे थे जो आवाज दे - देकर पुकार रहे थे, पल्लवी, संगीता और अल्पना, कर्नाटक, केरल, वर्धा, धूले, इंदौर, छिंदवाड़ा और ना जाने कहाँ - कहाँ से आई थी, एक पतली गली के कोने में पहुंचा तो मुझे घेर लिया उन सबने, मेरी मर्दानगी को ललकारा और मुझे उत्तेजित करने के लिए चूमा भी और मेरे शरीर पर हाथ भी फिराए.  फिर किसी ने कहा कि हटो मुओ, टुच्चों इतने छोटे बच्चे को लूट लोगे क्या, यह पूना के बुधवार पैठ में आया है तो इसे अच्छा और आजीवन याद रहने वाला अनुभव देना चाहिए और मुझे उस भीड़ से खींचकर वो अपने 4 X 6 के कमरे में ले गयी - जो एक बड़ी से हवेलीनुमा घर में एक ओर बना हुआ था. ....यह कहते हुए वह हांफने लगा फिर धीरे से पानी  पीते हुए बोला कि पल्लवी बहुत प्यारी थी, मै कुछ करने नहीं गया था, बस जानने की इच्छा थी उस दुनिया को जो मै बचपन से सुनता आया था.  फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और गुदगुदी सी की और मै सन्न था उसकी इस घटिया हरकत पर, वह समझ गयी, फिर वह उठी और एक कप चाय बना लाई. कल शाम हल्की सी ठण्

दिल्ली चुनाव परिणाम और अरविंद केजरीवाल के रूप में आम आदमी की जीत

अगली लोकसभा में भाजपा और आप पार्टी दो प्रतिद्वंदी है और अगर मोदी जी ने चाहा और कल्लू मामा इसी तरह से तिकडम भिड़ाकर संघ के कांधो पर चढ़कर देश द्रोही काम करता रहा तो अगला प्रधान मंत्री अरविन्द केजरीवाल बनेगा। जब सारा देश आम आदमी और लोकतंत्र का जश्न मना रहे थे कुछ मद मस्त और मदांध लोग कविता की आवश्यक्ता और मर्म पर बहस में अपनी खुद की महत्ता स्थापित करने में जुटे थे। NDTV और  Om Thanvi  जी को कोसने वालों इतिहास तुम्हे माफ़ नहीं करेगा। बिन्नी या शाजिया को विपक्ष के नेता के लिए आमंत्रित सीट दे दी जाए। पहला आदेश अरविंद केजरीवाल  मा. मुख्यमंत्री, दिल्ली प्रदेश हे किरण देवी अब सम्हलकर निकलना, सभी भाजपा के कार्यकर्ता भी सतर्क रहे , अब दिल्ली में 1500 कैमरे लगेंगे। आदेशानुसार कल्लू मामा अध्यक्ष, हारी हुई कांग्रेस से गयी गुज़री चायवालो की पार्टी। मोदी जी सच्चा डेरा मानते हो ? जी महाराज !!! चुनाव में किरण बेदी जैसो का और धर्म का इस्तेमाल करते रहो कृपा आती रहेगी। अम्बानी घबरा रहा है कि ये मफलर वाला वो दर्ज एफ आई आर ना खुलवा दें फिर से और अब तो मोदी भी कुछ नहीं कर पा

इसी खुले अम्बर के नीचे

बाहर शाम ढल रही है और एक अजीब से दुःख ने मेरे उद्दाम मन को उदास कर दिया है यह उदासी ठीक उसी तरह है जैसे एक सख्त चट्टान को तपते आसमान के नीचे नंगा रहना पड़ता है, और गर्म होते होते उसे आखिर एक गर्म चट्टान कह दिया जाता है. यह उदास शाम एक बड़ा आजीवन सालने वाला दुःख लेकर आई है. यह दीगर बात है कि इस दुःख की मद्धिम आंच में एक हल्का सा सुख का कतरा कही छुपा है, जो मंद मंद मुस्कुरा रहा है और इक छोटी सी हंसी की तलाश में मै बहुत दूर आ गया हूँ, मानो मेरी कहानी के चलते फिरते चरित्र मुझसे अगर चे मिल जाए तो मै एक कागज़ लेकर अपनी कांपती कलम से उन्हें तराशने बैठ जाउंगा या एक कोरे कैनवास पर सूखे रंगों की कूची लेकर मै बैठ जाउंगा इसी खुले अम्बर के नीचे. दुर्भाग्य यह है कि यह हफ्ता प्रेम के आनंद का हफ्ता है, और जब सारी दुनिया प्रेम के उत्साह में मग्न है तो यह खबर, ओह यह सदियों की उदासी है और सदियों का संताप, एक पक्षी भी तो ऐसे ही उड़ा था जिसका नाम विहंग था और एक चुलबुल चिड़िया जो बहुत महीन गाती थी और मैंने मुश्किल से खोजकर उसका नाम लिनेट रखा था.

देवास के बड़े डाकखाने में बदहाल व्यवस्था जिम्मेदार कौन?

आज जीपीओ देवास में गया था, वहाँ अपनी किताब कुछ मित्रों को रजिस्टर्ड डाक से भेजनी थी, भीड़ बहुत थी सो अपनी आदत के मुताबिक़ व्यवस्था समझाने के लिए और "बेचारी निकम्मी, अनपढ़, गंवार, अपने अधिकारों से वंचित, बेबस और मूर्ख" जनता का दुःख दर्द दूर करने के लिए पोस्ट मास्टर को खोजा तो पता चला कि है नहीं कई माहों से और सहायक पोस्ट मास्टर जैन साहब के भरोसे पोस्ट ऑफिस चल रहा है और ये जैन साहब बेचारे बीमार है और पीछे बैठे है - डाक छंटनी कार्यालय में असहाय से. मैंने जाकर उनसे कहा कि भीड़ बहुत है जैन साहब, एक काउंटर और चालू कर दें तो रोना रोने लगे कि स्टाफ नहीं है, दूसरे स्थानांतरित पोस्ट ऑफिस में प्रिंटर खराब है, सारे कंप्यूटर भी खराब है, नेट की समस्या है, सर्वर डाउन रहता है, मेरी बिल्डिंग में CPWD ने जो शौचालय बनवाये थे वो गल रहे है और पानी पुरी बिल्डिंग में चू रहा है, फिर जब मैंने कहा कि आप क्या कर रहे है तो बोले मै बीमार हूँ इसके बावजूद भी आ रहा हूँ और काम कर रहा हूँ. सात में से पांच लोग छुट्टी पर है, और काम किससे करवाए, थक गया हूँ, आप शिकायत कर दें तो आभारी रहूंगा. मोफसिल से कह दें फोन