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एक पत्रिका का नवाचारी हो जाना - सन्दर्भ चकमक के नए कविता कार्ड्स




चकमक बच्चों और युवाओं की एक बेहतरीन पत्रिका है इसमे कोई शक नहीं है. बदलते समय और परिवेश में जिस तरह से इस पत्रिका ने अपना कलेवर बदला, संकीर्ण और बंद दिमाग के परम्परागत ढाँचे से निकलकर अब यह पत्रिका जिस खुलेपन से निकल रही है और एक बड़े समाज साहित्य और विज्ञान की दुनिया को कव्हर करती है वह प्रशंसनीय है. बदलते समय के साथ चकमक ने जिस तरह से अपने आप को ढाला है, वह अतुलनीय है. 

दिल्ली पुस्तक मेले के अवसर पर चकमक के सम्पादक द्वय सुशील शुक्ल और शशि सबलोक ने बच्चों के लिए कविता कार्ड छापे  है जो अदभुत और अप्रतिम है, बेहद सस्ते ये कविता कार्ड नामचीन कवियों की रचनाओं को लेकर बनाए गए है जिन्हें आसानी से कही भी सुविधा अनुसार लगाया जा सकता है. प्रभात, प्रयाग सुक्ल, रामनरेश  त्रिपाठी, श्रीप्रसाद, राजेश जोशी, बद्रीनाथ भट्ट, लाल्टू, नवीन सागर, सुशील शुक्ल, रमेशचंद्र शाह जैसे ख्यात कवियों की कवितायें इन कार्ड्स पर छपी है जिन पर बहुत आकर्षक रंगीन चित्र चंद्रमोहन कुलकर्णी और अतनु राय ने बनाए है. ग्लेज्ड पेपर पर छपे इन 12 कविता कार्ड्स का मूल्य मात्र पच्चीस रुपये है. 

इसी के साथ चकमक ने टेबल पर रखने के लिए गुलजार कृत छोटी छोटी चार पंक्तियों का भी एक माहवार कैलेण्डर भी छापा है, जो हर माह के हर मौसम का जिक्र करके आपको उस मौसम की याद और ताजगी से भर देती है. चकमक में यह प्रयोग गत वर्ष किया गया था, गुलजार ये चार पंक्तियाँ लिखते थे और बच्चे उन पर चित्र बनाते थे या लिखते थे, फिर गुलजार अपनी पसंद से छः सात  रचनाओं  का चयन करते थे जिन्हें चकमक में छापा जाता था.  बहुत आकर्षक कैलेण्डर और कविता कार्ड का यह प्रयोग निश्चित ही अनूठा और नवाचारी है. 



सम्पादकद्वय को Sushil Kumar Shukla​ और  Shashi Sablok​ को हार्दिक  बधाई और आपसे अनुरोध कि यदि आप यह लेना चाहे  तो चकमक के पिटारा की वेब साईट पर संपर्क करके मंगवा सकते है. या भी Manoj Nigam​ से संपर्क कर सकते है. 

चकमक के स्वरुप में जो बदलाव आया है वह यदि आज से पांच सात साल पहले आया होता तो यह पत्रिका  दक्षिण एशिया के हिन्दी भाषी देशों में छा गयी होती और सुशील और शशि से दुराग्रह है कि अब प्रदेश, प्रदेशों और देश से निकालकर इस पत्रिका को हिन्दी भाषी देशों में वृहत्तर समाज के बच्चों और किशोरों को पहुंचाने का प्रयास करें.

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