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Showing posts from January, 2018

मप्र में कांग्रेस की चुनावी रणनीति 23 Jan 2018

मप्र में कांग्रेस की चुनावी रणनीति  यह निश्चित ही सुखद खबर है और प्रदेश की राजनीति में शुचिता, जन सरोकार और आम लोगों की पीड़ा से रूबरू होकर वास्ता रखने वाले लोगों का राजनीति में आना यह भी सिद्ध करता है कि काँग्रेस की चौतरफ़ा रणनीति अबकी बार मजबूत है। मजेदार यह है कि विनय परिहार, गिरजा शंकर जी , पारस सकलेचा जैसे लोगों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर आनंद रॉय, आर टी आई कार्यकर्ता अजय दुबे ,युवा आदिवासी कार्यकर्ता भाई डाक्टर हीरा अलावा जैसे लोगों के राजनीति में काँग्रेस के साथ आने से पार्टी तो मजबूत होगी ही बशर्ते  इन लोगों को फ्री हैंड दिया जाए, दूसरा टिकिट मिलें यह संयोजन समिति में विवेक तनखा जी सुनिश्चित करें और तीसरा महत्वपूर्ण भाग कि क्षेत्र विशेष की विधानसभा के लोग इनके कामों, सरोकारों से वाकिफ होकर इन्हें वोट जरूर दें। कल की बैठक में दलित और आदिवासी नेता देवाशीष जरारिया भी थे। कुल मिलाकर यह रणनीति कि दलित आदिवासियों को नेतृत्व की अग्रिम पँक्ति में रखकर पांचवी अनुसूची को लागू करने की मंशा भी झलकती है जो शिवराज गत 15 वर्षों में नही कर पाएं और ना कभी दिल से उनकी इच्छा रही। म

Khari khari 20 Jan 2018

गलती युवाओं की नही हम पालकों , अभिभावकों, शिक्षकों और समाज के लोगों की है जो इन निठल्ले युवाओं , अपनी नकारा पढ़ी लिखी औलादों को घर बैठकर खिला रहे है अपने हाड़ तोड़कर। सालों को घर के बाहर निकालें जाने दो जनरल डिब्बे में लटक कर दिल्ली मुम्बई सूरत या कोलकाता जहां मेट्रो या निर्माण कार्यों में मजदूरी करेंगे, दो सौ रुपया रोज कमाएंगे , एड़ियां घिसेंगे , हैंड पम्प का पानी पीकर सड़क पर सोएंगे तो सब अल्ला हो अकबर और जय जय सियाराम भूल जाएंगे फिर ना जय भीम याद आएगा ना कोई पटेल, ना नर्मदा मैय ा की जयकार होगी , ना जय येशु होगा। मैंने, आपने , हमने और समाज ने इन्हें ये आवारगी, हरामखोरी और टुकड़े तोड़ने की आदत डाली है और अब हम सब भुगत रहे है। क्या कारण है कि 55 % युवा वाले शिक्षित देश मे मूर्खता की हदें हम पार करते जा रहे है और चार छह नितांत गंवार, अनपढ़ और उज्जड लोग देश का भविष्य बिगाड़ रहे है। कानून, नियम - कायदे और संविधान की भी परवाह नही कर रहे । है कौन ये लोग जो 126 करोड़ लोगों को बेवकूफ बनाकर रोज पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ा देते है, अपनी सुविधा और आकाओं के लिए जी एस टी या नोटबन्दी कर देते है । यु

उचित दूरी बनाए रखें - अभिनव निरंजन 19 Jan 2018

उचित दूरी बनाए रखें --------------------------------- बहुत नज़दीक से चाँद केवल मिट्टी है और सूरज है खौलता लावा हीरा केवल कोयला, कोयला केवल जीवावशेष बहुत नज़दीक से जुगनू है कीट बहुत नज़दीक से इन्द्रधनुष है ही नहीं बहुत नज़दीक से आदमी केवल कोशिका तंत्र आदमी की गंध, माने पसीने की बू बहुत नज़दीक से रिश्तों की गर्माहट बनती है निजता का अतिक्रमण दोस्ती हो जाती है परजीवी करुणा बनती है दया क्षमा भी बनती है दंभ बहुत नज़दीक से ईश्वर लगता है भयावह राज्य के नज़दीक आये धर्म एक साधू बन जाता है अभिनेता, दूसरा कैपिटलिस्ट एक पूरी कौम बन जाती है आरोपी, अभियुक्त या गवाह जंगल के बहुत करीब आये शहर जनजाति पर लगती है आंतरिक असुरक्षा की मुहर नागरिक के बहुत नज़दीक आये राष्ट्र ध्वज बनती है सूली एक छात्र बताया जाता है देशद्रोही, दूसरा आत्महंता राष्ट्रप्रेम के बहुत नज़दीक ही रहती है बग़ावत राष्ट्रभक्ति के नज़दीक, ग़ुलामी वर्षों लम्बी सड़कें नापी है इन ट्रकों ने छानी है धूल, सोखी घृणा और तिरस्कार यह उनकी बेरुखी नहीं अपना अनुभव है जो सचेत करता है

Supreme Court and 13 Jan 2018

Disgusting Incident happened in Supreme Court of India on 13 Jan 2018 मुझे लगता है यह मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ बगावत है और एक सही कदम 4 जजों ने कहा कि 20 साल बाद हमें दोषी ना करार ना दिया जाएं कि आपने अपना काम सही नही किया। दीपक मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में तानाशाही मचा रखी है और अपनी मन मर्जी से वे फैसले ले रहे है और जनहित को परे रखकर काम करते है जोकि संविधान की मूल आत्मा और न्याय के संगत नही है। वरिष्ठ वकील शांतिभूषण जी ने इनके शपथ ग्रहण के पूर्व ही इनके कथित कारनामों का चिठ्ठा द वायर में खोला था। बहुत महत्वपूर्ण स्थिति में एक साथ 4 विद्वान न्यायाधीशों ने आकर जिस तरह से बगावत का बिगुल फूंका है वह दर्शाता है कि देश सच मे इस समय भयानक संकट में है। महामहिम राष्ट्रपति जी के लिए यह फैसले की घड़ी है जब वे तुरंत कार्यवाही कर देश को इस संकट से निजात दिलवाए। पिछले छह माहों में आये फैसलों से यह स्पष्ट विदित होता है कि न्याय की स्थिति और सम्पूर्ण न्यायपालिका की स्थिति बहुत गम्भीर है और जिस तरह से अपराधियों और हिस्ट्री शीटर लोगों को बचाया जा रहा है, विचारधारा और व्यक्ति विशेष के द

देहलिपि से बाहर 9 Jan 2018

देहलिपि से बाहर  (दिल्ली पुस्तक मेला 6 से 14 जनवरी 2018 के बहाने कुछ अवलोकन)  वहां किताबों की खुशबू में रंग था और मासूम सा प्यार, सारी जगहों पर नए कोरे पृष्ठ खोले जा रहे थे, बहुत आहिस्ते से जेब टटोलते और अपने बटुए को सम्हालते हाथों की उंगलियां नास पुटों से उस खुशबू को सूंघ रही थी और हर पन्ना पलटने पर हर्फ़ उचक कर उस हरे कार्पेट पर गिर गिर पड़ रहे थे मानो लेखक की कल्पना से होकर शब्दों, महीन, वाक्यों और पृष्ठों से सजिल्द होती किताबों से बाहर आकर अपनी दास्ताँ सुनाने को बेचैन हो। यह पाठक से रूमानी इश्क था जो बरबस हर जगह नजर आ रहा था। हॉल के बाहर भवन उजाड़े जा रहे थे प्रगति मैदान के गोया कि अब वहाँ सिर्फ किताबों के घर बनेंगे और उनमें प्यार करने वाले अपनी माशूकानुमा किताबों के साथ रहकर ताउम्र शब्द संधान करते हुए जीवन का वितान रचेंगे। ***** बिक्री का हाल बेहाल और तिस पर कवियों की किताबों का हाल और भी खतरनाक मित्र  Kavita Verma  ने मेरे सामने पुस्तक मेले के एक स्टॉल से 80 रुपये की कोई किताब खरीदी। उसे उस भले प्रकाशक ने एक कवि की किताब निशुल्क पकड़ा दी हार्ड बाउंड और कीमत थी 22