Skip to main content

Posts

Showing posts from 2017

शिक्षक का रोल प्रतिबद्ध होना चाहिए और राजनैतिक भी

Shashi Bhooshan   केंद्रीय विद्यालय में हिंदी पढ़ाते है। मेधावी है और बहुत करीबी मित्र और अनुज है उन्हें तब से जानता हूँ जब वो इंदौर में एम ए कर रहे थे फिर नौकरी, उत्तर पूर्व के स्कूल में काम, उनका लिखा , कहानियाँ और त्वरित की गई टिप्पणियाँ आदि का मुरीद हूँ। रीवा विश्वविद्यालय के होनहार छात्र है और अब हिंदी में स्थापित युवा चेहरा। मेरी आदत है कि लेखक को छेड़ा जाए और पूछा जाए कि पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है। यह सबको पूछता हूँ। पर शशि ने एक अलग संदर्भ में बेहद संश्लिष्ट और घ ोषणापत्र की तरह जवाब दिया है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। एक शिक्षक मैं भी रहा और आजीवन रहूंगा क्योकि ये संस्कार और पेशा मुझे माँ से मिला था। सारे संघर्षों को याद करता हूँ तो लगता है कि यही वो जगह थी जहां मैं संतुष्ट था और मनोनुकूल कार्य कर पाता था। एक शिक्षक को सतही तौर पर ही नही विचार और प्रतिबद्धता के स्तर पर भी स्पष्ट होने की जरूरत है और यह सिर्फ काल्पनिक नही घोषित तौर पर व्यवहार में भी परिलक्षित हो तो ज्यादा फायदेमंद होगा दुर्भाग्य से हम शिक्षकों ने गत 70 सालों में एक नाकारा, उज्जड, भ्रष्ट और हरामखोर पी

यादें 27 दिसंबर 2017

असल में इतनी ठण्ड पड़ी ही नही कि वो सब मै भर निकाल पाऊं और दिखा पाऊं कि यह सब भी मेरे पास है मसलन माँ के हाथ बुने हुए कुछ स्वेटर्स, एक बड़ा गुलबंद, एक बन्दर टोपी जो बीमारी के समय पिताजी पहना करते थे, वैष्णो देवी गया था तब के लाये हुए पाँव और हाथ के मोज़े, माँ की आखिरी शाल जो कश्मीरी थी और बहुत महंगी भी जिसे अब तक ओढ़ रहा था, पाँव के घुटनों पर लगाने वाले इलास्टिक के दस्ताने जो मरने तक भाई पहनता था क्योकि बहुत दुखते थे. ठण्ड के आने के साथ ही इन कपड़ों की धुलाई करता और फिर चकाचक तै यार होकर निकलता जेब में चार छः रेवड़ियां भी रखी होती और डिब्बे में गजक. दाने की पट्टी या गुड पट्टी भी कभी कभी पाकर एक राजकुमार सी फीलिंग होती थी, बरसात के गीले चिपचिपे मौसम से निकलकर खूब सारी लहसन छिलते बैठे हम लोग सोचते अबकी बार गर्मी की छुट्टियों में फलना करेंगे ढीमका करेंगे, स्कूलों में अर्ध वार्षिक परीक्षाओं का दौर शुरू होने को होता पर अल्हड बचपन को कहाँ परवाह होती थी. यह सुबह उठकर पिताजी के साथ किसी रविवार को मंडी में जाकर अचार के लिए मोटी ताज़ी हरी मिर्च लाने का समय था, पीले पड़ते जा रहे रसीले नीम्बू ल

तुलसी जयंती और क्रिसमस की शुभकामनाएं

साई बाबा हो, श्रीराम हो, श्रीकृष्ण हो, पैगम्बर हो, गुरु गोविंदसिंह हो या जीसस हो - ये सब बहुत ही सामान्य इंसान थे और अपने कर्मों से अपने उच्च आचरण और व्यवहार से इन लोगों ने आदर्श स्थापित किये -निजी जीवन मे भी और सार्वजनिक जीवन मे भी और मानवता के उच्च मूल्यों को अपने जीवन मे ही नही अपनाया - बल्कि वृहद समुदाय को अपने साथ जोड़कर सृष्टि में नवनिर्माण भी किया। इसलिए ये देवदूत है और वंदनीय है आज और हमेंशा। हम किंचित या उनके कार्यों को करना तो दूर अगर सहज मन से स्वीकार भी कर पाएं या उन्मुक्त मन से प्रशंसा भी कर पाएं तो मनुष्य हो सकते है। क्रिसमस की  शुभकामनाएं  आप सबको। दया जैसा उच्चतम मूल्य जिस व्यक्ति ने सीखाया उसके लिए मानवजाति हमेंशा नतमस्तक रहेगी। उन सबको विशेष  बधाई  जो रात से तुलसी जयंती की  बधाई  देते नही अघा रहें। एक लोटा पानी अपने आंगन की तुलसी में रोज डाल दें तो प्रकृति पर कृपा होगी बशर्तें अपने ओसारे में कोई गमला लगा हो तुलसी का !!! तुलसी के औषधीय पौधे से हम सब परिचित हैं यह पौधा सिर्फ पौधा नहीं बल्कि एक आवश्यक पौधा है जो अमूमन हर घर में पाया जाता है इसके महत्व से हम

आयोजन वीर के किस्से और पत्रिकाओं का बुरा हाल पाखी जैसा है

1 एक जगह मित्र लोग कुछ बड़ा आयोजन कर रहे थे। अच्छा कार्यक्रम था,सोचा जाऊं कुछ काम करेंगे - मेहनत मजदूरी का और कुछ सीखेंगे। आयोजक मित्र से बात हुई। उन्होंने बड़ी गर्म जोशी से कहा स्वागत है फिर बोले एक दो बातें बता दूं - मैंने कहा जी बताएं.... एक - आपका किराया हम नही देंगे। मैं - जी, मैंने तो माँगा ही नही और ना माँगूँगा। दो - हमारी रहने वाली जगह पर सब लोग, कलाकार रहेंगे, जगह नही है हमारे पास, आपको कोई सस्ता सा होटल दिलवा देंगे पर भुगतान आपको करना होगा। यदि आपका कोई यहाँ दोस्त रिश्तेदार हो तो टिक जाना । आपको महंगा नही पड़ेगा। मैं - जी, वह मैं देख लूंगा चिंता ना करें । तीन - हम खाना लिमिटेड का बनाएंगे आपको.... मैं- नही जी, मैं खुद खा लूंगा - आप चिंता ना करें , आपकी चाय भी नही पियूँगा और पानी भी ले आऊंगा। चार - आप कुछ आर्थिक सहयोग दे देंगे - पांच दस हजार तो मदद रहेगी और रोज के कार्यक्रम अटेंड करने के पांच सौ रुपये। क्या है ना - दिल्ली - मुम्बई से कलाकार आएंगे, स्थानीय कवि भी कविता पढ़ेंगे, कुछ विश्वविद्यालयों के बड़े बड़े लोग आएंगे तो भाषण देंगे - तो खर्चा होगा ना, वो हम कह

राजनीति, सत्ता और संस्कृति के बरक्स साहित्य - - संदीप नाईक

राजनीति, सत्ता और संस्कृति के बरक्स साहित्य -    संदीप नाईक युद्धे , युद्धेवहे , युद्धामहे (अर्थात मैं युद्ध कर रहा हूँ , हम दोनों युद्ध कर रहे है और हम सब युद्धरत है।) -       प्रकाशकांत की एक कहानी से राजनीति , सत्ता, संस्कृति और साहित्य पर लिखने से पहले हमें वैश्विक परिदृश्य को समझना होगा। तभी शायद हम समग्र दृष्टि से समकालीन भारतीय परिदृश्य को जान सकेंगे। क्योंकि वर्तमान समय की बहुलतावादी राजनीति ने विश्व के जनमानस और समुदाय को बृहद स्तर पर प्रभावित किया है। यह प्रभाव आर्थिक स्तर से होता हुआ समाज , व्यवहार , संस्कृति और अंत में साहित्य पर अपनी छाप छोड़ रहा हैं। अगर देखा जाये तो बीते हुये समय में जिस तरह तानाशाही ताकतों और सवर्णवादी शक्तियों ने अपनी बेजा हरकतों से दुनिया में बदलाव और विकास के नाम पर विध्वंस का तांडव रचा है, वह बेहद चिंताजनक है। संयुक्त सोवियत रूस के विघटन के बाद वैश्विक शक्ति के नाम पर शेष एक मात्र देश अमेरिका में पिछले समय में हुए राष्ट्रपति के चुनाव पूर्व , चुनावों के दौरान और अब जिस तरह का माहौल बदला है वह बहुत मायने रखता है। अमेरिका की नीतियों से

आलोक झा को 2017 का भारतीय ज्ञानपीठ का युवा लेखक पुरस्कार

आलोक झा को 2017 का भारतीय ज्ञानपीठ का युवा लेखक पुरस्कार  ये है श्रीमान आलोक झा जो इन दिनों नवोदय विद्यालय, एर्नाकूलम , केरल में हिंदी के पी जी टी है और भले से आदमी है. मूल रूप से सहरसा, बिहार के रहने वाले है और बड़े पढ़ाकू और होशियार है - दिल्ली से पढ़े है इसलिए यह तो कह ही सकता हूँ. सच्चा और निश्छल प्रेम क्या होता है इनसे सीखना चाहिए - इसमें कोई शक नही है. बात बहुत पुरानी है एक बार दिल्ली गया था शायद 2003 में - इंडिया हेबीटेट सेंटर में रुका था, मै भयानक बीमार पड़ गया तो होटल में देखभाल करने वाला कोई था नही. एक मित्र को फोन किया तो उसने कहा कि रुको किसी को भिजवाता हूँ, एकाध घंटे में झोला टाँगे एक युवा बल्कि किशोर चला आया और बोला "जी सर क्या हुआ आपको, हम ले चलते है डाकटर के पास " ले गया एक अभिभावक की तरह से और ले भी आया सम्हालकर होटल में, फिर दवा दिलवा कर वो चला गया. बात आई गई हो जाती पर दोस्ती और स्नेह की ऐसी गाँठ बाँध गया कि आज तक ससुरी टूटती ही नही फिर तो दिल्ली जाना हो और इनसे ना मिलें तो गजब हो जाए. दिल्ली में इनकी पढाई जब तक चलती रही ये मियाँ मकान दर मकान बदलते

Posts of III Week Dec 2017

"मैं मोबाइल नही रखता" - मैंने कहा। "अजीब आदमी हो तो सम्पर्क कैसे करूँगा" उसने भयभीत होकर पूछा मैं बोलता रहा - "पता नही इन दिनों मैं खुद अपने संपर्क में नही हूँ और जिस दिन संपर्क होगा या तुम्हारी भाषा में कहूँ कि कवरेज में आऊंगा तो जग जाहिर हो जाऊंगा और वायवीय भी - इसलिए डरता हूँ। अपना मोबाइल मैं उस दिन गंगा किनारे घूमते हुए मणिकर्णिका घाट पर फेंक आया था और यकीन मानो मेरा सब कुछ तिरोहित और विलोपित हो गया। बैंक, संपर्क, मेरे खाते, मेरा नेटवर्क, रिश्तेदार, दोस्त और सबसे महत्वपूर ्ण मेरे सारे पासवर्ड। अब मैं खुला हूँ और किसी भी तरह से आंकड़ों के जाल में उलझकर पासवर्ड्स की दुनिया को बोझ की तरह से जीना नही चाहता" मैं चला आया हूँ वहां से अभी - उसे अचकचा सा छोड़कर और यहाँ इस उजाड़ में जहां धूप बहुत कम आती है, में नीम के नीचे हरी कच्च तीखी खुशबू वाली कच्ची निम्बोलियाँ ढूंढ रहा हूँ। विश्वास है कि कड़वाहट के भीतर भी फूल, बीज और अंत मे फ़ल आ ही जाते है अक्सर! बस उसी का इंतज़ार करूँगा, मौसम का क्या है गुजर ही जायेगा !!! हरी घास पागलों की तरह हंस रही थी, जो कुछ

Meeting Padmanabh Upadhyay at Banglore Airport on 5 Dec 2017 at 2 am.

रात को दो बजे के आसपास जब आप अकेले हो एयरपोर्ट पर एक फोन आये, साथ ही प्यार भरी एक मीठी सी जादू की झप्पी अपनत्व ,सम्मान और स्मृतियों के साथ मिलें और एक खूब बड़ी बढ़िया सी विदेशी चॉकलेट भी बोनस में - तो इससे बड़ी खुशी दुनिया में कोई हो सकती है क्या ? पर दोस्ती की दुनिया मे ही यह सम्भव है। पदमनाभ उपाध्याय से परिचय फेसबुक के माध्यम से ही हुआ था। चित्रकूट के रहने वाले है। जब पढ़ रहे थे तो खूब बातचीत और फेसबुक पर वाद विवाद होता था। मजा आता था इस युवा होते किशोर के साथ वाद करने में। जब  मैं लखनऊ में नौकरी करने गया तो एक बार हड़बड़ी में हम मिलें और खूब देर तक बातें करते रहें। बाद में कुछ गड़बड़ी में मेरे बहुत सारे दोस्त डिलीट हो गए थे - उनमें से एक ये भी थे। अभी बहुत मित्रो को खोज खोज कर जोड़ रहा हूँ क्योकि ये सब मेरी ताकत है। आज  Prakalpa Sharma  भी सौभाग्य से मिल गए। आज अभी मेरा अपडेट देखकर पदमनाभ ने पूछा कि मैं भी एयरपोर्ट पर हूँ क्या मिलें, दुर्भाग्य से मैं अंदर लाउंज में आ गया था और ये बन्दा थाईलैंड, मकाऊ, हांगकांग की यात्रा कर लौटा था और बाहर हो गया था। दौड़कर पहुँचा मैं गेट पर और

"तुम्हारी सुलू" का टैक्स फ्री होना जरुरी 21 Nov 2017

"तुम्हारी सुलू" का टैक्स फ्री होना जरुरी _______________________________ कल जब फिल्म देखकर लौटे तो मनीष ने कहा कि घर चलकर एक कप चाय पीते है, इस ठन्डे मौसम में और बेहद ठंडी फिल्म देखकर एक कप चाय तो बनती है ना, घर जाते ही मनीष की पत्नी शक्ति ने ही जाते पूछा कि भैया फिल्म कैसी है "तुम्हारी सुलू " , तो मै दो मिनिट के सोच में पड़ गया कि क्या कहूं....... मेरी जानकारी में भारतीय फिल्म इतिहास में संभवतः पहली फिल्म होगी जिसमे एक भारतीय पत्नी पति को कहती है "सुनो पाँव दुःख रहे है , ज़रा दबा दो ना" और पति बनें मानव कौल बहुत सहज भाव से पत्नी के पैरों की हलके से मालिश करने लगते है. यह फिल्म का वह टर्निंग बिंदु है जो पूरी फिल्म का आगाज़ है और धीरे धीरे जेंडर, स्त्री अस्मिता, मायाजाल, बाजार, घर, परिवार, समाज, रिश्तेदारी, अपार्टमेन्ट की दुनिया, स्त्रियों का गिल्ट और स्त्री स्वतन्त्रता के बदलते मायने, रेडियो जैसे उपेक्षित माध्यम का एक ताकतवर माध्यम में उभरना और समाज के घटिया या निम्न वर्गीय चरित्रों का चित्रण आदि के बीच बच्चों की वाजिब चिंताएं और सरोकार

कवि कुँवर नारायण जी को सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि 16 नवम्बर 2017

हिंदी के महत्त्वपूर्ण और वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण हमारे बीच नहीं रहे। विनम्र श्रद्धांजलि। जन्म : 19 सितम्बर 1927 अवसान : 15 नवम्बर 2017 'कहीं कुछ भूल हो कहीं कुछ चूक हो कुल लेनी देनी में तो कभी भी इस तरफ़ आते जाते अपना हिसाब कर लेना साफ़ ग़लती को कर देना मुआफ़ विश्वास बनाये रखना कभी बंद नहीं होंगे दुनिया में ईमान के ख़ाते।'' 19 सितम्बर 1927 को जन्मे हिंदी के विलक्ष्ण कवि कुंवर नारायण का छः माह कोमा में रहने के बाद शान्ति से गुजर जाना स्तब्धकारी है. हिंदी कविता के एक मात्र ऐसे कवि है जो चेतना से लबरेज और मनुष्यता से परिपूर्ण है. मुक्तिबोध के युग के महत्वपूर्ण हिंदी के कुंवर नारायण जितने सहज जीवन में है उतने ही सहज कविता में भी है, उनकी कविता मनुष्य के जीवन की सरल कविता है जो अपने आसपास के शब्दों, बिम्ब और उपमाओं से भरकर वे एक ऐसा वितान रचते है मानो कवि ने शब्दों के भीतर ही थाह पा ली हो. अपने संकलन वाजश्रवा के बहाने से चर्चा में आये इस कवि ने समकालीन हिंदी कविता में नये प्रयोग किये और कविता को बहुत बारीकी से बुनते हुए आम जन तक पहुंचाया, इस