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Showing posts from September, 2023

Drisht Kavi Posts from 21 to 29 Sept 2023

  तथाकथित साहित्य एवं कलाजगत के 99.9% लोग इसलिये पैदा हुए कि अपने आलेख, कहानी, कविता, उपन्यास, अपने चित्र, अपने रेखांकन और अपनी सड़ी -गली पुरानी किताबें कब कहाँ छपी या आई इसे शेयर करते रहें, या उन्हें किस नत्थूलाल या किस चमन सुतिये ने सम्मानित किया - के फोटो पेलते रहते है - इतना कि आदमी मरते समय लकड़ी और उपलों के बोझ बिना ही जलकर मर जाये बहुत सारे वाट्सअप समूहों में देख रहा हूँ कि कुछ लिखने - पढ़ने या किसी की बात को समझे बिना ही अपना 24 घण्टे का कचरा समूहों में यूँ ठेल देते है - जैसे सुबू मोदी जी की गाड़ी में लोग फेंकते है ना "गाड़ी वाला आया जरा कचरा निकाल" की टेर सुनकर बाहर निकल आते है लोग घर भर का कूड़ा लेकर #दृष्ट_कवि *** "क्यों बै ये क्या भेजा तूने 287 लोगों के नाम वाला पर्चा, साले घर में नही थे हम लोग तो कुछ भी फेंक जायेगा" - लाईवा को फोन किया अभी "अरे नही भैयाजी, वो एक सम्मान समारोह का आमंत्रण है - फालोअड बाय कवि गोष्ठी, आप जरूर आईयेगा" - उधर से कर्कश स्वर में लाईवा था "किसका सम्मान है, कवि कौन है और आयोजक - प्रायोजक कौन है, बता दें फोन पर इतना समय न

“लोहे का बक्सा और बंदूक” कहानी के विकास का पाठयक्रम" Mithilesh Priyadarshi Post of 29 Sept 2023

  “लोहे का बक्सा और बंदूक” कहानी के विकास का पाठयक्रम झारखण्ड देश का एक आदिवासी बहुत राज्य है जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, इस राज्य में 32 प्रकार की आदिवासी जनजातियों वाले विभिन्न आदिवासी समुदाय रहते है, जिनमे गौंड प्रमुख है. इसके अलावा असुर, बंजारा, बाथुडीबेड़िया, भूमिज, बिंझिया, बिरहोर, उरांव, सरना, मुण्डा से लेकर अनेक जनजातिया है जो प्रकृति की गोद में रहकर अपना जीवन बसर कर रही है. झारखण्ड राज्य बिहार से अलग होकर 15 नवम्बर 2000 को स्वतन्त्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था. आज झारखंड बहुत तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर है. 24 जिलों में फैला और पहाड़ो चट्टानों और हरे भरे जंगल से आच्छादित यह प्रदेश अनूठा है. मेरा ख्याल है झारखण्ड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां आज भी 35 से ज्यादा लोक भाषाओं की पत्रिकाएँ निकलती है और लोग खरीद कर पढ़ते है, इस राज्य में बहुत घूमा हूँ तो यह भी समझ आता है कि बोलियाँ और संस्कृति लोगों ने सहेज कर रखी है अभी तक. हम लोग जो ग्रामीण और विशेषकर आदिवासी इलाकों से वाकिफ नहीं है उनके लिए किसी क्षेत्र को जानने समझने का एक मात्र माध्यम लिखा हुआ ही होता है फिर वो प्रिं

Meer Singh's Post of 18 Sept 2023

1970 में आयी सत्यजीत रे की फिल्म प्रतिद्वंदी का यह सीन किसी फिल्म में फिल्माए गए इंटरव्यू का एक क्लासिकल सीन है। सिद्धार्थ नाम का एक नौजवान अपने पिता की मृत्यु के पश्चात मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ अपने घर का खर्च उठाने के लिए नौकरी की तलाश में काफी जगह इंटरव्यू देने जाता है। किसी भी नौजवान के लिए इंटरव्यू एंजाइटी प्रोवोकिंग होता है एक अदद नौकरी के लिए सड़क और बस में भीड़ के बीच सफर करते उस नौजवान के लिए भीड़ एक डर बन जाती है ।अनेक प्रश्नवाचक सर्वनामों से युक्त सवाल नौकरी खोजते परीक्षार्थी की दुनिया के सबसे भयावह वाक्य होते हैं। सिद्धार्थ बोटैनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है।इंटरव्यू बोर्ड के एक सदस्य का सवाल होता है कि तुम्हारे हिसाब से पिछले दशक की सबसे महत्वपूर्ण घटना कौन सी है? सिद्धार्थ तुरंत उत्तर देता है, कि वियतनाम के लोगों का अमेरिका के विरुद्ध संघर्ष इस दशक की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी,और चांद पर मनुष्य की लैंडिंग? बोर्ड के सदस्य पूछता है.. सिद्धार्थ स्पष्टीकरण देता है वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वो भी काफी महत्वपूर्ण घटना थी किंतु चंद्रमा पर मानव का कदम र

Anuradha Singh's Story Review, Vaidhya's theft, Drisht Kavi, Kuchh Rang Pyar ke - Posts of 15 to 17 Sept 2-23

  क्या आपने बलराज साहनी की फ़िल्म "अनुराधा" देखी है जिसमें एक डॉक्टर है और उसकी उपेक्षिता पत्नी जो दिन रात घर मे लगी रहती है, अपने से ज़्यादा पति को प्यार करने वाली अनुराधा कुशल, हुनरमंद और दक्ष है पर घर में मात्र पत्नी है ; गृहस्थी सम्हालते हुए वह सब कुछ घर सँवारने और बचाने में लगा देती है, और फिर एक दिन दोनो में खटपट होती है, वह घर छोड़कर अगली सुबह जाने वाली है और उसके डॉक्टर पति का बॉस उसके प्रयोग देखने सुदूर गाँव आ जाता है तो देखता है कि पत्नी की आँखें बहुत कुछ कह रही है और फिर एक अप्रतिम गीत लीला नायडू गाती है और डॉक्टर का बॉस डॉक्टर को समझाता है, अगली सुबह शंका - कुशंका के बीच जब वह उठकर देखता है तो वही रूपवती पत्नी आँगन बुहार रही होती है, बहरहाल, यह अचानक याद आ गई फ़िल्म इसलिये लिख दिया - क्योंकि कुशल, दक्ष, निपुण और समर्थ रचनाकार अनुराधा सिंह की बात मैं यहां कर रहा हूँ - जिनकी कहानी "हंस के सितंबर अंक" में आई है Anuradha Singh ने कल अपनी कहानी की चर्चा की थी तो मैंने हँस की साइट से यह कहानी डाउन लोड की और पढ़ी - क्योकि आजकल हँस मिलता नही है दुकानों पर, चंदा भरो

Posts of 13 and 14 Sept 2023

  इधर Artificial Intelligence -AI, पर कुछ वीडियो देखें, कुछ लोगों से बात की, कुछ लोगों के यहाँ - वहाँ प्रवचन सुनें - जो उन्होंने वाट्सएप्प और फेसबुक से लेकर यूट्यूब पर शेयर किए थे सब एक ही बात कह रहे कि "बहुत खतरा है AI से , मेरी बात सुनिये जो मैंने अलाना - फलाना प्रवचन में बच्चों, युवाओं और बेहद मक्कार किस्म के अनपढ़ और कॉपी पेस्ट माड़साब लोग्स के बीच कही है" मैंने कहा - "और जो भयंकर - भयंकर नाम और वेब साइट्स के सन्दर्भ दिए वो तो पहले से सबको मालूम है, तुम कॉपी पेस्ट कर आ गए वहां" दो - चार को मैंने पूछा कि - "गुरू ये बताओ कि 99 % प्रवचन तो तुम्हारी पुरानी परिकल्पनाओं, पूर्वाग्रहों और उजबक किस्म की ज्योतिषीय भविष्यवाणियों से भरा पड़ा है और ये सब बकवास जो तुम उन निरीह लोगों को पेलकर आये हो तो इस सबमें AI कहाँ है" सब ससुरे एक बात से शुरू करते है कि दक्षिण भारत के किसी चैनल ने एक दलित सुंदर लड़की को एंकर बना दिया है और अब यह खतरा है और फिर शुरू हो जाते है - अपनी व्यक्तिगत भड़ास, बॉस से पंगे, सहकर्मियों की खटपट और घरेलू मुद्दों से जुड़े मुआमले, शोषण, कम तनख्वाह और न

Post of Dr Govind Madhav on 14 Sept 23 Hindi Day

  आज चर्चा भाषा से सम्बंधित कुछ आधारभूत आंकड़ों की. प्रस्तुत आंकड़े ‘एथनोलोग- लैंग्वेज ऑफ़ वर्ल्ड’ नामक वार्षिक पत्रिका जो कि दुनिया की सबसे भरोसेमंद जीवित भाषाओँ की डायरेक्टरी बनाती है उसके 2023 के अंक से लिए गए हैं. सिर्फ भारत ही ऐसा देश नहीं जहाँ भाषाई विविधता इतनी अधिक है. दुनिया में हैं 240 देश (आधिकारिक तौर पर 195) और कूल 6809 भाषाएँ हैं. उससे कई गुना ज्यादा हैं उपभाषाएं और बोलियाँ. अकेले पपुआ न्यू गिनी में 840 जीवित भाषाएँ हैं. इंडोनेशिया (707) और नाइजीरिया (517) के बाद भारत (447) चौथे स्थान पर है. अफ्रीकन कबीले अपनी अलग अलग भाषा और बोली लिए घूमते हैं. बात अफ्रीका की क्यों, अकेले झारखंड में आदिवासियों की ही कुडुख, हो, संथाली, मुंदरी, खड़िया, खोरठा इत्यादि दर्जनों अलग अलग भाषाएँ हैं. नार्थ ईस्ट प्रदेश तो खैर अपनी भाषाई विविधता का एक गुल्दाश्ता ही है. कई भाषाएँ यद्यपि स्वतंत्र भाषा के रूप में चिन्हित हैं, लेकिन हैं एक ही भाषा के अपरूप. उदाहरण के लिए ‘अवधी’ और ‘ब्रज भाषा’ में मामूली सा जो फर्क है, लैटिन से उत्पन्न अन्य भाषाओँ में भी उतना ही फर्क है. और यह फर्क एक सतत प्रक्रिया के तहत द

Khari Khari, Teacher's Day and other Posts of 5 to 7 Sept 2023

  कहते है पुराने दोस्त पुरानी शराब की तरह होते है, भले बरसों ना मिलें पर एक ताज़गी और उत्साह से भर देते है जब दो घड़ी ही बात हो जाये तो कल Shabnam Aziz Khaled का जयपुर से फोन आया तो कुछ गुत्थियां सुलझा रहा था, मायूस था पर दस मिनिट बात हुई तो मज़ा आ गया, आज सुबह से कुछ लिख रहा था जल्दी उठकर दो फ़ीकी चाय हो गई थी थोड़ी देर छत पर टहलने लगा तो बगिया में सुर्ख खिलें गुड़हल पर नज़र पड़ी तो Srilakshmi Divakar की अचानक याद आई , आराधना जी से लेकर विनीता और ना जाने कौन - कौन याद आये - हम सब एक वृहद परिवार है और सारे लड़ाई - झगड़ो और विचारों में भिन्नता के बाद आज एक है, काम को लेकर सबकी साझा समझ है और बदलाव के लिये प्रतिबद्ध है इस समय में हम सब लम्बी लड़ाई लड़ रहे है, अपने निजी जीवन में हम सब कड़ा संघर्ष कर यहाँ तक आये है एक पारदर्शी साफ समझ और इरादों के साथ मैं - मप्र, शबनम - राजस्थान, श्रीलक्ष्मी - कर्नाटक राज्य के क्रमशः राज्य समन्वयक थे एक अमेरिकन फंडिंग एजेंसी में और महिला जनप्रतिनिधियों के साथ जमकर दुस्साहस और धमाल के साथ ढेरों काम करते थे, आये दिन देशी - विदेशियों के सैलाब उमड़े पड़े रहते थे काम देखने

Mrityu Katha and Other Posts of 1 to 3 Sept 2023

  विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं की कुछ पंक्तियां "जीवन इसी तरह का जैसे स्थगित मृत्यु है जो उसी तरह बिछुड़ा देती है, जैसे मृत्यु" और "जो लगातार काम से लगे हैं मैं फुरसत से नहीं उनसे एक ज़रूरी काम की तरह मिलता रहूंगा। इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह सबसे पहली इच्छा रखना चाहूंगा" *** आधे - अधूरे ••••• कल इंदौर के लिये हम तो समय पर निकले थे फ़िल्म देखने, परन्तु ऐसा ट्रैफिक जाम था कि हम फ़िल्म देखने समय पर पहुंच ही नही पायें बहरहाल, आख़िर के लगभग 48 मिनिट ही देख पायें और जो भी देखा वो बहुत बढ़िया, प्रेरणा देने वाला और हर हिसाब से एकदम सम्पूर्ण था - कही कुछ कमी पेशी नज़र नही आई फ़िल्म के अंत में बाहर जिस तरह का उत्साही पारिवारिक माहौल था - उसकी कल्पना मुश्किल थी, इतना जोश, बधाइयां और तमाम तरह के सार्थक कमेंट्स , परिचित लोग जो अरसे बाद दिखें और मिलना - जुलना इस शाम को ऐतिहासिक बना गया सुधांशु और उनकी टीम को हार्दिक बधाई, Sonal के लिखें गीतों की गूंज रात भर कानों में बजती रही, पर दोबारा पूरी फ़िल्म देखने पर ही सम्पूर्ण रूप से समझ आयेंगे गीत - खेल पर फ़िल्म और उसमें गीत लिखना जोख