Skip to main content

Drisht Kavi Posts from 21 to 29 Sept 2023

 तथाकथित साहित्य एवं कलाजगत के 99.9% लोग इसलिये पैदा हुए कि अपने आलेख, कहानी, कविता, उपन्यास, अपने चित्र, अपने रेखांकन और अपनी सड़ी -गली पुरानी किताबें कब कहाँ छपी या आई इसे शेयर करते रहें, या उन्हें किस नत्थूलाल या किस चमन सुतिये ने सम्मानित किया - के फोटो पेलते रहते है - इतना कि आदमी मरते समय लकड़ी और उपलों के बोझ बिना ही जलकर मर जाये

बहुत सारे वाट्सअप समूहों में देख रहा हूँ कि कुछ लिखने - पढ़ने या किसी की बात को समझे बिना ही अपना 24 घण्टे का कचरा समूहों में यूँ ठेल देते है - जैसे सुबू मोदी जी की गाड़ी में लोग फेंकते है ना "गाड़ी वाला आया जरा कचरा निकाल" की टेर सुनकर बाहर निकल आते है लोग घर भर का कूड़ा लेकर
***
"क्यों बै ये क्या भेजा तूने 287 लोगों के नाम वाला पर्चा, साले घर में नही थे हम लोग तो कुछ भी फेंक जायेगा" - लाईवा को फोन किया अभी
"अरे नही भैयाजी, वो एक सम्मान समारोह का आमंत्रण है - फालोअड बाय कवि गोष्ठी, आप जरूर आईयेगा" - उधर से कर्कश स्वर में लाईवा था
"किसका सम्मान है, कवि कौन है और आयोजक - प्रायोजक कौन है, बता दें फोन पर इतना समय नही कि इन जिला बदर लोगों की लिस्ट बाँचता रहूँ मैं" - झल्लाया उस पर
"ज्जि - ज्जि, 87 का सम्मान है, 195 का काव्य पाठ है और बाकी पांच स्थानीय आयोजक और प्रायोजक हैं, आप कहें तो आपका नाम भी काव्य पाठ में लिखवा दूं" - लाईवा चरम पर था
"कैसे" - मैं हैरान था
"मतलब अपने मोहल्ले वाले ही है - जो पूरा आयोजन कर रहे हैं, कल हमने ठेका लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, लिंकड़लन, और स्नैपचैट पर भी एक सड़ेले आलू टाईप कवि का जन्मदिन मनवा दिया, करीब 100 - 200 लोगों को ₹ 500 भेजे थे कि इस कवि का फोटो, कही से भी कॉपी पेस्ट, दो-चार सड़ी - गली कविताएं चैंपकर जन्मदिन की बधाई लिख देना और किसी भाट - चारण या हिंदी के मास्टर से स्तुति गान करवा देना, अब आप कहें तो आपका भी नाम इस काव्य गोष्ठी में रखवा देते हैं"
"कौन पढ़ेगा इत्ते नामों में साला" - मैं बोला
"अरे, बोल्ड इटैलिक रेड फॉन्ट में 22 की साइज़ में कर देंगे तो लोगों को पढ़ने में आ जाएगा, बाकी तो क्या है ना भैया जी - इतने नाम कौन पढ़ता है, आजकल हर गली - मोहल्ले में तो कवि गोष्ठी हो रही है, इसलिए हमने सोचा कि पहले सम्मान समारोह रखते हैं उसके बाद रातभर काव्य गोष्ठी - सुबह के 8 तो वैसे ही बज जाएंगे, चाय पोया खाकर घर चले जाना, ही ही ही ही ही ही ही ही" - लाईवा का जवाब था
मैं उस कवि को खोज रहा जो ससुरा प्रशंसा का भूखा है

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...