तथाकथित साहित्य एवं कलाजगत के 99.9% लोग इसलिये पैदा हुए कि अपने आलेख, कहानी, कविता, उपन्यास, अपने चित्र, अपने रेखांकन और अपनी सड़ी -गली पुरानी किताबें कब कहाँ छपी या आई इसे शेयर करते रहें, या उन्हें किस नत्थूलाल या किस चमन सुतिये ने सम्मानित किया - के फोटो पेलते रहते है - इतना कि आदमी मरते समय लकड़ी और उपलों के बोझ बिना ही जलकर मर जाये
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"क्यों बै ये क्या भेजा तूने 287 लोगों के नाम वाला पर्चा, साले घर में नही थे हम लोग तो कुछ भी फेंक जायेगा" - लाईवा को फोन किया अभी
"अरे नही भैयाजी, वो एक सम्मान समारोह का आमंत्रण है - फालोअड बाय कवि गोष्ठी, आप जरूर आईयेगा" - उधर से कर्कश स्वर में लाईवा था
"किसका सम्मान है, कवि कौन है और आयोजक - प्रायोजक कौन है, बता दें फोन पर इतना समय नही कि इन जिला बदर लोगों की लिस्ट बाँचता रहूँ मैं" - झल्लाया उस पर
"कैसे" - मैं हैरान था
"मतलब अपने मोहल्ले वाले ही है - जो पूरा आयोजन कर रहे हैं, कल हमने ठेका लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, लिंकड़लन, और स्नैपचैट पर भी एक सड़ेले आलू टाईप कवि का जन्मदिन मनवा दिया, करीब 100 - 200 लोगों को ₹ 500 भेजे थे कि इस कवि का फोटो, कही से भी कॉपी पेस्ट, दो-चार सड़ी - गली कविताएं चैंपकर जन्मदिन की बधाई लिख देना और किसी भाट - चारण या हिंदी के मास्टर से स्तुति गान करवा देना, अब आप कहें तो आपका भी नाम इस काव्य गोष्ठी में रखवा देते हैं"
"कौन पढ़ेगा इत्ते नामों में साला" - मैं बोला
"अरे, बोल्ड इटैलिक रेड फॉन्ट में 22 की साइज़ में कर देंगे तो लोगों को पढ़ने में आ जाएगा, बाकी तो क्या है ना भैया जी - इतने नाम कौन पढ़ता है, आजकल हर गली - मोहल्ले में तो कवि गोष्ठी हो रही है, इसलिए हमने सोचा कि पहले सम्मान समारोह रखते हैं उसके बाद रातभर काव्य गोष्ठी - सुबह के 8 तो वैसे ही बज जाएंगे, चाय पोया खाकर घर चले जाना, ही ही ही ही ही ही ही ही" - लाईवा का जवाब था
मैं उस कवि को खोज रहा जो ससुरा प्रशंसा का भूखा है
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