आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर सेमैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से
प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे....."सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सतना को भूले नहीं तुम " जो मैंने अपने पहले असफल प्रेम को लेकर लिखी थी कहाँ हो बिन्नी..............?????
ज्ञान- के अंधेरो से ......,हमें ज्ञान के उजाले की और ले चलो
असत्य की दीवारों से, हमें सत्य के शिवालो को और ले चलो
सारे जहाँ के सब दुखो का "एक ही तो निदान हैं"
या तो वह अज्ञान- हैं ....या तो वह अभिमान हैं
नफरतों के ज़हर से,प्रेम के प्यालो की और ले चलो
अज्ञान- के ....
हमके मर्यादा न तोडे "अपनी सीमा में रहे"
ना करे अन्याय और ना अन्याय औरो का सहे
कायरो से दूर हो,वीर ह्रदयवालो की और ले चलो
अज्ञान- के अंधेरो से हमें ज्ञान के उजालो की और ले चलो
असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो
अज्ञान- के ...........
प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे....."सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सतना को भूले नहीं तुम " जो मैंने अपने पहले असफल प्रेम को लेकर लिखी थी कहाँ हो बिन्नी..............?????
ज्ञान- के अंधेरो से ......,हमें ज्ञान के उजाले की और ले चलो
असत्य की दीवारों से, हमें सत्य के शिवालो को और ले चलो
सारे जहाँ के सब दुखो का "एक ही तो निदान हैं"
या तो वह अज्ञान- हैं ....या तो वह अभिमान हैं
नफरतों के ज़हर से,प्रेम के प्यालो की और ले चलो
अज्ञान- के ....
हमके मर्यादा न तोडे "अपनी सीमा में रहे"
ना करे अन्याय और ना अन्याय औरो का सहे
कायरो से दूर हो,वीर ह्रदयवालो की और ले चलो
अज्ञान- के अंधेरो से हमें ज्ञान के उजालो की और ले चलो
असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो
अज्ञान- के ...........
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