न सुपारी नजर आई न सरोता निकला
मां के बटुए से दुआ निकली वजीफा निकला
एक निवाले के लिए मार दिया जिसे मैंने
वह परिंदा कई रोज का भूखा...
तमाम शहर के हालात जान सकते हो,
मैं अपने चेहरे को अखबार करने वाला हूं
उम्मीद भी किरदार पर पूरी नहीं उतरी
ये शब भी दिले बीमार पर पूरी नहीं उतरी
क्या खौफ का मंजर था कल रात तेरे शहर में
सच्चाई भी अखबार पे पूरी नहीं उतरी..
पर कहां तू कहां और जिस्म कहां
एक चिडिया भी मीनार पे पूरी नहीं उतरी..
!!!! मुनव्वर राणा.. !!
न सुपारी नजर आई न सरोता निकला
मां के बटुए से दुआ निकली वजीफा निकला
एक निवाले के लिए मार दिया जिसे मैंने
वह परिंदा कई रोज का भूखा...
तमाम शहर के हालात जान सकते हो,
मैं अपने चेहरे को अखबार करने वाला हूं
उम्मीद भी किरदार पर पूरी नहीं उतरी
ये शब भी दिले बीमार पर पूरी नहीं उतरी
क्या खौफ का मंजर था कल रात तेरे शहर में
सच्चाई भी अखबार पे पूरी नहीं उतरी..
पर कहां तू कहां और जिस्म कहां
एक चिडिया भी मीनार पे पूरी नहीं उतरी..
!!!! मुनव्वर राणा.. !!
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