तो यही चाहिए कि हम सुबह या शाम को बात कर ले रात में में भी व्यस्त हो जाता हो और तुम्हे भी तकलीफ होती है और फ़िर देर तक उससे बातें करने के बाद मुझसे बातें करने की ना ताकत बचती होगी ना हिम्मत और फ़िर मेरे फालतू सवाल और अटपटे-उचबक से जवाब....बेहतर है रात खाली रखी जाए और सब कुछ ठीक रहेगा, रात बातचीत "अपनो से ही करना बेहतर होता है".ओह अब समझा कि क्यों आजकल सुबह शाम फोन आते थे इन दिनों............यही सही है ना उसने कहा तो में निरुत्तर हो गया क्या जवाब देता उसे बात तो सोलह आना सच थी, थक चुका था में बेमानी बातो से जिनका कोई ओर था ना छोर और फ़िर क्या मतलब......अब.....जाना भी तो है रैन गुजर रही है कल का सुहाना सूरज बस उग ही रहा है जीवन में........(मन की गाँठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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