जब अन्ना का नाम भी नहीं था इस देवास में, तब से कुछ लोग झोले उठाये शहर की फिजा बदलने चले थे एक खातेगांव से आया था ग्यारहवी फेल होकर, एक संघ से दीक्षित होकर, दो इश्क के मारे थे, एक घर से भागकर, एक लंबी चौड़ी पढाई करके, एक पंडिताई छोडके बाकी यही के थे बेरोजगार और भडभूंजे और फ़िर बढ़िया दूकान बनी थी जो सब करती थी ज्ञान विज्ञान से लेकर भजन-पूजन, देवास के लोग इनको चुतिया कहते थे कि ये लोग कहा छोटे शहर में कार्ल मार्क्स की बात करते है हेली के धूमकेतु की कहानी सुनाते है और जिले भर के मास्टरों की जमात जो साली होती ही हरामखोर और ट्यूशनबाज के भरोसे समाज में क्रान्ति लायेंगे पर एक बात तो थी ये चूतिये बात अक्ल की करते थे और पढ़े लिखे चूतिये इनकी बिरादरी में जाते और दरी उठाने का काम जरूर करते थे बाद में सब तो यहाँ वहा निकल गए और कुछ यही बस गए और जो इन्हें कुछ भी कहते थे वो आज चूतिये बने है और उस समय के चूतिये आज खा रहे है देश विदेश की मलाई और ना जाने क्या क्या, शहर तो नहीं बदला पर चुतियाई के अंदाज बदल गए है वामपंथियों के हौसले देश् भर में भजन पूजन से बुलंद हो चले है इसको कहते है असली चुतियापे. (देवास के चुतियापे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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