ये समय त्योहारों का है और साल का सबसे बड़ा त्यौहार जिसे दुनिया मानती है उस त्यौहार का जिसे तुम तो जी जाँ से चाहते हो, तो क्या तुम फ़िर भी नहीं मिल सकते क्या तुम फ़िर भी नहीं आ सकते क्या इस बार भी ऐसे ही निकल जाएगा सब कुछ सूना सूना ........कहा तो था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और फ़िर "सदा दिवाली संतन की" यह भी सुना था पर जब सारी दुनिया मस्ती और खुशियों में सरोबार हो, चेहरे पर मुस्कान हो, जेब में बजते सिक्को की खनक और मुँह में मिठास का चरम, दिमाग में शान्ति और जीवन के सर्वोच्च क्षणों में जीने का माद्दा तो फ़िर भी तुम कहोगे कि नहीं अभी तो संभव नहीं है.....तो फ़िर यह मत कहना आयेंगे अच्छे दिन भी, अगर इस मौसम में हम नहीं मिल पा रहे तो जीवन का क्या है बस ये तीज त्यौहार तो तुमसे है ना...फ़िर ......नहीं नहीं कुछ गडबड है, इसके बाद जीवन में कभी यह त्यौहार आएगा ही नहीं इस बात का मुझे पूरा भरोसा है.... में समझ नहीं पा रहा कि त्यौहार आ रहा है या तुम नहीं मिल रहे, कही गहरी बेचैनी तो जरूर है और यह कहा ले जायेगी में तो नहीं जानता वैसे भी इन दिनों......रात बहुत सर्द रहने लगी है और शाम का सूरज जल्दी ही कही चला जाता है बगैर पूछे , बताएं शफक पर भी एक मैली सी परत जमा हो जाती है में देख ही नहीं पा रहा लालिमा को, और फ़िर ये चाँद रात को बहुत सर्द करके सब कुछ अँधेरे में छुपा देता है कहा चला जाता है ....पता ही नहीं चलता इसका भी बोलो ना ये त्योहारों का मौसम है या रूठने मनाने का सिलसिला .....(मन की गाँठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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