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Showing posts from September, 2017

दो समसामयिक कवितायें Sept 2017

दो समसामयिक कवितायें  1 स्त्री के प्रेम से वंचित आदमी किसी का नहीं होता  ______________________________________ कैसे लौट गए तुम गाय भैंसों के व्यवसायिक मेले में भाषण देकर  तनिक भी धुंजे नहीं तुम एक बार भी नहीं पूछा कि ये क्यों हुआ ये भारत माता की लाडली लक्ष्मी बेटियों को   मां दुर्गा के आगमन पर क्यों पीटा इन लड़कियों को तुम्हारे ही लोग वहां है जहां सरस्वती का वास है वहीं लोग भारत माता के बहाने देवियों को पीट रहे है शैला मसूद हो या बनारस के गंगा घाट पर विराजित ये देवियां तुम्हे दिल्ली जाने की इतनी जल्दी क्या थी   क्यों एक बार भी गए नहीं झांकने भी   नरभक्षी कुलपति और पुलिस को लताड़ा नहीं तुम चुप हो कब से क्यों बोलते नहीं   पहलू खान, नजीब, जुनैद, अखलाख को मार दिया जब उना में दलितों को जिंदा जला दिया रोज जब दलित मर रहे है देश के गड्ढों में   जानते हो ना इन्हे भी संविधान में उतना ही हक है जीने का सम्मान और गरिमा के साथ जितना तुम्हे यहां मौत का हिसाब उन लंबी पंक्तियों का नहीं है जो एक अवसाद में ली गई अवस्था में किया था तु

Posts of III week of Sept 17 - BHU, My Democratic Values and other

हिंसा कहीं भी हो मै उसका विरोधी हूं, इंसान को कोई हक नहीं कि वह जाति धर्म के आधार पर किसी को मारें या गालियां दें। वंचित , दलित, आदिवासी और कमजोर के साथ हूं और इसमें कोई गलत नहीं है , आप उद्योगपतियों के, नेताओं और देश बेचने वालों के तलवे चाटे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता आपकी प्रतिबद्धता से। किसी भी तरह की तानाशाही के खिलाफ हूं क्योंकि हम भारतीय संविधान के फ्रेम वर्क में जीने के लिए जन्मे है और संविधान मुझे समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के मूल्य ही नहीं सिखाता बल्कि इन्हे अपने  जीवन में उतारने के लिए बाध्य भी करता है और यह भी कहता है कि मै अंधविश्वासों को मानने के बजाय वैज्ञानिक चेतना के प्रसार और प्रचार के लिए काम करूं। मै मानता हूं कि अस्तो मा सदगमय यानि शिक्षा अंधेरों से उजालों की ओर जाने का साधन है । सेक्युलर शब्द मेरे लिए आदर्श है क्योंकि यह संविधान में है, जो भक्त इस शब्द का उच्चारण कर सोचते है कि वे आहत कर रहे है उन्हें देश का संविधान पढ़ना चाहिए क्योंकि अगर वे संविधान की इज्जत नहीं कर सकते (जैसा भी है) तो उन्हें राष्ट्रवादी होने का कोई हक नहीं है। किसी भी धर्म और राज

Posts of Sept III Week 2017

साहित्य में कहानी,कविता, आलोचना या गद्य को समझना किसी की बपौती नहीं है और जो बैनर लगाकर समझाने या सुधारने का ठेका लिए बैठ गए है उनसे दरिद्र कोई नहीं है । चार कविता, दो कहानी लिखकर आप जो खुद को मठाधिश समझकर स्वयंभू खुदा बन बैठे है और फतवे जारी करने का उपक्रम कर रहे है ना इसका नुकसान और को तो नहीं आपको ज्यादा हो रहा है। कहानी, कविता या आलोचना का कोई फ्रेम नहीं होता ना ही कोई क्रमबद्ध फार्मूला पर आप जिस तरह से अपनी समझ से कविता , कहानी और आलोचना पर जजमेंटल हो जाते हो और अपने को  श्रेष्ठता के पलड़े में भारी करके दूसरों को हल्का कर देते हो वह बहुत ओछापन ही नहीं वरन कष्टदायी भी है । बाज आ जाओ हे संदिग्ध साहित्यकार। जब अपनी प्रतिबद्धता और सरलता शंकित है तो दूसरों की स्थापनाओं पर सवाल उठाना और उन पर सवाल उठाने का अधिकार किसने दे दिया ? अपने विचारधारा के अनुरूप खुदा बन चुके आकाओं की ओर मत देखो, उनकी लल्लो चप्पों के लिए अपनी रचनात्मकता की बलि मत दो और उनको खुश रखने के लिए अपने लोगों को किसी वेदी पर बलि मत चढ़ाओं। यह याद रखना जरूरी है कि साहित्य किसी का पूर्ण कालिक पेशा नहीं है , यह

मेधा पाटकर - वापिस जाओ 17 Sept 2017

मेधा पाटकर - वापिस जाओ  __________________________ मप्र में अब किसी आंदोलन और जमीन पर काम करने वालों को अपना बोरिया बिस्तर उठा लेना चाहिए। मेधा पाटकर को भी, नया नारा हो मेधा पाटकर वापिस जाओ क्योंकि अब कोई अर्थ नहीं है जब सरकार, सत्ता और सुप्रीम कोर्ट भी आपके साथ नहीं, समझ नहीं, सरोकार नहीं और संवेदना नहीं और तथाकथित मध्यम वर्ग भी ना किसानों के साथ ना विस्थापितों के तो आप किसके लिए लड़ रहे है और जिनके लिए लड़ रहे है उनकी दो कौड़ी की औकात बनाकर रख दी सरकार ने तो, कोई अर्थ है ? नर्मदा आंदोलन को आधार बनाकर जिन लोगों ने अपनी दुकानें, व्यक्तिगत छबि बना ली और राजनीति से राजधानियों में पसर गए उनसे ही सीख लें मेधा ताई। और वो लोग जिनके सहारे पानी में और जेल में बैठकर 35 बरस हो गए वो लोग मुआवजा लेकर, उन्हीं लोगों को वोट देते रहें जो शोषक बनकर लगातार छल कर रहे है। मेधा को अपने आंदोलन के साथियों को भी अब विदा कहना चाहिए इस तरह कि उनके इगो हर्ट ना हो और आंख की शर्म भी दोनों तरफ से बची रहें। अपने दुनियाभर में फैले सपोर्ट समूह से वे माफी मांगे और फिर निकल लें धीरे से , कहीं बस जा

ये मेहनतकश औरतें 16 Sept 2017

ये मेहनतकश औरतें - 1 ____________________ नाम तो कभी जान ही नहीं पाए जिसने बचपन में सम्हाला हमें जान से ज्यादा   सिर्फ बाई कहते थे हम तीनो भाई उसे   मां हम तीनों को हवाले कर उसके   स्कूल चली जाती भेाैरांसा की लडकियां पढ़ाने   अपने स्कूल से आकर भी उसी के घर जाते क्योंकि घर में रहता नहीं कोई हमारे बाई के एक नहीं पांच बच्चे थे सब बराबरी के शाम को हम खाना खाते अपने डिब्बे से तो वे देखते रहते और अक्सर कह देते पेट भरा है बाई दिनभर काम करती घरों में यहां वहां श्यामू , लीलाधर , रेखा , सुमित्रा और लता पति क्या करते नहीं पता पर बीड़ी के धुएं से लथपथ एक ऊंचा पूरा आदमी उस कच्चे मकान में रहता था कुछ बदबू भी आती जिसे हम समझ नहीं पाते बाई काम करती और दोपहर आते समय कई बर्तनों में बचा खाना ले आती रोज और फिर सब बांटकर खा लेते सुमित्रा बड़ी थी और बाई तो मां थी उन सबकी अक्सर उनके हिस्से कुछ आता नहीं या बहुत कम , पानी जरूर था भरपूर उनके हिस्से में जो उन्हें काम करने की ताकत देता बाई को झिकते देखा , उस गली में सबकी हालत समान थी सबके पांच छह बच्चे होते , मर्द घर में पड़े रहत

राहुल गांधी की कांग्रेस ही मौजूदा परिस्थिति का ठोस विकल्प है. 13 Sept 2017

राहुल गांधी की कांग्रेस ही मौजूदा परिस्थिति का ठोस विकल्प है.  जो लोग अक्सर कहते है कि विकल्प क्या है ? कल जवाब मिल गया है देश को और अब तक ट्रोल की तरह से बदनाम करने वालों के होश भी ठिकाने आए है। राहुल गांधी विकल्प हो सकते है मौजूदा घृणा की घटिया राजनीति के। क्षेत्रीय पार्टियों में दम नहीं है और गठबन्धन में नीतीश जैसे सांप है और वामपंथी तो कभी भी सत्ता में नहीं आ सकते इस तरह की परिस्थितियों में राहुल ही एकमात्र विकल्प है। जिस अंदाज में झूठे वादे करके मोदी सत्ता में आए और वो मन्दिर का मुद्दा हो, कशमीर का, पाकिस्तान का, या कुछ और। जिस अंदाज में तीन सालों से देश से लालकिले पर खड़े होकर झूठ बोल रहे है, इस साल नोट बन्दी के गलत आंकड़े पेश किये और गलतफहमी पैदा की। अपने विपक्ष को जिस अंदाज में बेइज्जती करते है और तानाशाही करके आवाज दबाने की कोशिश करते है आम लोगों की ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के लोगों की भी वह चिंतनीय नहीं है ? सिर्फ अंबानी और अदानी को फायदा पहुंचाने को जिस तरह से विज्ञापन करने से लेकर पाकिस्तान तक यात्रा कर आते है वह उनकी पक्षधरता दर्शाता है, यह देश प

ये भक्ति का द्युतकाल है कबीरा 10 सितम्बर 2017

ये भक्ति का द्युतकाल है कबीरा ______________________ बहुतेरों ने गाया कबीर को बहुतेरों ने समझाया कबीर को ठेठ मालवे से मेवात तक के गवई मन ने अमेरिका से पाकिस्तान के लाहौर तक के बन्दे ने बेचा नही किसी ने कबीर को इतिहास में ऐसा कुछ लोग बाहर निकले और जहां गए बस गए कुछ लोग गोल गोल घूमे और गोल गोल करते रहें कुछ नदी नालों और हैंड पम्पों के किनारे बैठ गए जमुना को कल्पना में लाकर खुलकर दी चुनौती और इतना उम्दा गाया कि जी उठा कबीर ये मालवे के भोले लोग दिनभर की मेहनत के बाद शाम दो रोटी खाकर बीड़ी पीते गा बजा लेते थे मस्त होकर खूब गाते थे कबीर, घुस आए कुछ लोग, बेरौनक हो गया मालवे का सुरूर, इन्ही समाज के हाशिये के लोगों को हकालकर कबीर को ओढ़ लिया स्वांग की तरह चार सुरों से शुरू की दुकान और धँधा बना लिया साथ मे थे मूढ़मति व्यवस्था के हरकारे लुटाते रहे राजकोष इतना कि अभेद्य किले बना लिए इन्होंने परम्परा सिर्फ ओढ़ी बेची नही हस्तगत कर दी पीढ़ी को मालवे से मेवात, स्टेनफोर्ड से कराची में बिका खूब कबीरा जो वाचिक का सत्व था वो लक्ष्मी के बरक्स ठोस हो गया यात्रा में इकठ्ठे होते है ह

तोताबाला उर्फ अम्बर पांडेय की कविताएं 9 Sept 2017

तोता बाला ठाकुर को याद करते हुए, एक बार फिर. उसकी कविताएँ!  १ आओ अगली ट्रेन पकड़ के जितनी जल्दी हो सके चले आओ कीचड़ में लथपथ चढ़ी गंगा तैर मेघों पर पाँव रख रख कर आ जाओ आ जाओ देवदास की तरह मैंने खोल रखे है द्वार मैंने दे रखा है अपने स्वामी को विष तुम आओ निडर भूलना मत लाना बेल का फल और संखिए की पुड़िया। २ सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय व्योमकेश बक्शी की भाँति तुम तो भटकते रहे पूरे ग्लोब पर सत्य की खोज में प्रिय ऋषभ ब्रह्मो मैं अज्ञेय से करती थी प्रेम किंतु मेरे सोलह वर्ष की वय को प्राप्त करने से पूर्व वह सिधार गए उस कैशोर में मैं किसी विधवा सी रोती-कलापती रही हुबली के निर्जन घाट पर तुम ऊपर हावड़ा ब्रिज पर सोनागाछी की किसी श्याम स्त्री के संग बोईपाड़े में सिगरेट फूँकते शांख घोष के शब्दों से तुम करते रहे कॉलेज की उस गौरबरन बाला के कैथबरन निपल्ज़ का स्पर्श तुम्हारे रेखाओं में आया मुक्तिबोध की बीड़ियों का धूम्र और रतन थियम के नृत्य मेरे निकट क्या आया - आशापूर्णा देवी के उपन्यास दोपहरियों के मेघ और अज्ञेय के प्रति मेरा अंधप्रेम। ३ ब्रह्मप