मेधा पाटकर - वापिस जाओ
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मप्र में अब किसी आंदोलन और जमीन पर काम करने वालों को अपना बोरिया बिस्तर उठा लेना चाहिए।
मेधा पाटकर को भी, नया नारा हो मेधा पाटकर वापिस जाओ
क्योंकि अब कोई अर्थ नहीं है जब सरकार, सत्ता और सुप्रीम कोर्ट भी आपके साथ नहीं, समझ नहीं, सरोकार नहीं और संवेदना नहीं और तथाकथित मध्यम वर्ग भी ना किसानों के साथ ना विस्थापितों के तो आप किसके लिए लड़ रहे है और जिनके लिए लड़ रहे है उनकी दो कौड़ी की औकात बनाकर रख दी सरकार ने तो, कोई अर्थ है ?
नर्मदा आंदोलन को आधार बनाकर जिन लोगों ने अपनी दुकानें, व्यक्तिगत छबि बना ली और राजनीति से राजधानियों में पसर गए उनसे ही सीख लें मेधा ताई। और वो लोग जिनके सहारे पानी में और जेल में बैठकर 35 बरस हो गए वो लोग मुआवजा लेकर, उन्हीं लोगों को वोट देते रहें जो शोषक बनकर लगातार छल कर रहे है। मेधा को अपने आंदोलन के साथियों को भी अब विदा कहना चाहिए इस तरह कि उनके इगो हर्ट ना हो और आंख की शर्म भी दोनों तरफ से बची रहें। अपने दुनियाभर में फैले सपोर्ट समूह से वे माफी मांगे और फिर निकल लें धीरे से , कहीं बस जाए या डेवलेपमेंट स्टडी पढाएं या ए डी बी ज्वाइन कर लें - यहां अब हमको शांत रहने दें , बहुत हो गई नाटक नौटंकी !!!
मुझे याद है जब बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट बगैर जांच के और एफिडेविड पढ़े फैसला सुना दिया था और दूरदर्शन पर मेधा पाटकर रोई थी तब से आज तक क्या मिला जेल और असफलता के। सीखने के लिए नसीहत और नजीर बन जाने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन और मेधा एक बेहतरीन उदाहरण है। अब अच्छा यह होगा कि वो इन कमजर्फ लोगों को छोड़े और अन्य लोगों की तरह कहानियां सुनाए , लिखे , सेमिनार करें और घूमे फिरें ।
लोकतंत्र में लोक की कोई औकात नहीं और जब बहुमत देश की सत्ता और उद्योगपति , शहरी आबादी के भले और विकास के लिए हर नाजायज मांग का समर्थन करता है तो लगातार 35 वर्षों से एक ही जगह चिपककर रहना और हारी हुई लड़ाई लड़ने का कोई औचित्य अब नहीं है।
अब हमें नारा लगाना चाहिए मेधा पाटकर वापिस जाओ इसके अलावा इस बेशरम युग में मुझे कोई और नारा नजर आता नहीं। मै पूरे होशो हवास में यह कहकर मुतमईन हूं कि इससे घाटी में शांति आएगी, विकास होगा, समृद्धि आएगी और चार बड़े राज्यों के लोगों को भी सुख मिलेगा। राजनैतिक स्तर पर और कानूनी स्तर पर यह आंदोलन ख़तम है रहा सवाल प्रशासन और मुआवजे या विस्थापन का तो छनैरा भी बस ही गया, टिहरी भी डूब गया था, तवा, भाखड़ा बांध के उदाहरणों से सबक नहीं लिया था क्या ?
चलिए सो जाइए , आज मोदी जी के जन्मदिन को भारतीय इतिहास में याद किया जाएगा कि एक राज्य के चालीस हजार परिवारों का सत्यानाश करके देश के विकास में नया अध्याय रचने वाले लोग भी इस युग में है और अविकसित कौम की प्रतिनिधि मेधा पाटकर भी और उनके सारे वे सहयोगी जो अपने तर्क और बुद्धि से माकूल अवसर पर पदाचाप पहचानकर आंदोलन से निकल आए।
मेधा पाटकर वापिस जाओ।
तुझ से पहले जो इक शख़्स यहाँ तख़त नशीन था
उसको भी अपने ख़ुदा होने का इतना ही यक़ीन था
- हबीब जालिब
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