Skip to main content

मेधा पाटकर - वापिस जाओ 17 Sept 2017



मेधा पाटकर - वापिस जाओ 
__________________________

मप्र में अब किसी आंदोलन और जमीन पर काम करने वालों को अपना बोरिया बिस्तर उठा लेना चाहिए।

मेधा पाटकर को भी, नया नारा हो मेधा पाटकर वापिस जाओ
क्योंकि अब कोई अर्थ नहीं है जब सरकार, सत्ता और सुप्रीम कोर्ट भी आपके साथ नहीं, समझ नहीं, सरोकार नहीं और संवेदना नहीं और तथाकथित मध्यम वर्ग भी ना किसानों के साथ ना विस्थापितों के तो आप किसके लिए लड़ रहे है और जिनके लिए लड़ रहे है उनकी दो कौड़ी की औकात बनाकर रख दी सरकार ने तो, कोई अर्थ है ?
नर्मदा आंदोलन को आधार बनाकर जिन लोगों ने अपनी दुकानें, व्यक्तिगत छबि बना ली और राजनीति से राजधानियों में पसर गए उनसे ही सीख लें मेधा ताई। और वो लोग जिनके सहारे पानी में और जेल में बैठकर 35 बरस हो गए वो लोग मुआवजा लेकर, उन्हीं लोगों को वोट देते रहें जो शोषक बनकर लगातार छल कर रहे है। मेधा को अपने आंदोलन के साथियों को भी अब विदा कहना चाहिए इस तरह कि उनके इगो हर्ट ना हो और आंख की शर्म भी दोनों तरफ से बची रहें। अपने दुनियाभर में फैले सपोर्ट समूह से वे माफी मांगे और फिर निकल लें धीरे से , कहीं बस जाए या डेवलेपमेंट स्टडी पढाएं या ए डी बी ज्वाइन कर लें - यहां अब हमको शांत रहने दें , बहुत हो गई नाटक नौटंकी !!!
मुझे याद है जब बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट बगैर जांच के और एफिडेविड पढ़े फैसला सुना दिया था और दूरदर्शन पर मेधा पाटकर रोई थी तब से आज तक क्या मिला जेल और असफलता के। सीखने के लिए नसीहत और नजीर बन जाने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन और मेधा एक बेहतरीन उदाहरण है। अब अच्छा यह होगा कि वो इन कमजर्फ लोगों को छोड़े और अन्य लोगों की तरह कहानियां सुनाए , लिखे , सेमिनार करें और घूमे फिरें ।
लोकतंत्र में लोक की कोई औकात नहीं और जब बहुमत देश की सत्ता और उद्योगपति , शहरी आबादी के भले और विकास के लिए हर नाजायज मांग का समर्थन करता है तो लगातार 35 वर्षों से एक ही जगह चिपककर रहना और हारी हुई लड़ाई लड़ने का कोई औचित्य अब नहीं है।
अब हमें नारा लगाना चाहिए मेधा पाटकर वापिस जाओ इसके अलावा इस बेशरम युग में मुझे कोई और नारा नजर आता नहीं। मै पूरे होशो हवास में यह कहकर मुतमईन हूं कि इससे घाटी में शांति आएगी, विकास होगा, समृद्धि आएगी और चार बड़े राज्यों के लोगों को भी सुख मिलेगा। राजनैतिक स्तर पर और कानूनी स्तर पर यह आंदोलन ख़तम है रहा सवाल प्रशासन और मुआवजे या विस्थापन का तो छनैरा भी बस ही गया, टिहरी भी डूब गया था, तवा, भाखड़ा बांध के उदाहरणों से सबक नहीं लिया था क्या ?
चलिए सो जाइए , आज मोदी जी के जन्मदिन को भारतीय इतिहास में याद किया जाएगा कि एक राज्य के चालीस हजार परिवारों का सत्यानाश करके देश के विकास में नया अध्याय रचने वाले लोग भी इस युग में है और अविकसित कौम की प्रतिनिधि मेधा पाटकर भी और उनके सारे वे सहयोगी जो अपने तर्क और बुद्धि से माकूल अवसर पर पदाचाप पहचानकर आंदोलन से निकल आए।
मेधा पाटकर वापिस जाओ।

तुझ से पहले जो इक शख़्स यहाँ तख़त नशीन था
उसको भी अपने ख़ुदा होने का इतना ही यक़ीन था
- हबीब जालिब

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...