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Showing posts from July, 2017

काले बादलों में सुरों का क्रंदन - इतिहास में शास्त्रीय गायिका की मौत - 30 July 2017

काले बादलों में सुरों का क्रंदन - इतिहास में शास्त्रीय गायिका की मौत __________________________ 1 मरना तो सबको ही होता है क्योकि बचा कौन है अमरता का पट्टा कोई नही लिखाकर लाता आम लोग हो, कलाकार या अभिनेता याकि इतिहासकार बल्कि आम लोग बहुत धैर्य और शांति से मरते है   कलाकार या अभिनेता उत्तेजना में मौत से याचना करते है वो भी मर रही है ऐसे ही उत्तेजित होते हुए बगैर जाने कि बेगम अख्तर, शमशाद बेगम या गंगुबाई भी मरी होगी अभी किशोरी अमोनकर भी यूँही मरी थी यकायक देख रहा हूँ कि वो भी मर रही है ऐसे ही हर पल हर रोज जबसे उसने गाने के बजाय नकल को धँधा बना लिया यह बाजार का जमाना है जो हमारे घर मे घुस आया है यह अपने जन्मनाओं की कला को बेचने का समय है यह रागों को छोड़कर घराने बनाने का समय है रसिकों मौत से रुपया कमाकर कला की नुमाइश का समय हैे देख रहा हूँ कि शास्त्रीयता की आड़ में बिक रही है कला अब शास्त्रीयता का एक आवरण ओढ़े बाजार में है वह जहां उद्योगपति जाम लेकर सराहते है कला का मर्म अधिकारी पढ़ते है कविता बेहूदी सी वाहवाही के लिए

इंदु सरकार - मधुर भंडारकर की कमजोर फ़िल्म 29 जुलाई 17

इंदु सरकार मधुर भंडारकर की परिपक्व और गैर जिम्म्मेदार राजनीतिक समझ का भ्रूण है जो असमय "अबो्र्ट" हो गया । वे दरअसल में एक ढुलमुल किस्म की घटिया राजनीति को परोसकर दोनो दलों की थाली में करेला और कटोरी में गुलाबजामुन बने रहना चाहते है इसलिए वे मध्यम मार्ग अपनाकर वामपंथी भी होने की कोरी प्रतिबद्धता आखिर में इंदु के मुंह से अदालत में कहलवाना चाहते है और एक लिजलिजा अंत दिखाकर भारतीय जनमानस की जेब से रुपया भी बटोरना चाहते है। इमरजेंसी की पृष्ठभूमि में जेपी आंदोलन, विपक्ष और आक्रोश को दिखाने के बजाय वे सीधे संजय गांधी से शुरुवात करते है जो अप्रत्यक्ष रूप से नसबंदी का समर्थन कर एक विषाक्त बीज बो रहे है। पूरी फिल्म में वर्ग विशेष को टारगेट करके वे अपनी ओछी मानसिकता को भी प्रदर्शित करते है जो कि घातक है। वे हर दृश्य में एक एक फ्रेम रखते है जो किसी भी विचार या समझ को नही दिखाती है बल्कि वे एक पैरोनोएड फिलिंग की तरह से एक यथार्थ बुनने की कोशिश करते है जबकि वे अपने आप मे बहुत स्पष्ट है कि वे क्यों यह नरेटिव रच रहे है। मधुर असल मे इस फ़िल्म में कम से कम देश के वर्तमान हालातों को चो

पॉल ऑस्टर 27 July 2017

पॉल ऑस्टर तीन हफ्ते पहले मुझे अपने पिता की मृत्यु की ख़बर मिली। पिता के पास कुछ नहीं था। बीवी नहीं थी, कोई ऐसा परिवार नहीं था जो सिर्फ़ उन पर निर्भर हो। यानी ऐसा कुछ नहीं था, जो सीधे तौर पर उनकी अनुपस्थिति से प्रभावित हो। उनके न रहने का दुख होगा, कुछ लोगों को सदमा लगेगा, कुछ दिनों का शोक होगा और फिर ऐसा लगेगा, जैसे कि वह कभी इस दुनिया में थे ही नहीं। दरअसल, अपनी मृत्यु से काफ़ी पहले ही वह अनुपस्थित हो गए थे। लोग पहले ही उनकी अनुपस्थिति को स्वीकार कर चुके थे। उसे उनके होने के एक गुण की तरह मान चुके थे। अब जबकि वह सच में नहीं हैं, लोगों के लिए इसे एक तथ्य की तरह स्वीकार कर लेना कोई मुश्किल काम न होगा। पंद्रह साल से वह अकेले रह रहे थे। ऐसे, जैसे कि उनके आसपास की दुनिया का कोई अस्तित्व ही न हो। ऐसा लगता ही नहीं था कि उन्होंने इस धरती पर कोई जगह घेरी है, बल्कि वह इंसान के रूप में उस बक्से की तरह हो गए थे, जिसमें कुछ भी घुस नहीं सकता। दुनिया उनसे टकराती थी, कभी-कभी टकराकर टूट भी जाती थी, कभी-कभी टकराकर चिपक भी जाती थी, पर कभी उनसे पार नहीं हो पाई। पंद्रह साल तक वह एक आलीशान मक

प्राथमिक शिक्षा और भेदभाव की नीति 22 जुलाई 17 की पोस्ट

कल एनडीटीवी पर प्राइम टाइम पर मप्र के शाजापुर और आगर जिले में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की पोस्टमार्टम परक रपट देखकर बहुत दुख हुआ। प्रदेश में मैंने 1990 से 1998 तक बहुत सघन रूप से राजीव गांधी शिक्षा मिशन के साथ काम करके पाठ्यक्रम, पुस्तकें लिखना, शिक्षक प्रशिक्षण और क्षमता वृद्धि का कठिन काम किया था । अविभाजित मप्र में बहुत काम करके लगा था कि अब आगे निश्चित ही शिक्षा की स्थिति में सुधार होगा, इसके बाद कई स्वैच्छिक संस्थाओं में रहा, प्राचार्य के पदों पर रहा , फंडिंग एजेंसी में रहकर शिक्षा को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं को पर्याप्त धन उपलब्ध करवाया। राज्य योजना आयोग में रहकर भी प्राथमिक शिक्षा माध्यमिक शिक्षा और कालांतर में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा के लिए काम किया पर कल अपने ही राज्य में इस तरह से की जा रही लापरवाही और उपेक्षा देखकर मन खिन्न हो गया। ठीक इसके विपरीत केंद्र पोषित शिक्षा के भेदभाव भरे मॉडल। मुझे लगता है कि जिलों में स्थित केंद्रीय , नवोदय , उत्कृष्ट और मॉडल स्कूल एक तरह की ऐयाशी है और शिक्षा के सरकारी पूँजीवर्ग जो सिर्फ एक वर्ग विशेष को ही पोषित करते है। हालांकि यहां

Posts of 10 to 20 July 2017

जी मैं दलित हूँ - उसने कहा था घर मे घुसते ही। ओह वाओ, ग्रेट ! पर एक बात बताओ मित्र - कौन से दलित -मैंने वहॉ टोक दिया उसे ....... मायावती वाले,  कांशीराम वाले चन्द्रशेखर वाले जगजीवनराम वाले मीरा कुमार वाले  अम्बेडकर वाले ज्योतिबावाले मार्क्स वादी लेनिनवादी स्तालिनवादी नौकरी के लिए  प्रवेश के लिए  प्रमोशन के लिए  फेलोशिप लेकर हवाई जहाज में उड़ने वाले  अधिकारी बनकर सरनेम बदलने वाले  लोन लेकर हड़पने वाले  सरकारी योजनाओं को भकोसने वाले सबसीडी डकारने वाले वोट बैंक वाले  ऊना वाले  बुद्धिजीवी वाले  जे एन यू वाले  रोहित वेमुला वाले  फेसबुकिये शेर जो ब्राह्मणों को कोसते है दिनभर साहित्य में दिन रात दलित विमर्श वाले  विश्व विद्यालयों में सिर्फ बकर कर मोटी तनख्वाह वाले  एनजीओ टाईप कोरी भावुकता वाले  लेख, शोध और पर्चे लिखने वाले  महिला जेंडर और शोषण के वेब पोर्टल और पत्रिका वाले  सीवर से लेकर मैला ढोने वाले या मुआवजा चखने वाले ओमप्रकाश वाल्मीकि वाले दया पवार वाले शरण कुमार लिम्बाले वाले राजेन्द्र यादव वाले तुलसीर

मप्र सरकार – अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो 18 July 2017

मप्र सरकार – अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो मप्र सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि प्रत्येक सरकारी अस्पताल में ज्योतिष बैठाये जायेंगे और ये ज्योतिष मात्र पांच रुपया लेकर सबकी समस्याओं का हल बताएँगे. इस संदर्भ में खबर यह है की सरकार ने किसी बड़ी संस्था से अनुबंध भी हस्ताक्षरित कर लिया है. मप्र सरकार का यह फैसला कई मायनों में अनूठा है और विचित्र भी है. प्रदेश में शिवराज सरकार गत तेरह वर्षों से और भाजपा पंद्रह वर्षों से राज कर रही है इस दौरान यदि मानव विकास सूचकांक देखे तो हम पायेंगे कि देश के बाकी राज्यों कि तुलना में यहाँ के आंकड़े पहले नम्बर या दुसरे नम्बर पर रहे है और इस तरह हमने लगभग हर जगह तरक्की करके नकारात्मक नाम रोशन किया है चाहे वह महिला हिंसा हो या कुपोषण या भ्रष्टाचार के आमले हो या अवैध खनन के, पर इस सबसे निजात पाने के लिए अपनी सत्ता के आखिरी दिनों में चल रहे और पिछले तेरह वर्षों में सबसे ज्यादा मुसीबत के दिन झेल रहे शिवराज सिंह चौहान के लिए यह फैसला लेना कितना तसल्ली भरा रहा होगा यह अकल्पनीय है. मजेदार यह है की मप्र सरकार ने विदेशों की तर्ज

Posts of 10/11 July 17

अभी अभी सुना गुजरात के मुख्य मंत्री ने अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमले में मारे गए लोगों को 10 लाख और घायलों को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की । बस ड्राइवर सलीम को ब्रेवरी अवार्ड भी दिया जाएगा । एक सवाल , कृपया ठंडे दिमाग़ से समझने का प्रयास करें अपनी नाकामयाबियों का ठीकरा जनता के रुपयों पर क्यों फोड़ा जाए, यात्री क्या सरकार से पूछके पुण्य कमाने गए थे। मुआवजा किसी बात का हल नही है। नाकामयाबी की आड़ में मुआवजा बांटकर सरकार अपने मूल कर्तव्यों से हट रही है और फिर यथास्थिति बनी  रहती है। इस पर बाद में कुछ नही होता । किसानों की हत्या एक करोड़ का मुआवजा,दुर्घटना लाखो रुपया मुआवजा , तीर्थ यात्रा में मरें मुआवजा। ये उस पार्टी फंड से दिया जाए जो वहां राज कर रही है या व्यक्तिगत तनख्वाहों से दिया जाना चाहिए जो अधिकारी इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते है, सरकार सिर्फ इनका स्थानांतर करके इतिश्री कर लेती है । जनता की मेहनत की कमाई को यूं अपनी छबि बनाने के लिए बर्बाद बिल्कुल नही किया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि इस मुआवजे पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक समिति बनें जो कब , क्

मध्यप्रदेश में अफसरशाही पर लगाम लगाना जरुरी है 10 July 2017

मध्यप्रदेश में अफसरशाही पर लगाम लगाना जरुरी है -संदीप नाईक - मप्र में ब्यूरोक्रेसी की आत्म मुग्धता चरम पर है और इसमे वे अपने को, अपने काम को और अपनी छबि को चमकाने के लिए किसी भी हद तक जाकर काम कर रहे है इसके विपरीत वे अपने मातहतों के साथ बहुत बुरा व्यवहार भी कर रहे है. यह बात इन दो उदाहरणों से समझी जा सकती है. ऐसा नहीं है कि या कोई आज की बात है, मप्र में ब्यूरोक्रेसी में टीनू और अरविन्द जोशी का उदाहरण सामने है जिन्होंने अरबों रुपयों का घोटाला करके करोडो रुपया खाया और सरकार ने ठोस कदम लेने में बहुत लंबा समय लिया. टीनू अरविन्द जोशी दंपत्ति ने प्रदेश में आरसीपीवी नरोन्हा- जो प्रदेश के पहले मुख्य सचिव थे और जिन्होंने तीन मुख्य मंत्रियों के साथ काम करके “ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट” जैसी महत्वपूर्ण किताब लिखी, के आदर्श को ध्वस्त किया, शरदचंद्र बेहार जैसे प्रखर और मुखर अधिकारी के द्वारा स्थापित पारदर्शी प्रशासन का बेड़ा गर्क किया. ये उदाहरण तो ठीक थे जो भयानक भ्रष्टाचार की सीमा में आये परन्तु आजकल जो प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की हालत है वह बेहद चिंताजनक है. ब्यूरोक्रेट्स द्वारा नौकरी

IT Engineer and Digital India 9 July 2017

अभी सुबह एक युवा मित्र आये थे। सॉफ्ट वेयर इंजीनियर है। अमेरिका रहकर आये है 5 साल। आकर बैठे ही थे कि कुछ याद आया तो फोन मिलाने लगे , बहुत देर तक रि -डायल करते रहें , साला फोन लगा नही , झुंझलाहट हो रही थी । मुझे भी कोफ्त हो रही थी क्योंकि मुझे भी कही जाना था। एक तो बगैर फोन किये आ गए - ऊपर से मोबाइल । आखिर मैंने पूछ लिया कि क्या दिक्कत है , बोले " सर दिल्ली फोन लगा रहा हूँ लग नही रहा " ओह, मैंने कहा लाओ दिखाओ मैं कोशिश करता हूँ - जब कॉल लॉग देखा तो नम्बर था - 011- 98105 ***** मैंने पूछा कि ये दिल्ली का एस टी डी कोड क्यों , तो बोलें " सर मैं अभी मप्र में हूँ ना और दिल्ली या किसी भी राज्य के बाहर फोन लगाएंगे तो एस टी डी कोड तो लगाना पड़ेगा ना ? " मैंने कहा हे प्रभु , यह मोबाइल नम्बर है ना, तो बोलें - तो क्या हुआ राज्य के बाहर का नम्बर तो है ना !!! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये सज्जन डिजिटल इंडिया के लिए सरकार से ठेका लेकर सरकारी विभागों की सोशल मीडिया साइट्स के मॉडरेशन का कार्य करने वाली एक डिजिटल कम्पनी के टीम लीडर है। अपन गंवार ही भले भिया !

मौत का एक दिन मुअय्यन है - 6 जुलाई 2017

चारो ओर तेज ताप था, अग्नि की लटायें ऊंची उठ रही थी और कही दूर कुत्ते किसी चीज के लिए छीना झपटी कर रहे थे , एक आदमी दूर बेंच पर बैठा अपने पांवों को घूर रहा था। बगीचे में फूल थे पत्तियां थी जड़े भी होंगी ही हवा भी थी पर ना खुशबू थी ना सरसराहट - बस एक उदासी थी जो चहूँओर पसरी थी। बचपन से अक्सर यहाँ आ जाता था वो क्योकि यही थे वो सब लोग जिन्हें वह लगभग ढोते हुए अपने काँधों पर लाया था कभी आंखों में आंसू थे और कभी मन मे तसल्ली कि जीवन के झंझावातों से शरीर मुक्त हो गया। यह शहर के दूसरे किनारे पर बसा एक मैदान था जहाँ धीरे धीरे टपरे डलते गए, ईंट के चबूतरे बन गए, लोगों ने जीते जी तो माँ बाप को सम्हाला नही पर सब ओर संगमरमर के पत्थर नाम टाँक कर लगा दिए और खुद अमर होने के मुगालतों में जीने लगें। अपने आप से कह रहा था वह - आज फिर उदास हूँ और आ गया हूँ इस जगह पर जहां सारे जाले साफ हो जाते है फिर तय किया है कि अघोरियों की तरह देर रात तक बैठेगा और अपने साथ लाये आलूओं को किसी जलती हुई लाश के सिर मुहाने बैठकर भूनकर खा लेगा पर हड़बड़ी में आज हरी मिर्च और नमक लाना भूल गया, कोई नई किसी हड्डी को फोडूंगा तो

रंगमंच को विदा कहने का समय 1 July 17

प्रेक्षकों के सामने मैं अकेला खड़ा हूँ और आसमान सन्न है, हवा के तेज थपेड़ों के सामने आज तक निर्विघ्न और अटल खड़ा रहा, मेरे अंदर ही जुलियस सीज़र, हेमलेट, ओथेलो, कालिदास, भृतहरि और दुनिया भर के कलाकार ज़िंदा रहें और सबको अपनी छाती में छुपाकर मैंने इन सबको जिया और अपने अंदर पाला -पोषित किया। आज जब रिश्तों का यह घिघौना उजड़ता हुआ स्वरूप सामने आ रहा है तो प्रेक्षालय के दरवाजे फड़फड़ा रहे है, आँधियाँ तेज हो चली है, मेरे पांव काँप रहे है। जिसने इस अक्षत साँसों के रंगमंच को जीवन भर इतनी दृढ़ ता से थामे रखा, संसार मे हजारों हजारों प्रेक्षकों को जीवन का अर्थ, महत्व और जीने का संज्ञान दिया, जिससे सीख लेकर लोग घरों में लौट गए और अपनी जीवन नैया को पार लगाया - आज वही कलाकार अपने ही प्रेक्षकों के सामने, गुणवंतों के सामने हार गया है। यह रंगमंच को विदा कहने का समय है और एक असल जीवन मे प्रवेश करने का उत्तम समय है ऐसे में जब आस्थाएं और विश्वास खण्डित हो गए है तो इस नकली मुस्कुराहट, भ्रम, अर्थ, सन्ताप, अवसाद, आरोह - अवरोह और विस्मय के तिलिस्म को तोड़कर सारी मोहमाया को छोड़कर जीवन के उस रूप को अपनाना होगा जो

पचास सरकारी स्कूलों की ह्त्या July 2, 2017

पचास सरकारी स्कूलों की ह्त्या -संदीप नाईक- यह इस वर्ष के नए स्कूली सत्र के शुरुवाती दौर की कहानी है. 28 जून को मप्र के सीहोर - जो राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जिला है, में शिक्षकों के साथ एक बैठक कर रहे थे. एक स्वैच्छिक संस्था के साथ काम करने वाले लगभग तीस शिक्षक और मैदानी काम करने वाले साथी मौजूद थे. बैठक में सर्व शिक्षा अभियान के जिला प्रभारी भी थे उन्होंने औपचारिक उदघाटन के बाद कहा कि पिछले शिक्षा सत्र में सरकार को 50 सरकारी विद्यालय बंद करना पड़े क्योकि बच्चों की पर्याप्त संख्या नही थी, लिहाजा कार्यरत शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण के कारण स्थानान्तरण कही और किया गया और स्कूल बंद कर दिए गए. इस बैठक में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने भी संबोधित कर शिक्षकों से इस कारण पर गंभीरता से विचार करने को कहा. यह मुद्दा उनके लिए एक प्रशासनिक समस्या था परन्तु इस मुद्दे ने सारे दिन की बैठक का एजेंडा तय कर दिया. फिर बगैर किसी नीति या आंकड़ों की बाजीगरी के शिक्षकों से खुलकर बात हुई कि आखिर ये सरकारी स्कूल क्यों बंद हुए? यह एक प्रकार से जीवंत स्कूलों की समुदाय द्वारा क