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इंदु सरकार - मधुर भंडारकर की कमजोर फ़िल्म 29 जुलाई 17



इंदु सरकार मधुर भंडारकर की परिपक्व और गैर जिम्म्मेदार राजनीतिक समझ का भ्रूण है जो असमय "अबो्र्ट" हो गया । वे दरअसल में एक ढुलमुल किस्म की घटिया राजनीति को परोसकर दोनो दलों की थाली में करेला और कटोरी में गुलाबजामुन बने रहना चाहते है इसलिए वे मध्यम मार्ग अपनाकर वामपंथी भी होने की कोरी प्रतिबद्धता आखिर में इंदु के मुंह से अदालत में कहलवाना चाहते है और एक लिजलिजा अंत दिखाकर भारतीय जनमानस की जेब से रुपया भी बटोरना चाहते है।

इमरजेंसी की पृष्ठभूमि में जेपी आंदोलन, विपक्ष और आक्रोश को दिखाने के बजाय वे सीधे संजय गांधी से शुरुवात करते है जो अप्रत्यक्ष रूप से नसबंदी का समर्थन कर एक विषाक्त बीज बो रहे है। पूरी फिल्म में वर्ग विशेष को टारगेट करके वे अपनी ओछी मानसिकता को भी प्रदर्शित करते है जो कि घातक है। वे हर दृश्य में एक एक फ्रेम रखते है जो किसी भी विचार या समझ को नही दिखाती है बल्कि वे एक पैरोनोएड फिलिंग की तरह से एक यथार्थ बुनने की कोशिश करते है जबकि वे अपने आप मे बहुत स्पष्ट है कि वे क्यों यह नरेटिव रच रहे है। मधुर असल मे इस फ़िल्म में कम से कम देश के वर्तमान हालातों को चोट करते हुए अतीत का सहारा लेते है और एक यूटोपिया गढ़ने की राजनीति करते है और इसी बीच बहुत बारीकी से अपने मन की बात हिंसा और डेलिब्रेट हिंसा के मिथक रचकर जनमानस पर थोपकर एक तिलिस्म खड़ा करते है जो हर हालत में स्वीकार नही किया जाना चाहिए। वे अंत मे नेतृत्व की झलक दिखाकर 21 जनवरी 77 को जो 19 माह की काली रातों का अंत बताकर फ़िल्म को बम्बईया मोड़ पर सोढ़ी के मार्फ़त लाते है वह सिर्फ उनकी गुडी गुडी बनने की नाकाम कोशिश है। अब भारतीय जनमानस इतना मूर्ख और कच्चा नही है कि वह यह रूपक और हिडन नरेटिव समझ ना सकें।

यह एक बेहद कमजोर फ़िल्म है जो आंधी या सुधीर मिश्र कृत हजारों ख्वाहिशें ऐसी के मुकाबले कही नही ठहरती। सिर्फ शुरुवात का एक दृश्य रचकर इमरजेंसी की तस्वीर और आखेट बुनना मधुर के बस का कतई नही है - ना उनमे वो समझ है ना दृष्टि इसलिए यह फ़िल्म एक उनकी असफलता का पिटारा बल्कि पेन्डौरा बॉक्स बनकर रह गई है। वे बहुत शातिरी से नाना के रोल में अनुपम को लाते है जिसके निहितार्थ हम सबको मालूम है।

बहरहाल इस फ़िल्म को देखने से बेहतर है कि ₹ 120 या ₹ 150 में एक बियर पी ली जाए या एकाध दोस्त के साथ एक केपेचीनो और ब्राउनी खा ली जाए इस सुहाने मौसम में।

#मधुर_भंडारकर_की_घटिया_फ़िल्म

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