Skip to main content

रंगमंच को विदा कहने का समय 1 July 17


प्रेक्षकों के सामने मैं अकेला खड़ा हूँ और आसमान सन्न है, हवा के तेज थपेड़ों के सामने आज तक निर्विघ्न और अटल खड़ा रहा, मेरे अंदर ही जुलियस सीज़र, हेमलेट, ओथेलो, कालिदास, भृतहरि और दुनिया भर के कलाकार ज़िंदा रहें और सबको अपनी छाती में छुपाकर मैंने इन सबको जिया और अपने अंदर पाला -पोषित किया।
आज जब रिश्तों का यह घिघौना उजड़ता हुआ स्वरूप सामने आ रहा है तो प्रेक्षालय के दरवाजे फड़फड़ा रहे है, आँधियाँ तेज हो चली है, मेरे पांव काँप रहे है। जिसने इस अक्षत साँसों के रंगमंच को जीवन भर इतनी दृढ़ता से थामे रखा, संसार मे हजारों हजारों प्रेक्षकों को जीवन का अर्थ, महत्व और जीने का संज्ञान दिया, जिससे सीख लेकर लोग घरों में लौट गए और अपनी जीवन नैया को पार लगाया - आज वही कलाकार अपने ही प्रेक्षकों के सामने, गुणवंतों के सामने हार गया है।
यह रंगमंच को विदा कहने का समय है और एक असल जीवन मे प्रवेश करने का उत्तम समय है ऐसे में जब आस्थाएं और विश्वास खण्डित हो गए है तो इस नकली मुस्कुराहट, भ्रम, अर्थ, सन्ताप, अवसाद, आरोह - अवरोह और विस्मय के तिलिस्म को तोड़कर सारी मोहमाया को छोड़कर जीवन के उस रूप को अपनाना होगा जो इस अंतिम और बीतते जा रहे क्षण में चिर शांति और अमर निद्रा दे सकें जिसे पाने को युगों तपस्या करनी पड़ती है।
(प्रेरणा - नट सम्राट)

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...