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Showing posts from October, 2017

मेरा स्कूल - संगत में न्याय के संस्कार

मेरा स्कूल - संगत में न्याय के संस्कार देवास रियासत दो हिस्सों में बंटी थी जूनियर और सीनियर। यह सीनियर देवास का न्याय मन्दिर है जहाँ न्याय मन्दिर यानी स्टेट के समय मे पवार वंश का कोर्ट हुआ करता था। आज इसे देखकर मन भावुक हो गया और उस समय के मित्र, सहपाठी, शिक्षक और सारा देवास तरोताज़ा हो गया। खारी बावड़ी और अखाड़ा रोड़ पर बसा मेरा यह स्कूल कितना मनोहारी था आज यह सोचकर ही मस्तक गर्व से उठ जाता था। इसी के ठीक पीछे बड़ा सा मन्दिर है जिसमे पवार वंश के कुलदेवता है, और जहाँ हर जन्माष्टमी पर आठ दस दिन पहले से चौबीसों घंटे भजन होते थे / है और देवास महाराज भी आते थे। जन्माष्टमी के दिन दिंडी यात्रा पूरे शहर में निकलती थी परंपरागत वेशभूषा में। ई एम फास्टर ने इसका जिक्र अपनी किताब "ए पैसेज टू इंडिया" में भी किया है। यह सरकारी स्कूल था विशुद्ध हिंदी माध्यम का। यही मराठी प्राथमिक विद्यालय लगता था जहाँ से मैंने पाँचवी पास की और छठवीं में इसी न्याय मन्दिर में प्रवेश लिया।  कभी सोचता हूँ कि ये विद्रोही तेवर, अन्याय के खिलाफ बोलने और कर्म के संस्कार कहाँ से पड़े तो अब समझ आता है कि

Subah Sawere 25 oct 2017

गिरिजा देवी - भारतीय संगीत की मनीषी का अवसान 24 अक्टूबर 2017

गिरिजा देवी - भारतीय संगीत की  मनीषी का अवसान  24 अक्टूबर 2017  वे गाती हैं आत्मा की अंगीठी परचाती देह की बनती हुई राख के पायताने सबके जीवट को तपाती गाती हैं वे...…... 1 बनारस, चारों-पट गायन के चौमुखी दीये का अंतिम दीवट भी आज तिरोहित हुआ... पहला दीया : रसूलनबाई दूसरा : बड़ी मोतीबाई तीसरा : सिद्धेश्वरी देवी चौथा दीया : गिरिजा देवी... चारों की ज्योति मिलाओ तो जगमग काशी.. चारों की आवाज़ से पवित्र होती गंगा और मंगलागौरी... 2 एहिं ठइयाँ मोतिया हेराय गइली रामा कहवां मैं ढूंढूं... गिरिजा की मोतिया कहीं गुम नहीं हुई ,न ही उनके राम के फूलों के सेहरे की लड़ियाँ ही खुलकर बिखर सी गयीं हैं.. वो सब, ठीक से बचा कर सहेज गयीं अप्पा.. काशी का ख़ज़ाना कभी लुटता नहीं, क्योंकि उसे कुबेर नहीं, सुर- देवियाँ सिरजती आयीं हैं... 3 आपकी डोलिया कौन उठा पायेगा अप्पा जी? चारों कहाँर मिलकर उठाएं भी, तो भी ठुमरी, दादरा, कजरी और चैती को कौन उठा पायेगा? किसमें सामर्थ्य कि मणिकर्णिका से कह सकें, थोड़ा कम बहा कर ले जाना.. थोड़ा सा छोड़ देना हमारी गिरिजा मां को.. शायद अग्नि और जल मि

इस सरकार को संविधानिक संस्थाओं को नष्ट करने को याद रखा जाएगा.

इस सरकार को संविधानिक संस्थाओं को नष्ट करने को याद रखा जाएगा. -संदीप नाईक- इस सरकार को संविधानिक संस्थाओं को नष्ट करने को याद रखा जाएगा. -संदीप नाईक- टी एन शेषन का नाम किसने नहीं सुना होगा मेरा ख्याल है नब्बे के दशक के बाद थोड़े जागरुक नागरिको को इनका नाम याद होगा क्योकि 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक वे भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त रहें और शायद उन्ही का कार्यकाल था जब हम जैसे लोग प्रौढ़ होकर थोड़ा थोड़ा चुनाव समझ रहे थे और राजनीति के खेल भी , बाजारीकरण और खुलेपन का दौर था , सरकार के सामने देश कि अर्थव्यवस्था के लेकर बड़ी चुनौतियां थी और राजनैतिक दलों के क्रिया कलापों पर एक लगाम कसने की भी शिद्दत से जरुरत महसूस की जा रही थी. टी एन शेषन की नियुक्ति से चुनाव सुधारों को जहां एक मंजिल मिली वही आम लोगों तक चुनाव आयोग क्या होता है और इसकी ताकत क्या होती है इस बात की पुख्ता जानकारी भी मिली. चुनाव में कसावट लाने के उनके सारे प्रयास बहुत ही सार्थक साबित हुए और राजनैतिक दलों को एक तरह का भय भी चुनावों से लगाने लगा. कालान्तर में चुनाव आयोग एक संविधानिक बॉडी है यह बात

प्यार ज़िंदा है तो सपने ज़िंदा है और इस पर सबका हक़ होना चाहिए - सीक्रेट सुपर स्टार

प्यार ज़िंदा है तो सपने ज़िंदा है और इस पर सबका हक़ होना चाहिए _______________________________________________________ सपने देखने का हक़ सबको है और होना भी चाहिए क्योकि सपने देखना जीवन है और जीवन सबसे बड़ा होता है . यह बात बड़ी साधारण सी है परन्तु जब भावनाओं की चाशनी में लपेटकर बगावत के सुरों से सम्पूर्ण समाज को धता बताकर एक ऐसे चरित्र द्वारा कही जाती है जिसे हम स्त्री उपेक्षिता कहते है या जिसके लिए बेटी बचाओ और बेटी पढाओं के लम्बे चौड़े अभियान चढ़ाना पड़ते है तो यह बात बहुत गहराई से हमारे अंतस में धीरे धीरे समाती है और बरबस ही सिनेमा देखते हुए हम उस चरित्र, दृश्य और पुरे माहौल से एकाकार होने लगते है और अपने आसपास के परिवेश को सूंघते हुए यह शिद्दत से मानते है कि बात सही और प्रभावी ढंग से कही जा रही है. दरअसल में आमिर खान एक प्रभावी अभिनेता, निर्देशक और सामाजिक सरोकार वाले व्यक्ति नहीं वर्ना एक चतुर सुलझे हुए राजनैतिक शख्स है जो समय, देश काल और परिस्थिति के अनुसार अपना रचा बुना हुआ बहुत माकूल मौकों पर परोसने में पारंगत है. गुजरात चुनाव के समय बगैर कोई रिस्क लिए या तीन तलाक का