इस सरकार को संविधानिक
संस्थाओं को नष्ट करने को याद रखा जाएगा.
-संदीप नाईक-
इस सरकार को संविधानिक
संस्थाओं को नष्ट करने को याद रखा जाएगा.
-संदीप नाईक-
टी एन शेषन का नाम किसने नहीं सुना होगा मेरा
ख्याल है नब्बे के दशक के बाद थोड़े जागरुक नागरिको को इनका नाम याद होगा क्योकि 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक वे भारत निर्वाचन आयोग
के मुख्य चुनाव आयुक्त रहें और शायद उन्ही का कार्यकाल था जब हम जैसे लोग प्रौढ़
होकर थोड़ा थोड़ा चुनाव समझ रहे थे और राजनीति के खेल भी, बाजारीकरण और खुलेपन का
दौर था, सरकार के सामने देश कि अर्थव्यवस्था के लेकर बड़ी चुनौतियां
थी और राजनैतिक दलों के क्रिया कलापों पर एक लगाम कसने की भी शिद्दत से जरुरत
महसूस की जा रही थी. टी एन शेषन की नियुक्ति से चुनाव सुधारों को जहां एक मंजिल
मिली वही आम लोगों तक चुनाव आयोग क्या होता है और इसकी ताकत क्या होती है इस बात
की पुख्ता जानकारी भी मिली. चुनाव में कसावट लाने के उनके सारे प्रयास बहुत ही
सार्थक साबित हुए और राजनैतिक दलों को एक तरह का भय भी चुनावों से लगाने लगा.
कालान्तर में चुनाव आयोग एक संविधानिक बॉडी है यह बात जनमानस के दिलों दिमाग में
समां गई और राजनैतिक दलों पर एक अंकुश लगा जो भारतीय गणतंत्र के लिए एक वरदान
साबित हुआ.
यह दुखद है कि भारतीय लोकतंत्र में पिछले कुछ वर्षों
से संवैधानिक संस्थाओं के साथ सत्ताएं और सरकार अपनी मनमर्जी के हिसाब से छेड़छाड़
कर रही हैं विभिन्न प्रकार के आयोग रिजर्व बैंक सीबीआई का प्रयोग या तो अपने
राजनीतिक दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए किया जाता है या उन्हें निपटाने के लिए
जिस तरह का माहौल धीरे-धीरे बन गया है वह बेहद खतरनाक है खास करके भारत के संघीय
ढांचे में ऐसा होना और मात्र 5 साल के अस्थाई सरकारों द्वारा इन संवैधानिक संस्थाओं के साथ छेड़छाड़ एक गंभीर
अपराध ही नहीं बल्कि गलत परंपरा भी है
वर्तमान सरकार ने गुजरात चुनाव के बहाने चुनाव आयोग
जैसी संस्था को कुल मिलाकर चुनाव विभाग बना दिया है जो संविधानिक ना होकर शासन के
अंतर्गत और शासन के दिशा-निर्देशों पर काम करने लगा है, अपने हर निर्णय के लिए
केबिनेट पर निर्भर हो गया है. चुनाव आयोग एक सरकारी विभाग है और मोदी इसके
स्वतंत्र प्रबाहर वाले राज्य मंत्री जो हर तरह के निर्णय अपने हित में लेते है. मौजूदा
चुनाव आयोग के प्रमुख को जब नरेंद्र मोदी गुजरात से दिल्ली लाए थे तभी यह मंशा समझ
में आई थी कि किस तरह से वह इस व्यक्ति का उपयोग अपने निजी हित और पार्टी के फैलाव
में करेंगे. यदि आप चुनाव आयोग के ढांचे
को देखें तो पाएंगे कि वहां 3 चुनाव आयुक्त होते हैं जिनमें एक प्रमुख होता है, यह ढांचा इसलिए बनाया गया था
कि यदि कोई एक व्यक्ति निरंकुश होकर तानाशाही पूर्वक निर्णय लें तो बाकी दो लोग
उसके निर्णय को पलटकर सही निर्णय को लागू करवा सकते हैं परंतु जीते जिस तरह से
ज्योति के साथ में ओपी रावत और तीसरे आयुक्त निर्णय ले रहे हैं - वह दर्शाता है कि
यह सब मिलीभगत है और और एक पार्टी विशेष व्यक्ति विशेष और धर्म विशेष को चुनाव
आयोग साफ-साफ मदद कर रहा है. यह निहायत ही घटियापन और साफगोई वाला मामला नहीं है.
गुजरात में चुनाव की घोषणा को करवाने के लिए तारीखों को लगातार टाला जा रहा है. यह दर्शाता है कि चुनाव आयोग के निहितार्थ क्या
है और ये किस तरह से खुलकर मोदी सरकार को समर्थन दे रहा है और डरकर या समर्थन कर
एक गलत आदर्श स्थापित कर रहा है। चुनाव की घोषणा के बाद भी राहत कार्य किये जा
सकते है यह कोई नई बात नही है, कश्मीर जैसे राज्य में जहां हमेशा ही चुनाव करवाना
रिस्क होता है वहाँ भी चुनाव समय पर होते है, छत्तीसगढ़ में हमेशा ही नक्सल का ख़तरा
बना रहता है फिर भी चुनाव होते है फिर गुजरात को क्या दिक्कत है.
एक संविधानिक आयोग का
सरकारी विभाग में इस तरह से बदल जाना कि सरे राह चलता आदमी तंज कसने लगें और गरिमा, मूल्यों और प्रतिष्ठा पर
सवाल उठाने लगे यह कितना शर्मनाक भी है। जिस आयोग का काम समय पर चुनाव करवाने का है वह लापरवाह
होकर व्यक्ति विशेष की कठपुतली बन गया है यह घातक ही नही बल्कि भयानक है क्योंकि
इससे संविधान के 73 और 74 वें संशोधन अधिनियम के क्रियान्वयन
में दिक्कतें होंगी। यदि पूरे देश की स्थानीय शासन की इकाईयों के समयबद्ध चुनाव
होने की बात की जाए तो शायद मप्र ही सम्भवतः ऐसा बिरला राज्य मिलेगा जहां पंचायतों, नगर निकायों और सहकारी
संस्थाओं के चुनाव, विधानसभा, लोकसभा के उप चुनाव समय पर
लगातार हो रहे है। पर यदि हमारा राष्ट्रीय चुनाव आयोग सत्तासीन पार्टी के दबाव और
व्यक्ति विशेष की चाटुकारिता करते हुए या मोदी की घोषणाओं का इंतज़ार करते चुनाव की
घोषणा करने में टालमटोल करेगा तो बाकी प्रदेश के चुनाव आयोगों में काम करने
वाक्यों पर स्थानीय सत्ता चला रहे नेता, लठैत कितना दबाव बनाएंगे
इसकी कल्पना ही भयावह है। चुनाव आयोग सरकार की एक बांह हो गई है जो कि बहुत ही
खतरनाक है और यह आने वाले समय में दर्ज किया जाएगा कि चुनाव आयोग जैसे बड़े महत्त्व
के संस्थान को नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने एकदम नीचे लाकर रख दिया है और यह
बाकी सब जगह के लिए एक नजीर बनेगा, एक ठोस नकारात्मक उदाहरण. दूसरा सरकार तो और दो
साल बाद खत्म हो जायेगी पर जो पारदर्शिता, संविधानिक मूल्य और गरिमा थी वह खत्म
अगर हो गई तो उसे पुनर्स्थापित करने में कितना समय लगेगा.....?
इस सरकार को इस बात का
श्रेय दिया जाएगा कि नोट बंदी से लेकर जी एस टी और तमाम तरह के बदलावों से जनता को
हैरास करने के साथ साथ सी बी आई , रिजर्व बैंक, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को भी
भ्रष्ट किया है और इसकी सजा जरुर मिलेगी.
मुख्य चुनाव आयोग अधिकारी जोती झूठ बोल रहे है और तमाम नियम कायदों को छोड़कर , संविधानिक पद पर बैठकर संविधान का अपमान कर रहे है।मात्र आठ जिलों के कुछ ब्लॉक्स में बाढ़ का बहाना करके चुनाव की तारीखें टालते रहे और नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार को पर्याप्त समय और अवसर दिए कि वे मतदाताओं को रिझाने के लिए घोषणा करते रहें। यह मैं प्रधानमंत्री की बात नही कर रहा, व्यक्ति नरेंद्र मोदी की बात कर रहा हूँ जो गुजरात मे अपनी असफलता की संभावना देखते हुए गुजरात से ही जोती जैसे अयोग्य और कमजोर अधिकारी को दिल्ली में चुनाव आयोग में लाएं और संवैधानिक पद पर बैठाया
इस व्यक्ति ने चुनाव आयोग को चुनाव विभाग बना दिया और व्यक्ति विशेष के इशारों पर काम कर रहे है। ऐसा कोई नियम नही है कि चुनाव घोषित होने के बाद राहत कार्य रोके जाएं आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित हमेशा बनी रहती है - कश्मीर, छग या उत्तर पूर्व के राज्यों में बारहों मास यह समस्या बनी रहती है पर चुनाव हमेशा होते रहे है। जोती ने बाढ़ की आड़ में पार्टी विशेष को मौका दिया , मैं ये भी तर्क मान लेता अगर कल रात तक अरुण जेटली घोषणाओं का पिटारा नही खोलते या जी एस टी की दरों में बदलाव या रिटर्न भरने की छूट नही देते तो पर कल तक जिस तरह की घोषणाएं गुजरात के व्यापारी वर्ग के लिए की या बैंकों को धन उपलब्ध करवाया है वह संदेह के घेरे में है।
जोती ने बहुत गलत परम्परा स्थापित की है गुजरात मे भाजपा की जीत में इस अधिकारी की मेहनत और देश के कानून , संविधान से खुले आम छेड़छाड़ को इतिहास में गलत उदाहरण की तरह याद रखा जाएगा और रिटायर्ड होने के बाद इसका कांग्रेस या अन्य दलों के राज्य में राज्यपाल बनना तय है और यह नजीब जंग की तरह उस राज्य के प्रशासन में भी दखलंदाजी करेगा।
इसके अतिरिक्त इसने भारतीय प्रशासनिक सेवा के उच्च स्तर को भी गिराकर युवा , तेज तर्रार अधिकारियों के सामने गलत नजीर पेश की है , मसूरी के प्रशिक्षण संस्थान के गलियारों में इसके कामों के चुटकुले और उदाहरण युगों युगों तक दिए जाते रहेंगे।
भारतीय संविधान के लिए 2019 तक का समय बेहद भयावह और खतरनाक है और नागरिकों को सतर्क रहने की जरूरत है।
संदीप नाईक,
स्वतंत्र टिप्पणीकार और सामाजिक कार्यकर्ता.
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