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Milk Sweet Diwali and Ayodhya 19 Oct 17


यदि तुम्हारे एक कमरे में लाश पड़ी हो तो 
(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता) 
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एक दिन पहले दीवाली कैसे मन गई

ब्राह्मण हूं , चित्त पावन मराठी ब्राह्मण और विशुद्ध पूजा पाठी कर्मकांडी परिवार से हूं , ( मै नहीं करता कुछ पर संस्कार सारे है , विधि विधान और सारे नियम कायदे मालूम है अच्छे से - याद रखियेगा) तो जानता हूं कि मुहूर्त, समय और दिन विशेष का क्या महत्व है ? मुझे ना सिखाएं कि दिन क्या और मुहूर्त क्या होता है। नौटंकी करना है , राजनीति या घटियापन यह मुझे मत बताना। एक दिन पहले मनाने का कोई ना रिवाज था ना है ।
जितने विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए दियों में तेल लगाया गया और बत्ती जलाने का खर्च हुआ उसके बदले कुपोषित बच्चों को पर्याप्त पोषण और दवाइयां दी जा सकती थी। इतना तेल उनके खाने, सब्जी या दाल में डलवा देते योगीजी तो उनका प्रोटीन, वसा बढ़ जाता कमजोर शरीर में और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती उन बच्चों की जो रोज आपके तंत्र में बेमौत मर रहे है। हम गरीब परिवारों को सिखाते है कि बच्चो, गर्भवती महिलाओं की सब्जी , दाल या आटे में ऊपर से एक चम्मच तेल डाल दें ताकि तेल शरीर में जाएं। पर आज एक लाख सत्तर हजार दियों को जलता देख बहुत खुशी भी हुई और थोड़ा दुख भी कि मेरे देश के एक प्रांत के बच्चे मर रहे है और पूरी मशीनरी उस श्रम का दुरुपयोग कर रही है जो मेहनत से तेल का उपयोग करती है।
यह कौनसा धरम है जिसमें खाने वाले तेल से लेकर चोपर का तेल और सरकारी मशीनरी का समय नाटक और स्वांग, सेल्फ इमेज बनाने में बरबाद किया जा रहा है ? मै दुखी हूं और द्रवित भी !
हिन्दू प्रमाणपत्र बांटने वाले यहां रायता नहीं फैलाए , धर्म की व्याख्या यह गरीब ब्राह्मण आपसे ज्यादा जानता है और जीवन मौत का मतलब भी।
झारखंड में एक बेटी आपके घटिया नियम से मर जाती है और 95 वर्ष का एक बूढ़ा ग्राम टगर जिला सतना में मर जाता है क्योंकि शासन से मिली पात्रता पर्ची गुम हो गई और वह अपनी पत्नी के साथ तीन दिन भूखा रहता है।
शर्म करिए नौटंकीबाजों शर्म करिए। एक बार राम राज्य पढ़ लीजिए कि क्या था !
आज पहली बार अपनी जाति लिख रहा हूं क्योंकि आपको ऐसी ही भाषा समझ आती है शायद ।

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प्यार की जोत से घर घर है चिरागां वरना
एक भी शमा ना रोशन हो हवा के डर से

-- शकेब जलाली

आप जहां है जरा एक छोटा सा सर्वे करें
आपके आसपास कितने घरों में गाय या भैंस है
यदि गांव कस्बे में है तो कितनी गाय भैंस है कुल
इनमे से कितनी और कितना दूध दोनों वक़्त कुल देती है
अब इस मात्रा को कुल उपलब्ध गाय भैंस द्वारा दिए जाने वाले दूध से कुल औसत दूध की मात्रा निकालिए
अब अपने आसपास, कस्बे, शहर में मिठाई की दुकान की गणना करें
वहां उपलब्ध मिठाईयों में ज्यादा प्रतिशत खोवा यानी मावे की मिठाईयों का ही होता है बंगाली और रबड़ी जैसी विशुद्ध पतली मिठाई सहित
अब सोचिए कि एक दुकान पर औसत कितना खोवा या मावा लगभग रोज और इन दिनों लगता होगा
अब जरा वापिस आइए जहां आपने कुल उत्पादित दूध की मात्रा निकाली थी
अब तुलना कीजिए कि कुल दूध और अपने कस्बे में लगने वाला कुल खोवा या मावा कैसे बना होगा
यदि दूध बेचने वाला परिवार दसवां भाग भी घर में चाय, बच्चो के लिए, दही, छाछ , घी के लिए रखता हो और बाकी बेच देता हो तो क्या फिर भी मिठाई की दुकानों पर लगने वाले खोवे या मावे की पूर्ति कर पा रहा है
हर दुकानदार कहता है कि उसका मावा असली है और गांव से आए दूध से खुद बनवाते है तो "भाई , यह बताओ कि तुमने कितनी गाय या भैंस पाली है , खोवे के लिए ना सही अपने घर के बच्चों की पौष्टिकता के लिए, घर की बहन बेटियों के पीने के लिए जो गर्भवती या धात्री है या छोटे बच्चे जो शून्य से छह बरस तक के है"
जरा दिमाग लगाइए कि ये दुधारू गाय सड़कों पर क्यों है, क्यों भारत सबसे बड़ा बीफ निर्यातक है, कुल मिलाकर बात इतनी है कि हमारे पास अब दूध की नदियां नहीं है और ना ही वैसी प्रजातियां
लब्बो लुबाब यह है कि मावे की मिठाई का लालच छोड़े रंग बिरंगी मावे की मिठाईयों को छोड़कर अपने घर की परंपरागत मिठाईयां जो दालों से जैसे बेसन या मूंग के आटे से बनती है, चावल से बनती है , सिंगाड़े या राजगीर से बनती है उसकी मिठाईयां खाइए, बनाइए और संस्कृति भी बचाईए और अपने परिवार की पौष्टिकता भी बढ़ाइए
आपसे अनुरोध ही कर सकता हूं
दीवाली की शुभकामनाएं , अपने मन से मैल, कचरा निकाल कर परिवार और मित्रों के साथ त्योहार मनाइए और पकवान बनाएं तो मुझे भी याद करिए बस सफेद जहर (शक्कर) का प्रयोग कम करें।
बहुत बधाई, प्यार और शुभकामनाएं आप सबके लिए

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