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Showing posts from January, 2024

Posts of 17 and 18 Jan 2024

ऐसा रामराज ला रहे है कि अयोध्या के स्थाई लोग ही घर से निकल नही सकते, सबको क़ैद कर दिया - इतना डर क्यों है डबल इंजिनों को जबकि देश भर का प्रशासन और मीडिया को लगा दिया है रामराज में सब खुला रहता था, पर यहाँ तो इतने डरपोक है ये कि पुलिस और सेना से छोटे से कस्बे को भर दिया और सब धर्म के नाम पर कर रहे है जो धर्म का ध नही जानते ढोंगी आने - जाने में प्रतिबंध लगा दिया, राम की अयोध्या है या रावण की लंका - जो चारों ओर से घेर दी गई है रोज नए नए कर्मकांड सुनता हूँ जो मेरे कर्मकांडी ब्राह्मण परिवार में कभी नही सुने और दो कौड़ी के फ़िल्मी गवैयों के गानों से ध्वनि प्रदूषण कर पूरे देश को बर्बाद कर रखा है मतलब एक जन उत्सव पर सरकारी कब्ज़ा करके अजब-गजब का प्राण प्रतिष्ठा समारोह कर रहें है पाखंडी लोग *** रातें अक्सर लम्बी होती है, सुबह होने में सदियों का फासला होता है - और नींद दुश्मन हो जाये तो फिर इस रात की सुबह नही ***

Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts from 11 to 16 Jan 2024

"एकता कपूर के सीरियल बनने से हिंदी को रोको" ●●●●● संगत पर मंडलोई का इंटरव्यू सबसे खराब है, बल्कि इसके पहले रोने - धोने के नाटकीय अंदाज़ वाले कुशल और बाज़ार में अपना निकृष्ट माल बेचने वाले फर्जी साहित्यकारों के इंटरव्यू से संगत में विसंगति आने लगी, हिंदी के बामण, बनियों , लालाओं और ठाकुरों के खराब एपिसोड्स देखने बाद मुझे लगता है कि संगत को बन्द करने का सही समय है वरना तो भारत में इतने कवि, कहानीकार है कि 2525 तक यह चले तो कवि - कहानीकार खत्म नही होंगे और कुल मिलाकर गरीबी हटाओ कार्यक्रम बनकर रह जायेगा वैसे अब संगत बन्द कर देना ही उचित है, सिवाय बेकार लोग और बेकार की बहस के कुछ है भी नही - 30, 40 लोगों की नौकरी बचाने के लिए और कुछ गाय पट्टी के बहस और मशविरों से रोजी रोटी चलाने वाले कुछ धंधेबाजों के लिए सबका क्यों भेजा खराब हो, यह भी हो कि ज्ञानी जन, इससे जुड़े तानाशाह और नौकरशाह, इसमें आने के इच्छुक और अपनी बारी का इंतज़ार करती आत्ममुग्ध बिरादरी मुझे यह कहें कि "आप देखना बन्द कर दें" पर यह लेटेक्स रबर की तरह खिंचाव संसाधनों की बर्बादी तो है ना और फिर क्लाइमेट चेंज में कित

साहित्य से जीवन की विदाई - 15 Jan 2024 - Adieu Adieu

साहित्य से जीवन की विदाई कक्षा 9वी 10वीं में आए तब से शहर को और शहर के लोगों को पहचानना शुरू किया, स्वर्गीय पंडित कुमार गंधर्व से परिचय कक्षा चौथी में हो चुका था जब महाराष्ट्र समाज में एक शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम था गणेश उत्सव के दौरान, कुमार जी ने पहला ही आलाप लिया था और मैं बाहर हो गया था, फिर बाद में बाबा से गाना भी सीखा और तहजीब भी लेखक बिरादरी की बात करें तो प्रोफेसर नईम प्रकाश कांत, प्रभु जोशी, जीवन सिंह ठाकुर से लेकर और भी कई लेखक थे जो शहर में लोकप्रिय थे, एक रमाकांत चौधरी थे जो नईदुनिया में लगातार लिखते थे - इस सब के बीच में धीरे-धीरे सबसे परिचय हुआ; अंग्रेजी में एमए करने के बाद लोगों से धीरे-धीरे परिचय बढ़ाया और लगा कि कुछ लिखना पढ़ना चाहिए तो एकलव्य संस्था की लाइब्रेरी को ज्वाइन किया और फिर बाद में एकलव्य में स्वैच्छिक तौर पर काम करने लगा - तब वहां यतीश कानूनगो, पीडी सक्सेना से लेकर शहर भर के बुद्धिजीवी आते थे एकलव्य द्वारा स्थापित पाठक मंच से लेकर शिक्षकों के मंच में सबके साथ लगातार बातचीत होती रहती थी उसमें प्रकाश कांत, जीवन सिंह ठाकुर का नाम प्रमुखता से होता था क्यो

Ustad Rashid Khan sahab and Khari Khari - Posts of 9 Jan 2-24

शायद ही ऐसा कोई दिन या रात जाती हो जब रेख़्ता के कार्यक्रम में उस्ताद को ना सुना, आओगे जब तुम से लेकर वो सारी बंदिशें जो संगीत के मान्य पैमाने छोड़कर या तोड़कर झूमते हुए स्थाई प्रभाव छोड़ती हो इधर पक्का गाना गाने वालों में राशिद ख़ाँ साहब का मिज़ाज़, अंदाज़ और गाने का सलीका एकदम जुदा था इसलिये वो दिल के करीब थे , आज उनके जाने की खबर से हैरान हूँ, मुझसे एक बरस छोटे और इस कम उम्र में यूँ चले जाना बहुत अखर गया पर कैंसर की पीड़ा से शरीर जूझ रहा था, शरीर को तकलीफ़ न हो और चुपचाप सब कुछ खत्म हो जाये इससे बेहतर कुछ हो नही सकता - बीमारियां शरीर को जब सड़ाने लगती है तो इंसान को शर्म आने लगती है और वह मुक्ति की कामना करने लगता है दुख तो सबको होता है, पर एक आदमी अपने जीवन काल में अपनी विलक्षणता से इतना कुछ कर जाता है कि उसे फिर कुछ करने की ज़रूरत नही पड़ती - यश कीर्ति और अमरता भी एक तरह से भ्रम ही है पर उस्ताद आप तो इस सबके पार हो गए थे, देखिये ना आपके मुरीद कैसे तड़फ गये है सुकून से रहो जहाँ भी रहो, आपके गीत और आपकी बन्दिशें अँगना में फूल खिलाती रहेंगी - सदियां बीत जायेंगी पर आपको भूलना असम्भव होगा सादर नमन *

Mohit Dholi at home on 7Jan23 , Khari Khari - Posts of 7 to 10 Jan 2-24

भारत में आज़ादी के बाद हिन्दू राष्ट्र बनने के लिये दलित, आदिवासी और ओबीसी नेतृत्व ज़िम्मेदार है, मैं कभी से कह रहा हूँ, जब योगी को सीएम बनाया गया था तभी मैंने कहा था कि जिस बसपा को स्व कांशीराम जी ने बामसेफ के जरिये बनाया, मायावती का इस्तीफा दिलवाकर पार्टी में लाये और 1992 में "तिलक - तराजू और तलवार को जूते मारने" जैसा नारा दिया और यूपी में बसपा सरकार ही नही बनी, वरन अंबेडकर पार्क से लेकर दलित राजनीति मुख्य धारा की राजनीति बनी पर भाजपा और संघ ने धीरे धीरे सब खत्म कर दिया आज ना बसपा है ना मायावती और बड़े दलित वर्ग ने इनकी कठपुतली बनकर सड़कों पर जॉम्बी बनकर सत्ता इन्हें सौंप दी, हिंदी पट्टी में लालू और यादव लॉबी से लेकर महाराष्ट्र और दक्षिण में भी दलितों ने बड़ी भूमिका निभाई इस सबमें और खुलकर संघ और भाजपा का साथ दिया - आज रो रहे तो क्या पर मुलायम से लेकर शरद पवार ने कभी खुलकर ना विरोध किया और ना ही कोई स्पष्ट विज़न रखा पूरे दलित आंदोलन के नेता जिसमें दिलीप मंडल जैसे घाघ भी शामिल है, इसके लिये जिम्मेदार है और आज भी वे थाली परोसकर भाजपा को दे रहें है, कही भी बैकलॉग भर्ती या और मांगों

Khari Khari , Drisht Kavi - Posts of 1 to 6 Jan 2024

"आज मेरी कविता पर 41 लाइक आये और ढाई कमेंट" - लाईवा चहक रहा था "अबै, समझ थोड़ा, तू हर अड़ी-सड़ी कविता या भौंथरे गद्य के साथ अपने नँग - धड़ंग या कोई भी फोटो चैंप देगा तो 5000 में से 40 - 50 तो श्री श्री चमन बहार होते ही है ना और इनमें आधे से ज़्यादा तो वो है जो गुट निरपेक्ष के राष्ट्राध्यक्षों की तरह जो कही भी उठकर चल देते है, अपना लिखा बार-बार पढ़कर उजबक की तरह से फोन मत किया कर और लिंक मत भेजा कर, ब्लॉक कर दूँगा सड़ियल" - फोन काट दिया मैंने साला किसी को श्रद्धांजलि भी देगा तो अपना फोटो लगा देगा #दृष्ट_कवि *** "देश की जनता और एकता ने पूछा है कि कलेक्टर साहब तुम्हारी औकात क्या है" ●●●●● एक किताब है पीयूष मिश्रा की "पीयूष मिश्रा तुम्हारी औकात क्या है" और दूसरा व्यवहारिक प्रश्न पूछा मप्र के शाजापुर जिले के कलेक्टर साहब ने ट्रक ड्राइवर से कि "ड्राइवर, तुम्हारी औकात क्या है" पर ब्यूरोक्रेसी का यह नुमाइंदा यह भूल गया कि जब औकात ट्रम्प की नही रही, चर्चिल, कैनेडी, गोर्बाच्योव, पुतिन, नेतन्याहू, इमरान खान, भुट्टो की नही रही, लार्ड माउंटबेटन, नेहरू, इं