Skip to main content

Ustad Rashid Khan sahab and Khari Khari - Posts of 9 Jan 2-24


शायद ही ऐसा कोई दिन या रात जाती हो जब रेख़्ता के कार्यक्रम में उस्ताद को ना सुना, आओगे जब तुम से लेकर वो सारी बंदिशें जो संगीत के मान्य पैमाने छोड़कर या तोड़कर झूमते हुए स्थाई प्रभाव छोड़ती हो

इधर पक्का गाना गाने वालों में राशिद ख़ाँ साहब का मिज़ाज़, अंदाज़ और गाने का सलीका एकदम जुदा था इसलिये वो दिल के करीब थे , आज उनके जाने की खबर से हैरान हूँ, मुझसे एक बरस छोटे और इस कम उम्र में यूँ चले जाना बहुत अखर गया पर कैंसर की पीड़ा से शरीर जूझ रहा था, शरीर को तकलीफ़ न हो और चुपचाप सब कुछ खत्म हो जाये इससे बेहतर कुछ हो नही सकता - बीमारियां शरीर को जब सड़ाने लगती है तो इंसान को शर्म आने लगती है और वह मुक्ति की कामना करने लगता है
दुख तो सबको होता है, पर एक आदमी अपने जीवन काल में अपनी विलक्षणता से इतना कुछ कर जाता है कि उसे फिर कुछ करने की ज़रूरत नही पड़ती - यश कीर्ति और अमरता भी एक तरह से भ्रम ही है पर उस्ताद आप तो इस सबके पार हो गए थे, देखिये ना आपके मुरीद कैसे तड़फ गये है
सुकून से रहो जहाँ भी रहो, आपके गीत और आपकी बन्दिशें अँगना में फूल खिलाती रहेंगी - सदियां बीत जायेंगी पर आपको भूलना असम्भव होगा
सादर नमन
***
साहित्य में श्रीराम मंदिर को लेकर अलग ही टशन चल रहा है, न शिष्टता है और ना ही तमीज़, न लेखन की समझ और ना तात्कालिक राजनीति का भान, ना वर्तमान ना भविष्य और ना टुच्चापन ना ओछापन
अपनी समझ और कुंठित विचारधाराओं से कविगण अखाड़े में है और दोनो ओर के भक्त पिले पड़े है
मज़ेदार है यह सब देखना और समझना
हम सब कितने घटिया और पाखंडी है यह बात कहने समझने के लिये अलग से कुछ करने की ज़रूरत है, बेहद शर्मनाक है ना छोटे बड़े का भान ना कविता के पैमानों पर कविता का शिल्प, न स्वस्थ आलोचना ना कुछ सौम्य भाषा - बस मैं मैं और मैं - "अहं ब्रह्मास्मि - दूज्जो ना भवो"
और यह सिर्फ़ लाइक्स, कमेंट्स के लिये जैसे सब स्क्रिप्टेड और बेहद शातिरी से तैयार, नाटक के मंजे हुए अभ्यास से आया हुआ परिपक्व अभिनय और जंग जीत लेने के पक्के इरादे
जियो प्यारों, जियो और ऐश करो - हिंदी में तुम जैसे ही सफल है इसलिये अपुन अब साला दौड़ में इज़ नई है
न वो कविता लिखूँगा न वो पोस्ट यहाँ चैंपुंगा, दोनो ही अतिवाद है और आज के इस समय में ना ऐसी ढुलमूल कविता का मतलब है - ना घटिया शब्दों में लिखी आलोचना का
महेश्वर ने कभी लिखा था - "आदमी को निर्णायक होना चाहिये"
आत्म मुग्धता और लाइक्स कमेंट्स की हवस हमें कहाँ ले आई है इससे शर्मनाक कुछ नही हो सकता

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही