भारत में आज़ादी के बाद हिन्दू राष्ट्र बनने के लिये दलित, आदिवासी और ओबीसी नेतृत्व ज़िम्मेदार है, मैं कभी से कह रहा हूँ, जब योगी को सीएम बनाया गया था तभी मैंने कहा था कि जिस बसपा को स्व कांशीराम जी ने बामसेफ के जरिये बनाया, मायावती का इस्तीफा दिलवाकर पार्टी में लाये और 1992 में "तिलक - तराजू और तलवार को जूते मारने" जैसा नारा दिया और यूपी में बसपा सरकार ही नही बनी, वरन अंबेडकर पार्क से लेकर दलित राजनीति मुख्य धारा की राजनीति बनी पर भाजपा और संघ ने धीरे धीरे सब खत्म कर दिया आज ना बसपा है ना मायावती और बड़े दलित वर्ग ने इनकी कठपुतली बनकर सड़कों पर जॉम्बी बनकर सत्ता इन्हें सौंप दी, हिंदी पट्टी में लालू और यादव लॉबी से लेकर महाराष्ट्र और दक्षिण में भी दलितों ने बड़ी भूमिका निभाई इस सबमें और खुलकर संघ और भाजपा का साथ दिया - आज रो रहे तो क्या पर मुलायम से लेकर शरद पवार ने कभी खुलकर ना विरोध किया और ना ही कोई स्पष्ट विज़न रखा
पूरे दलित आंदोलन के नेता जिसमें दिलीप मंडल जैसे घाघ भी शामिल है, इसके लिये जिम्मेदार है और आज भी वे थाली परोसकर भाजपा को दे रहें है, कही भी बैकलॉग भर्ती या और मांगों की मांग नही आती चंद्रशेखर रावण हो या जिगनेश या गुजरात मे उभरे युवा या कन्हैयाकुमार जैसा मक्कार अवसरवादी
आज भी देखिये राम मंदिर का उत्साह कहाँ है दलित बस्तियों में, सुंदर कांड - भोपाल की अरेरा कॉलोनी में नही हो रहा - दलित बस्तियों में हो रहा है, दिल्ली के वसंत कुंज में नही बल्कि बस्तियों में हो रहा है, इसी के साथ साथ मुस्लिम उलेमाओं, मौलवियों, देवबंद से लेकर जामा मस्जिद के इमाम भी इस पूरे षडयंत्र में शामिल है जो अपनी अल्प संख्यक राजनीति चलाकर अनपढों पर धर्म थोपते रहें और धंधे चलाते रहें
मेरा मानना है कि प्रचंड हिन्दुवाद के लिये सिर्फ़ और सिर्फ़ दलित, ओबीसी और आदिवासी जिम्मेदार है जो बहुतायत में है और हनुमान या गणेश की मूर्ति लेकर घर गए, मिशनरी में बच्चों को पढ़ाया, इलाज मिशन अस्पताल में कराया और गाली दी सिस्टर्स और फादर्स को और सत्ता सौंप दी भाजपा को जो अब इन्हें ही नष्ट करने में लगी है, छग में दिलीप जूदेव ने जो मूर्ति बांटने का काम करके आदिवासियों की घर वापसी का शुरू किया था - वह रमणसिंह के बेटे ने कवर्धा में आजतक जारी रखा है, दलितों को झंडे - डंडे देकर हाई कोर्ट से लेकर मस्जिदों पर दौड़ाया कि जाओ बेटा लगा दो झंडे और करो भोंगे लगाकर सुंदर कांड, पर शिक्षा या रोज़गार की बात कभी नही की इनके लिए
ये 2024 में आरक्षण खत्म कर देंगे - लिख लीजिये और मायावती जो अभी उछल रही है उसे ठीक चुनाव के पहले ईडी या सीबीआई अदालत जेल में ठूंस देगी - खेल खत्म बस और फिर बनेगा असली हिन्दू राष्ट्र,जनता वहशी हो गई है - जय श्री राम के आगे सब व्यर्थ है, हमारे ब्यूरोक्रेट्स हिन्दू हो गए है जो सँविधान लागू करने के लिये जिम्मेदार थे - फील्ड देखिये जहाँ पटवारी से लेकर नायब तहसीलदार अपना और उनका करने लगा है
मन्दिर का बनना अच्छी बात है, सँविधान छूट देता है, मानिए, जरूर पूजा पाठ करिए, पर इस जनता को रोजी - रोटी देने का रोज़गार देने का, सभी नागरिकों को सम्मान, गरिमा और बेहतर ज़िंदगी देने का काम भी चुनी हुई सरकार का है ना - तो इसकी भी बात करिए, सड़क - बिजली - पानी भी दीजिये, मुफ्त की राशि या पाँच किलो राशन की भीख की आड़ में षडयंत्र मत रचिये, देश मत बेचिये, एक दो लोगों को सारे संसाधन देकर ताकतवर मत बनाईये - यह तो लोकतंत्र नही है सरकार
मन्दिर, धर्म, उत्सव जनता के है आप सरकार बनकर हमारे कार्यक्रमों पर कब्ज़ा मत करिए, सिंहस्थ में हमने देखा कि कैसे सरकार ने एक जनआस्था और जन उत्सव को सरकारी बनाकर कब्ज़ा कर लिया, आप व्यवस्था कीजिये सभी संसाधनों पर अतिक्रमण बल प्रयोग करके और वोट के लिये सत्ता के लिये हर जगह मत आइये - आपके काम करिये वही पर्याप्त है पर आपको तो हर जगह जाना है भूतल हो, समुद्र या नभ में
इस सबमें सुप्रीम कोर्ट, तमाम राज्यपाल और महामहिम राष्ट्रपति को क्यों याद नही रहता कि सँविधान पंथ निरपेक्ष है और उन्हें इस बढ़ते ज्वार पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिये पर हाल ही में आये फैसलों को देखकर समझा जा सकता है और महामहिम या राज्यपाल का तो औचित्य ही खत्म हो गया है, कल हो सकता है सारे अधिनियमों पर प्रधानमंत्री ही हस्ताक्षर कर दें
देश की बहुत दुखद स्थितियां है पर रास्ता एक ही है बैलेट पेपर से चुनाव और ईवीएम का पूर्ण बहिष्कार - बस !
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इस देश में अब कमाल यह है कि जिसकी पूँछ उठाओ - वह मादा नही, नपुंसक निकल रहा है
और भयानक आत्ममुग्धता राष्ट्रीय रोग हो गया है - क्या बड़े क्या छोटे सब इस प्रवाह में बुरी तरह से बह रहें है
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चीन ने बिल्कुल सही कहा कि विश्व स्तर के नेता को उदार होना चाहिये
सहमत हूँ, फिर क्या फ़ायदा, श्रीराम मंदिर बनवाने का, महाँकाल लोक और बनारस में बाबा विश्वनाथ धाम बनाने का, गौतम बुद्ध और महावीर के देश में रहने का और 140 करोड़ लोगों के प्रतिनिधित्व करने का, हिन्दू राष्ट्र का प्रमुख होने का - हिन्दू का मतलब ही सहिष्णु होना और उदार होना है
एक दो लोगों की आलोचना नही सह सकते तो क्या मतलब है गांधी, अंबेडकर और दीनदयाल उपाध्याय या अटल बिहारी की परम्परा में नेतृत्व देने का
कोई अर्थ नही कबीर, रहीम, रसखान की परंपरा में अपने को साधु कहने का, हम तो वे है जो कहते है - "निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छबाये", हमारा संविधान असहमति और समालोचना की बात जवाबदेही से करता है
इतने छिछले और कमज़ोर है यह समझ तो आ रहा था जब आपने प्रो साईंबाबा से लेकर हर्ष मन्दर, बेला भाटिया, सुधा भारद्वाज, गौतम, विनायक सेन, से लेकर तमाम विपक्षियों को जेल में बन्द कर दिया पर आज मालदीव जैसे अदने से देश के दो तीन मंत्रियों पर गाज गिरा दी, यही है 56 इंच का सीना
हर व्यक्ति या हर देश अंध भक्त नही है और यह भी सही है कि उन लोगों को यह सब नही करना चाहिये खासकरके तब जब आप किसी देश मे संविधानिक पद पर हो, वे तो मूर्ख ही है, पर आप तो उदार है, बड़े है, महान है, वैश्विक नेता है, गांधी और पटेल के गुजरात से आते है - क्या इतना धैर्य और संयम नही, हमारे यहाँ तो क्षमा वीरस्य भूषणम कहते है - फिर क्यों भूल गए आप यह मूल मंत्र, ऐसे में वसुधैव कुटुम्बकम करेंगे या जगसिरमौर बनेंगे
बहुत मुश्किल राह है, इतिहास में जगह बनाने के लिये मन्दिर, सूट, कपड़े और जेलबन्दी,फ्री राशन और घटिया राजनीति नही होती - उसके लिये क्षमाशील और बड़े दिलवाला होना ज़्यादा जरूरी है, लोगों की सभी बातें सुनकर उन्हें माफ़ करना जरूरी है
बहरहाल, श्रीराम मंदिर बनने के बाद प्रभु श्रीराम आपको उनके हिस्से की 1% अक्ल भी दे दें तो बड़ी बात होगी - जिन्होंने धोबी के कहने पर गर्भवती भार्या को घर से निकाल दिया था, लक्ष्मण को कहा था कि रावण से ज्ञान लो जब वह प्राण त्याग रहा था, और धोबी को श्रीराम ने कभी बाद में सजा दी - इसका ज़िक्र कही नही आया
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और आज अमेरिका उतरा कमरे में
बड़का आया हुआ है आजकल बल्कि अब तो जाने के दिन आ गए, आज पूरा दिन साथ रहा, हिम्मत बंधाता रहा और बस ... कितने सालों बाद लड़ाई - झगड़े और मनुहार के बाद यह मंगल दिन आया, मैंने कहा था आ जाओ फिर पता नही मिलना कब हो
एक दिन बहु और दो बेटियों के संग आया था तो लाइट चली गई, बरसात हो गई और देर रात मुझे भी कही निकलना था पर आज दोनो ने तसल्ली से खूब बातें की और हवाई योजनायें भी बनाई - देखो क्या - क्या हो पाता है ज़मीन पर
इसी माह ऑस्टिन ( टैक्सेस ) लौट जायेगा, कोविड के पहले आया था, जल्दी-जल्दी आते रहो बिटवा, बहु और बेटा दोनो वही काम करते है - अपना मकान है ऑस्टिन में और दो प्यारी सी शैतान सी पोतियां है बस उनके संग रहने का और खेलने का मौका नही मिला और इन दोनों को नर्क फ्रॉम होम मतलब वर्क फ्रॉम होम ने व्यस्त रखा सारे समय
मोहित IIT रूड़की से बीटेक है फिर TAMU Texas से एमएस और पेट्रोलियम रसायन विज्ञान में पीएचडी है और अभी एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक है, बहु भी इंजीनियर और "डेल" में वरिष्ठ डाटा वैज्ञानिक है, दोनो ऑस्टिन रहते है
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